माह की कवियत्रीः पद्मा मिश्रा

युद्ध और मानवता

कैसा हो अपना नव वर्ष?
वह कौन है?,जो घोलता है,
हवाओं में, गंध बारूद की,
वह कौन है ,जो बोता है,नफरतों के बीज,
धरती से आसमान तक…
लहुलुहान सपने हैं,
,कर्मठ हथेलियों पर ,मौत के खिलौने हैं..
कौन हैं?जो दहशत की रातों में जगता है,
नन्हे नौनिहालों की कोमल हथेलियों पर,
… सपनो की राख तले,
बूंद बूंद खून से लिखता है तहरीरें,??
कौन है जो छीनता है .माँओं से शिशु अबोध,
सपने आशाओं के, किरणें उम्मीद की,!!
कौन है जो रचता है,अपनी ही धरती पर,
अपने ही लोगों में,
दहशत, आतंक और ध्वंश की कहानियां,!
कितनी ही आँखों के ,सपनों को रौंद यहाँ,
छोड़ गए आंसू और दर्द की निशानियाँ,.
कौन?.जो मानवता को कलंकित कर बार बार,
लाशों के ढेर पर ..बाँसुरी बजाता है ?
मुट्ठी भर लोगों की हत्यारी सोचों में
जिंदा है दर्द कहां? पशुता ही पलती है,
जाति.सांप्रदायिकता की, विकृत भावनाओं में,
जगती पाशविकता पर दानवता हंसती है,
केसर की क्यारी में घुली हुई कालिमा है
शीतलता बांटती धरती के दर्पण में
कहां खो गई है वह स्वर्णिम अरुणिमा?
तुझमे और मुझमे फर्क ही भला कैसे?
रामायण,बाइबिल,गीता,कुरान में भी,
प्रेम ही तो पलता है,,प्रेम ही सिखाता है,
जाति वर्ग. धर्मों में.क्यों बांटे दिलो को हम?
सबसे बड़ा तो इंसानियत का नाता है…..
मानव के मन में जब मानवता बिहंसेगी
पोर पोर महकेगा अपना नव वर्ष तब.

मानवता की सेवा में सन्नद्ध–कर्मवीरो के नाम
है नमन तुम्हे मानवता हित जीवन अर्पित करने वालों
सेवा से संकट मोचक बन हमको गर्वित करने वालों
हर जंग जहां जीती हमने दुश्मन को धूल चटाई है
संक्रामकता -निशिचर के दमन की कसम उठाई है
है नमन तुम्हे खतरों से भी आंधी बन टकराने वालो
है नमन तुम्हे मानवता हित जीवन अर्पित करने वालों
विश्वास रहे एकता रहे, यह भाव नहीं मिटने देना
हम रहें सुरक्षित देश रहे संकल्प नहीं डिगने देना
हारेगी दानवता जब ,हारेगी आतंकी सेना
है नमन तुम्हे मानव-योद्धा सबको प्रेरित करने वालो
है नमन तुम्हे मानवता-हित जीवन अर्पित करने वालों
है कर्म यही और धर्म यही संयम जीवन में साथ रहे
एकाकीपन से डरो नहीं ,बस जीवन का सम्मान रहे
है नमन तुम्हे संकल्प शक्ति से जीवन सफल करने वालों
है नमन तुम्हे मानवता-हित जीवन अर्पित करने वालों

एक दीपक जागरण का हम जलाये
दें चुनौती तिमिर को, और एक नया सूरज उगाएं
एक दीपक जागरण का हम जलाएं
विश्व मंगल कामना को चेतना में साध लाएं
दूर हो मन का अंधेरा रोशनी यूं जगमगाए
एक दीपक जागरण का हम जलाएं
हम अकेले नहीं जग में,साथ सबकी भावना है
आतंक जग का हो पराजित,यह युद्ध हमको जीतना है
दीप से मिल दीप का आलोक जग में बांट जाएं
एक दीपक जागरण का हम जलाएं
(4प्रार्थनाभगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना
कण कण ये भारत भूमि का करता हृदय से प्रार्थना
भगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना
यहां राम हैं तो रहीम भी.श्रीकृष्ण हैं तो करीम भी
फिर क्यो अमन के नाम पर फैली हुई दुर्भावना
भगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना
बहुत हो चुका अब न कोई.युद्ध राम के नाम पर
अब न कोई द्वद्ध रहेगा धर्म ,,भूमि के नाम पर
हम सब केवल भारत के,न डिगे एकता-भावना
भगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना
बस लोकतंत्र विजयी रहे.ना हो बिखडित एकता
गौरव रहे अब न्याय का,सम्मान संविधान का
कोई रहे या ना रहे.बस देश यह जिंदा रहे
ना हो कभी फिर भारती मां की यहां अवमानना
भगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना
जहां धर्म जाति व न्याय के अद्भुत समन्वय की प्रथा
बंधुत्व की यह भावना सस्वर विजित होगी सदा
होगी सदा अपराजिता,सुख शान्ति की शुभ भावना
भगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना

विश्व हृदय के महासमर में .जीवन दर्शन लाने को
हिंसा प्रतिहिंसा दलने को .चक्र सुदर्शन लाना होगा
जग में फैले वकासुरों के भय से मुक्ति दिलाने को .
आज पुन: धरती पर नटवर कृष्णा कौ आना होगा .

मतभेदों की घिरी आंधियां.घोर विषमता फैली है.
एक रुप समभाव.दृष्टि- सम..करुणा-पथ चलना होगा .
जरासंध और कंस सरीखे अनगिन असुर धरा पर है
घृणा.द्वेष के कुविचारों से स्वच्छ गगन गढना होगा
आज पुन: धरती पर नटवर कृष्णा कौ आना होगा .

पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर

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