मंथनः शब्द ही बृह्म है-इंदु झुनझुनवाला

भला शब्दों में क्या रखा है ,,,?

बचपन में खूब पढ़ा – कलम की ताकत तलवार से बढ़कर होती है ।
बात पल्ले नहीं पड़ी। तलवार तो किसी के भी सिर से धड़ तुरन्त कर देती है, भला शब्दों में क्या रखा है?
जो मन में आया बोल दो। बोलना ही तो है, क्या फर्क पडता है?
किशोरावस्था में पढ़ा, शब्द ही ब्रह्म है। ओमकार सत्य है।
लगा, ये “ओम” शब्द ईश्वर का प्रतीक है इसलिए इसे ब्रह्म कहा गया है शायद ,,
और मन ने मान लिया कि इसीलिए इसकी ताकत तलवार से अधिक मानी गई है।

प्रेमचन्द को पढ़ा। उन्हें कलम का सिपाही कहा गया ।
उनकी लेखनी ने भारत के गाँवों का यथार्थ चिन्तन किया है ,नारी की पारिवारिक व सामाजिक स्थितियों पर अपनी लेखनी चलाई, अर्थात समाज की बुराईयों को अपनी लेखनी से उकेरा, शायद इसलिए उन्हें कलम का सिपाही कहा गया होगा, किशोर मन ने मान लिया ।

आज उम्र के इस पड़ाव पर जो समझ आया, उसने चौंका दिया मुझे।
वास्तव में शब्द ब्रह्म कैसे हो सकता है?
शब्द संसार गढ़नेवाला , संसार चलाने वाला और संसार को ध्वस्त करने वाला यानि ब्रह्मा विष्णु और महेश – शब्द के पर्यायवाची की तरह घूमने लगे मेरी आँखों के सामने ,,,,।

एक गहन चिन्तन प्रक्रिया से होकर गुजरा मन, तो लगा ये क्या ?
अहसास हुआ, बुद्धि जागृत हुई और कहा उसने – “हम मानव शब्दों का उच्चारण तो सीख लेते हैं, पर बोलना कहाँ सीख पाते हैं !”
बात समझ नहीं आई। बात उलझती चली जा रही थी ।
“हम तो एक- ढ़ेड साल की आयु से ही बोलना सीखने लगते हैं।”

बुद्धि हँसी।
मन चकराया।

“बात खुलकर समझाओ।
पहले तो तुमने कहा- शब्द ब्रह्म है। फिर कहा ‘शब्द ब्रह्मा विष्णु महेश है’ और फिर कहते हो , हमें बोलना नहीं आता।
बड़ी उलझनें पैदा कर दी है तुमने।”

बुद्धि मुस्कुराई एक बार फिर ।

और फिर गम्भीर होकर कहा – “अगर शब्दों का उच्चारण करना ही बोलना है तो निश्चित ही मैं गलत साबित होऊँगी।
सुनो, बोलना शब्द विद् धातु से बना है । विद् का अर्थ जानना यानि ज्ञान है। तभी हमारे आर्ष ग्रंथ वेद कहलाते हैं, जिसमें जीव जगत का सत्य समाहित है।”

कुछ रूककर पूछा उसने-
“तो क्या जिन शब्दों का उच्चारण हम करते है , उनका अर्थ जानते हैं हम? ”
मन मुस्कुराया, बचकानी लगी उसकी बात ।

“अरे , ये भी भला कोई पूछने की बात है।
शब्द के अर्थ तो हम अपनी प्रथम पाठशाला यानि परिवार में सीख जाते है और फिर विद्यालय और महाविद्यालय में।”

बड़े ही सहज भाव से फिर बुद्धि ने पूछा – “तब तो हर शब्द उच्चारण के साथ उसके अर्थ को जानते हुए उसके प्रभाव और परिणाम से भी अवगत होगे तुम?”

चौक उठा मन – “अर्थ तक तो बात समझ आती है , प्रभाव और परिणाम? कहना क्या चाहती हो तुम? ”

“अच्छा एक बात बताओ जब कोई तुम्हें प्यार के बोल बोलता है तो कैसा लगता है ? ”

“आन्तरिक प्रसन्नता होती है।”

“अच्छा,,,जब कोई अपशब्द कहता है तो?”

“अरे , ये भी कोई पूछने की बात है , आन्तरिक पीडा होती है।”

“कोई झूठा दोषारोपण करतता है तब ?”

“सीने में तीर चुभता है मानो।”

“कोई भजन सुनाता है तो?”

“ईश्वर के प्रति पूजा, श्रद्धा के भाव आने लगते है।”

तब बुद्धि ने कहा- “शब्द की ताकत कलम से अधिक हो गई ना?”

थोड़ी-थोड़ी बात अब मन को समझ आने लगी। शब्द का प्रभाव स्पष्ट हो रहा था।

मन ने पूछा,” पर ये ब्रह्मा, विष्णु और महेश की बात समझ नहीं आई।
इसका प्रभाव और परिणाम ,,, इतना सोचकर कैसे बात हो सकती है?”

“तुम्हारे इन सवालों से मुझे खुशी हुई ।
अब तुम समझ पा रहे हो” – कहा बुद्धि ने।

“चलो, तुम्हें आगे बताती हूँ कुछ उदाहरणों द्वारा।
साहित्य इसी प्रकार तो बड़ा उपयोगी सिद्ध होता है, हित को लेकर जो चलता है।”

“अब ये बीच में साहित्य कहाँ से आ गया ।
मुझे यूँ गोल-गोल मत धुमाओ। ”

“धैर्य की बहुत कमी है तुममें । जानते हो, यही अधैर्य तुम्हें असंयमित करता है, यही असंयम तुम्हें उच्चारण तो सिखा जाता है , उसके प्रभाव और परिणाम के ज्ञान से वंचित रखता है।”

मैं चुप हो गया ।
बिल्कुल शान्त।
बात सही थी , मुझमें धैर्य तो नहीं था।

तब बुद्धि ने जो उदाहरण दिए, मैं चकित रह गया।

बुद्धि ले गई मुझे सैकडों-हजारों साल पहले।
कहा उसने –
“दशरथ के वे दो वचन और उसका प्रभाव- अयोध्या का सिंहासन चौदह वर्षो तक किसी राजा के बैठने का इन्तजार करता रहा।
परिणाम – राम का वनागमन और महाराज दशरथ की मृत्यु।”

“भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा,
माता कुन्ती के वे शब्द ” बाँट लो आपस में”
द्रौपदी का उपहास – अन्धे का पुत्र अन्धा,,,,”

“इन सबका प्रभाव और परिणाम – द्रौपदी का चीर हरण, भाई-भाई के बीच युद्ध, तीरों की शय्या पर लेटे भीष्म, लाशों से पटी धरती और वंश का अंत।”

एक शब्द जिसने तुलसी को गढ़ा,
एक शब्द जिसने वाल्मीकि को पैदा किया,
एक शब्द जिसे गौतम को बुद्ध बना दिया,
एक शब्द, जिसने चाणक्य द्वारा चन्द्रगुप्त को सिंहासन दिलवाया।
एक शब्द, जिसने द्रौपदी का चीरहरण करवाया,,
एक शब्द , जिसने द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र होने से बचाया।
एक शब्द, जिसकारण गांधार नरेश को कौरवों पाण्डवों के सर्वनाश का कारण बनना पड़ा।

शब्द रचनाकार , शब्द पालन हार और शब्द विध्वंसकारी-
यानि ब्रह्मा,विष्णु और महेश- शब्द।

उच्चारित शब्दों के सिर्फ शाब्दिक अर्थ ,,,जीवन की दिशा और दशा सभी बदलकर रखने की सामर्थ्य भी रखते हैं, कब जाना हमने?

शब्दों को गढ़कर उनके प्रभाव और परिणाम की ओर इंगित करने वाले को रचनाकार, साहित्यकार क्यों कहा जाता है, आज समझ आया।

उसकी लेखनी से उकेरे शब्दों को साहित्य की स॔ज्ञा क्यों दी जाती है और साहित्यकार क्यों सम्माननीय हो जाता है।

साहित्य जो सबका हित लेकर चले, यानि जो शब्दों के प्रभाव और परिणाम को समझकर सर्व हित को लेकर चले।
आज मन इतिहास और वर्तमान को टटोलने लगा है, आज मन ने माना है कि शब्द ब्रह्म हैं , इस संसार की रचना का श्रेय उसे जाता है।
शब्दों में ताकत है तख्त पलट देने की।
शब्दों में शक्ति है रिश्ते बनाने की भी और बिगाड़ने की भी।
थोड़े शब्दों में कहूँ तो शब्द निश्चित ही संसार गढ़ने ,चलाने और ध्वस्त करने की शक्ति से परिपूर्ण है अतः ब्रह्मा, विष्णु और महेश है- शब्द।

आज मान लिया मन ने कि हम शब्द उच्चारण तो सीखने लगते हैं बचपन से ही, पर कोई हमें इसकी शक्ति इसके रूप, इसके प्रभाव और परिणाम नहीं सिखाता।

बस कोरे शाब्दिक अर्थों में उलझकर रह जाते हैं हम सत्य से दूर।
हमारी यही अज्ञानता भयावह परिणाम बनकर लील लेती है जीवन का आनन्द।।

मन हुआ आज संकल्पबद्ध – उच्चारित शब्दों के पूर्व उसका भावार्थ- उसके प्रभाव और परिणाम का ज्ञान अत्यावश्यक, अगर चाहते हैं हम स्व से होते हुए सर्व का कल्याण, रखते हैं सभी के प्रति मंगल कामनाएँ ।।


डॉ इन्दु झुनझुनवाला
17 जुलाई 2022 रविवार

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