इस अद्भुत और प्राचीन मंदिर को देखने का अवसर मिला मुझे सन 2009 में जब हिमालय भ्रमण के दौरान चार धाम की यात्रा पर थी। देव-भूमी उत्तराखंड के धार्मिक स्थल रुद्र-प्रयाग जिले के त्रियुगी नारायण नामक गाँव में स्थित यह मंदिर हमारे तीनों प्रमुख देवों से जुड़ा हुआ है। सम्पूर्ण सृष्टि के निर्माण, संचालन और संहार का भार संभाले, एक ही निर्गुण ब़्रह्म के तीन सगुण अवतार -बृह्मा, विष्णु, महेश तीनों को समर्पित है यह और इन्ही की तीनों युगों की लीला को दर्शाता है अनोखा त्रियुगीनरायण मंदिर।
यहाँ भगवान विष्णु वामन रूप में पूजे जाते है और साथ ही बद्रीनाथ व रामचंद्र जी की भी प्रतिमाएं हैं। मान्यता यह भी है कि शिव पार्वती का विवाह भी यहीं पर हुआ था। देवों के देव व जगत जननी के विवाह स्थल पर पहुंचना किसी सम्मोहन से कम नहीं था मेरे लिए।
कहते हैं की सतयुग में जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था तब यही स्थान हिमवत की राजधानी था। और यहीं पर सती ने पार्वती के रूप में अपना दूसरा जन्म लेकर शिवजी को पुनः कठिन तपस्या के बाद वर के रूप में पाया था। भोलेनाथ ने यहीं उनसे विवाह किया और विष्णु भगवान ने देवी पार्वती के भाई के रूप में सभी रीति-रिवाज निवाहे थे यहीं पर। ब्रह्मा इस विवाह के पंडित थे और विवाह समारोह सभी देवी-देवताओं की उपस्थति और आशीर्वाद के साथ संपन्न हुआ था। भारतीय आस्था और संस्कृति के संदर्भ में इस मंदिर की दिव्यता और आकर्षण को इन्ही तथ्यों की विशिष्टता में डूबकर ही समझा जा सकता है।
शिव पार्वती के विवाह के अलावा एक अन्य पौराणिक कथा से भी जुड़ा है यह मंदिर। इन्द्रासन पाने के लिए राजा बलि को 100 यज्ञ करने थे परन्तु राजा बलि द्वारा केवल 99 ही पूरे हुए थे, तभी भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि को रोक दिया था और उनका अनुष्ठान भंग हो गया। विष्णु भगवान की इसी वामन अवतार रूप मे पूजा होती है यहाँ पर। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विष्णु लक्ष्मी देवी के साथ विराजमान हैं यहाँ।
परन्तु भक्तों को सर्वाधिक रोमांचित करता है वह हवनकुंड, जहाँ शिव-पार्वती ने साथ फेरे लिए थे। इनके पारस्परिक प्रेम की तरह ही तीन युगों से दिव्य लौ प्रज्वलित है यहाँ पर, उस अटूट मिलन का निरंतर प्रकाश बिखेरती। प्रसाद के रूप में भक्त लकड़िया चढ़ाते हैं और हवनकुंड की सतत जलती अग्नि की चुटकी भर राख घर ले जाते हैं। मान्यता है कि हवनकुंड की यह राख भक्तों को वैवाहिक जीवन में सुखी रहने का आशीर्वाद देती है क्योंकि इस विवाह समारोह को सभी, देवी-देवताओं ऋषि-मुनी, साधु-संतों का आशीर्वाद जो मिला था। यह अग्नि पिछले तीन युगों से नहीं बुझी और ना ही बुझने दी गई है। जन साधारण की प्रबल धार्मिक आस्था का बड़ा प्रमाण है यह भी। आश्चर्य नहीं कि डेस्टिनेशन वेडिंग की तरह भी प्रचिलित हो रहा है अब यह मंदिर। कुछ फिल्म स्टार और सेलिब्रिटीज यहाँ विवाह करवा चुके हैं। विवाह स्थल के इस नियत स्थान को ब्रह्मशिला कहा जाता है और न सिर्फ इसे शिव-पार्वती के दिव्य विवाह का वास्तविक स्थल माना जाता है, अपितु यदि आपपर शिव पार्वती की विशेष कृपा हो तो शिव पार्वती सफेद नाग-नागिन के जोड़े के रूप में प्रकट होकर दर्शन तक देते हैं, पूर्णिमा, अमावस शिवरात्रि… किसी भी विशेष दिन पर।
मंदिर के वास्तुशिल्प की शैली केदारनाथ के मंदिर की तरह है। तीन कुंड हैं। जिन्हें रूद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड के नाम से जाना जाता है। इन तीनों कुंडों के पानी का स्रोत सरस्वती कुंड है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सरस्वती कुंड का पानी स्वयं भगवान विष्णु की नाभि से निकला था। इस पवित्र स्थान का एक विशेष महत्व यह भी है कि मान्यता अनुसार यहाँ आने के बाद नि:संतान दम्पती को संतान प्राप्ति हो जाती है। फलतः लोग इस कामना के साथ भी यहाँ दर्शन करने आते हैं। मंदिर के आंगन में स्थित स्तंभ और इन कुंडों में स्नान और तर्पण की भी परम्परा है।
कहते हैं ब्रह्माजी जब भगवान शिव और पार्वती का विवाह कराने के लिए रुद्रप्रयाग के त्रियुगीनारायण गाँव में आये थे तब उन्होंने इसी ब्रह्म कुंड में सबसे पहले स्नान किया था। ब्रह्माजी के आशीर्वाद की कामना के साथ वर्तमान में भी लोग इस ब्रह्म कुंड में स्नान करते हैं।
विष्णु जी ने विवाह से पहले जिस कुंड में स्नान किया था वह विष्णुकुंड है। और शिव-पार्वती के विवाह समारोह में सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनी, साधु-संतों ने जिस कुंड में स्नान किया, वह रूद्रकुंड है।
यहाँ पर एक स्तम्भ भी है। इस स्तम्भ के सहारे विवाह समारोह के दौरान शिवजी को उपहार स्वरूप मिली गाय को बांधा गया था। आजकल इच्छित और शुभ विवाह-स्थल की तरह भी लोगों का इसकी तरफ ध्यान जा रहा है।
हरी-भरी उत्तराखंड की रम्य वादियों के बीच बना यह अति प्राचीन मंदिर इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताओं की वजह से अधिक रहस्यमय व दिव्य प्रतीत होता है और एक इच्छित और शुभ विवाह-स्थल की तरह भी इसकी मांग बढ़ रही है।
शैल अग्रवाल
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