कुलबुल कीड़ा कुलबुल कुलबुल
हंसे देखकर चुनमुन चुलबुल
इतनी बड़ी दुनिया में अकेले तुम
पर कितने खुश और बहादुर तुम !
मेरी मम्मी
सबसे न्यारी, सबसे प्यारी
हंस-हंस रोज खाना ये खिलातीं
औऱ रो-रोकर डांट लगातीं
होमवर्क करातीं, स्कूल ले जातीं
और अगर कभी जो हो जाए चूक
गोदी में लेकर चपत लगातीं
बड़े प्यार से मुझे समझाती।
मिलना और बिछड़ना
बिछड़कर फिर मिल जाना
यादें तो सबको ले आतीं
दूरपास, सबसे ही मिलवातीं
कल नीलू बिट्टू सबको ले आईं
खेले फिर हम लुका-छिपी
गुड़िया की शादी भी रचाई।
जैसे गुब्बारे में हवा
जैसे चूल्हे में आग
नदी और नल में पानी
जिस धरती पर मैं खड़ा
इस आसमान के नीचे
वे सब हैं मेरे भी अंदर
दादाजी कहते दिन भर
इन्ही से मिलकर तो बने हम
पर यह कैसे संभव,
माना मैं बादल
हवा पानी की तरह
दौड़ता घूमता भागता
बहता रहता हूँ
पर मैं सोचता भी तो हूँ
बोलता भी तो हूँ?
वेश, खान पान चाहे जो भी हो
अब यही देश हमारा, परिवेश हमारा
हमने इसको इसने हमको है अपनाया
नौनिहाल हम और यही तो वतन हमारा
प्रतिनिधि हैं हम दो संस्कृतियों के
गौरव हैं हम दो देशों के
रूप गुण सोच और समन्वय में
दोनों पर रहता ध्यान हमारा
आन मिटे ना जहाँ आ बसे
साख घटे ना जिसे छोड़ आए
आचरण में रहे सदा
प्यार हमारा
सोचो ना बदल गए हम
भूल गए जो था अपना
बरसों पहले बिछुड़ा छूटा।
बीज ना बदला जड़ें ना बदलीं
नई माटी में उगी फसल पुरानी
खिल रहे हम महक रहे हम
राजदूत दो संस्कृतियों के
हम नए नवेले
तारे हम दो माँ की आँखों के
देवकी ने जन्म दिया यशोदा गोदी खेले
दोनों के गुण गाएं, दोनों ध्वज फहराएँ
विश्व-बन्धुत्व के और माँ भारती के।
शैल अग्रवाल
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