गाँव की बात
आओ चुन्नू, आओ मुन्नू।
कहती हूँ मैं एक कहानी।
सुनना इसे बड़े ध्यान से
सच्ची है ये बात पुरानी।
था एक गाँव जंगल पास,
बड़ी निराली उसकी बात।
घने बड़े वहाँ पेड़ खड़े थे,
पकड़ शाखाएँ हम झूले थे।
कोयल गाती बैठ डाली,
खेतों में होती हरियाली।
घर में एक गाय बंधी थी,
दही,छाछ से सजती थाली।
नदिया भी बहती कल कल,
जल होता था बहुत ही निर्मल
छोटी संकड़ी होती पगडंडी,
बयार बड़ी चलती थी ठंडी।
खुशी में पूरा गाँव झूमता।
दुख में सदा साथ था होता।
सबका मन होता था भोला,
दिखावे का न कोई चोला।
तीन सहेली
थोड़ी चुलबुली,
बड़ी अलबेली।
ऐली,शेली,जेली,
तीन थी सहेली।
पक्की इनकी यारी,
शरारत करती प्यारी।
दिनभर करती मस्ती,
पल भी नहीं टिकती।
कभी चढ़ती छज्जा तो,
कभी होती खींचातानी।
सुनती न वो किसी की,
करती अपनी मनमानी।
जब जाती थक हार,
कहीं भी सो जाती।
नींद में भी मुख पर,
शैतानी नजर आती।
मेरी दीदी की शादी
नाच रही थी गुड़िया रानी,
लाओ मेरी ड्रेस जापानी।
बिल्कुल भी न देर करो,
झटपट मुझे तैयार करो।
देखो दूल्हा राजा आया,
लेकर बैंड बाजा बारात।
रंग बिरंगी झिलमिल सी,
सजी हुई है सुन्दर रात।
दीदी मेरी दुल्हन बनकर,
लगती कितनी प्यारी है।
पापा ने आतिशबाजी की,
बड़ी सुंदर की तैयारी है।
बज रहे हैं ढोल नगाड़े,
मैं झूम झूम के नाचूंगी।
दीदी जीजू के संग मिल,
मैं खूब मौज उड़ाऊंगी।
शशि लाहोटी, कोलकाता