आज की महिलाओं की शायरी का नवरंग-गुलदस्ता : ग़ज़ल नवरूपा
समीक्षित पुस्तक : ग़ज़ल नवरूपा सम्पादक : नरेश शांडिल्य
भारतीय परम्परा में स्त्री का स्थान बहुत अहम और सम्माननीय रहा है। प्राचीन काल से ही स्त्री ने अपने वक़ार को बुलन्द किया और पुरुष समाज ने उसके गरिमामयी स्थान को स्वीकारा है। फिर वो चाहे धन-वैभव के लिए लक्ष्मी का रूप हो, विद्या-बुद्धि के लिए सरस्वती का रूप हो चाहे रक्षा-कवच के रूप में दुर्गा का रूप हो।
समय के साथ बदलते दौर में भी महिलाओं ने हर क्षेत्र अपनी सार्थक दस्तक दी है। साथ ही ये साबित किया है कि प्रत्येक क्षेत्र में उनकी उपस्थिति सार्थक और सशक्त योगदान देते हुए पुरुष के साथ रही है चाहे वो व्यवसाय जगत हो या कला का कोई भी क्षेत्र, महिलाओं ने पूरी पुख़्तगी के साथ स्वयं को स्थापित किया है ।
कला के क्षेत्र में बात यदि लेखन-कला की करें तो वो चाहे मीराबाई, दयाबाई, सहजोबाई हो, महादेवी वर्मा, सरोजनी नायडू हो, कमला, सुरैया, बालमणि अम्मा हो, नंदिनी शाहू, सुभद्रा कुमारी चौहान हो या अमृता प्रीतम, सभी का अपने समय के साहित्य में भरपूर योगदान रहा है।
आज काव्य की अनेक विधाओं में ग़ज़ल विधा उरुज पर है और देखा जाए तो उर्दू-फ़ारसी के कवियों के अलावा हिन्दी के कवि भी बहुतायत में ग़ज़ल पर काम कर रहे है और अधिकांश सार्थक काम कर रहे हैं। इसमें भी महिलाओं का योगदान उल्लेखनीय है। ऐसे में यदि कोई महिलाओं का साझा ग़ज़ल-संग्रह निकाला जाता है तो एक सीमित संख्या में शा’इरात चुनना चुनौती भरा काम हो जाता है।
मशहूर कवि, दोहाकार, ग़ज़लकार, नुक्कड़ नाटककार नरेश शांडिल्य जी जब ये सोचते है कि महिला ग़ज़लकारों का एक साझा ग़ज़ल-संग्रह निकाला जाए तो यक़ीनन ये चुनौती उनके सामने भी आई होगी।
जब चुनिंदा शा’इरात की फ़ेहरिस्त बनाई होगी तो ये भी विचार उनके मन में आया होगा कि उनमें से कितनी शा’इरात को इस संग्रह में शामिल किया जाए और उनकी कितनी-कितनी ग़ज़लें शामिल की जाएँ ताकि ग़ज़लों का एक ख़ूबसूरत गुलदस्ता तैयार हो सके। अमूमन दो-चार ग़ज़लों से किसी के लेखन का सही से मूल्यांकन कर पाना मुश्किल होता है। सो अवश्य ये सोचा गया होगा कि कम से कम दस ग़ज़लें प्रत्येक शा’इरा की हों। तो दस ग़ज़लें प्रत्येक शा’इरा के हिसाब से आठ से दस शा’इरात का शामिल करना ज़रूरी हो जाता है।
अब इन सबके हिसाब से ग़ज़ल-संग्रह का टाइटल भी होना चाहिए। आठ, नौ या दस शा’इरात? तो अवश्य ही ये विचार उनके दिमाग़ में आया होगा कि स्त्री का अति सबल रूप है दुर्गा और दुर्गा के नौ रूप हैं। सो नौ शा’इरात को लेकर नवरूप या नवरूपा नाम रखा जाए तो बेहतर हो। इस ग़ज़ल-संग्रह का नाम “गज़ल-नवरूपा” से बेहतर कुछ हो ही नही सकता था। तो सबसे पहले मैं हार्दिक बधाई देता हूँ नरेश शांडिल्य जी को इस ख़ूबसूरत और सारगर्भित टाइटल के लिए। इस टाइटल के पीछे की आपकी सोच साधुवाद की पात्र है।
इस प्रक्रिया में नरेश जी ने जिन नौ शा’इरात को शामिल किया उनकी फेहरिश्त वरिष्ठ या कनिष्ठ के क्रम का भ्रम हटा कर वर्णमाला के अनुसार नामाक्षर से बनाई जो अपने आप में एक बेहद सहज और शालीन काम है।
124 पृष्ठ की इस पुस्तक में प्रत्येक शा’इरा को 12-12 पृष्ठ दिए गए हैं जिनमें एक पृष्ठ पर शा’इरा का फोटो, एक प्रतितिधि शे’र और उनके लेखन के बारे में संपादक के अपने विचार हैं। एक पृष्ठ पर उनका यथा-संभव परिचय। बाकी दस पृष्ठों में दस ग़ज़लें प्रकाशित की गईं हैं। ग़ज़लों में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात शे’र रखे गए हैं। अपने सम्पादकीय में नरेश शांडिल्य जी ने सभी शा’इरात का साहित्यिक परिचय इतनी ख़ूबसूरती से कराया है कि सम्पादकीय को शुरू करने के बाद एक साँस में पढ़ जाने की उत्कंठा प्रबल हो जाती है।
ग़ज़ल-संग्रह में जिन शा’इरात को शामिल किया गया है उनके नाम के साथ कुछ मेरे पसंदीदा शे’र हाज़िर कर रहा हूँ।
मुलाहिज़ा फ़रमाइएगा:
अलीना इतरत
(नगीना-उ.प्र /दिल्ली)
रिवायती रंग और आधुनिक सौंदर्यबोध की सशक्त शा’इरा –
अभी तो चाक पे जारी है रक्स मिट्टी का
अभी कुम्हार की नीयत बदल भी सकती है
ज़िंदा रहने की ये तरकीब निकाली मैंने
अपने होने की ख़बर सबसे छुपाली मैंने
एक लम्हे को तेरी सम्त से उट्ठा बादल
और बारिश की सी उम्मीद लगा ली मैंने
2 अंजलि ‘सिफ़र’
(नरवाना हरियाणा /अम्बाला)
सरलता, सहजता और सादाबयानी की उभरती हुई शा’इरा –
क़ुर्बतों के सभी हसीं मंज़र
मेरी ग़ज़लों में आ के ढलते हैं
हुई ख़त्म मिट्टी तो कूज़ागरी में
बनाई गई बारहा मैं मिटाकर
उलझती ज़िंदगी का इक सिरा पाना ज़रूरी है
तहम्मुल से सभी गिरहों को सुलझाना ज़रूरी है
3 चाँदनी पाण्डेय
(कानपुर-उ. प्र)
तरक़्क़ीपसंद शा’इरी की अलग वक़ार रखने वाली शा’इरा –
तुम जो होते तो बात कुछ होती
अबके बारिश तो सिर्फ़ पानी है
मुझे गुमान है पत्थर हूँ मैं न पिघलूँगी
उसे है ज़िद मुझे शीशा बना के मानेगा
उनके लबों पे मेरी तरह प्यास-प्यास है
इक ज़िंदगी मिली भी तो ख़ाली गिलास है
4 ममता किरण
(दिल्ली/ गुरुग्राम)
पारिवारिक, सामाजिक और राजनैतिक मूल्यों की सशक्त शा’इरा –
नए जमाने की लड़कियो तुम परंपरा का भी ध्यान रखना
सँभालो तहजीब की विरासत जो हाथ से अब फिसल रही है
बेटे मैं तेरी माँ हूँ ज़रा बोल अदब से
अच्छा नहीं है ये तेरा लहज़ा मेरे आगे
एक रोटी को चुराने की मुकर्रर है सज़ा
मुल्क़ जो लूट लो उसकी कोई ताज़ीर नहीं
5 मधु ‘मधुमन’
(बिंदकी-उ. प्र / पटियाला)
ज़िंदगी के गहन अनुभवों को उकेरने वाली वरिष्ठ शा’इरा –
यूँ तो रूठी हूँ ज़माने से मगर दिल में कहीं
एक हसरत है कोई आ के मना ले मुझको
जिन्हें जुस्तजू हो नई मंज़िलों की
वो ख़तरों के बारे में कब सोचते हैं
किसी से कोई निभाने को ही नहीं राज़ी
बदलते दौर में शाइस्तगी की ख़ैर नहीं
6 योगिता ‘ज़ीनत’
(जयपुर-राजस्थान)
स्त्री-अस्मिता के प्रगतिशील और स्वाभिमानी तेवर की शा’इरा
इश्क़ की दास्तान लिखनी थी
मैंने बस नाम लिख दिया तेरा
नहीं समझी हूँ मैं भी इस जहां को
जहां ने भी मुझे समझा कहाँ है
ख़त्म होता नहीं सफ़र अपना
हम भी इक रोज़ अपने घर जाते
7 रश्मि सानन
(दिल्ली /फरीदाबाद)
अलग अंदाज़, मिजाज़ और नयेपन की सजग शा’इरा
किसी के इश्क़ में ख़ुद को मिटा दिया वरना
मैं अपने दौर की सुल्तान हो गई होती
ख़ामुशी से हर इक सवाल किया
तेरी नज़रों ने ये कमाल किया
क्यूँ मेरी बात वो नहीं सुनता
मैं ज़मीं हूँ, वो आसमान है क्या
8 सिया सचदेव
(बरेली उ.प्र)
कलापक्ष और भावपक्ष को बखूबी साधने वाली अनुभवी शा’इरा
सफ़र में आए हुए मरहलों से क्या डरना
अब अपने पावों के इन आबलों से क्या डरना
ताले पड़ जाएँगे होठों पर तुम्हारे सोच लो
मेरे होठों से अगर ख़ामोशियाँ जाती रहीं
‘सिया’ दिल मारना पड़ता है अपना
निभाना है कहाँ आसान रिश्ते
9 संजू ‘शब्दिता’
(अमेठी उ. प्र / प्रयागराज)
कहन के अनूठे लबो-लहजे की तेज़ी से उभरती शा’इरा
तुम फ़क़त इस जिस्म तक ही रह गए ना
मैं तुम्हें ख़ुद से मिलाना चाहती थी
कोई क्या लाग लगाए कि बिछड़ना है अभी
हमसफ़र आपके हम एक ही दो गाम के हैं
मैं ख़ुश-लिबास समझकर पहन रही हूँ क़फ़न
मैं ज़िंदगी हूँ मेरा काम रंग भरना है
नरेश शांडिल्य जी के संपादन में निकले इस ग़ज़ल संग्रह को ख़ूबसूरत पुस्तक का रूप दिया है सर्वभाषा प्रकाशन, दिल्ली ने जिसने थोड़े ही समय में अपने उत्कृष्ट कार्य से साहित्यिक प्रकाशन के क्षेत्र में अपनी एक ख़ास जगह बना ली है।
ये पुस्तक हर दृष्टि से एक बेहतरीन पुस्तक है।
बेहतरीन संपादन में उत्कृष्ट शायरी।
बेहतरीन क़्वालिटी का आकर्षक कवर पेज।
बढ़िया क़्वालिटी के पेपर पर स्पष्ट और बेहतरीन प्रिंटिंग।
प्रूफ रीडिंग ऐसी कि किसी भी तरह की कोई टंकण त्रुटि ढूँढे से भी न मिले।
या’नी कुल मिला कर एक संग्रहणीय ग़ज़ल संग्रह जिसे पढ़कर ग़ज़ल प्रेमियों को आनंद की अनुभूति होगी।
मैं संग्रह में सम्मिलित अपने-अपने अंदाज़ की नौ रूपों वाली शा’इरात को हार्दिक बधाई प्रेषित करता हूँ और कामना करता हूँ कि अल्लाह करे ज़ोर-ए-क़लम और ज़ियादा।
संग्रह के संपादक को हृदय की गहराइयों से बधाई और साधुवाद। आप ऐसे ही नए-नए मील के स्तम्भ स्थापित करते रहें और साहित्य प्रेमियों को अच्छे साहित्य से रू-ब-रू कराते रहें।
सर्वभाषा प्रकाशन के सर्वेसर्वा श्री केशव मोहन पांडेय को हार्दिक बधाई और उज्जवल भविष्य की अनेकानेक शुभकामनाएँ। आप ऐसे ही साहित्य की सेवा करते रहें।
ग़ज़ल-संग्रह का नाम : ग़ज़ल नवरूपा
सम्पादक : नरेश शांडिल्य
पृष्ठ संख्या : 124
मूल्य : पेपरबैक – 200/- सजिल्द : 300/-
प्रकाशक : सर्वभाषा प्रकाशन, नई दिल्ली
संपर्क सूत्र : 011-35013521, +91-8178695606
Email: sbtpublication@gmail.com
Website: www.sarvbhashatrust.com
बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ
ताराचन्द ‘नादान’
कवि-शायर (दिल्ली)
8287980551, 9582279345
Email: taracsharma@gmail.com