दो लघु कथायेंः रेणुका अस्थाना, सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा


सेतु

बनारस से पहले काशी सेतु आते ही ट्रेन में बैठी महिलाओं ने पर्स से पैसे निकाल नदी में फेंकना शुरू कर दिया ।इतना ही नहीं वे बच्चों से भी नदी में पैसे डलवा कर यूँ ख़ुश हो रही थीं मानो बच्चों को जीवन का सारा पुण्य बिना कर्म ही मिल गया हो।उसी समय ट्रेन के एक डिब्बे में झाड़ू लगाता एक बच्चा उस वृद्ध महिला के पास आकर खड़ा हो गया जो सारे पुण्य को अपने परिवार के लिए इकट्ठे कर बच्चों को डिब्बे से निकाल मठरियाँ बाँट रही थी।
“दादी!भूख लगी है”
“कुछ खाने को दे दो—-
दाsssदी! भूख लगी है—
“ओ दाsssss
“तो क्या करें?”बच्चे की बात को अनसुना करती बैठी वृद्ध ने चिढ़ कर कहा और सामने बैठे पोते से,
जो उठ कर रो रहा था,पर्स से सिक्का निकाल जल्दी से पार होते पुल से नदी में डलवाया।
लड़का हंस कर मुड़ गया-“दादी भूख तो हमें लगी है और पैसा नदी को दे रही हो ——/
वृद्धा ने सुना।पैसा निकाल कर देना भी चाहा पर तब तक बच्चा दूसरे डिब्बे में जा चुका था।
रेणुका अस्थाना, जमशेदपुर


बेबसी

उसने कहा ,” मैं तुम्हें छूना चाहता हूं ।”

” मना किसने किया है , लो छू कर देख लो ।” मैं बोली ।

उसने हाथ आगे बढ़ा दिया । उसके हाथ हवा में हिलते रह गए ।

वो मायूसी में खो गया ।

मैने पूछा ,” क्या हुआ ? उदास क्यों हो ? ”

” हाथ तो सिर्फ हवा में तैर रहे हैं । तुम्हें छू नहीं पा रहे ।” वह और भी अधिक उदास हो गया ।

मुझे हंसी आ गई ।

वो हैरानी से मुझे देखने लगा ।

मैं बोली , ” हवा को कोई छू सका है क्या ? उसे तो बस महसूस किया जा सकता है ।”

” तुम हवा हो क्या जो मैं तुम्हें छू भी नहीं सकता ? ” उसके शब्दों में उदासी गहरा गई ।

” तुम ही तो कहा करते हो कि मुझमें तुम्हें अपने जीवन का एहसास होता है । हवा में ही तो जीवन का अस्तित्व है ,तो क्या मुझे हवा नहीं मान सकते ? जिसे छुआ नहीं जा सकता , सिर्फ महसूस किया जा सकता है । ” मैने समझाया ।

वो मुझे बहुत देर तक अपनी मंद मुस्कान से देखने के बाद बोला , ” मुट्ठियां बंद हों ,तब भी वो खाली रह सकती हैं , इस बात का पता तो आज ही लगा । ”

उसकी बेबसी पर, मैं जोर से हँस पड़ी ।

वो बेबस था , मजबूर मैं भी कम नहीं थी ।

सुरेंद्र कुमार अरोड़ा

साहिबाबाद ।

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