मन किसीका दर्द से बोझल न हो
आँसुओं से भीगता काजल न हो
प्यासी धरती के लिए गर जल नहीं
राम जी , ऐसा भी तो बादल न हो
हो भले ही कुछ न कुछ न नाराज़गी
दोस्तों के बीच में कलकल न हो
आया है तो बन के जीवन का रहे
ख़्वाब की मानिंद सुख ओझल न हो
धुप में राही को छाया चाहिए
पेड़ पर कोई भले ही फल न हो
मेरे दुखों में मुझपे ये अहसान कर गए
कुछ लोग मशवरों से मेरी झोली भर गए
पुरवाइयों में कुछ इधर और कुछ उधर गए
पेड़ों से टूट कर कई पत्ते बिखर गए
वो प्यार के उजाले न जाने किधर गए
हर ओर नफरतों के अँधेरे पसर गए
अपने घरों को जाने के क़ाबिल नहीं थे जो
मैं सोचताहूँ , कैसे वो औरों के घर गए
हर बार उनका शक़ की निगाहों से देखना
इक ये भी वजह थी कि वो दिल से उतर गए
तारीफ उनकी कीजिये औरों के वास्ते
जो लोग चुपके – चुपके सभी काम कर गए
यूँ तो किसी भी बात का डर था नहीं हमें
डरने लगे तो अपने ही साये से डर गए
डालियाँ कर झंझोड़ कर जाना तेरा
पत्तियों पर ज़ुल्म है ढाना तेरा
कब मुझे भाया है कि भायेगा अब
वक़्त और बेवक़्त घर आना तेरा
शुबहा में कुछ डाल देता है मुझे
कसमों पे कसमें सदा खाना तेरा
कहता है उसको, सुनाता है मुझे
बात है या है कोई ताना तेरा
लगता है ए ` प्राण ` फितरत है तेरी
उलझनों को और उलझाना तेरा
किसीके सामने खामोश बन के कोई क्यों नम हो
ज़माने में मेरा रामा किसी से कोई क्यों कम हो
कफ़न में लाश है इक शख्स की लेकिन बिना सर के
किसी की ज़िंदगी का अंत ऐसा भी भी न निर्मम हो
बदल जाती हैं हाथों की लकीरें आप ही इक दिन
बशर्ते आदमी के दिल में कुछ करने का दमखम हो
न कर उम्मीद मधुऋतु की कभी पतझड़ के मौसम में
ये मुमकिन हैं कहाँ प्यारे कि नित रंगीन मौसम हो
हरिक ग़म सोख लेता है क़रार इंसान का अक़सर
भले ही अपना वो गम हो भले ही जग का वो गम हो
जताया हम पे हर अहसान जो भी था किया उसने
कभी उस सा ज़माने में किसीका भी न हमदम हो
कभी टूटे नहीं ए `प्राण` सूखे पत्ते की माफ़िक
दिलों का ऐसा बंधन हो , दिलों का ऐसा संगम हो
प्राण शर्मा
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