नाराज नहीं होती माँ
माँ मेरी और अधिकार इनका
करती रहती बस पूजा जिनकी
करती ना अब वह मेरे मन की
माँ से बेटा रूठ गया था।
एक दिन जब बंद आँखों संग
होकर मगन माँ गा रही थी भजन
फरमाइशों पर न दे रही थी ध्यान
बदला लेने की बालक ने ठानी
और कर डाली अपनी मनमानी।
भोग के लड्डू संग मुँह में उसके
गायब हो गए मां के लड्डू गोपाल
गिन-गिनकर सारे बदले लिए
बैठा रहा चुपचाप मुँह बन्द किेए
अब देखें कैसे इन्हें नहलाएगी माँ
नहला-धुलाकर भोग लगाएगी माँ
पर हंस-हंसकर लोटपोट थी माँ
जरा भी नहीं परेशान थी माँ
अपराधी तुरंत ही पकड़ा गया
ऐंठे कान और धौल जमाया
गोदी में लेकर प्यार जताया
इतना गुस्सा ठीक नहीं समछाया
ईर्षा से बड़ी कोई आफत नहीं
इसके चक्कर में कभी ना पड़ना
जितने प्यारे तुम उतने ही प्यारे
लड्डू गोपाल हमारे बतलाया
इनकी तुम नित पूजा करना
चूमा मुख प्यार से समझाया
नाराज कभी नहीं होती माँ
माँ के लिए तो हर नादानी
बचपन की याद सुहानी है।
शैल अग्रवाल
ठाकुर जी भोले हैं
ठंडे पानी से नहलातीं,
ठंडा चंदन इन्हें लगातीं,
इनका भोग हमें दे जातीं,
फिर भी कभी नहीं बोले हैं।
माँ के ठाकुर जी भोले हैं।
महादेवी वर्मा