चांद परियाँ और तितलीः मातृ-दिवस विशेष


* दावत*
शहनाई और बैंड बाजों की आवाज और तेज होती जा रही थी,बारात के थिरकते कदमों को मानो पंख लग गए थे,नाचते हुए युवाओं का जुनून इस कदर बढ़ गया था कि वो बेपरवाह होकर बंदरों की तरह बस उछल-कूद कर रहे थे,,,,रुंचू को हंसी आ गई, पिछले एक घंटे से वह बारात के पीछे पीछे चलने वालों की कतार में गैसबत्ती (पेट्रोमेक्स)उठाए बस खिसक ही रहा था,,,उसके पांव बुरी तरह दुखने लगे थे .उसने बगल में चलती हुई मां की ओर देखा.वो भी तो थक गई थी..लाइट को एक घंटे से सिर पर उठाए हुए. सुबह उसे बुखार भी था.पर जब नेताजी के नौकर ने बताया कि हर एक लाइट वाले को पचास रु मिलेंगे और पार्टी का खाना अलग से .तो मां के साथ जाने के लिए वह भी तैयार हो गया.*कुल तीन किलोमीटर तक ही तो.जाना था..बडे साहब के घर तक ‘,वहां तक तो वह अपने दोस्तो के साथ चोर सिपाही खेलने चला जाता है ..पर उसे क्या पता था कि एक किलोमीटर की यह दूरी भी इतनी लंबी हो जायेगी .. कि उसकी सारी खुशियों पर पानी फिर जायेगा.!!,दर्द और बोझ से उसकी टांगें कांप रही थीं.वह न तो बैठ सकता था न.ही दांयें या बांयें मुड सकता था..बस उसे लाइट वालों के साथ कतार बांधकर आगे ही बढते रहना था.
उसकी इच्छा हो रही थी कि आगे आगे नाचने वाले उस मोटे लडके को कसकर एक लंगड़ी लगाए..कि कम से कम वह आगे तो बढे..अब तो उसे जोरों से भूख भी लग आयी थी..सुबह मालकिन ने जो दो बासी रोटियाँ दी थीं .बस वही तो खाई थी..मालकिन की याद आते ही उसके दिल. में ममता उमड आयी थी.’बेचारी कितनी अच्छी हैं !,.रोज बस एक बाल्टी.. कूड़ा ही तो फिंकवाती हैं..बदले में दो रोटियों के साथ कभी चीनी तो कभी सब्जी भी दे देती हैं .कभी कभी तो मूढी या बिस्कुट भी मिल जाते हैं “”
पर बिस्कुटों की याद आते ही उसकी भूख फिर तेज हो गई थी.उसने मां का आंचल खींच कर उसे देखा..
मां ने कृत्रिम क्रोध से पूछा *क्या है ?*
*भूख लगी है “,रुंआंसे रुंचू ने जवाब दिया.
*बस.थोडी देर और रुक जा.हम पहुंचने ही वाले हैं “”रुंचू मायूस होकर चुप हो गया.
तभी बैंड वाले ने धुन बजायी,, *’चल छैंया. .छैयां ..छैंया. .छैंयां””इस धुन पर तो बच्चे. जवान सभी जैसे पागल ही हो गए थे..रुंचू के डगमगाते पांव भी इस गाने के साथ थिरकना चाहते थे..नाचना चाहते थे..पर वह विवश था.बार बार उसकी इच्छा होती कि वह इस गैस बत्ती को पटककर भाग जाये !.और भीड में शामिल होकर खूब नाचे.!.लेकिन,,,
अब उसकी आँखे आंसुओ से भर गई..
इससे तो अच्छा था कि वह अपने दोस्त के साथ इंजीनियर साहब के बंगले में ही चला जाता !..वहां तो बस मेहमानों को पानी .जूस .शरबत ट्रे. में सजाकर देना था और पचास रुपए तो वहां भी मिलते ही ..पर.वह भी तो कितना लालची था .दावत खाने के लालच में मां के साथ चला आया.अब भुगतो अपने लालच का फल !!!**
उसने अपने आप से कहा..तभी उसे लगा कि आसपास की हलचल कुछ थम गई है.पुलिस के सिपाही भीड को.रास्ते से हटा रहे थे.पर नाचने वाले लड़कों का दल तो शांत ही नहीं हो रहा था …रुंचू सोच रहा था कि यहां मैं जाम में फंसा हुआ हूं…चलते चलते रात भी हो गई और मुझे भूख भी लगी है…घर से निकलते .समय मेरे दोस्तों ने कितना रोका था !.**मत जा रुंचू..आज मैच है साढे चार बजे.बडे घर वाले मुन्न बाबू की टीम के सीथ …पर उसे तो दावत खानी थी न !!!!..वह मन ही मन खुद से सवाल करता और खुद ही जवाब देता रहा.*सोचा था कि पचास रुपए मिलेगे तो एक नया बैट ही खरीद लेगा.पर अब क्या हो.सकता है ????*सब कितने मजे से खेल रहे होंगे..बिट्टू तो दौड़ने में बहुत फिसड्डी है..एक भी रन नहीं बनाया होगा उसने.पर बीनू दौडा होगा..लेकिन अकेले बीनू थोडे ही न जिता सकता है पूरी टीम को..मुन्ना बाबू ने जरुर हमारी टीम को हरा दिया होगा..!..और इतराते हुए घूम रहे होंगें.वह होता न ..तब देखता कि कैसे वह जीत जाते !!..*
पर तभी उसे फिर से अपनी स्थिति का ख्याल आया..बारात तो अभी तक लड़की वालों के दरवाज़े पर नहीं पहुंची थी.अभी तक जाम में फंसी है..सोचते सोचते फिर से उसकी थकान और भूख बढने लगी..बार बार मां की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा था.लेकिन अब तो मां भी जवाब नहीं दे रही थी..शायद वह भी थक गई थी और परेशान थी.
दोनो तरफ गाड़ियों की लंबी कतार लग गई थी .जरुर कोई नेताजी की गाड़ी होगी..अरे नहीं.ये तो कोई एंबुलेंस आ रही है.पर लडकों का दल तो इस कदर मस्त होकर नाच रहा था कि.एंबुलेंस को रास्ता ही नहीं.मिल पा रहा था…किसी ने बगल से कहा “ये लोग नहीं ,इनका नशा नाच रहा है ..*रुंचू का.मन और उदात्त हो गया *अगर गाड़ी में लेटा मरीज मर गया तो ??भला इनका क्या जायेगा?..वे तो बस नाचते ही जा रहे हैं .”..उसका मन भर आया..एक दिन ऐसे.ही उसके बाबा चले गये थे…उस दिन कंपनी से पगार मिली थी .और खुशी में उन्होने खूब शराब पी ली थी.और रास्ते में किसी कार से टकरा गिर कर बेसुध हो जाने पर अस्पताल ले जाते हुए ही उनकी मौत हो गई थी.उस दिन भी .ऐसी ही को बारात निकली थी और उनके एंबुलेंस को रास्ता नहीं मिला था ..
तभी लडकों के ताऊ जी आगे आये और उन्होने सबको डांट कर आगे बढाया तो सबकी जान में जान आयी.कि चलो ..अब तो बारात आगे बढेगी और. वह मरीज अस्पताल पहुंच जायेगा.
बारात अब लड़की वालों के घर तक आ पहुंची थी.अब सारे लडके मुंह में रुमाल दबा कर नागिन जैसा नाच रहे थे.बैंड वालों ने ‘मेरा मन डोले.मेरा तन डोले वाला मशहूर मदारियों का गीत बजाया..लग रहा था जैसे सचमुच कहीं.बीन बज रही हो..सांप को पकड़ने के लिए.रुंचू को झुरझुरी आ गई..जाने कैसा कैसा तो नाचते हैं ये लोग..बिल्कुल पागल हैं**
ताऊजी ने नाचते हुए लड़कों के ऊपर कुछ नोट न्योछावर करके बाजे वालों को दे दिये.अब लड़के कुछ शांत और थके से लग रहे थे .धीरे धीरे बाजेवालों का काफिला लडकी वालों के दरवाजे पर पहुंचा.पर वहां पहुंचते ही फिर वही तांडव शुरु हो गया..अब तो आतिशबाजियां भी छूटने लगीं..तरह तरह की चरखियां चल रही थीं.नीचे से जब वे सूं,sss की आवाज करती ऊपर जातीं तो लाल .नीली.हरी रोशनी के फूल ही फूल बिखर जाते .रुंचू भी इन चरखियों को देख उतावला हो रहा था..उछलने कूदने के लिए. पर वह सिर भी नहीं उठा सकता था..सिर पर पहाड जैसा बोझ ढोते जाना उसकी मजबूरी थी.
बस.मां ही समझ रही थी उसकी बेबसी और बेचैनी ..और कोई दिन होता तो रुंचू भी इन चरखियों. रॉकेटों की दुनिया में खो जाता..खूब हंसता..खिलखिलाता बंदरों की तरह उछल-कूद करता..पर आज उसका बेटा कितना लाचार हो गया है..यह बात मां को बेध रही थी.बार बार रुंचू का मुँह निहारते.उसकी उदासी और थकान देखकर उसका कलेजा मुंह को आ रहा था…तभी एक अनार लहराता हुआ आकर उसके पास ही फूट गया.एक चिंगारी रुंचू को भी लगी… वह आह!!*करके रह गया.
सारे छोटे बच्चे जली हुई फुलझडियों और जले बम के अधजला खोल बटोरने में व्यस्त थे…वह भी तो यही करता था.पर आज तो वह एकदम लाचार हो गया है…
रुंचू सोच रहा था ‘काश कोई उसके सिर से यह गैसबत्ती
उतार लेता .तो.वह भी जी भरकर आतिश बाजियों का मजा ले पाता..!.उसकी आंखों में आंसू आ गए **यह भी कोई जिन्दगी है !!.मैं नाचना चाहता हूं.पर नाच नहीं सकता..आतिशबाजी देखना चाहता हूं.लेकिन देख नहीं सकता ..कैसे देखूं ?.आंखें भी तो ऊपर नहीं कर सकता…ऐसी ही.होती हैं बड़े घरों की शादियां ?..न खाओ.न पियो.बस फूंक डालो ढेर सारी आतिश बाजियां!.
इससे तो अच्छी उसके पड़ोसी. पप्पू चाचा की शादी थी.जिनकी बारात में वह गया था बड़ी सी गाडी में बैठकर..वे उसे कितना प्यार करते हैं.नौकर थोड़े ही न समझते हैं उसे…उसने तब जी भरकर मिठाईयां खायी थीं.
वह नाचा भी बहुत था और उसे नये कपड़े भी मिले थे.लडकी वालों ने दिये थे शायद..वह उसी बारात को याद करके लालच में मां के.साथ यहां चला आया था.अब सारे दोस्त उसे लालची कहेंगे..तभी उसका बाल सुलभ स्वाभिमान जाग गया**ऊंह!!.कहते रहें मेरी बला से *कम से कम मैं उस काले कलक्टर बिल्लू से तो ठीक ही हूं जिसके बाबा उसे गटर साफ करने के लिए गड्ढे में उतार देते हैं..छि: कितना गंदा काम है..मैं तो कभी न करूं..*उसे अपनी स्थिति कुछ संतोष जनक लगती है और वह कुछ कदम आगे बढने की हिम्मत बटोर लेता है..अरे यह क्या !.शायद लड़की वाले आ रहे हैं..गीत गाती हुई महिलाए दूल्हे की आरती उतार रही हैं.और पैसे भी लुटा रही हैं.सभी छोटे बच्चे पैसे लूटने में व्यस्त हो गये..उसकी भी इच्छा होती है कि वह भी पैसे लूटे.पर वह मन मसोस कर रह जाता.है..तभी एक सिक्का उसकी गैस बत्ती से टकराकर “छन्न “से नीचे गिर पडता है..वह धीरे धीरे पाँव बढाकर उसके ऊपर रख देता है ताकि कोई और उसे उठा न सके..और किसी तरह सरक कर. आडे तिरछे झुक कर वो पैसा उठाने में सफल भी हो जाता है….
तभी दो.बलिष्ठ हाथ आगे बढकर उसकी गैस बत्ती उतार कर किनारे रख देते हैं.सभी लाइट वाले एक एक करके आगे.बढने.लगे .रुंचू तो मानो बोझ हल्का होते ही खुशी से इतरा गया..*आहा !..कितना अच्छा- लगता है न..हे पीपल वाले भूत बाबा!!!..जय हो बाबा की *…..सभी को चाय मिली उसे भी .”वाह क्या चाय है..खूब मीठी..भगवान जी ने खुद बनाई है मेरे लिए खूब सारी शक्कर डालकर. खास मेरे लिए **
वह अभी चाय पी ही रहा था कि अचानक एक जोरदार धमाके की आवाज सुनाई दी .
अरे.!.यह क्या हुआ?वह दौडता हुआ भीड के पास पहुंचा. पंडित जी के मंत्र थम गये थे..बाजों की आवाज भी शांत हो गई थी.पता चला कि दो लडकों के बीच इस बात पर झगडा हो गया था कि पहले बंदूक कौन चलायेगा..और इसी छीनाझपटी में गोली चल गई थी.और पटाखो के खोल चुनती हुई एक बच्ची को लग गई थी.वह.वहीं बेहोश होकर गिर पडी..खून भल भल बह रहा था…लोग उसे जल्दी जल्दी डाक्टर के पास ले जाने की व्यवस्था में लगे हुए थे.
सारी खुशियो पर सन्नाटा छा गया था .रुंचू मन ही मन सहम गया *यह कैसी खुशी है कि आदमी जान की परवाह ही भूल जाये!!.क्या इतना नाच नाचकर भी इनका पेट नही भरा था कि बंदूकें चलाने लगे ????*
फूट फूटकर रोती हुई उस बच्ची की मां को देखकर रुंचू को अपनी मां याद आ गई..वह घबरा गया और बेचैन हो मां को ढूंढने लगा..मां भी उसे ही खोज रही थी.वह दौड़कर मां की गोद में सिमट गया.मां ने रुंचू को कसकर थाम लिया और उसे पार्टी की रसोई में ले गई. वहां सभी हादसा भूलकर दावत खाने में व्यस्त थे.मानो कुछ हुआ ही न हो..
मां शायद अपने पहचान वाले हलवाई चाचा से उसके लिए थोड़ा सा खाना मांग रही थी.पर वहीं बैठे कुछ लोगों ने डांट कर उसे थोडा रुकने को कहा.कि सबके खा लेने पर ही खाना मिलेगा…मां मिन्नतें करती रही *मेरे लिए न सही मेरे बेटे के लिए ही थोडा सा खाना दे दो.**
पर किसी का भी दिल नहीं पसीजा.वह उदास हो लौटआई और. बोली *चल.बेटा घर चलते हैं.अब यहां जी नहीं लगता.कुछ खाना भी बना लेंगे.**
मां की बातें सुनकर रुंचू का उदास मन कुछ और उदास हो गया.उसे पार्ट की रंग बिरंगी खुशबूदार मिठाईया याद आ रही थीं लेकिन मां का उसके लिए गिडगिडाकर खाना मांगना भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था…उसके दोस्त भले ही उसे चिढाते रहें..*लौट के बुद्धू घर को आये *..मेरी बला से.उसे इसकी परवाह नहीं.*…
वह मां का हाथ थामे धीरे धीरे चलकर घर आया.मां ने पड़सी से थोड़ी सी तरकरी मांगी. और गर्म भात पका कर रुंचू को खाने के लिए दिया.उसका सुबह से भूखा मन खाने पर लपक गया..अब उसे मिठाईयों की याद नहीं थी..न ही गर्म पूरियों की कल्पना उसे लुभा रही थी..मां के हाथों से बना हुआ यह गरम सब्जी भात उसे किसी अनुपम.अमृत तुल्य स्वाद से कम नहीं लग रहा था…वह रस ले लेकर खाता रहा.मां भी विभोर होकर उसे निहारती रही…वह मां को देखकर बोला **तुम भी खाओ न मां.*
*हां.खाती हूं*..कहती हुई वह भी हंस पड़ी.
रुंचू को मानो दुनिया की सबसे बड़ी नियामत..सबसे बडी खुशी मिल गई थी..अपने छोटे से घर में..अपनी मां के हाथ का बना खाना खाकर..उनकी ही गोद में सिमट कर सुख की नींद सो जाना शायद. दुनिया की सबसे कीमती खुशी थी उसके लिए….
पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर
***

कितने तारे
आसमान में जगमग हैं सारे
गिनना चाहूँ तो गिन ना पाऊँ
कितने तो बीच में छूट जाते
गिनते-गिनते कुछ टूट जाते
आसमान में टंगे रोज लुभाते
पर कभी मेरे हाथ न आते
माँ की चुनरी कितनी अच्छी
झिलम्ल जिस पर चमचम
रँग-बिरँगे सलमा-सितारे
मुठ्ठी में आकर पलकें सहलाते
माँ की गोदी में लेटे-लेटे
मीठी-मीठी नींद सुलाते…

-शैल अग्रवाल

error: Content is protected !!