चांद परियाँ और तितलीः कविता व कहानीः अद्भुत दुनिया-शैल अग्रवाल

चुनमुन ने जब खिड़की खोली
ठक-ठक करके चिड़िया बोली
देखो कितना दिन चढ़ आया
किरणों आकाश सजाया
तुम अभी तक सोई पड़ी हो
आलस में अवसर खोए पड़ी हो

पवन धूप खुशबू सब बाहर आए
मिलजुल खेलें आनंद उठाएँ
सुबह-सुबह चिड़िया तितली संग
घूमने की आदत चुस्त बड़ी है
कई फायदे इस से होते
पक्षी फूल-पत्तियों से
नित हम परिचित होते
गालों पर लाली आ जाती
रात को थककर चैन से सोते
जल्दी सोते, जल्दी उठ जाते।


अद्भुत दुनिया
चुनमुन को कब पता था कि उसके अपने बगीचे में इतने सारे मित्र रहते हैं और इतनी अनोखी व अद्भुत दुनिया बसी हुई है वहाँ भी! वह तो उसने बस कौतुहलवश फूलों की क्यारी के बीच पड़ा बड़ा सा पत्थर बस पलट दिया था। चाहती तो उठाकर बाहर फेंक देना थी परन्तु पत्थर बहुत भारी था और यह काम अकेले उसके बस का नहीं था। इसके लिए तो उसे बड़े भाई की ही मदद लेनी पड़ेगी।
जाने कहाँ से आ गया था, या फिर हमेशा से ही वहीं था, परन्तु सुंदर और कोमल पैंजी व प्युटीनिया के नाजुक फूलों की क्यारी के बीच पड़ा बिल्कुल खलनायक-सा दिख रहा था और बिल्कुल ही अच्छा नहीं लग रहा था चुनमुन को।
कैसे भी उठाकर वह फेंकने ही वाली थी कि पत्थर के नीचे से आवाज आई -‘ना-ना, ऐसा मत करना प्लीज, यह हमारे घर की छत है। इसके नीचे ही तो हम आराम से रहते हैं। आराम करते हैं, तेज आँधी-पानी से बचते हैं।’
चुनमुन ने देखा वाकई में वहाँ छोटे-बड़े तीन चार कीड़े रेंग और कुलबुला रहे थे। उत्सुकता बढ़ी तो पूरा पत्थर एक ओर थोढ़ा और सरका दिया उसने । पर यह क्या, तुरंत एक चिड़िया फुदक कर आई और एक को चोंच में लेकर उड़ गई। चुनमुन को दुःख हुआ-उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। तभी उसने देखा कि अब आसपास कई चिड़िया और कौवे मंडरा रहे थे, जिन्हें अचानक मिले इस छप्पन भोग की ताक थी। एक बात और भी थी- पास ही झाड़ में अब एक मोटी बिल्ली भी आ दुबकी थी, जो अब उन चिड़ियों की ताक में थी। उसने बिल्ली को एकाध बार चिड़िया का शिकार करते भी देखा है। और टूटे पंख तो कई बार बिखरे देखे हैं इधर-उधर बगीचे में।
घबराहट में चुनमुन के हाथ से पत्थर छूट गया। वह नहीं चाहती थी कि सारे कीड़ों को चिड़िया खाए और फिर उन चिड़िया को बिल्ली खा जाए। चुनमुन रोने लगी-कैसे बचाए वह इन्हें एक दूसरे से अब?
तब बड़े भाई ने समझाया- अद्भुत संसार है यह अपना। सभी को रहना है और सभी रहते हैं इसमें। छोटे बड़े सभी ।और सभी को अपना-अपना पेट भी भरना हैं। जिसके लिए उन्हें रोज शिकार करना पड़ता है, वरना तुम्ही सोचो, जिन्दा कैसे रहें!
तो मुझे भी कोई खा जाएगा क्या एक दिन? चुनमुन डरकर और जोर-जोर से रोने लगी।
नहीं, तुम इन्सान हो। हमारा दिमाग इनसे अधिक बड़ा, विकसित और तेज है। हमने जिंदा रहने के साथ-साथ, संगठन की ताकत और सुरक्षा के बारे में भी सोचा। हमारे पूर्वजों ने अपनी सुरक्षा का पूरा इंतजाम तलाश लिया था। यह घर, समाज और शहर इसी का तो परिणाम हैं। हम ऐसे घर के अंदर रहते हैं, जहाँ दरवाजे और खिड़कियाँ हैं, चाहें तभी कोई मिल सकता है, घर के अंदर आ सकता है।
चुनमुन सहमकर भाई से लिपट गई। उसे अच्छा लग रहा था जानकर कि वह इन्सान है पर यह सोच-सोचकर मन उदास भी हो रहा था कि इनकी दुनिया और ये इतने प्यारे होकर भी इतने असुरक्षित और भिन्न हैं उनसे।
‘इन्हें कैसे शिक्षित और विकसित किया जा सकता है, भाई?’ रहा नहीं गया तो पूछ ही बैठी वह।
‘ ज्यादा मत सोचो, वरना तुम्हारा दिमाग भी इन्ही की तरह सिकुड़कर छोटा-सा हो जाएगा। सब एक दूसरे के सहारे चलता है यहाँ। पेड़ से पत्ते गिरते हैं। खाद बनकर जड़ों में जा पहुंचते हैं फिर वही नए पत्ते बनकर उसी पेड़ की डाल पर पुनः झूमने लग जाते हैं। सब कुछ एक दूसरे के काम आता हैं और एक दूसरे के लिए ही बना है। कुछ भी व्यर्थ नहीं, गलत नहीं। अनोखी और अद्भुत दुनिया है हमारी। कुछ भी हमेशा के लिए नहीं। पुराना जाता है नया आता है। इसे अंग्रेजी में ‘फूड चेन’ कहते हैं- सब और सभी कुछ किसी न किसी का भोजन…’
इसके पहले कि चुनमुन कुछ और पूछे, भाई ने उसकी प्रिय चौकलेट उसकी तरफ बढ़ा दी और पास ही खिला सुंदर लिली का फूल बालों में लगा दिया। अब चुनमुन एकबार फिर से सब कुछ भूल चुकी थी और मुंह में घुलती चौकलेट का जी भरकर आनंद ले रही थी। हवा के झोंकों के संग लिली की महक जब पुलकित कर गई, तो मुस्कराकर बोली-‘ वाकई में भाई, अद्भुत दुनिया है हमारी -अनोखे और मीठे स्वाद और सुगंध से भरी ।’
‘हाँ, कैसे आनंद लें, जिएँ इसे, यह तो हमें खुद ही समझना और सीखना होगा।’
भाई ने आगे बढ़कर उसे अपनी गोदी में उठा लिया। शाम होने को थी। हाँ, सही समझा बच्चों आपने, बगीचे वाला दरवाजा पूरा और ध्यान से बंद करके, भाई-बहन घर के अंदर लौट गए।
मां खाने पर इंतजार जो कर रही थी उनका ।…

शैल अग्रवाल
संपर्क सूत्रः shailagrawal@ hotmail.com

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