चांद परियाँ और तितलीः चार बाल कविताएँ- प्रभुदयाल श्रीवास्तव


उठ जाओ अब मेरे लल्ला

तारों ने मुँह फेर लिया है ,
अस्ताचल में छुपा अन्धेरा |
पूरब के मुँह पर ऊषा ने,
ब्रश से सिंदूरी रंग फेरा |
उठ जाओ अब मेरे लल्ला ,
तुम्हें अभी शाला जाना है |

कौओं चिड़ियों की आवाज़ें ,
छत ,मुँडेर पर लगीं गूँजने |
सूरज भी आने वाला है,
अभी- अभी ही क्षितिज चूमने |
हवा बाँसुरी बजा रही है ,
कोयल को गाना गाना है |

हरे- भरे पत्तों पर, उठकर ,
देखो कैसी ओस दमकती |
पारिजात के पुष्प दलों से ,
भीनी मंद सुगंध महकती |
बस थोड़ी सी देर और है ,
आँगन धूप उतर आना है |

देखो तो पिंजरे की मैना ,
फुदक-फुदक कर बोल रही है |
सुन लो उसकी मीठी बोली,
कानों में रस घोल रही है |
हो जाओ तैयार तुम्हें अब ,
राजा बेटा बन जाना है |

जीत के परचम

मन को लुभा रहे हैं,
ये फूल गुलमोहर के।

ये लाल -लाल लुच- लुच
डालों पे डोलते हैं।
कुछ ध्यान से सुनों तो,
शायद ये बोलते हैं।
सब लोग देखते हैं,
इनको ठहर -ठहर के।

चुन्ना ने एक अंगुली ,
उस और है उठाई।
देखा जो गुलमोहर तो,
चिन्नी भी खिलखिलाई।
मस्ती में धूल झूमे,
नीचे बिखर -बिखर के।

हँसते हैं मुस्कुराते,
ये सूर्य को चिढ़ाते।
आनंद का अंगूठा,
ये धूप को दिखाते।
हैं जीत के ये परचम,
उड़ते फहर- फहर के।


रूठी बिन्नू

रूठी-रूठी बिन्नूजी हैं ,
मना रहे हैं भैयाजी।

बिन्नू कहती टिकट कटा दो,
हमें रेल से जाना है।
पर भैया क्या करे बेचारा
खाली पड़ा खजाना है।

कौन मनाए रूठी बिन्नू,
कोई नहीं सुनैयाजी।

बिन्नू कहती ले चल मेला,
वहाँ जलेबी खाऊँगी |
झूले में झूला झूलूँगी,
बादल से मिल आऊँगी |
मेला तो दस कोस दूर है,
साधन नहीं मुहैयाजी।

मत रूठो री प्यारी बहना,
तुमको ख़ूब घुमाऊँगा |
धैर्य रखो मैं जल्दी-जल्दी,
खूब बड़ा हो जाऊँगा |
चना-चिरौंजी, गुड़ की पट्टी,
रोज खिलाऊँ लैयाजी।

जादू का घोड़ा लाऊँगा,
उस पर तुझे बिठाऊँगा।
ऐड़ लगाकर पूँछ दबाकर,
घोड़ा ख़ूब भगाऊँगा
अम्बर में हम उड़ जाएंगे,
जैसे उड़े चिरैया जी।


रोटी कहाँ छुपाई

लगे देखने टेली वीज़न,
चूहे घर के सारे।
देख रोटियाँ परदे पर,
उछले खुशियों के मारे।

सोच रहे थे एक झपट्टे,
में रोटी लें बीन।
लेकिन बिजली बंद हुई तो,
रोटी हुई विलीन।

लिए कई फेरे टी वी के,
बड़ा गज़ब है भाई।
बिजली बंद हुई ,टी वी ने
रोटी कहाँ छुपाई?


प्रभुदयाल श्रीवास्तव
१२ शिवम् सुंदरम नगर, छिंदवाड़ा

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