( हायकू)
“सूरज एक रंग अनेक !”
नभ ने खोली
सूर्य की पोटली तो
धूप निकली
सूर्य पेड़ से
धूप के पत्ते गिरे
हवा में उड़े
सूर्य झरना
सहस्त्रधार धूप
धरा पर लुढकी
पहाड़ों तक
विदाई ले शाम से
सूरज लौटा
अलसुबह
सूर्य के कंधे चढ़
उषा उतरी
धूप रेवड
गडरिया सूरज
हांक ले गया
किरणे बुने
सूरज चरखे पर
पूनी सी धूप
पंखुरी उडी
सूर्य हवा चली तो
ओस फूल की
धूप का लगा
उबटन- सूरज ने
रूप निखारा
बूढा सूरज
सांझ की लाठी थाम
घाटी उतरा
डॉ सरस्वती माथुर
जयपुर भारत
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सूर्य देवता
अंधेरे को बुहारें
उजरा रूप
रंग औ रूप
जीवन स्पंदन
इन्ही के बल
समदर्शी हैं ज्योति से मंडित
निष्काम कर्म
प्राण जग के
चहचह विहग
रवि को देख
आस सूरज
दुनिया एकटक
सूरजमुखी
अल्ल सबेरे
पाहुन मनभावन
जग के द्वारे
रथ में भर
उपहार रोशनी का
लाए सूरज।
अवगुंठित थीं
शरमीली कलियाँ
ओस को ओढ़े
उर इनका
रूप गंध से भर जाए सूरज
हंसती उषा
खिलखिलाती हवा
कौतुक देखें
गीत मधुर
पंछी-पंछी संग ले
गाए सूरज।
जगमग ये
नभ पर दमके
अंधेरा हारे
सबके लिए
बराबर रौशनी
लाए सूरज।
सांझ सुन्दरी
चूनर तारोंवाली
ओढ़ के आई
खड़ी लजीली
सुर्ख लहँगा चोली
मन को भाए
चांद सलोना
गोदी में दे हर्षित
जाए सूरज।
-शैल अग्रवाल
सटन कोल्डफील्ड, यू.के.
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