इन फूलों की तरह
मौन में भी छुपा है बहुत प्यार, इन गुलमोहर के फूलों की तरह,
रंगा है मन लाल,प्रेम-स्वीकृति से खिला है इन फूलों की तरह.
ये ख़ामोश निगाहें ,ये उठती गिरतीं सांसें,मौन अधरों के कम्पन,
बंद होंठों की तब्बसुम पर रंग लाल खिला है इन फूलों की तरह.
भूली-बिसरी, खट्टी-मीठी यादें,मन में घुमड़ता प्रतीक्षा का ज्वार,
यादों की कसक के कंटकों में मन खिला है इन फूलों की तरह.
पलकों और गालों पर प्रेम के हस्ताक्षर से सजावट की बेचैनी ,
अधर-मिलन की प्रतीक्षा में ह्रदय खिला है इन फूलों की तरह.
बहुत हुआ, अब न सताओ, करीब आओ, मेरी जान की कसम,
‘शील’ अब मेरा ह्रदय गुलाल बन खिला है इन फूलों की तरह.
शील निगम
भीगे मौसम की सुगंधमयी सदा
भीगे मौसम की सुगंधमयी सदा,
श्रावणी परदों से छनकर आती हैं,
और मेरी बंजारन आत्मा के अंतस् में,
इन्द्रधनुषी रंग सजा जाती है।
वासन्ती बयार की हल्की सी छुअन,
ले जाती है मन को दूर अनंत तक,
बसा है जहाँ रिश्तों का अनबूझा सा संसार
जहाँ दूर दूर तक अपनेपन का नहीं पता,
हाँ कुछ प्रतिबिम्ब उभरकर आते हैं,
दिल ने जिन्हें नहीं दी कभी सदा।
भीगे मौसम की सुगंधमयी सदा,
श्रावणी परदों से छनकर आती है,
और मेरी वैरागन आत्मा के अंतस् में,
इन्द्रधनुषी रंग सजा जाती है।
कच्ची धूप की प्रथम किरण,
चुपके से आती है मन के आँगन में,
रहती है दिनभर खट्टी मीठी
यादों की भूल-भूलैयों में
जीवन संध्या में गोधूलि-बेला ही,
अपने परायों का भेद बता जाती है।
भीगे मौसम की सुगंधमयी सदा
श्रावणी परदों से छनकर आती है
और मेरी जोगन आत्मा के अंतस् में
इन्द्रधनुषी रंग सजा जाती है।
शील निगम
ना खौफ,रस्मो-ओ-रिवाज़ रव्वायत का,
दिल जब मानता ही ना हो जाने के लिए.
जाये क्यों ना जाए वह क्यों कर यारो,
दिल कभी कभी जाने की गवाही नहीं देता.
सहमी सहमी शज़र से डरके काली रत में वह,
लिपट गया गाहे गाहे मुझ से कमाल हो गया.
तमाम राह साथ साथ चलते रहे हम दोनों,
हमसफ़र का साथ अच्छा था वह मन तो गया.
बहुत ग़लतफ़हमी, शक-ओ-गिला भी बहुत रहा,
हमदम हु बेबफा नहीं हु आखिर वो जान तो गया.
नहीं रकीब, हु हबीब उसका यह भरोसा तो आया,
उम्र के आखरी दौर में मुझे पहचान तो गया.
सुभाष वर्मा