गीत और ग़ज़लः यशपाल सिंह ‘यश’


उसे तूफ़ान का कुछ डर नहीं है
वो छोटी बूँद है सागर नहीं है

बताना पड़ रहा हर रोज़ उसको
वो लड़की है मगर कमतर नहीं है

सदा अहसास क्यों रहता बहू को
कि यह ससुराल है पीहर नहीं है

रही तो है व्यवस्था में कमी कुछ
कहीं चादर कहीं बिस्तर नहीं है

सभी पर है असर कुछ नफ़रतों का
सभी के हाथ में ख़ंजर नहीं है

हमारा घर नहीं शीशे का फिर भी
हमारे हाथ में पत्थर नहीं है

मुझे उस शख़्स से मिलवाइए ‘यश’
कि जिसका पूर्वज बंदर नहीं है

कही हर बात जो सुर ताल में अच्छी नहीं होती
ज़रूरी जो नहीं हर हाल में अच्छी नहीं होती

लड़कपन से बुढ़ापे तक कई आयाम हैं इसके
मुहब्बत सिर्फ यौवन काल में अच्छी नहीं होती

भले पाषाण में भगवान के दर्शन किए हमने
मगर कंकड़ मिली हो दाल में अच्छी नहीं होती

ज़हर होता समंदर की बहुत सी मछलियों तक में
फँसे हर चीज जो भी जाल में अच्छी नहीं होती

महानायक भले बोले भरोसा कर नहीं लेना
हसीं हर चीज़ इस्तेमाल में अच्छी नहीं होती

सियासत को लगे जो ठीक दिल्ली या उड़ीसा में
वही घटना असम बंगाल में अच्छी नहीं होती

सभी चालाकियों से ‘यश’ बढ़ेंगी उलझनें केवल
उलझती ज़िंदगी जंजाल में अच्छी नहीं होती

जीवन में अवदान रहा है औरों का
कुछ ना कुछ एहसान रहा है औरों का

खेले-कूदे, दौड़े-भागे जिनमें हम
कुछ आँगन दालान रहा है औरों का

जिन चीज़ों बिन जीना मुश्किल लगता है
वह सब अनुसंधान रहा है औरों का

गीत सुनाए मैंने भी अच्छे बेशक
सुनने वाला कान रहा है औरों का

अपना जीवन मुश्किल है तो मुश्किल है
कब लेकिन आसान रहा है औरों का

मैंने जितना समझा इसको मेरा है
उतना हिंदुस्तान रहा है औरों का

‘यश’ की गठरी में कुछ ग़म उसके अपने
पर ज़्यादा सामान रहा है औरों का

आप आए सँवर गया सपना
एक दिन फिर बिखर गया सपना

यार आकर चला गया ऐसे
आँख से ज्यों गुज़र गया सपना

गाँव में सिर्फ़ बच रहे बूढ़े
हर किसी का शहर गया सपना

बात कुछ तो जरूर है उसमें
जो उसी पर ठहर गया सपना

एक शायर मरा गरीबी में
या कहें यूँ कि मर गया सपना

अब नया ख़्वाब कुछ तलाशेंगे
चाँद पर तो उतर गया सपना

ज़हन में रात भर चला ‘यश’ के
फिर ग़ज़ल बन निखर गया सपना

कौन पहुँचेगा तेरे अशआर तक
लोग अब पढ़ते नहीं अख़बार तक

देश की जनता प्रतीक्षा कर रही
आप पहुँचे सिर्फ इश्तेहार तक

थी जरूरत तो कुशल नेतृत्व की
पर नज़र उनकी गई परिवार तक

सम्मिलित कर्तव्य भी आईन में
कोर्ट सीमित हैं मगर अधिकार तक

खट रही माँ आज भी उनके लिए
जो प्रकट करते नहीं आभार तक

आस्थाओं को भरोसा है नहीं
बात पहुँचेगी कभी दीदार तक

किस तरह परवान चढ़ता प्यार ‘यश’
पहुँच ही पाया नहीं इज़हार तक

है ज़रूरी ज़िंदगी में प्यार होना चाहिए
और फिर उस प्यार का इज़हार होना चाहिए

दिल कहे हर वायदे पर आपके कर लूँ यक़ीं
आपको तो देश की सरकार होना चाहिए

जिस तरह दिन भर सभी की ग़लतियों पर है नज़र
आपको तो साँझ का अख़बार होना चाहिए

इक दुकां से क्या बनेगा नफ़रतों के शहर का
अब मुहब्बत का सुपर बाजार होना चाहिए

भिन्न रंगों में रँगा हो देश का हर नागरिक
रोज होली का यहाँ त्यौहार होना चाहिए

एक भारत, श्रेष्ठ भारत, आत्मनिर्भर देश का
स्वप्न अच्छा है बहुत, साकार होना चाहिए

और ज्यादा के लिए अभ्यर्थना को छोड़ ‘यश’
जो मिला उसके लिए आभार होना चाहिए

हम अभावों से अगर गुज़रे नहीं होते
ज़िंदगी के कुछ सबक सीखे नहीं होते

राह के काँटे तभी बचना सिखाते हैं
जब हमारे पाँव में जूते नहीं होते

आप बच्चों से दुखी, दुख पूछिए उनका
जिन अभागों के यहाँ बच्चे नहीं होते

झूठ का है दौर तो फिर झूठ है यह भी
लोग अब इस दौर में सच्चे नहीं होते

जुर्म फ़ितरत भी कई हमसे कराती है
पर कभी हालात भी अच्छे नहीं होते

जल प्रबंधन में कमी कुछ है हमारे ही
लोग वरना तो कहीं प्यासे नहीं होते

लोग अच्छे ही अधिक हैं ‘यश’ यहाँ वरना
हम जहाँ पहुँचे वहाँ पहुँचे नहीं होते

पक्षियों के जो पर नहीं होते
आज हम चाँद पर नहीं होते

चाँदनी ही इधर नहीं होती
जो वो सूरज उधर नहीं होते

एक रिश्ता सकल चराचर में
बिन अचर के तो चर नहीं होते

सभ्यताएं गवाह हैं इसकी
बिन नदी के नगर नहीं होते

आदमी ही नहीं हुआ होता
पेड़-पौधे अगर नहीं होते

कौन बनता विकास की सीढ़ी
जो सभी जानवर नहीं होते

आप भी पायदान हैं ‘यश’ जी
श्रृंखला में शिखर नहीं होते

यशपाल सिंह ‘यश’

जन्म : 1 अप्रैल 1956

जन्म-स्थान : भंगेला (मुजफ्फरनगर) उत्तर प्रदेश

ईमेल : yeshpalsinghyash@gmail.com

फोन : 8920190892

वर्तमान निवास : सी 1202, पायलट कोर्ट, एस्सेल टावर, एम जी रोड, सेक्टर 28, गुड़गांव (हरियाणा)

शैक्षणिक योग्यता : B.Sc., M.A. ( English Literature), CAIIB, Certificate in Food and Nutrition, Post Graduate Diploma in Dietetics and Public Nutrition.

अनुभव : आईडीबीआई बैंक में 37 साल की सेवा के उपरांत 31 मार्च 2016 को उप महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त ।

प्रकाशित लेखन : कविताओं का एक संग्रह, ‘मंजर गवाह हैं’ अप्रैल 2016 में, दूसरा ‘आँखिन देखी’ 2021 में, तथा तीसरा, ‘जीवन गरम चाय की प्याली’, 2022 में प्रकाशित। ‘संपूर्ण भगवद्गीता दोहों में’ 2023 में और ग़ज़ल संग्रह, ‘बूँद भर सागर’ 2024 में प्रकाशित।

अन्य महत्वपूर्ण साहित्यिक गतिविधियां : दूरदर्शन तथा आकाशवाणी से कविताओं का प्रसारण। अपने यूट्यूब चैनल Science and Poetry से भोजन, स्वास्थ्य और विज्ञान संबंधित प्रसारण। लेखों और कविताओं का विभिन्न पत्र/पत्रिकाओं में प्रकाशन।

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