भोर होने तलक चाँद साथी बना,
कैसे कह दूँ कि तन्हा रही रात भर।
छाँव शीतल बडी, मेला किरणों का था
कैसे कह दूँ कि जलती रही रात भर ।
चुनरी तारों की ओढी निशा थी सजी,
कैसे कह दूँ अगोचर रही रात भर ।
बात करते रहे , मन के मनके सभी,
कैसे कह दूँ कि चुप-सी रही रात भर ।
भीड थी, लोग थे, रोशनी कम ना थी
कैसे कह दूँ कि सूनी रही रात भर ।
ये भी सच है, कि साँसे भी चलती रही ,
कैसे कह दूँ कि मरती रही रात भर ।
“इन्दु” जीने की कोई वजह तो ना थी,
कैसे कह दूँ कि जीती रही रात भर ।
दिल की खामोश आवाज, सुन सको तो सुनो।
कैसे गुजरी शबे-रात, सुन सको तो सुनो ।
वो जो कहता था ना जी पाएगा, जुदा होके कभी,
बदले पल में ही वो हालात, चुन सको, तो सुनो।
भींग जाने का गर शौक है, बेमौसम तुमको,
बेमुरब्बत-सी वो बरसात, घुल सको तो सुनो।
बेवफाई औ जुदाई ही, सिला बनती है
दर्द के बहते से लम्हात, धुन सको तो सुनो।
हाथ की आडी लकीरों में, लिखा कुछ भी हो ,
दिल के छलके से जज्बात, गुन सको तो सुनो।
‘इन्दु’ ओढी थी मोहब्बत की रेशमी चादर ,
बिखरे-बिखरे सब अहसास, बुन सको तो सुनो।
दिल सुलगता है, आँखें धुआँ-धुँआ-सी हैं।
तेरे इस शहर में, साँसें, धुँआ-धुँआ-सी हैं।
ऐसी कोई बात नहीं, जी तो रहा हूँ यारब ,
जीने की सारी, पनाहें, धुँआ-धुँआ-सी हैं।
फूल खिलते हैं, गुल भी मुस्कुराते हैं,
भीगी-भीगी, निगाहें, धुँआ-धुँआ-सी हैं।
यूँ तो, जन्मों के वादे किए थे, उसने भी,
बदले हालात, वे सदाऐं, धुँआ-धुँआ-सी हैं।
जिनके सिरहाने, हम चैन से, सो जाते थे,
वक्त की बात, वे बाँहें, धुँआ-धुँआ-सी हैं।
बुझा बुझा सा जो वो आसमां पे बिखरा,
बुझे दिए तो बुझे सारे ऐतहातो की रात।
बुझे-बुझे से सितारे औ वो बुझा- बुझा चन्दा,
याद फिर आ गई मुझे ऐसी रातों की बात।।
प्यार की लौ जो धीमी धीमी, हो फीकी
रातभर जलते रहे नगमे, जज्बातों की रात।
अश्कों से भींगा-सा, वो धुला-धुला चेहरा,
बदरिया वाली वो भीगी हालातों की रात।
बेवफाई पे भी जो, उसके करम याद किए,
बेपरवाह मोहब्बत के वो ख्यालातों की रात।
चौथ का चाँद भी देखा किए डरते हुए,
ख्वाहिशें हजार लिए, वो इन्तजारों की रात।
वक्त के ढलते से साए, मिटा ना पाए जिसे,
उजले पन्नों पे बिखरते, वो स्याह दागों की रात।
कहने को कहते रहे, भूले बीती बातों की कसक,
बारहां इन्दु क्यूँ याद आए, वो अहसासों की रात ।
दर्द की बात चली हर बार वो याद आया ।
जब भी महफिल हुई जवां, वो याद आया।
भूल जाते है हम उनको ऐसा तो नही है यारों,
तन्हाई के पलों में अपनों में वो याद आया।
श्वासों में बस गया तन में प्राण की माफिक,
गुनगुनाई जो धडकन तो वो याद आया।
दिन के उजाले में ढूँढू ,तो उनको क्यूँ ढूँढू।
साथ परछाई – सा हरपल वो याद आया।
शमा परवाने से दूर हो तो कैसे हो ‘इन्दु’
जलता परवाना देखा तो , वो याद आया।
इन्दु झुनझुनवाला
दूरभाषः 9341218152
ईमेलः induj47@gmail.com
प्रकाशित पुस्तकेंः
अहसास( साझा काव्य संग्रह)
संस्कृति के दर्पण( साझा काव्य संग्रह)
अनुभूतियों के मोती (एकल काव्य संग्रह )
बूँद का सफर नामा( दो भागों में काव्य संग्रह)
काव्या( उपन्यास)
बुद्ध-यात्रा अन्तर की ( एक नया प्रयोग )
बूँद-बूँद जीवन( गद्य पद्ध के साथ एक कहानी स्त्री अन्तर्मन की – एक नया प्रयोग)
आज की अहिल्या( कहानी संग्रह- नारी मनोविज्ञान पर आधारित)
25 पुस्तकों का सम्पादन
अनेकोंसाझा संकलनों, पत्र पत्रिकाओं में आलेख, कहानियाँ, कविताओं का निरन्तर प्रकाशित