गीत और ग़ज़लः अमित मिश्रा ‘मौन’


मौन भला हूँ2
मैं गुलों के जैसा महकता नही हूँ
सितारा हूँ लेकिन चमकता नही हूँ

ज़माना ये समझे कि खोटा हूँ सिक्का
बाज़ारों में इनकी मैं चलता नही हूँ

यूँ तो अंधेरों से जिगरी है यारी
मैं ऐसा हूँ सूरज की ढलता नही हूँ

सफ़र पे जो निकला तो मंज़िल ज़रूरी
यूँ राहों में ऐसे मैं रुकता नही हूँ

उम्मीद-ए-वफ़ा ने है तोड़ा मुझे भी
मैं आशिक़ के जैसा तड़पता नही हूँ

कोशिश में ज़ालिम की कमी नही थी
मैं पहले ही राख हूँ जलता नही हूँ

मयखानों की रौनक है शायद मुझी से
मैं कितना भी पी लूँ बहकता नही हूँ

सूरत से ज्यादा मैं सीरत को चाहूँ
रुख़सारों पे चिकने फिसलता नही हूँ

मुसीबत से अक़्सर कुश्ती हूँ करता
है लोहा बदन मेरा थकता नही हूँ

मिट्टी का बना हूँ जमीं से जुड़ा हूँ
खुले आसमानों में उड़ता नही हूँ

हुनर पार करने का सीखा है मैंने
बीच भँवर अब मैं फंसता नही हूँ

‘मौन’ भला हूँ ना छेड़ो मुझे तुम
मैं यूँ ही किसी के मुँह लगता नही हूँ

कुछ यादें…
कुछ यादें इस दिल से निकाली नही जाती
कुछ निशानियाँ हैं जो संभाली नही जाती

कुछ ख़्वाबों की तामील भी इस तरह हुई
शिद्दत से माँगी दुआ कभी ख़ाली नही जाती

जवानी यूँ ही सारी भाग दौड़ में गुजार दी
मगर पीरी तलक भी ये बदहाली नही जाती

हर सहर आफ़ताब आया कड़ी धूप लिये
रही शीतल सांझ वही उसकी लाली नही जाती

कुछ ग़जलें मुक़म्मल होती नही ‘मौन’
एहसासों की सियाही उनमें डाली नही जाती
©अमित मिश्रा


माहताब की लाली
माहताब की लाली को बादलों में छुपाया ना करो
यूँ बेवजह रूखसारों पे जुल्फें गिराया ना करो

बाहों के घेरों में सिमटो तो नज़रें झुका लो
रंग-ए-हया के चिलमन से बाहर आया ना करो

गुफ़्तगू वस्ल की बेशकीमती खजाना है जानां
शब-ए-इश्क के किस्से सरेआम सुनाया ना करो

ग़ुरूर चाँदनी का भी अब हवा हो चला
यूँ हर बार सितारों को आईना दिखाया ना करो

नीयत महबूब की दगाबाज़ी पे उतर ना जाए
निगाहों के मयकदे में हर बार बुलाया ना करो

बोसों की बारीश से कुछ पल की राहत बख्शो
लबों से जकड़ हर बार ‘मौन’ बिठाया ना करो

गिला नही करते…
ख़ज़ान के दिनों में धूप सहा नही करते
उस बूढ़े शज़र पे अब परिंदे रहा नही करते

बेटे बड़े होकर अब ख़ुद में मशगूल रहते हैं
हक़ वालिद की परवरिश का अदा नही करते

अम्मी भी जाने क्यों आस लगाये रखती है
क्या कुछ लोग बिन औलादों के जिया नही करते

जख़्मों के नासूर बनने का इंतज़ार करते हैं
बड़े अजीब लोग हैं जो इसकी दवा नही करते

ख़ुदा ख़्यालों में भी यही सोचता होगा
अब इंसान लंबी उम्र की दुआ नही करते

रिश्तों में दीवारें अब लंबी हो गई हैं
इन ऊँचे घरों में झरोखे हुआ नही करते

रिवायतें जमाने की अब बदल गयी हैं ‘मौन’
ख़ुद में कर तब्दीलियाँ औरों से गिला नही करते


अमित मिश्रा ‘मौन’
देहली. भारत
संपर्क सूत्रः videoking9542@gmail.com

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