बंजारा
कौन है अपना, कौन पराया, सब के सब बंजारे हैं ।
मंजिल तक भी साथ चले जो, ऐसे नही नजारे हैं ।
सच जीवन का कड़वा होता, पर पीना ही पडता है ।
दिल में अपने झाँक के देखा , दिन में दिखते तारे हैं।
खुद को बदलो तो जग बदले, ऐसा कहा फकीरों ने।
दूजे में ही अवगुण खोजे, ऐसे हम तुम सारे हैं।
दिवास्वप्न है ये जग सारा , बंद नयन तो टूट गया,
अन्दर झाँका “इन्दु” जिसने, उसके वारे-न्यारे हैं ।
इंदु झुनझुनवाला
मदहोश
ये बगिया, ये गांव और हरे-भरे ताल तलैया
जरूरी नहीं कि कल होंगे साथ अपने भैया।
वक्त की सीढ़ी जो चढ़ लिए सपनों के नन्हे पांव
बंजारा क्यों ढूँढता फिरे फिर मिले वही ठंडी छाँव।
लोग फेंकते हैं पत्थर यूँ किनारों पर बैठकर
गिन डालेंगे मानो लहरों को वहीं से देखकर।
बूदों का मर्म पता हो ना ही पवन का जोश
मुठ्ठी में बन्द रेत ही जब कर देती मदहोश ।
-शैल अग्रवाल
प्यास
पल पल की प्यास यहाँ, पल पल की उदासी है
कुँआ खोदते हम जहाँ बचा ना बूंद भर पानी है
मरती धरती कहीं पर गोली कहीं गंड़ासे खाती है
ढूंढते हैं चांद पर घर और क्या मंगल पर पानी हैं
इन्सानों के उपले जलते शैतानों की दावत शाही है
रहमत किसको देंगे कहते जो यही तो दुनियादारी है
बादल भी चुरा ले जाएंगे खेतों के ऊपर से पापी हैं
इनकी सारी मेड़ तलैया चलती इनकी ही मनमानी है
गांधी को भूना इन्होी ने ईसा को सूली चढ़ाया है
इस हिंसा से पहचान हमारी यारों बहुत पुरानी है
चलाने से पहले गोली पूछेंगे क्या धर्म और बोली हैं
आज भी दुनिया देखो ताकत की ही तो दीवानी है
नालियों में बहता खून अपना नहीं तो ठीक है
सूखी नदियाँ नहीं सूखा आंख का अब पानी है
-शैल अग्रवाल