विगत 17 अप्रैल 2021 को हमारी माँ का हाई ब्लड प्रेशर व हाई शुगर के चलते ऑक्सीजन लेवल गिरकर 33 पर पहुंच गया था जिस पर प्रयागराज, कौशाम्बी एवं फतेहपुर जनपद में कहीं भी ऑक्सीजन नहीं मिला, जहां पर ऑक्सीजन था तो बेड का इंतजाम नहीं कह कर पल्ला झाड़ लिया गया, आखिरकार समय ज्यादा बीतने के बाद एक नॉर्मल व छोटा सा अस्पताल चलाने वाले के पास ऑक्सीजन की व्यवस्था हुई लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और हमारी माँ इस दुनिया से अलविदा कह गयीं…. कौन जिम्मेदार है उनकी मौत का? क्या जिला प्रशासन अपने आप को जिम्मेदार समझेगा या सरकार के नुमाइंदे या ख़ासकर देश के माननीय प्रधानमंत्री या सूबे के मुखिया माननीय मुख्यमंत्री अपने आप को इन मौतों का जिम्मेदार मानेंगे… बताएं किस पर लापरवाही का मामला दर्ज होने चाहिए और किस पर हत्या का मुकदमा हो?
ऐसे निउत्तर सवालों के जवाब बहुत से औलाद अपने माँ – बाप के लिए तो बहुत सारे माँ – बाप अपने औलाद व अन्य रिश्तों के लोग भी मांगते फिर रहे हैं पर कोई जवाब नहीं मिल रहा?
ऐसे ही हालात से न जाने कितनों ने अपनों को खो दिया या आंखों के सामने खोता देख रहा है या फिर कई असहाय बिना इलाज की सुविधा पर उसका मरीज अब मरे या कब की बांट जोह रहे है… ये केंद्र व राज्य सरकार की नाकामी का सिला है और स्वास्थ्य सेवाओं की हक़ीक़त वाकई में आज चीख – चीख कर बड़ बोलापन करने वाली सरकार/सरकारों या शासन के नुमाइंदों को तमाचा स जड़ रही है… पर इतने में भी किसी को कोई शर्मो लिहाज़ नहीं है… न कोई साधन, न संसाधन और न ही प्रबंधन का सटीक रोडमैप… जिसको देखो हर तरफ चुनावी जीत का सेहरा बांधने के लिए आतुर है… अरे साहब जिस जनता के मत से राजसिंहासन नसीब हुआ कम से कम उनकी लाशों का सम्मान करो और इंतेजाम करो… जान है तो जहान है, जब जहान है तब ही इलेक्शन का मैदान है… और जब कोई जान वाला ही नहीं रहेगा तो क्या जानवरों और प्राकृतिक संपदाओं पर ही सत्ता की हनक चलाओगे… लिहाज़ा आम जन की जान को बचाने का सामान पैदा करिये न कि चुनावों की रैलियों से लोगों की मौत का सामान…
लेकिन अब सरकार जवाब दे कि आखिरकार हर नागरिक माचिस से लेकर सोना – चांदी आदि की खरीददारी करके जो टैक्स दिया है उसका रिटर्न आम आदमी को क्या मिला? क्या सभी ने सरकार को इसलिए चुना था कि जनहित की जरूरत के समय पर सरकार जिम्मेदारी निभाये न कि सिर्फ हिदायत दे? सरकार/सरकारें आम जनमानस को कोविड के नियमों का पालन करने का दबाव भी बनाती है और नियम उल्लंघन पर जुर्माना भी वसूलती है लेकिन क्या सरकार के नुमाइंदे इन नियमों का पालन कर रहे हैं?
फ़िलहाल पीड़ा के साथ सिर्फ इतना ही …
आपका
शिबू खान
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