शहर से कुछ दूरी पर स्थित एक छोटे से गांव में रहता था किशन। स्वाभाव से हंसमुख और चंचल किशन गांव में ही एक छोटी सी झोपड़ी में अपने माता पिता के साथ रहता था। ग्याहर साल का किशन झोपड़ी में भी हंसी खुशी अपनी दिनचर्या पूरी करता। घर की माली हालत ठीक नहीं होने से तीसरी कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाया। किशन के माता पिता दोनों मजदूरी किया करते थे, कभी कभी किशन भी उनके साथ चला जाया करता। लेकिन किशन को अपनी माता का मजदूरी करना अच्छा नहीं लगता था। इस बारे में वो अपनी मां से कहता कि ‘‘मां तुम मजदूरी के लिए मत जाया करो। मुझे अच्छा नहीं लगता और वैसे तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं रहती।‘‘ मां जवाब देती ‘‘अरे! किशना, दोनो मजदूरी नहीं करेंगे तो घर कैसे चलेगा और बीमारी आदि के लिए बचत भी तो रहनी चाहिए, इसलिए तेरे बाउजी के साथ मजदूरी कर दो पैसे जोड़ लेती हूं।‘‘ किशन फिर बोला ‘‘पर मां…..! मुझे पंसद नहीं, लेकिन मां मैं और बड़ा हो जाउंगा तो खूब पैसा कमाउंगा, वो भी शहर जाकर। फिर तुम आराम से रहना, मजदूरी छोड़ देना‘‘। अपने बेटे की यह बात सुनकर उसके माता पिता दोनों हंसने लगे। फिर किशन के पिताजी बोले ‘‘देखा, किशन की मां…. हमारा बेटा अभी से सयाना हो गया है। बड़़ी बड़ी बातें करने लगा है।‘‘ बीच में ही किशन बोल पड़ा ‘‘क्यों नहीं बोलूंगा, आखिर मैं आपका बेटा जो हूं। मुझे भी एक अच्छे बेटे की तरह अपना फर्ज निभाना है, आपकी सेवा करनी है।‘‘ किशन की ये बातें सुन पिता को गर्व होने लगा और मां की आंखों से तों आंसू ही छलक प़ड़े।
दिन बीतते रहे। इसी दौरान, किशन की मां की तबियत दिनों दिन खराब होती चली गई। मजदूरी के लिए जाना भी बन्द हो गया था, और एक दिन गंभीर बीमारी के कारण किशन की मां का निधन हो गया। सभी का बुरा हाल था। सबसे ज्यादा किशन को सदमा लगा। सदा हंसमुख रहने वाला गुमसुम और उदास सा रहने लगा। किशन के पिताजी उसकी यह हालत देखकर बहुत दुःखी होने लगे। वे किशन को समझाने बहलाने की बहुत कोशिश करते पर किशन इस सदमें से उभर नहीं पा रहा था। इसी बीच किशन के पिताजी को विचार आया कि गांव छोड़कर शहर चला जाए। क्यों कि किशन को भी शहर जाने की बड़ी इच्छा रही थी। शायद माहौल बदलने से किशन का मन भी बहल जाएगा। किशन के पिताजी झोपड़ी बेचकर, किशन के साथ हमेशा के लिए शहर चले आए। शहर में, एक छोटा सा कमरा किराए पर लेकर रहने लगे। गांव के माहौल से अलगध्उलट शहर की चंकाचैंध और महानगरीय संस्कृति के बीच धीरे धीरे किशन पुरानी बातों को भूलने लगा। अब उसकी दिनचर्या शहरी जनजीवन के अनुरूप बनने लगी। पिताजी रोजना सुबह काम की तलाश में निकल जाते। किशन कमरे पर ही रहता और पड़ौस के बच्चों के साथ खेलकूद आदि के द्वारा अपना समय व्यतीत करता। पिताजी काफी मशक्कत और दिनभर की मेहनत के बाद, बमुश्किल दो वक्त के खाने के लिए और किराया चुकाने जीतना ही कमा पाते। पिताजी की भागदौड़ और हालत देखकर किशन भी उदास हो जाता था। वह अक्सर अपने पिताजी से कहता कि ‘‘बाउजी, मैं भी आपके साथ मजदूरी केे लिए चलता हूंू, मैं भी मेहनत करूंगा तो आपको सहारा हो जाएगा और थोड़ी बचत भी हो जाएगी। आपको ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी।‘‘ लेकिन किशन के पिताजी उसकी बात को टालते हुए उसे मना कर देते थे। रोजाना की तरह मजदूरी पर निकले किशन के पिताजी देर शाम तक घर पर नहीं लौटे। इस पर किशन को चिंता सी होने लगी। किशन का मन भारी होने लगा। रात हो चली थी पर अभी तक किशन के पिताजी नहीं आए। तभी एक पुलिस वाला मकान के पास, पुछताछ करता हुआ पहुंचा। पुलिस वाले ने किशन के पिताजी की सड़़क दुर्घटना में मृत्यु होने की खबर पड़ौसी को दी। फोटों के आधार पर पहचान करवाई गई। पड़ौसी ने किशन को उसके पिताजी की सड़क दुर्घटना मंे मौत होने हो जाने के बारे में बताया। इतना सुनते ही किशन जोर जोर से रोने लगा। उसके उपर पहाड़ सा टूट गया। आस पास मौजूद लोगोंध्पड़ौसियों ने उसे संभाला। किशन का बुरा हाल था। दूसरे दिन सरकारी मदद से उसके पिताजी का अंतिम संस्कार कर दिया गया। किशन कुछ दिन किराए के कमरे में बेसुध रहा। बचत के रूपए भी अब खतम होने लगे थे। कमरे का किराया भी चुकाने को नहीं था। आखिकरकार, मकान मालिक ने भी किराया नहीं देने के कारण उसे कमरे से बाहर निकाल दिया। अब किशन अपने कपड़ो और थोड़ा सा सामान एक थैले में समेटकर वहां से चला गया। शहर की सड़को पर ठोकरे खाते खाते शाम हो गई। रात होने वाली थी। थकहारकर किशन एक सड़क पुल के नीचे बने फुटपाथ पर जाकर बैठ गया। वहां बैठे बैठे उसे अपने माता पिता की याद सताने लगी और वह फफक फफक रोने लगा।
तभी…..पीछे से एक आवाज आई। अरे बेटा! तुम रो क्यों रहे हो? किशन ने पीछे मुड़कर देखा तो एक बुजुर्ग खड़ा था। बुजुर्ग किशन के पास आकर बैठ गया और किशन से उसका नाम और रोने का कारण पूछा। किशन ने अपने आंसू पांेछे। किशन ने उस बुजुर्ग को पहले अपना नाम बताया फिर अपनी आपबीती सुनाई। किशन की बातें सुन बुजुर्ग भी दुःखी सा हुआ और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘बेटा! तुमने बहुत दुःख देखें है, शायद उपरवाले को यहीं मंजूर था। लेकिन अब रोना छोड़ो और हिम्मत से काम लो।‘ थोड़ा सा सहज होने पर किशन ने बुजुर्ग से पूछा, ‘बाबा आप यहीं फुटपाथ पर रहते हो? आपका कोई अपना नहीं है क्या….? बुजुर्ग ने गहरी सांस लेते हुए उदास मन से कहा, ‘हां बेटा, मैं यहीं रहता हूं, इसी फुटपाथ पर। मेरे अपनों ने मुझे छोड़ दिया। अब यही मेरा घर है और यही मेरा आशियाना।‘‘ किशन ने उत्सुक्ता के साथ पूछा, ‘बाबा… ऐसा क्या हुआ था आपके साथ जो इस उमर में फुटपाथ पर रहना पड़ रहा है।‘‘ बुजुर्ग ने जवाब देते हुए कहा ‘बेटा! मेरा भी भरा-भूरा परिवार था। मैं एक सेठजी के यहां मुनीम था। मेरी धर्मपत्नी ने जीवन भर मेरे हर सुख दुःख में मेरा साथ दिया। मेरे दो बेटे हुए। मेरी हैसियत से बढ़कर उन्हें पढ़ा लिखाकर काबिल बनाया। दोनों की शादी भी अच्छे से की। पर दोनों बहुओं के आने के बाद मेरे बेटे दुर होते चले गए। सात साल पहले मेरी पत्नी का देहान्त हो गया। उसके जाने के बाद मैं और अकेला हो गया। तीन साल पहले मुझे करंट लग गया। जान तो बच गई, लेकिन मेरा एक हाथ सुन्न हो गया। घर पर ही आराम करने लगा। नौकरी भी चली गई। डाॅक्टर ने कहा था कि हाथ में हलचल शुरू हो जाएगी, पर कितना समय लगेगा, कह नहीं सकते। एक तरह से लाचार और बेबस सा घर पर ही रहने लगा। मेरी बहुओं को मैं बोझ लगने लगा। उनसे सहा नहीं जाता था। कहां मेरी धर्मपत्नी ने जीवन भर कभी भी उफ् तक नहीं किया और इन बहुओं से खरी खोटी सुनाए बिना रहा नहीं जाता था। बहुओं के कहने मंेे आकर, मेरे बेटों ने मेरा तिरस्कार कर एक वृद्धाश्रम में छोड़ आए। रोने और हताश होने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था। थोड़े दिन वहां रहा, पर वहां का महौल मुझे और ज्यादा गमगीन करने लगा। इसलिए मैं वृद्धाश्रम छोड़कर चला आया। बस तब ही से इसी फुटपाथ पर जिन्दगी के दिन बिता रहा हूं। ऊपरवाला जैसा चाहेगा और जब तक चलाएगा, हमें चलना होता है।‘‘ बुजुर्ग की बातें सुनकर किशन बोला, ‘‘बाबा आपके साथ बहुत बुरा हुआ, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।‘‘ बुजुर्ग ने किशन की बात काटते हुए कहा, ‘‘रात, हो गई है। कुछ खा लो फिर सोना भी हैं।‘ बुजुर्ग ने अपने पास रखी रोटी सब्जी किशन को खाने के लिए दी। खाना खाने के बाद बुजुर्ग ने अपने थैले से एक चद्दर निकाल कर बिछाई और किशन को उसपर सोने के लिए कहा। दोनों बतियाते हुए सो गए।
दूसरे दिन सुबह बुजुर्ग जल्दी उठ गया। बुजुर्ग ने किशन को जगाते हुए चाय पीने के लिए दी और अपनी दिनचर्या के बारे में बताने लगा। बुजुर्ग बोला, ‘बेटा, काम की तलाश में रोजाना निकल जाता हूं, किसी दिन काम मिल जाता है, कभी नहीं मिलता। कमाई भी इतनी ही होती है कि दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो जाता है। जिस दिन काम नहीं मिलता, तो उस दिन दानदाताओं से खाने के लिए तो मिल ही जाता है इस शहर मे। अभी तो मैं जाता हूं, फिर शाम को मिलते हैं।‘‘ अब फुटपाथ पर रहने के हिसाब से किशन की दिनचर्या बन चुकी थी। बुजुर्ग ने किशन को हिसाब किताब करना, शहर में काम की तलाश करना, मेहनत और मजदूरी करने के तरीके जैसी कई चीजें सिखाई। जल्द ही किशन शहर के उस माहौल में भी ढल गया। किशन भी रोजाना काम की तलाश में चला जाता। किसी दिन काम मिलता तो कभी खाली हाथ ही लौटना पड़ता। काम के बदले थोड़ा ही दाम मिल पाता। पर किशन इसी से संतुष्ट रहता। हर शाम लौटने के बाद, किशन अपने दिनभर के किस्से बुजुर्ग को बताता था। बुजुर्ग भी किशन की बातंे सुनकर, उसेे आगे बढ़ने के कई तरीके बताकर उसकी मदद किया करते। एक बार बुजुर्ग देर शाम तक वापिस नहीं लौटा तो किशन चिंतित होने लगा। लेकिन थोड़ी रात होने पर किशन को बुजुर्ग आता दिखाई दिया। बुजुर्ग दर्द से कहराता हुआ, किशन के पास आकर बैठ गया। किशन ने सहमें से पूछा, ‘क्या हुआ बाबा, आप इतना परेशान लग रहे हैं? बुजुर्ग दर्द से कहराते हुए, दम भरते हुए बोला ‘‘कुछ नहीं बेटा, मोटरसाइकिल से टक्कर लग गई थी, सो मैं गिर गया‘, ‘गिरने से हाथ में चोट लगने से दर्द बैठ गया है। दर्द का मलहम लेकर आया हूं। सोते वक्त लगाने से आराम आ जाएगा।‘‘ यह सब देखकर किशन को अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि बुजुर्ग को उसी हाथ में चोट लगी थी जो बिल्कुल ठीक था। थोड़ी देर बाद, बुजुर्ग ने खाने के लिए लाई गई रोटी सब्जी निकाली और खाने के लिए रोटी का निवाला तोड़कर जैसे ही मुंह में डालने लगे, तो हाथ में तेज दर्द होने लगा। इसके कारण निवाला मुंह तक लाने में काफी धिक्कत हो रही थी। इससे बुजुर्ग का दर्द से कहराना बढ़ता ही जा रहा था। यह सब देख किशन व्यथित हो उठा, और उसने बुजुर्ग से कहा, ‘‘रूको बाबा, आपको बहुत दर्द हो रहा है और खाने में भी परेशानी हो रही है। लाओं…. मैं आपको रोटी खिलाता हूं।‘‘ बुजुर्ग ने काफी मना किया, पर किशन से रहा नहीं गया, उसने तुरन्त हाथ आगे बढ़ाते हुए, अपने हाथों से बुजुर्ग को रोटी खिलाना शुरू कर दिया। किशन बोला, ‘‘बाबा! आप मेरे पिता समान हो, बल्कि पिता से भी बढ़कर हो। आपने मुझे संभाला है, इस अनजान शहर में जीना सिखाया है। तो क्या मैं आज आपकी तकलीफ में जरा सी भी मदद नहीं कर सकता? मैं आपका बेटा नहीं, पर बेटे जैसा तो हूं। मैं हमेशा से अपने माता-पिता की सेवा करना चाहता था। अपने बेटे होने का फर्ज निभाना चाहता था लेकिन उपरवाले ने मुझे यह मौका देने से पहले ही उन्हें अपने पास बुला लिया। आज उपरवाले ने मुझे यह अवसर दिया है। इसे मैं अपने माता पिता को समर्पित करते हुए आपकी सेवा कर अपना धर्मध्फर्ज निभाना चाहता हूं। और हां…. जब तक आपका दर्द ठीक नहीं हो जाता, आप आराम करना। मैं काम पर चला जाउंगा।‘‘ किशन की यह सब बातें सुनकर बुजुर्ग की आंख भर आई और आंसू छलक पड़े। बुजुर्ग किशन के हाथ को थामते हुए बोला, ‘जिस उमर में मुझे मेरे अपने बच्चों से स्नेह और सहारे की उम्मीद थी, उन्होंने पूरी नहीं की। पर आज एक गैर ने मेरे सगे बेटों से भी बढ़कर मुझे प्यार और सम्मान दिया है, मेरे पास तुम्हें देने के लिए तो कुछ नहीं, पर उपरवाले से यह दुआ करता हूं कि तुझे जीवन में हमेशा तरक्की मिले।‘ खाना खाने के बाद बुजुर्ग और किशन अन्र्तमन में असीम खुशी और सुकुन को लिए सो गए। अगले दिन से किशन नेे एक अच्छे बेटे का फर्ज निभाना शुरू कर दिया।
लेखक
धर्मेन्द्र मूलवानी
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