कहानी समकालीनः श्रद्धा के फूल-देवी नागरानी

पल्लवी का आने वाला कल आकाश के साथ कुछ यूँ जुड़ गया कि वह कल्पना में भी अपने वजूद को उससे जुदा न कर पाई। क्या करती वह उन यादों का, उन वादों का जो दोनों ने अपना भविष्य सजाने संवारने के लिए एक दूजे के साथ किये थे। उन यादों की खलिश पल-पल उसकी सांसों में धौंकिनी की तरह आती जाती और कभी तो धंसी हुई कील की तरह चुभती रहती। वह जान गई थी कि उस चुभन से निजात पाना नामुमकिन व निष्फल ही होगा। उस छटपटाहट और असहनीय पीड़ा से मुक्ति पाने के हर प्रयास को अपनाते हुए भी वह पग-पग अपने प्रेम पथ पर नाकामयाबियों से रूबरू हो रही थी। शायद यही नियति थी!
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पल्लवी निराशा के मंडराते काले बादलों की श्रंखला को भेदते हुए कुछ पल खुले आसमान की ओर देखने का प्रयास करती जो उसकी कल्पना की उड़ान को जन्नत बख्शता। आकाश के साथ बिताये वो पल ही तो थे जो खुले आसमान पर जैसे सितारों कि तरह टंके रहते थे।
आकाश से उसका मिलना मात्र उसके जीवन की उपलब्धि थी. वही आकाश जो उसकी ओर देखते हुए फूलों की खुशबू, तारों की जगमगाहट, चांद की छटा व बादलों से पिघलकर बहती बूंद बूंद बारिश का आनंद पाता था.
वह थी भी ऐसी कोमल कली, फूल बनने से पहले वाली पंखुड़ी, जो अपने सौंदर्य की मादकता से हर भंवरे को अपनी ओर आकर्षित करती, उन्माद की सुगंध से सरोबार करती। फिर भी खुद अनछुई रहती। हर मंडराते भंवरे से खुद को बचाकर, अपना कौमार्य, सीप में मोती के समान संजोती. यही एक मात्र उसकी पूंजी थी, उसकी मर्यादा थी।
और आज उसने पाई बेगुनाही की सज़ा। हाँ, प्यार करना अगर गुनाह है, तो यह गुनाह उससे हुआ है। प्यार तो कुदरत का वरदान है जो हर एक के हिस्से में आता है, फिर चाहे उस का फल मीठा हो या कड़वा। कड़वाहट तो इंसान थूक भी सकता है, पर प्यार का ज़हर भी प्यारा लगता है, मीठा होता है। इसी अवस्था में प्रेमी पागलपन की हद तक नीलकंठ बन जाता है।
पल्लवी इस बात को कतई भूल नहीं पा रही थी, आकाश का यह त्याग किसके जीवन को पूर्णता बख्श रहा है. त्याग के नाम पर वह दोनों में से एक का त्याग करेगा. वह शादी नहीं करेगा, मतलब साफ़ था वह पल्लवी का त्याग कर देगा, अपने प्यार को बलि चढ़ा देगा, सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘प्रार्थना’ उसकी बहन के कारण-बहन कम माँ ज्यादा। क्या ऐसा करने से वह बहन का कर्ज उतार पायेगा? क्या यह एक के साथ वफ़ा, दूसरे के लिए बेवफाई नहीं होगी?
पल्लवी ‘प्रेमिका’ और ‘प्रार्थना’ स्नेह के धागों से बंधी हुई बहन। बड़ी थी पर ज्यादा बड़ी न थी, कुछ दो साल ही बड़ी थी। मगर उसका दिया हुआ स्नेह समय का या बीते सालों के किसी भी गणित का मोहताज न था। माँ की मौत के बाद, बचपन से लेकर जवानी तक के सफ़र में उसने आकाश का हर पड़ाव पर, हर मोड़ पर साथ दिया। निभाने की रस्म क्या होती है, यह तो वही बेहतर जानता है जिसे रिश्तों की पहचान हो।
‘प्रेम के रेशों’ से ‘स्नेह के धागे’ मजबूत साबित हुए। फ़र्ज़ और त्याग के नाम आकाश ने आजीवन प्रार्थना की देख रेख और सार-संभार करने का फैसला कर लिया। वह स्नेह और त्याग का क़र्ज़ उतारने के लिए खुद को रेशों की जकड़न के मुक्त करने के लिए पल्लवी के प्यार को भुला देने के पक्ष में था। निर्णय हुआ, प्यार और त्याग के बीच की दुविधा जनक स्थिति में स्नेह का नाता भारी पड़ गया।

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पल्लवी की उदासी, कल की सुखद संभावनाओं के आकाश पर मायूस मंडराते बादलों के कोहरे से घिरी हुई अपनी स्थिति के बारे में सोचती, तन्हाई में रोती, सिसकती. बस खामोश आंसू उसके आँचल को भिगो देते.
‘ पल्लवी……!’ मंदिर की घंटी की तरह एक तरंगित आवाज़ उसके कानों से टकराई।
अपने नाम की पुकार में श्रद्धा का भाव था, निस्वार्थ प्रेम की खुशबू थी। अचानक प्रार्थना की आवाज़ ने उसके ख्यालों में बाधा डाली।
‘ जी….’ इससे ज्यादा पल्लवी कुछ न कह पाई ।
‘ मैं जानती हूँ कि तुम किस स्थिति से गुजर रही हो! यह प्यार भी एक दीवानगी की हद तक पागलपन ही है, तेरा, मेरा और उसका, सब अपने-अपने स्थान पर परिपूर्ण, अटल!’
पल्लवी ने सुना पर कुछ कह न सकी। वह बस यही जानती थी कि वह बेगुनाह है, पर सज़ा की हक़दार करार की गई है। उसका जीवन तो हाशिये पर धकेला गया है। एक तरफा निर्णय. उसका नहीं, प्रार्थना का कतई भी नहीं, ‘आकाश’ का लिया निर्णय था।
‘पल्लवी, मैंने तय किया है कि मैं अपने जीवन में किसी को स्थान देना चाहती हूँ। यह हक़ मुझे है। अपने जीवन के फैसले करने का अख्तियार मैंने किसी को नहीं दिया है, आकाश को भी नहीं। हाँ अपनी उम्र का एक हिस्सा दिया है आकाश को, जो मेरा छोटा भाई कम एक बेटा है, जिसे मैंने माँ-बाप के बाद पाला-पोसा है। उसकी निगरानी की एक बागबाँ की तरह. पर अब मैं त्याग नहीं मुक्ति चाहती हूँ। मैं भी अब….!’

‘अब क्या…..!’ पल्लवी विस्मित आंखों से प्रार्थना की ओर देखने लगी।
‘अब समय आया है कि मैं एक नए रिश्ते से निबाह करूं, जो मेरे जीवन के हर पल, हर अवस्था में मेरा साया बनकर साथ रहा है। गिरने पर जिसने मुझे उठाया है, मेरे ज़ख्मों को मरहम लगाया है, उम्र की इन कंटीली पगडंडियों पर बिना कुछ कहे, निस्वार्थ भाव से मेरी राहों में फूल बिछाने वाले उस इंसान के साथ जीवन जीना चाहती हूँ। ”
प्रार्थना की पल भर की चुपी में न जाने कितने सारे सवालों के स्पस्ट जवाब उभर आये। एक अटूट शिला की मानिंद सूती साड़ी में लिपटी ‘प्रार्थना’ अपने जीवन की परतों को उसके सामने खोल रही थी। आंखें कुछ और ऊपर उठाते ही सामने खड़े ‘आनंद’ को देखा। आनंद आकाश का दोस्त, दोस्त कम, बड़ा भाई ज़्यादा। उसने प्रार्थना को इस निबाह निर्वाह के तवील सफ़र में कभी भी तन्हा नहीं छोड़ा और न ही अपने स्वार्थ को सामने लाकर उसे यह महसूस होने दिया कि वह पूजा की हद तक उसे चाहता है। चाहत के भी एक नहीं अनेक रंग होते हैं। उनमें से एक यह भी है।
पल्लवी को अब लगा कि उसका प्यार स्वार्थ की शिला पर खड़ा होते हुए भी, आकाश की ऊंचाइयों को छूता हुआ प्रार्थना के निस्वार्थ त्याग के सामने बौना पड़ रहा था।
प्रार्थना के इस अकस्मात निर्णय ने आकश और पल्लवी के दिलों को श्रद्धा से भर दिया। आकश तो बस अपने दोस्त के त्याग की परिपूर्णता को पहचानते हुए जैसे नतमस्तक हो गया। आगे बढ़कर बहन के पाँव छूने को झुका, तो प्रार्थना के साथ आनंद के क़दम भी आगे आये। दोनों ने उसे उठाकर सीने से लगाया। कुछ दूरी पर खड़ी पल्लवी ने दो क़दम आगे बढ़कर प्रर्थना के चरण स्पर्श किए। उसे सीने से लगाते हुए प्रार्थना और आनंद ने उसे ‘सौभाग्यवती भव’ का आशीर्वाद दिया।
आनंद और प्रार्थना के इस परस्पर मिलन ने पल्लवी और आकश के बीच के सारे फासले कम कर दिए। दो प्यार भरे दिल परस्पर एक हो गए. पल्लवी और आकाश खुले आसमान की ओर देखते हुए फूलों की खुशबू, तारों की जगमगाहट, चांद की छटा व बादलों से पिघलकर बहती बूंद बूंद बारिश का आनंद पाते रहे, और कुदरत के सौन्दर्य की परिपूर्णता से सरोबार हो गये।
इस मिलन की सुखद सद्भावना में यह तय करना मुश्किल था कि किस के प्यार, त्याग, परित्याग की भावना से श्रद्धा के फूल खिल उठे थे।

देवी नागरानी
जन्म: 1941 कराची, सिंध (तब भारत), 12 ग़ज़ल-व काव्य-संग्रह, 2 भजन-संग्रह, 12 सिंधी से हिंदी अनुदित कहानी-संग्रह प्रकाशित। सिंधी, हिन्दी, तथा अंग्रेज़ी में समान अधिकार लेखन, हिन्दी- सिंधी में परस्पर अनुवाद। श्री मोदी के काव्य संग्रह, चौथी कूट (साहित्य अकादमी प्रकाशन), अत्तिया दाऊद, व् रूमी का सिंधी अनुवाद. NJ, NY, OSLO, तमिलनाडू, कर्नाटक-धारवाड़, रायपुर, जोधपुर, केरल व अन्य संस्थाओं से सम्मानित। डॉ. अमृता प्रीतम अवार्ड, व् मीर अली मीर पुरूस्कार, राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद व् महाराष्ट्र सिन्धी साहित्य अकादमी से पुरुसकृत। सिन्धी से हिंदी अनुदित कहानियों को सुनें @ https://nangranidevi.blogspot.com/
contact: dnangrani@gmail.com

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