‘यह काले नाग के लिए है,’ गंगा राम ने कटोरी में दूध डालते हुए कहा ।
‘हर रात मैं यहाँ इस छेद के पास इसे रख जाता हूँ और सवेरे यह खत्म हुआ मिलता है।’
“बिल्ली पी जाती होगी,” बच्चों ने कहा।
“बिल्ली!” गंगा राम ने चिढ़ते हुए कहा।
“बिल्ली तो इस छेद के पास आती ही नहीं ।”
“यहाँ काले नाग की बाँबी है।”
“जब तक मैं उसे दूध पिलाता हूँ, वह घर में किसी को काटेगा नहीं।
तुम लोग नंगे पैर कहीं भी आ-जा सकते हो या खेल-कूद सकते हो ।’
लेकिन हमें गंगा राम की यह बात समझ नहीं आई।
‘तुम तो बेवकूफ ब्राह्मण हो,’ मैं बोला।
‘जानते नहीं कि साँप दूध नहीं पीते ? और भर तिलक कटोरा दूध तो कोई पी भी नहीं सकता ।’
टीचर ने हमें बताया था कि साँप कई दिन में सिर्फ़ एक बार खाता है।
हमने एक साँप घास में देखा था जो एक मेंढक खा रहा था।
वह उसके गले में गुब्बारे की तरह फूल रहा था और उसे पूरी तरह खाने में उसे कई दिन लगे थे।
हमारी लैब में स्पिरिट में बन्द ऐसे दर्जनों साँप हैं और पिछले महीने हमारे टीचर ने एक सपेरे से ऐसा साँप खरीदा था जिसके दो सिर थे और जो दोनों तरफ़ दौड़ सकता था।
दूसरा सिर पूँछ से लगा था, जिसमें दो आँखें भी थीं और जब उसे जार में रखा गया, तब तो तमाशा देखने लायक था।
लैब में कोई खाली जार नहीं था, इसलिए टीचर ने उसे उस जार में रख दिया जिसमें पहले से एक साँप बन्द था।
उसने चिमटी से कस कर साँप को पकड़ा और जार में डालकर उसका ढक्कन एकदम बन्द कर दिया ।
फिर तो उसमें तूफ़ान ही आ गया और साँप घूम-घूमकर पहले वाले साँप को मारता और उसे तब तक खाता रहा, जब तक वह पूरी तरह खत्म नहीं हो गया ।
यह सुनकर गंगा राम ने डर कर आँखें बन्द कर लीं और बड़बड़ान लगा तुम्हें इसका दंड भुगतना पड़ेगा, किसी-न-किसी दिन ज़रूर।
गंगा राम से बहस करना बेमानी था।
सब धर्म को मानने वाले हिन्दुओं की तरह वह भी ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामक तीन देवताओं को मानता था -पहला जनक, दूसरा पालक और तीसरा विनाशक ।
इन तीनों में से भी वह विष्णु का सबसे ज़्यादा भक्त था।
हर सवेरे वह देवता के सम्मान में अपने माथे पर चंदन से खड़े आकार का तिलक लगाता।
ब्राह्मण होते हुए भी वह निरक्षर था और अंधविश्वासों को सच मानता था।
उसके लिए सब प्राणी पवित्र थे, फिर भले ही वह साँप हो या बिच्छू।
जब भी कोई दिखाई देता, वह उसे हटा देता, जिससे उसकी हत्या न हो जाये।
हमारे बैडमिंटन के रेकट से जो भी कीड़े-मकोड़े चोट खाकर इधर-उधर गिरते, उन्हें वह सावधानी से उठाकर उनको ठीक करने की कोशिश करता।
कई दफ़ा ये उसे काट भी लेते ।
लेकिन उसके विश्वास में कमी नहीं आती थी ।
जानवर जितना ज़्यादा खतरनाक होता, उतना ही ज़्यादा वह उस पर ध्यान देता ।
इसीलिए साँपों की सबसे ज़्यादा इज़्ज़त करता था, विशेषकर कोबरा, यानी काले नाग।
‘हमें तुम्हारा काला नाग फिर दिखाई दिया तो हम उसे मार डालेंगे ।’
‘मैं तुम्हें यह करने नहीं दूँगा।’
‘इसने सौ अंडे दिये हैं और इसे मार डालोगे तो ये सब अंडे कोबरे बन जायेंगे और घर भर में फैल जायेंगे । तब फिर तुम क्या करोगे ?’
“हम उन सबको पकड़ लेंगे और बंबई भेज देंगे। वहाँ इनका दूध निकालते हैं और उससे ज़हर मारने की दवा बनाते हैं। एक कोबरे के दो रुपए देते हैं। पूरे दो सौ रुपए बन जायेंगे ।’
“तुम्हारे डॉक्टरों के थन होते होंगे, इन साँपों के नहीं होते और इसे छेड़ना मत-यह फनिया है, बड़े फन वाला ।’
मैंने देखा है। तीन हाथ लम्बा है और झूमता कैसे है…” यह कहकर गंगा राम ने अपनी हथेलियों का फन बनाया और सिर घुमाना शुरू कर दिया।
“कभी देखना, सूरज की रोशनी में जब यह आराम करता है “अब तुम्हारा झूठ पकड़ा गया।
‘फनिया साँप मर्द होता है और मर्द अंडे नहीं देता। ये अंडे खुद तुमने ही दिये होंगे ।’
सब लोग यह सुनकर हँस पड़े।
‘ज़रूर ये अंडे गंगा राम के दिये हैं।’
‘अब सौ गंगा राम पैदा हो जायेंगे गंगा राम हार गया।’
घर के नौकरों की यहीं इज़्ज़त होती है कि हमेशा उनका मज़ाक उड़ाया जाता है।
लेकिन घर के इतने छोटे बच्चे इस तरह चिढ़ायें तों यह गंगा राम की सहनशक्ति के बाहर था।
ये सब इसी तरह अपने नये-नये विचारों से हमेशा उसकी खिल्ली उड़ाया करते थे।
इन्होंने कोई धर्मग्रन्थ नहीं पढ़ा था। न महात्मा गाँधी के अहिंसा के बारे में विचार सुने थे।
ये सिर्फ़ गुलेल से चिड़ियाँ मारते-फिरते थे या स्प्रिट में रखे साँपों के बारे में जानते थे।
लेकिन गंगा राम तो जीवन की पवित्रता पर ही विश्वास रखता था और साॉँपों की इसीलिए रक्षा करता था, क्योंकि वे ईश्वर की इस धरती पर बनाई कृतियों में सबसे ज़्यादा खतरनाक हैं।
आप उन्हें मारने की जगह उनकी रक्षा करें, तो इससे ही आपका विचार सिद्ध होता है।
लेकिन वह विचार क्या था जो गंगा राम सिद्ध करना चाहता था, इसके बारे में गंगा राम खुद ज़्यादा स्पष्ट नहीं था।
वह यही जानता था कि शाम को वह यहाँ कटोराभर दूध रख जाता है, और सवेरे उसे कटोरा खाली मिलता है इससे सब कुछ सिद्ध हो जाता था।
एक दिन हमें काला नाग दिखाई दिया।
बरसातें ज़ोर-शोर से शुरू हो गई थीं और सारी रात पानी झमाझम बरसता रहा था।
पिछले दिनों की सख्त गर्मी में जो धरती सूखकर पपड़ी बन गई थी, वह अब पानी पीकर जीवित हो उठी और कई जगह गड़ढों में मेंढकों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं।
सारी ज़मीन कीचड़ बन गई और उसमें तरह-तरह के कीड़े-मकोड़े पनपने लगे।
घास भी निकलने लगी और केले के पत्ते चिकने होकर चमकने लगे।
काले नाग की बाँबी में पानी भर गया। वह बाहर निकलकर खुली घास में आ बैठा।
उसका काला बड़ा फन सूरज की रोशनी में चमक रहा था-करीब छह फीट लम्बा और हमारी बाँह की तरह मोटा और माँसदार।
“किंग कोबरा लगता है। चलो, पकड़े।”
काले नाग के लिए बचना आसान नहीं था। ज़मीन चिकनी थी और हर जगह गड़ढे बन गये थे जिनमें पानी भरा था। गंगा राम भी घर पर नहीं था, जो उसकी मदद करता।
हम सब लम्बे-लम्बे बॉस लेकर उसके चारों तरफ़ खड़े हो गये-वह हमले के लिए तैयार भी नहीं हो पाया था।
जब उसने हमें देखा तो उसकी आँखें आग की तरह जल उठीं और वह घूम-घूमकर फुंकारें मारता आगे बढ़ने लगा।
पाँच गज़ चला होगा कि एक लाठी उसके बीचोंबीच पड़ी जिससे उसकी पीठ टूट गई ।
डंडे बरसते रहे और उसका सारा शरीर टूट-फूटकर जेली की तरह बिखरने लगा और सारी कीचड़ उसके खून से लथपथ हो उठी ।
लेकिन उसका सिर सही-सलामत था।
हमने एक लम्बा बाँस उसके पेट में जमाकर उसे ऊपर उठाया और बड़ी सावधानी से उसे एक बड़े बिस्कुट के डिब्बे में डालकर ऊपर से ढक्कन बन्द कर दिया और फिर मोटी सुतली से डिब्बा कसकर बाँध दिया। फिर वह डिब्बा अपने पलँँग के नीचे छिपाकर रख दिया।
रात होने लगी तो मैंने गंगा राम के चक्कर लगाना शुरू किया कि वह कटोरे में दूध लेकर बाँबी के पास जाये। “आज तुम काले नाग के लिए दूध नहीं रखोगे ?’
‘हाँ, क्यों नहीं रखूँगा, तुम जाकर सोओ,’ उसने चिड़चिड़ाकर कहा।
वह इस बारे में ज़्यादा बात नहीं करना चाहता था।
“अब उसे दूध की ज़रूरत नहीं पड़ेगी
गंगा राम यह सुनकर ठिठका, ‘क्यों ?
‘अरे, कुछ नहीं । वहाँ बहुत से मेंढक भी हैं।’
उनका स्वाद ज़्यादा अच्छा है। तुम दूध में चीनी तो डालते ही नहीं दूसरे दिन सुबह गंगा राम दूध से उसी तरह भरा कटोरा लेकर लौट आया। उसे कुछ शक होने लगा था।
मैंने कहा था न कि साँपों को दूध से ज़्यादा मेंढक पसन्द आते हैं
हमने कपड़े बदले और नाश्ता किया, तो गंगा राम हमारे आगे-पीछे ही लगा रहा ।
स्कूल की बस आई तो हम डिब्बा लेकर उसमें चढ़ गये । बस चली तो हमने डिब्बा गंगा राम को दिखाया।
“इसमें है तुम्हारा काला नाग। बक्से में आराम कर रहा है। हम इसे स्प्रिट
में रखने जा रहे हैं।
हम उसे भौंचक्का खड़ा देखते हुए स्कूल चले गये। स्कूल में एकदम शोर मच गया। हम चार भाई अपनी कड़ाई के लिए.मशहूर थे। एक बार फिर हमने यह सिद्ध कर दिया था।
“किंग कोबरा ।”
“छह फीट लम्बा ।”
“फनिया ।”
वह डिब्बा हमने साइंस के टीचर को भेंट कर दिया।
वह मेज़ पर सामने रखा था और हम इन्तज़ार करने लगे कि वह इसे खोलें और हमारे काम की तारीफ़ करें।
लेकिन टीचर ने ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई और हमें नये सवाल हल करने के लिए दे दिये।
फिर वह अपनी चिमटी लाया और एक जार खोलकर उसमें कुंडली मारकर पड़े एक साँप को देखने लगा ।
फिर उसने धीरे-धीरे डिब्बे का ढक्कन खोलना शुरू किया।
उसके ऊपर बँधी सुतली जैसे ही ढीली पड़ी, ढक्कन एकदम खुलकर टीचर की नाक से टकराने को हुआ ।
उसके भीतर से काला नाग फन उठाकर बाहर निकला और फुंकारने लगा ।
उसकी आँखें लाल थीं और वह टीचर के मुँह की तरफ़ लपका । टीचर ने उसे पीछे धकेला और कुर्सी के पीछे लुढ़क गया । डर के मारे उसकी घिग्गी बँध गई और वह साँप को घूरने लगा। सब लड़के कुर्सियाँ छोड़कर उठे और चीखने-चिल्लाने लगे।
काले नाग ने सिर उठाकर चारों तरफ़ का मुआयना किया और जीभ बाहर निकालकर चलानी शुरू की।
फिर उसने ज़मीन पर थूका और आज़ाद होने के लिए भाग चला ।
डिब्बे में से वह ज़ोर से ज़मीन पर गिरा । उसकी पीठ पर जगह-जगह घाव थे, लगता था, उसे भी बड़ा कष्ट हो रहा है, लेकिन किसी तरह वह दरवाज़े तक जा पहुँचा ।
यहाँ आकर वह रुका और फिर से अपना फन फैलाया, जैसे अगले खतरे की तैयारी कर रहा हो।
कक्षा के बाहर गंगा राम हाथ में दूध का कटोरा और जग पकड़े खड़ा था। उसने काले नाग को अपनी तरफ़ आते देखा तो वह घुटनों के बल बैठ गया और कटोरे में दूध डालकर उसके सामने रखने लगा। फिर दोनों हाथ जोड़कर उसके सामने खड़े होकर जैसे क्षमा माँगने लगा। काला नाग क्रोध में था और उसने लपक-लपककर गंगा राम पर चारों तरफ़ से फन मारना शुरू कर दिया। इसके बाद वह धीरे-धीरे दरवाज़े से बाहर निकलकर नाली में घुस गया।
गंगा राम दोनों हाथों से मुँह पकड़े ज़मीन पर ढेर हो गया।
वह कष्ट से तड़प रहा था।
ज़हर ने उसे एकदम अंधा कर दिया।
कुछ ही मिनट में उसका शरीर नीला पड़ने लगा और मुँह से झाग निकलने लगे।
माथे पर खून की बूँदें झलक रही थीं।
टीचर ने रूमाल से उसे पोंछा, तो नीचे विष्णु का तिलक दिखाई दिया जिस पर काले नाग ने बार-बार फन मारे थे।
खुशवंत सिंह
( 2 फरवरी 1915 से 20 मार्च 1914)
आधुनिक भारत के प्रखर पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार।