कहानी समकालीनः मुमताज- सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

“अब्बा! या तो आप ये घर खाली कर दीजिये या फिर मुझे फिर से मेरे मुल्क जाने की इजाजत दे दीजिये। मैं आपको वापस लाने के लिए ही यहां आयी हूँ ।” मुमताज ने उस घर में अपने कदम रखते ही अपनी मंशा जाहिर कर दी ।
” ये क्या कह रही हैं आप ? ”
” जी अब्बा हुजूर ! हमें ऐसे किसी घर में नहीं रहना जो हमारा नहीं है । ”
” अब ये घर हमारा ही है और इस घर में कोई कमी भी नहीं है, दो मंजिल का है । खुला और हवादार है । लगता है किसी खाते – पीते शख्स ने हाल ही में इसे बनवाया था । बाजार , सड़क ,स्टेशन , अस्पताल और स्कूल सबकुछ तो है , पास में। यहां हर वो सहूलियत नसीब है जिसकी ख्वाइश हमारे जैसा कोई शख्स अपने घर को लेकर कर सकता है । खुदा का करम देखो कि आपके अब्बा की पोस्टिंग इस बलवे से काफी पहले ही मुल्क के उस हिस्से में हो गयी थी जिसे अल्लाह ने एक ख़ास मकसद के लिए चुना है ।धरती के इस हिस्से से शुरू होकर अल्लाह की सल्तनत सारे हिन्द पर फैलने वाली है । और उसी खुदा का करम है कि सलीम मियां हमारे अब्बा के पुराने कुलीग निकले और यहां इतने ऊँचे ओहदे पर तैनात हैं कि उनकी सिफारिश से हमें वैसा ही घर हमेशा के लिए,क्लेम में मिल गया जैसे घर की तमन्ना हमने अपनी जिंदगी में अपने लिए की थी । अगर बंटवारा न हुआ होता तो हिन्दुस्तान में तो हम , ताउम्र ऐसी शानदार कोठी , वो भी अपनी , में रिहाइश के बारे में सोच भी नहीं सकते थे । कमाल ही नहीं , इनायत है अल्लाह – ताला की , कि हिन्दुस्तान तकसीम हो गया और पहले हम और अब हमारी बेटी यानी आप भी अपने मुल्क में आ गईं हैं ।अल्लाह का करम हुआ तो आपकी अम्मी भी अपने भाईओं की फर्जी मोहब्बत को अलविदा कहकर बहुत जल्द यहीं आ जाएँगी और हमारे दिन पूरी तरह से हरे हो जायेंगें ।”
” अब्बा ! आप तो पाँचों वक्त के नमाजी हैं ! अल्लाह में पूरा ईमान रखते हैं, आपको तो पता है कि इस्लाम में मुफ्त की हर चीज हराम है ! हराम की इस सौगात को आप कैसे कुबूल कर सकते हैं ? मुझे इस घर के हर कोने में हर रोज, हर पल वो चीखें सुनाई देती रहेंगीं जो इस घर को बनाने वाले बाशिंदों के जिस्म के हर हिस्से से निकली होंगी जब उन्होंने ये घर छोड़ा होगा । मैंने वहां उन बाशिंदों के चेहरों पर जुल्म और दहशत के गहरे जख्म देखे हैं । आपने जब इस घर में कदम रखा था तो क्या इसके हर कोने में आपको खून के कतरे नहीं मिले थे ? और उनकी चीखें नहीं सुनाई दी थीं , जिनका बिना वजह कत्ल किया गया होगा ? ”
” बिट्टो ! ये घर हमें किसी खैरात में नहीं , उस जायदाद के बदले में मिला है जो हम हिन्दुस्तान में छोड़कर आये हैं ! अब हम अपने वतन में आ गए हैं । यहां के सारे काम अल्लाह के हुकुम से होंगे । अल्लाह ने धरती के इस हिस्से को जन्नत में तब्दील करने का जिम्मा लिया है । शायद इसीलिए अल्लाह के हुकुम से उन काफिरों को यहां से भागना पड़ा है और अल्लाह के ही करम से ये कोठी हमें नसीब हुई है । बिट्टो अल्लाह का यही हुकुम है कि हम इस कोठी को हमेशा के लिए आबाद करें।”
” अब्बू ! आप अपने लालच और बदनीयती को अल्लाह का हुकुम मत कहिये । इसे मक्कारी कहते हैं । अल्लाह किसी की चीखों की बुनियाद पर दूसरों की इमारतें खड़ी नहीं करता ।मुझे इस घर में जवान बेटिओं पर हुए जुल्मों की तस्दीकेँ नजर आ रही हैं । आप रहिये इस कब्रगाह में । मैं और अम्मी इस घर में कभी नहीं रह सकते । ये घर नहीं है ,ये जवान बहू – बेटिओं की लूटी गयी इस्मत का जंगल है ।इतना ही नहीं यहां की दीवारें मुझे न जाने कितने बाशिंदों के खून की गवाही दे रही हैं, जिन्हें बिना किसी कसूर के बेमौत मार दिया गया है। ”
” चुप हो जाओ मुमताज । बहुत हो चुकी तुम्हारी बदजात और बेमतलब की तकरीर ! क्या आपको हमारी ख़ुशी कबूल नहीं है ? सहन करने की भी एक हद होती है । आप हमारी बेटी न होती तो हम आपकी इन जली – कटी बातों को कभी नजर अंदाज न करते । कहाँ जाएंगी आप , मेरा मतलब कहाँ जाकर रहेंगीं ? अब आपका यही घर है और यही है आपका , हम सबका अपना वतन ! ” जावेद मियां ने भावनाओं का तड़का लगाते हुए , बेटी को भृमित करने की कोशिश की पर मुमताज पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ । उसे लगा उसके सामने आदमी के चोले में खड़ा ये शख्स जो रिश्ते में उसका अब्बू है , असल जिंदगी में कोई लुटेरा है जिसके लिए हर रिश्ता सिर्फ उसकी खुद की जरूरतें पूरी करने की जमीन है और अपनी इस हवस में वो छोटा – बड़ा हर गुनाह कर सकता है । उसे जावेद मियां की मक्कारी उनकी आँखों में साफ़ – साफ़ नजर आ रही थी । मन ही मन वह डर भी रही थी पर इंसानियत उसके मन – मस्तिष्क में हिम्मत बन कर बोल पड़ी , ” अब्बा ! आप मुझ पर अपनी बेटी होने का एहसान मत लादिए। मैं अपने औलाद होने के इमान से तौबा नहीं कर सकती। आप इमान का रास्ता छोड़ते हैं तो मेरा फर्ज है कि मैं आपको ईमान के रास्ते की जानकारी दूँ। आप नहीं मानेगें तो ज्यादा से ज्यादा आप मेरा कत्ल ही तो कर देंगें, तो उठा लीजिये खंजर । ये होगा आपका मुल्क और आपका वतन ।मैं इसे अपना मुल्क नहीं मान सकती । मैं यहां रहूंगीं तो मुझे मरते दम तक ये एहसास रहेगा कि मैं किसी मकबरे के ऊपर जिन्दा लाश की तरह काबिज हूँ । जिन औरतों को इस घर में बेइज्जत किया गया होगा , वे भी किसी न किसी की बहन और बेटियाँ ही थीं , ठीक उसी तरह, जिस तरह यह बदनसीब मुमताज आपकी बेटी है। मुझे उन भाइयों की लाशों पर अपनी जिंदगी बसर नहीं करनी जो अपनी बहनो की अस्मत बचाने के लिए शहीद हो गए ।” मुमताज की इन उकसानेवाली , पर सच से सराबोर दर्दीली बातों का जावेद मियां की मक्कार हैवानियत पर कोई असर नहीं हुआ । उन्होंने एक कोशिश और की ,” ऐसा न कहिये मुमताज ! हमने किसी की बेटी पर कोई जुल्म नहीं किया । किसी के भाई को नहीं मारा। किसी माँ की कोख सूनी नहीं की और न ही किसी दुल्हन को बेवा किया। ये कोठी सचमुच हमें क्लेम में मिली है और जब हम इसमें आये तो यह बिलकुल खाली थी । इसे खाली करवाने में हमारा कोई हाथ नहीं है । आप सच मानिये हमने किसी पर कोई जुल्म नहीं किया । ” इतना कहकर जावेद मियां बेटी को गले लगाने के लिए आगे बढ़े । उनके आगे बढ़ते ही मुमताज ने पीछे हटने में कोई देरी नहीं की । जावेद मियां के बढ़े हुए कदम अपनी जगह पर ठिठक कर रह गए । उसका चेहरा तमतमा रहा था । उसी तमतमाहट में वह बोली,”मुझे आपकी किसी सफाई की जरूरत नहीं है ।मुझे आपकी किसी बात पर यकीन भी नहीं है ।मैं अपने उसी मुल्क में जाऊंगीं जहां मेरा जनम हुआ है । मेरा वतन वही है जिसे छोड़कर आपने इस कोठीनुमा कब्रगाह में रहने का फैसला किया है। ”
” पर आप वहां किसके पास रहेंगी और वहां जाकर करेंगीं क्या ? ”
” पहला काम तो ये करूंगीं कि यहां रहने वाले जिन बाशिंदों की ये कोठी है , उन्हें ढूढूगीं। फिर पता करूंगीं कि उस परिवार पर किसने और कितने जुल्म किये हैं जिसकी वजह से वे अपना हँसता – खेलता घर छोड़कर भागने को मजबूर हुए हैं । कोशिश करूंगीं कि उनके जख्मों की मरहम बनूं । ”
” लाहोलवलाकुवत ! तुम ये बिलकुल नहीं कर सकती । तुम ये मत भूलो कि हम आपके बाप हैं और तुम्हारी जिंदगी पर तुमसे ज्यादा हक़, हमारा है । ”
” अब्बा ! आप भी मत भूलिए कि हमारी रगों में आपका ही नहीं , हमारी अम्मी का खून भी बह रहा है और अम्मी ने अभी भी अपना वतन छोड़ा नहीं है । ” मुमताज के शब्दों में मजबूत इरादों की दीवानगी थी। उसकी ये बात सुनकर जावेद मियां अपना आपा खो बैठे । उनकी आँखों में खून उतरने को हुआ ,फिर भी वक्त की नजाकत को पहचानकर खुद को थोड़ा नियंत्रण में रखते हुए बोले , ” देखिये मुमताज ! आप अपनी हदें लांघ रहीं हैं । ऐसा न हो कि आपकी इस कतली सोच की वजह से हम भूल जाएँ कि आप हमारी बेटी हैं और इस घर की दीवारें एक बार फिर खून से लाल हो जाएँ और हम वो कर बैठे जो हम करना नहीं चाहते ।” जावेद मियां की बात अभी अपनी बात पूरी भी न कर पाए थे कि अंदर के कमरे से एक चीख सुनाई दी । चीख सुनते ही मुमताज सकते में आ गयी ।
” कौन ? ये अंदर से चीखने की आवाज किसकी है ? ”
” कौन सी आवाज ? मैंने तो कोई चीख नहीं सुनी ।” जावेद मियां के चेहरे पर झूठ की मक्कारी साफ़ चमक रही थी । वे थोड़ा नरम भी पड़ चुके थे ।
मुमताज के चेहरे पर संशय के साथ दहशत भी उतर आयी । उसने सोचा इस घर में जरूर कोई खातून है जो जुल्म की शिकार है । उसने चाहा कि वो उस तरफ जाकर असलियत का पता लगाए पर जावेद मियां के सामने यह नामुमकिन था । अभी वो कुछ करने की सोच ही रही थी कि एक और चीख के साथ एक लड़की लगभग घिसटते हुए अंदर के कमरे से निकल कर वहां आ पहुंची जिसमें मुमताज और जावेद मियां के बीच गरमा – गरम् बहस चल रही थी । लड़की का चेहरा गमगीनी कि वजह से पीला पड़ चुका था और बेतरतीब कपड़ों के साथ वह मुश्किल से चल पा रही थी ।
” ये कौन है अब्बू ? ”
” ये हमारी नयी बेगम हैं। कोई काफिर इन्हें यहां लावारिस हालत में छोड़ कर भाग गया तो हमने रहम खाकर इनको अपनी बेगम बना लिया ।इन्होने इस्लाम कबूल कर लिया है।आपकी अम्मी यहां आ जाएँ ,हम सब साथ – साथ ही रहेंगें ।” जावेद मियां ने बड़ी बेशर्मी से अपनी हकीकत बयां की ।
” पर इनकी उम्र तो मुझसे भी कम नजर आ रही है । ये आपने क्या किया अब्बू ? अम्मी तो क्या मैं ही इन्हें आपकी दूसरी बीबी कबूल नहीं करूंगी । क्या ये आपकी बीबी बनने को राजी थीं ? जो आपने इन्हें अपनी बेगम का दर्जा दे दिया ! ”
” हाँ ! बिट्टो ।तभी तो ये हमारी बेगम बन पायीं । ” जावेद मियां ने बेशर्मी की सारी हदें लाँघ दीं ।
” अब्बा ! झूठ मत बोलिये ।” मुमताज तैश में आ गयी। फिर वह उस लड़की की ओर मुखातिब होकर बोली, ” आप कौन हैं बहन और आप का ये हाल किसने किया है ? ”
सहानुभूति के दो शब्द जैसे ही लड़की के कानो में पड़े उसने एक सहमी सी नजर जावेद मियां पर डाली , दर्द से कराही और उसकी आँखों से अश्रुधार बहनी शुरू हो गयी। मुमताज उसकी यह दशा देखकर अंदर तक द्रवित हो उठी ।
” मैं समझ गयी आपा ! आपको कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है ।थोड़ी हिम्मत रखिये। हम दोनों एक साथ ही यहां से चलेंगे ।”
मुमताज के ये शब्द सुनते ही जावेद मियां के तन – बदन में आग लग गयी । वे कुछ घातक करने को आगे बढ़े परन्तु मुमताज भी कम दिलेर नहीं थी । खंजर उसके थैले में था । उसने बिना देरी किये उस खंजर को थैले से निकाल कर अपने मजबूत हाथों में ले लिया और बोली , ” वहीं रुक जाइये अब्बा ! आपा ही नहीं मैं भी यहाँ कत्तई महफूज नहीं हूँ । आपके बदन में कोई कातिल रूह आ चुकी है ।आप अपनी खुदगर्ज शख्सियत से न जाने कब क्या कर बैठें। आपके पास आपकी बेटी भी महफूज नहीं रह सकती । मैं अपने वतन वापस जाऊंगीं । अम्मी ने शायद इसीलिए अपना मुल्क नहीं छोड़ा है ।मेरे साथ मेरी ये बदनसीब बहन भी जाएगी । आपने रोकने की जरा भी कोशिश की तो अंजाम के लिए तैयार हो जाइये ।”
इससे पहले की जावेद मियां की दरिंदगी से भरी सोच कोई फैसला लेती और वे मुमताज को कोई नुक्सान पहुंचाते , मुमताज ने बिजली की चाल से उस घर को छोड़ दिया ।उस लड़की में भी हिम्मत का सहारा लिया और दोनों बहने उस घर से निकल कर, उस काफिले का हिस्सा बन गयी जो फ़ौज की निगरानी में बचे हुए शरणार्थीओं के रूप में ,अपने देश जाने के लिए , इलाके के सरकारी स्कूल में जमा थे ।

सुरेंद्र कुमार अरोड़ा ,
डी – 184 श्याम पार्क एक्सटेंशन ,
साहिबाबाद – ( उ .प्र.) मो : 9911127277

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