आज कोर्ट के बाहर काफी भीड़ थी और अंदर एक कमरे में वकीलों व न्यायाधीशों की कोर कमेटी की मीटिंग चल रही थी ।मुख्य न्यायाधीश श्री रामचंद्र अध्यक्षता कर रहे थे ।विषय था “एक मासूम बच्ची के साथ दरिंदगी “।घटना कल शाम की ही थी तथा आरोपी घटनास्थल पर ही पकड़ा गया था ।पुलिस अपराधी को पन्द्रह दिन की रिमांड पर चाहती थी। मुख्य न्यायाधीश श्री रामचंद्र ने इसी विषय पर पहल करते हुए कहा -“आज हमें एक ऐतिहासिक निर्णय लेना है। जघन्य अपराधी को दंड देने के लिए त्वरित प्रक्रिया के अंतर्गत एक ही दिन में सारी सुनवाई के बाद,गवाहों व सबूतों के आधार पर न्याय करना है ताकि जनता का हम पर विश्वास कायम हो सके और अपराधियों के मन में खौफ पैदा हो।”
वकील श्री वेणुगोपाल बोले-” पर हम नियमों से बंँधे हुए हैं।अचानक इस तरह नियमों से खिलवाड़ नहीं कर सकते ।”
न्यायाधीश श्री मुकुंदराय ने कहा -“हमने राष्ट्रपति से लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से बात कर ली है। वे सब हमारी बात से सहमत हैं ।सारी कार्यवाही वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए देखेंगे। जरूरत पड़ने पर सुझाव भी देंगे तथा उसके बाद हमारे द्वारा लिए गये निर्णय पर अपनी राय देंगे।”
वकील श्रीमती उमा सक्सेना बोलीं-” हमें समय गंवाए बिना यह महत्वपूर्ण कार्य शीघ्र शुरू कर देना चाहिए, इसके पहले कि विरोध उत्पन्न हो जाए।”
मुख्य न्यायाधीश ने कहा-“इस आधुनिक युग में अगर हमने अपनी लचर व्यवस्था नहीं बदली तो आगे आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी ।अच्छे कार्य के विरोध तो होते ही हैं पर हमें अपने मानसिक दृढ़ता बनाए रखनी है।शुभस्य शीघ्रम्…..
इसके बाद मीटिंग समाप्त हुई ।मुख्य न्यायाधीश श्री रामचंद्र ने कोर्ट रूप में प्रवेश किया ,सभी ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया। उन्होंने अभिवादन स्वीकार करते हुए कहा -“आज की कार्यवाही त्वरित प्रक्रिया से होगी । इस दौरान वकील ,पुलिस,गवाह, पीड़ित व आरोपी के परिजन ,कोई भी…, फैसला आने तक कोर्ट से बाहर नहीं जाएंगे ।जो भी फैसला लिया जाएगा, वह अंतिम फैसला होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जज भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सारी कार्यवाही देखने के बाद इस फैसले पर अपनी मुहर लगाएंगे, इसलिए इसके बाद कोई सुनवाई… कोई अपील… नहीं होगी।”
यह सुनते ही कोर्ट रुम स्तब्धता सी छा गई।
श्री रामचंद्र की निगाह अचानक उस मासूम बच्ची की माँ पर गई ….,बच्ची का दर्द मांँ की सूजी आंँखों व पीड़ित भाव लिए मुख पर स्पष्ट झलक रहा था ।वे सोचने लगे कि -“कितने नाजों से प्रत्येक मांँ अपने जिगर के टुकड़े को पालती है.., उसको लगी जरा सी खरोंच भी मांँ के हृदय में टीस दे जाती है… फिर ऐसी दरिंदगी को देख इस माँ का हृदय कितना लहूलुहान हुआ होगा….आखिर अभी तक बच्चियों के साथ होने वाले अन्याय पर उचित फैसला क्यों नहीं लिया गया……?” फिर उन्हें अपनी कमेटी द्वारा, न्याय-व्यवस्था का प्रारुप परिवर्तन करने पर हल्का सा गर्व महसूस हुआ ।उनके आदेश पर न्यायालय की कार्यवाही आरंभ हुई।
डॉक्टर की रिपोर्ट, सारे गवाहों व सबूतों को जानने के बाद अपराधी ने रोते हुए अपना जुर्म कबूल कर लिया। जज ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा-” हमारे संविधान ने अगर हमें अधिकार दिए हैं तो हमारे कुछ कर्तव्य भी हैं। मर्यादा में रहकर अधिकारों का उपयोग करना ही एक नागरिक का कर्तव्य है, परन्तु आज के कुछ युवा, उद्दंडता के साथ जीना पसंद करते हैं।वे न तो अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं और ना ही कर्तव्य के प्रति सजग ..।जिस उम्र में इन कतिपय युवाओं को अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ समाज के उत्थान के लिए भी कार्य करने चाहिए,वे उम्र के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर अपने लक्ष्य से भटककर अपराध की ओर बढ़ रहे हैं। इसके लिए दोषी कौन है….?गहन चिंतन व विमर्श के बाद यह बात सामने आई है कि जितना युवा स्वयँ दोषी है, उतना ही उसका परिवार, समाज तथा न्याय व्यवस्था भी। समाज व परिवार से यह कोर्ट अपील करता है कि आधुनिक बनने के चक्कर में धर्म का मखौल न बनने दें। इसका ही यह परिणाम है कि अधर्मिता बढ़ रही है।मैं प्रत्येक माता- पिता से प्रार्थना करता हूंँ कि वे अपने युवा होते बच्चों को बताएंँ कि धर्म से तात्पर्य केवल पूजा-पाठ नहीं अपितु मन व आचरण की शुद्धि है।प्रत्येक धर्म नैतिकता की राह पर चलने का संदेश देता है ।आपकी समझाइश ही हमारे युवा को अपराधी होने से बचा सकती है। आज इस कोर्ट में एक कठोर फैसला लिया जा रहा है ।मैं आप सबसे आग्रह करता हूँ कि इस फैसले से आपलोग बिल्कुल विचलित नहीं होइयेगा।भटकते युवाओं को अपराधी होने से बचाने के लिए हम यह फैसला ले रहे हैं ।ऐसे फैसले से ही युवा अपराध की भयावहता को समझ पाएंगे। सारे गवाहों व सबूतों के आधार पर बलात्कार के अपराधी को सार्वजनिक स्थल पर मृत्युदंड की सजा सुनाई जा रही है।”
जज के फैसला सुनाते ही सुप्रीम कोर्ट के जज ने भी अपनी सहमति वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए व्यक्त कर दी ।इसका मतलब केस खत्म…. तथा फैसला अटल……। कोर्ट में अपराधी के परिजनों की ‘नहीं ऐसा मत करिए’, ‘उसे एक मौका तो दीजिए ‘दर्द भरी समवेत आवाजें गूंँजने लगीं और अपराधी कटघरे में, घुटने के बल बैठकर अपना सिर जमीन पर पटककर बिलख-बिलखकर रोने लगा। उधर बेटी के साथ हुई घटना की पुनरावृत्ति सुनने के बाद उसकी मांँ की रोते-रोते सी हिचकियाँ बँध गईं थीं।वह चीख पड़ी-‘इस दरिन्दे को छोड़ना मत..,’इस दरिन्दे को छोड़ना मत..’ बड़ा ही करुण दृश्य था।दूसरी तरफ पीड़िता के परिवार के अन्य परिजनों के गमज़दा मुख पर इस फैसले से उपजी संतुष्टि स्पष्ट नजर आ रही थी।
अभी तक कोर्ट के सारे दरवाजे बंँद थे। किसी को भी बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी ,उधर कोर्ट परिसर के बाहर मीडिया व पत्रकार ,कैमरा तथा माइक थामे जजों व वकीलों के बाहर आने का इंतजार कर रहे थे ।समय लंँबा खिंचते देख उनकी उत्सुकता अपने चरम पर थी और इधर अपराधी को लेकर पुलिस पीछे के दरवाजे से बाहर निकल गई ।कुछ देर बाद खबर आई कि मुख्य बाजार के पास, जो बरगद का पेड़ था,वहाँ अपराधी को फांँसी दे दी गई ।खबर सुनते ही सब सकते में आ गए ।कोर्ट के दरवाजे खोले जाते ही अफरातफरी सी मच गई।फैसले व उसके क्रियान्वयन के बारे में जानकार मीडिया व पत्रकारों ने बाजार की तरफ दौड़ लगा दी।सारी भीड़ भी उसी दिशा में दौड़ पड़ी किन्तु पुलिस की व्यवस्था एकदम दुरुस्त व चाक-चौबंद थी।बाजार की सारी दुकानें पहले ही बँद करा दी गईं थीं।हालांकि पुलिस व प्रशासन कुछ सशंकित अवश्य थे परन्तु सब कुछ इतना त्वरित घटने के बाद भी कहीं कोई अव्यवस्था नहीं हुई।पुलिस फोर्स देखकर अपराधी के साथी व परिजन भी अपनी उफनती भावनाओं को काबू में रखते हुए मुँह में कपड़ा ठूँसे सिसक रहे थे। अपराधी की इस गति ने मानो सबको हिला कर रख दिया।एक अजीब थरथराती सी खामोशी सारे वातावरण में व्याप्त हो गई थी।
धीरे-धीरे भीड़ छंटने लगी तब पत्रकारों ने पुलिस की अनुमति प्राप्त कर कुछ लोगों की प्रतिक्रिया लेनी शुरू कर दी:-
पत्रकार एक युवक से-“इस फैसले से आप संतुष्ट हैं?”
युवक-“बिल्कुल संतुष्ट हैं।थोड़ी देर के लिए दहशत0सी जरुर हुई किन्तु भविष्य के बारे में सोचकर अच्छा लग रहा है।”
पत्रकार एक युवती से-“मैडम,आज के इस घटनाक्रम के बारे में आप क्या कहना चाहेंगीं?”
युवती-” मेरे जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इस फैसले से हमारे मन में सुरक्षा की भावना जागृत हो गई है ।अब हमें
कानून पर भी भरोसा होगा।”
पत्रकार एक अधेड़ महिला से-” आप यहांँ खड़ी क्यों रो रही हैं ?क्या यह लड़का आपका कुछ लगता था?”
महिला-” काश यह फैसला आज से दस वर्ष पहले लिया होता तो मेरी बेटी आज जिंदा होती। उसे इसी तरह के आवारा लड़कों ने
नोच -नोच कर जख्मी कर दिया था फिर वे लड़के सबूत के अभाव में छूट गए और मेरी मासूम लड़की ने शर्मिंदगी में अपनी जान
दे दी।”इतना कहकर वह महिला फूट-फूटकर रो पड़ी।
आम जनता से मिली प्रतिक्रिया से सारे पत्रकार अचंभित थे। आनन-फानन में लिए गए इतने निर्मम फैसले का सब समर्थन कर रहे थे। कुछ ही देर में सड़कें सूनी हो गईं।चूँकि अपराधी का निर्जीव शरीर अगले दिन घर वालों को सौंपा जाना था, इसलिए अभी उसे अस्पताल में रखा गया ।डरी सहमी सी चुप्पी हर तरफ व्याप्त थी…. सड़कें शांत थीं… कोई चहल-पहल नहीं थी… पर हर घर व दूरदर्शन का माहौल थोड़ा गर्म था ।बहस व वार्ताओं का दौर जारी था। कुछ तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग इतने त्वरित फैसले के पक्ष में नहीं थे। यह वह वर्ग है ,जो हर समस्या को रबर की तरह खींचने में विश्वास रखता है।
युवाओं का एक ऐसा विशाल वर्ग भी था ,जो इस फैसले से अभिभूत ,जज का सम्मान करने के लिए आतुर था ।एक हफ्ते के बाद ही कॉलेज के सभागार में छात्र-छात्राओं ने भयमुक्त समाज की नींव में पहला कदम उठाने वाले जज को केवल सम्मानित ही नहीं किया अपितु “कलयुग के राम ” की उपाधि से विभूषित भी किया।
इसके बाद तो जज के पास बधाइयों का तांता-सा लग गया ।फूलों,गुलदस्ता और बधाई पत्रों का भी अंबार लग गया ।कुछ दिनों के पश्चात उनके पास एक खत आया… यह खत उस माँ का था ,जिसके बेटे को फांँसी की सजा दी गई थी। विस्फारित नेत्रों से जज उस खत को पढ़ने लगे:-
महोदय,
मैंने अपना बेटा जरूर खोया है ,पर अब सोचती हूंँ…उस अपराधी को ,आज नहीं तो कल, दंड मिलना ही था क्योंकि उसने पूरी नारी जाति का अपमान किया था। मैं एक स्त्री होने के नाते समझ सकती हूंँ कि उस मासूम के शरीर के घाव तो भर जाएंगे किंतु मन पर लगे घाव ताउम्र उसके साथ रहेंगे ..।पता नहीं वह कभी सामान्य जीवन बिता भी पाएगी या नहीं…। मैं भी शायद इस अपराधबोध से कभी बाहर नहीं आ पाऊंँगी किन्तु आप के फैसले से जहांँ लड़कियों के मन से डर खत्म होगा वहीं हम महिलाओं को एक सीख मिली है कि बेटे की परवरिश में अगर हमने उसे नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ाया तो हमारा मातृत्व हमें अवश्य धिक्कारेगा। आपका फैसला अत्यंत कठोर था और मुझे अभागन मां के लिए अत्यंत दर्दनाक भी..। उस दर्द की टीस को भोगते हुए अब मेरा यही प्रायश्चित है कि मैं अपने दोनों छोटे बेटों को नारी का सम्मान करना जरूर सिखाऊंँ।
एक अभागन माँ।
जज की आंँखों से अश्रुधारा बह निकली। उनके मन में ग्लानि का जो छोटा सा अंश था, वह भी इन आंँसुओं के साथ बह निकला।
शीला मिश्रा
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बी-4,सेक्टर-2,रॉयल रेसीडेंसी
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