कहानी समकालीनः निर्झर-राजश्री अग्रवाल

रोजाना की भांति मैं आज भी कडकडाती सर्दी की अन्धेरी सुबह में हमारे स्टोपेज पर खडी मेरी बस का इन्तजार कर रही थी कि देखा सामने बहुत गरीब महिला हद से ज्यादा फटा-सा चिथडे में शरीर को छिपाने की कोेशिश करते हुए कचरा पात्र की तरफ तेजी से आ रही थी। हाँ! थैलियां, स्क्रे्प ये सभी को वो चुनेगी इसलिए सडक झाडने से पहले वो चीथडे को शरीर पर जैसे जबरन लपेटे अपना काम पूरा करना चाहती थी।

पता नही ठंड के कारण या अपने अंगो को छिपाने की नाकाम कोेशिश में वो जल्दी-जल्दी अपने काम का स्क्रेप सडक और कचरा-पात्र से उठाने लगी।

खैर! मैं अपनी बस के लिए फिर सडक को सुदूर तक घूरने लगी, बीच-बीच में मेैं उस स्त्री को देखती और सोच रही थी कि ये भी हमारी तरह इंसान है। वही परिवार पालने के लिए कितनी सुबह निकल पडी है, इसे भी ठंड लगती है, शर्म भी लगती है …इतने में एक पब्लिक स्कूल की बस मेरे पास रूकी, उसमें से एक अत्याधूनिक वार्डन उतरी। छोटे-छोटे बच्चो से गुड-र्माॅिनग कहा ओैर चपरासी ने सब बच्चो को ऊपर चढा लिया ।

रोज ऐसा ही होता हैै किन्तू जाने क्यो आज मुझे उस वार्डन का लिबास अखर गया । इतनी तेज सर्दी में उसने वेस्ट तक की टी शर्टए स्ट्रैप सोल्डर्स और जीन्स डाली हुई थी और गले मे एक राॅयल ब्लू मफलर। गोरी-गोरी लम्बी बाहों मे एक चैन जैसा स्र्पाकलिंग ब्रासलेट पहना था, बस। ये भी इंसान है कमाने के लिए कितनी सुबह ये भी निकलती है किन्तू क्या ये इंसान से आगे कोई अन्य जाति की है कि इन्हे ठंड नही लगती, इन्हे शर्म नही लगती ।

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आज स्टोपेज पर मुझे काफी देर हो गई थी खडे हुए। हाॅ, अब कुछ बच्चे भी एकत्र होते जा रहे थे। उनकी बस जो आने वाली थी। पास ही एक भिखारी नुमा बच्चा आया। शायद वो कचरा बिनने वाला ही था। किन्तू बच्चा ही तो था। आकर पास खडे कई बच्चे जो पब्लिक स्कूल के थे उन्होंने टाई, ब्लेजर, आई कार्ड लटकाये हुए थे । उनकी ”हाॅय हैलो“ को वो गरीब सकपकाया सा पास ही खडा देखने लगा कि एक मारूती आई और उसमे से एक मम्मी उतरी, बच्चे को उतारा। उसे बाॅटल ओर बहुत स्मार्ट सा बैग थमाया, घडी देखी। ”अभी तो समय है, खैर !सोनिल आपका कोई फ्रैंड यहाॅ आ गया क्या ? “

वैसे बच्चे बडी क्लास के भी थे। शायद 4-5 के होंगे, उसने मुंडी हिला दी। फिर मैमसाब ने चारो ओर निगाह दौेडाई सारे बच्चे सर्दी के मारे एक-दूसरे से सट के खडे थे। सोनिल बेचारा मम्मी को देख रहा था। वो दो-तीन मिनट वहाॅ रूकी, मुडकर देखा तो लगभग पीछे वो भिखारी सा लडका खडा था, वो शायद सोनिल की बाॅटल और बैग को बडी हसरत से देख रहा था।

मैमसाब नेे बडी नफरत के साथ उसे हिस् किया जैसे गंदे चूहे को भगाने के लिए हम करते हैंे। बेचारा अपने में सकपका कर गठरी सा बन गया। सोनिल कभी मम्मी तो कभी उसे देखने लगा जैसे वो कोई भूत हो…

मैमसाब ने कहा- अभी तो बस मे टाईम है मै चलूॅ? और देखो अपने फेैण्डस के बीच मे जाकर खडे हो जाओं एण्ड डोन्ट केयर टू देट शेबी घोस्ट“ (इस गन्दे भूत की ओर ध्यान न देना)

‘जी ‘ सोनिल बहुत मरे-मरे बोला और उसकी मम्मी ने कार स्र्टाट की और चली गई।

काफी समय हो गया। अब एक बच्चा जो वहाॅ आया, वो कुछ इम्र्पोटेड बिस्कुट के 3-4 पैकेट लाया था। उसने उनकी सील तोड़ी, सब को एक-2 औफर किया और डिस्पोजेबल पैकिंग केस को फेंक दिया, सडक पर ही। एक पैकेट बच गया जिसे उसने वापस बैग में रख लिया। थैंक्यू-वैरी टैस्टी-का शोर सा होने लगा। वो गरीब बच्चा चुपचाप कचरा बीनता रहा कि तेज शीत लहर चलने लगी। सब बच्चे बाते भूलकर ब्लेजर मे छिपने की कोशिश करने लगे । उधर बस भी जाने क्यों लेट हो गई। अभी तक आकाश में गहरी धुंध के कारण किरण फूटी ही नही और कुछ बच्चे कंपकपाने लगे, मुहॅ को हाॅथो से ढकने लगे।

यह देख उस उलझे बाल वाले गरीब बच्चे ने कुछ कचरा सडक के किनारे एक तरफ एकत्र किया, जाने कहाॅ से माचिस लाया… ना जाने उसके जेब मे ही थी या उस पान वाले खोखे से लेकर आया था। धुंध बहुत गहरी थी, कुछ ध्यान ही नही पडा और उसने कचरे में आग लगा दी। हवा के साथ आग फैली… हवा गरमाने लगी तो बच्चे धीरे-धीरे पास में खिसक आये और सबने आग के पास घेरा सा बना लिया । उसके इर्द-गिर्द तापने लगे। आग ठण्डी हो, इससे पहले वो मासूम कचरा पात्र पर फिर गया, छडी से कचरा इधर-उधर किया और उसमें से कुछ पेपर, सूखे पत्ते, किसी के लाॅन की कटिंग की गई झाडियाॅ ले आया और पब्लिक स्कूल में पढने वाले देश के भावी नागरिक आग तापते रहे। आग के प्रकाश मे वो गन्दा बच्चा लग रहा था जैसे वो कोई मानव से पृथक, इन बच्चो से पृथक कोई है।

हाँ, थोडी देर मे बस आई खलासी उतरा, सब लाईन बनाकर बस में चल दिए, किसी ने पलट कर भी नही देखा और दरवाजा बंद हो गया।

”खटक!“- दुबारा दरवाजा खुला एक बच्चा खलासी से बिनती करते हुए नीचे उतरा, उसके हाथ में इम्र्पोर्टेड बिस्किट का एक पैकेट। वो तेजी से उस बच्चे के पास आया और उसका हाथ पकड कर उसे वो पैकेट देकर बोला-”थैक्यू फ्रैंड, आई एम र्निझर।“

पता नही वो गरीब बच्चा कितना समझा, उसके हाथ में पैकेट था, एकाएक वो मुस्कुरा दिया. ”और मै बुद्ध।

र्निझर बस में लौट गया। एकाएक सारे बच्चे बस की खिडकी और गेट पर से झाॅकने लगे -बॉय-बॉय-

और प्यार के इन गर्म शब्दो मे हवा चुस्की लेने लगी, दूर तक किलकारीयाॅ झंकृत हो गई ।

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मै कुछ बुनने लगी .आने वाली दिनो की पिक्चर, शायद स्तरवादी नफरतो से आगे ये बच्चे फिर किसी कडकडाती सुबह में जब अपने जीवन प्रवाह में आगे बह जायेंगे।इस गरीब बच्चे की ख्वाहिश करेंगे।

राजश्री अग्रवाल
जन्म एवं स्थान : 13 सितम्बर,1961, अलवर (राज॰)

शिक्षा : बी॰ए॰(ऑनर्स), एल॰एल॰बी॰
राजनीतिक- सामाजिक विश्लेषक, समाज सेवा, सतत लेखन कार्य ;-

कविता कहानी, यात्रा संस्मरण, उपन्यास, नाटक लेखन मे विशेष रुचि।
हाल ही में “ आर्टिकल 51 ऐ “ नाम से हिंदी में हमारा देश से रिश्ता विषय पर प्रकाशित
2017 में “स्ट्रगल विद लाइफ़” नामक हिंदी बुक इन्डियन यूथ के स्ट्रगल पर प्रकाशित हुई ।

स्वरचित “रूपारेल’ कहानी संग्रह,एवं“वैदेही” उपन्यास प्रकाशित ।
विभिन्न स्तर की पत्र- पत्रिकाओ मे रचनाओ का सतत प्रकाशन। 2015 में मौरिशस मे रामायण सेंटर के इन्टरनेशनल कोन्फ्रेंस मे “राम-राज्य” पर शोध-पत्र वाचन। “वुमेन वेल्फेयर सोसाइटी” की मासिक पत्रिका “आँचल के साये मे” का सम्पादन।
जिला अग्रवाल संसथान अलवर मे तैतीस वर्षो महिला अध्यक्ष के रूप मे समाज सेवा एवं राष्ट्रीय अग्रवाल महासम्मेलन मे सक्रिय सदस्य। वर्तमान मेंअग्रवाल अलवर जिला अग्रवाल संसथान में जिला महिला अध्यक्ष । 1989 से “वुमेन वेल्फेयर सोसाइटी” की अनवरत अध्यक्षा तथा इस मंच से नि: शुल्क परिवार परामर्श, नि: शुल्क विधिक सहायता एवं विधिक जागृति आदि कार्यो द्वारा महिला कल्याण कार्य एवं समाज सेवा ।

· सान 2006 से “श्रीमती मीना अग्रवाल चेरिटेबल एंड मेमोरियल ट्रस्ट” की मुख्य ट्रस्टी। जिसके द्वारा अति निर्धन लड़कियो की शादी मे सहायता कार्य एवं सामाजिक शोध, वर्कशॉप।

· जिला अधिवक्ता एसोसिएशन, अलवर की 1991-1992 मे पहली बार महिला महासचिव के रूप मे निर्वाचित की गयी। ग्लोबल पार्लियामेंट ऑफ राम-राज्य की संस्थापक सदस्या।

· आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर ज्वलंत सामयिक विषयो पर वार्ताओ मे भागीदारी।

· आधुनिकता की दौड़ में परिवार टूटने से बचाने के लिए पिछले सात वर्षो से शोध कार्य|

· आयरलैंड, इंग्लॅण्ड, मॉरिशस, श्री लंका, थाईलैंड, नेपाल एवं कंबोडिया आदि की विदेश यात्राएं। 1987 से महिला अधिवक्ता के रूप मे कार्यरत साथ ही राजनीतिक, सामाजिक एवं पृथ्वी पर महिला और परिवार की स्थिति पर शोध कार्य।

व्यवसाय से एडवोकेट, राजस्थान हाई कोर्ट |

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