कू ssssssss!
ट्रेन के पावर इंजिन ने लम्बी सीटी बजाई तो यात्री और स्टाफ के लोग अपने डिब्बों में सिमटने लगे।
पच्चीसेक वर्ष का दुबला-पतला लेकिन आकर्षक विक्कू ‘डाउन ट्रेन’ लेकर लौटने को तैयार है।कल से पहनी हुई उसकी नीली वर्दी गन्दी हो चुकी है,गोरा सा मुखड़ा उदासी की कालिमा से घिरा है I नई दिल्ली स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म नम्बर सोलह पर चलने को तैयार खड़ी ट्रेन में ही चिन्तित सा बैठा है वह। चिंता पैदा कर दी है चन्नी सेठ ने। हुआ यह था कि ‘अप ट्रेन’ के रूप में घंटे भर पहले नई दिल्ली स्टेशन के इसी प्लेटफ़ॉर्म पर इन्ही कम्पार्टमेंटस् की रैक लेकर आई यह गाड़ी जब आकर लगी थी, तो बेड-रौल के बंडलों से निकाल कर विक्कू ने गन्दे हो चुके चादर, तकिया कव्हर के साथ उल्टी-दस्त से सने सत्तर कम्बल ठेकेदार चन्नी सेठ को सोंपते समय साफ कह दिया था, ‘अब मेरे पास केवल तीन सौ कम्बल बचे हैं, और आप जानते हो कि तीन सौ सत्तर सवारी का बेड-रौल देने का मेरा जिम्मा है, इसलिए आज सवारियों को सत्तर कम्बल कम पड़ेंगे। फटाफट मुझे सत्तर कम्बल दो सेठ जी ! ट्रेन चलते ही मांगने लगती हैं ! ‘
चन्नी सेठ बोले थे,’मांगने लगें तो दे देना न!’
‘मैं कहाँ से कम्बल दूंगा ? गिने चुने तीन सौ सत्तर कम्बल ही तो स्टॉक में थे ए. सी. थ्री में। जिनमें सत्तर कम्बल धोने के वास्ते आपको दे दिए।
‘पहले तीन सौ बांटना, फिर कोई सवारी कम्बल मांगे तब टाल जाना।’
‘ भाई साहब, उन लोगों ने टिकट के साथ पूरे बेडरौल के भी पैसे दिए हैं रेलवे को। फरवरी के इस ठंड के मौसम में बिन कम्बल के सवारियों की रात कैसे कटेगी? ‘
ठेकेदार ने उसे डांट दिया था ‘ज्यादा बकवास न कर तू ! ऐसे चिंता कर रहा है कि गाड़ी की इन सवारियों का सारा जिम्मा तेरा है। अरे पागल तू बहुत छोटा सा एक मजदूर है। ‘
झुंझला के विक्कू बोला था,’ मजदूर से भी छोटा! मैं तो होटल के वेटर से भी गया गुजरा हूँ । ‘
‘ वही कह रहा मैं। तेरी जिम्मेदारी तब तक है, जब तक ट्रेन दौड़ रही है। ट्रेन अपने डेस्टिनेशन पर पहुंचकर टर्मिनेट हुई और तेरी ड्यूटी खत्म!‘
विक्कू ने कहा था ‘ऐसे तो ट्रेन ड्राइवर, कोच कंडक्टर और ट्रेन मैनेजर यानी गार्ड साहब जैसे रेलवे के कर्मचारियों की तो छह-सात घंटे के बाद ही ड्यूटी खत्म हो जाती है। मुझे तो फिर भी इस ट्रेन के अठारह-बीस घंटे के सफर में लगातार सवारी की सेवा में रहना है। लेकिन सेठ जी बात वहीं रुकी है कि सत्तर कम्बल इश्यु करो ।’
ठेकेदार ने झुँझला के उससे कहा था, ‘कहाँ से इश्यु करूं ? आज तो दूसरी ट्रेनों में एक्स्ट्रा कम्बल रख दिये गए, सो मेरे पास एक भी कम्बल नहीं हैं। ‘
तब से विक्कू बहुत भयभीत है। वह समझ नहीं पा रहा है कि किस सवारी को क्या जवाब देगा? ए .सी. थ्री के पांच डिब्बे उसके चार्ज में है ।
उसे याद आया एक सौ पचास बर्थ का चार्ज एक दूसरे कोच अटेन्डेन्ट दीनू के पास है, उसके पास अतिरिक्त कम्बल हो सकते हैं। दीनू के चार्ज के ए.सी. टू के दो डिब्बे और ए.सी फर्स्ट का एक डिब्बा इस गाड़ी में लगा है।
विक्कू उठा और दीनू के पास चला आया। देखा, दीनू संतुष्ट भाव से अपनी बर्थ खोलकर लेटा हुआ आँखों के जरिये मोबाइल में घुसा था।बर्थ के पायताने यानि पैरों तरफ बैठी थी ट्रेन में बच्चों के खिलौने बेचने वाली जूली जो हर दिन इसी ट्रेन से मथुरा से चढती थी और इसी से वापस जाती थीI दीनू की अच्छी दोस्ती है उससे !
विक्कू चुपचाप खड़ा हो गया, उसने पाया कि दीनू को आसपास की कोई खबर नहीं है, वह गहरे तक मोबाइल के जाल में खोया है। जब से मोबाइल आया है, युवा पीढ़ी ही नहीं छोटे बच्चे और बूढ़े भी मोबाइल की गुप्त दुनिया में विचरते रहते हैं। छोटा सा बटन दबाओ और आपके सामने खुल जाता है एक सुहाना मायावी संसार! इस अजूबे-अनजाने संसार में तमाम ऐसी गुफाएं हैं जो अब तक समाज में वर्जित बताई गई थीं, पर इस मोबाइल ने उन तक पहुंचने के सरल रास्ते खोल दिए हैं। समस्त किशोर बच्चों के लिए भी व न बुजुर्गों के लिए भी !
विक्कू को होश आया कि गाड़ी खुलने ही वाली है, अब कुछ देर में ही सवारियां एक-एक कर उसे बेड-रौल मांगने लगेंगी !
उसने दीनू से कुछ कहे बिना उसकी बर्थ के पीछे बनी अलमारी को उझक कर देखा, तो पाया, वहां कुल मिलाकर छह बड़े थैले कंबलों से भरे रखे हैं, चूंकि एक थैली में पच्चीस कम्बल बनते हैं तो इस तरह केवल एक सौ पचास कम्बल ही दीनू के पास है। एक कम्बल भी उसके पास एक्स्ट्रा नहीं है।
निराश विक्कू दीनू को डिस्टर्ब किये बिना अपने कंपार्टमेंट में लौट आया। उसने ए.सी.थ्री के B2 कोच को अपना स्थाई ठिकाना बना रखा है। वहां जाकर उसने अपनी बर्थ खोली और बड़ी सूनी सी निगाहों से बर्थ के पीछे बने लकड़ी के बॉक्स को देखने लगा, जिसमें कम्बल और धुले चादरों के पैकेट रखे हुए थे।
उसने दिमाग चलाया कि चलो चादर तो हर बर्थ तक पहुंचा देते हैं, जिससे सवारियों को धीरज बंधेगा। बड़े उत्साह से उसने दस पैकेट उठाये और डिब्बे के भीतर निकल गया।
लगभग डेढ़ घंटे में, जबकि गाड़ी अपने ओरिजन से पचास किलोमीटर चल चुकी थी, वह लगभग हर सवारी को चादरों के पैकेट दे चुका था । जब उसने देखा कि कुल मिला कर लगभग पन्द्रह तकियों के कव्हर थोड़ा गंदे हो गए थे, तो उन पर उसने अपने पास से धुले हुए कव्हर लेकर फुर्ती से चढ़ा दिए। यूँ तो उसके पास सौ की संख्या में सफेद चमकदार धुले हुए तौलिये भी रखे हैं, पर उसने उनका पैकेट खोला ही नहीं। दरअसल इन तौलियों पर रेलवे का आइकॉन नही बना है तो जाते समय दस-पांच यात्री इन्हें अपनी अटैची में धरके उतर जाते हैं और इनका हर्जाना कोच अटेंडेंट को भरना पड़ता है , जबकि चादर व तकिया कव्हर के चारों ओर की बॉर्डर पट्टी में बाकायदा IR या NCR अथवा WR वगैरह अक्षर भारतीय रेलवे के जोन की पहचान बताते रहते हैं। लौटते में उसने देखा कि चादरों के पैकेट आते ही सवारियां बड़ी बेदर्दी से खा की रंग के लिफापे फाड़कर कम्पार्टमेन्ट के फर्श पर फेंकने लगे हैं,और यहाँ से वहां तक का फर्श लिफापों के कचरे से भर गया है I
बर्थ पर लेट कर उसने आज का अख़बार खोल लिया I होटल में काम करने के दिनों से उसकी आदत रही है कि वह अख़बार खोल के सबसे पहले उस दिन का भविष्य फल पढ़ता हैI भविष्य फल में लिखा था –आज आपकी भेंट विपरीत लिंग के किसी अपरिचित व्यक्ति से होने वाली है । आज ऐसी परिस्थिति आ सकती है जिससे आपका जीवन बदल सकता है!
सहसा उसका मन प्रफुल्लित हो उठा I सोचने लगा कि ऐसे भला किससे भेंट हो सकती है? कोई दिलफेंक महिला यात्री ! ट्रेन में सामान बेचने वाली कोई लड़की ! रेलवे की कोई मुलाजिम ! घर से भागी कोई गुमराह लड़की !
फिर वह घटना औऱ परिस्थिति क्या होगी जो जीवन बदल सकती है?
सदा की तरह वह भविष्यफल की बात को इस तर्क के माध्यम मन से हटाने का यत्न करने लगा कि विश्व की कुल जनसंख्या यानी 12 अरब लोगों का भविष्य फल 12 राशि में बंटा है तो हर आदमी पर भला यह भविष्यवाणी भला कैसे सच साबित हो सकती है।
उसने अख़बार को तह किया और उसे सीने पर रख के आँखें बन्द कर लीं I उसके मन में कल्पना के घोड़े दौड़ चले… किसके मिलने का संकेत है यह? क्या रोमांचक होने जा रहा है आज उसके साथ?
लग रहा था कि ट्रेन पलबल स्टेशन पर रुक रही है I ट्रेन पूरे दो मिनट खड़ी रही लेकिन कोई भी यात्री नहीं चढ़ाI ट्रेन चलने के वास्ते खिसकी ही थी कि दरवाजे पर घबराई सी एक महिला दिखाई दी, जिसने अपने एक हाथ में बच्चे को लाद रखा था और दूसरे में ट्रॉलीदार अटैची का हैंडलI विक्कू को लगा कि सेकण्डों में गाड़ी गति पकड़ लेगी और इस महिला के साथ कोई भी हादसा घट सकता हैI वह फुर्ती से बर्थ के नीचे कूदा और दरबाजे पर पहुँच के ‘संभल के आओ मैडम’ कहते हुए उसने लपक के महिला के हाथ से ट्रॉली ले ली थी। ट्रॉली उसने भीतर रखी और धीमे खिसक रही ट्रेन के साथ चल रही उस युवती के हाथ से बच्चे को ले कर फुर्ती से अपने बगल में खड़ा कर उसने बिजली की सी तेजी से उस युवती की तरफ हाथ बढ़ा दिया थाI ट्रेन इस हालत में आ चुकी थी कि युवती लगभग भागने लगी थी, उसने बेहिचक अपना हाथ विक्कू की तरफ बढ़ा दियाI उसके मुलायम हाथ की बांह को विक्कू ने सख्ती से पकड़ के युवती को अपनी ओर लगभग खींच ही लिया, और अगले ही पल बदहवास हो उठी वह युवती हवा में झूलती हुई पूरी की पूरी विक्कू से आ सटी थी I फर्श पर खडा करते न करते युवती के कपड़ों से निकलता खुशबू का झोंका विक्कू के नथुनों से टकराया तो वह लगभग नशे में डूब गयाI कई पलों तक उसे न अपना ध्यान था, न उसके आलिंगन में खड़ी उस युवती को अपना I
सहसा बच्चे के रोने की आवाज से उन दोनों का ध्यान भंग हुआ I युवती सकपकाकर विक्कू से दूर हुई और उसने बच्चे को संभालाI विक्कू ने कम्पार्टमेंट का दरवाजा बन्द किया और मुड़ कर सकुचाते हुए युवती से पूछा, ‘आपका सीट नम्बर क्या है मैडम ?’
‘एस-एट में इकत्तीस नम्बर !’ युवती ने तो भरपूर आत्मविश्वास से जवाब दिया, लेकिन विक्कू परेशान हो उठा थाI वह हडबडाहट में बोल उठा, ‘यह तो एसी का क्लास थ्री कम्पार्टमेंट बी-टू है मैडम! एस-एट यानि स्लीपर क्लास का आठ नम्बर तो बहुत आगे होगा, उधर एसी के सेकण्ड और फर्स्ट से भी आगे जाके!’
‘अरे , लेट हो गयी तो मैं गलत डिब्बे में चढ़ गई ! अब क्या होगा ? कहाँ रुकेगी यह ट्रेन ?’ वह युवती अब परेशान हो उठी थीI
‘ट्रेन तो सीधे मथुरा रुकेगी अब !’
‘ फिर .. फिर क्या करें हम ? ’ घबराहट में युवती ने अटैची का हैंडल पकड़ के बच्चे को गोदी में टांग लिया थाI
विक्कू के मन का इन्सान जाग उठा, वह बोला, ‘ऐसे मत घबराओ आप! या तो डिब्बे से डिब्बे में चलते हुए हम आपको आपकी बर्थ तक पहुंचा देते हैं,या फिर मथुरा तक आप यहीं बैठो !’
उसने अपनी बर्थ पर उस युवती को बैठने का संकेत किया और अटैची खींच के पास कर दीI अचकचाती हुई वह युवती विक्कू की बर्थ पर बैठ गयी लकिन उसके चेहरे पर अब भी घबराहट छाई हुई थीI रोता हुआ बच्चा अब चुप हो गया था और सशंकित नजरों से विक्कू को टुकुर- टुकुर ताक रहा थाI
ठीक तभी कोच के कंडेक्टर साहब वहां से निकले तो विक्कू ने उन्हें टोका, ‘ साहब नमस्ते, इन मैडम का एस- एट में इकत्तीस नम्बर बर्थ का रिज़र्बेशन है, पलवल से हड़बड़ी में इस डिब्बे में चढ़ आयी हैंI इन्हें बी-टू की किसी खाली बर्थ पर बैठा दूँ, या एस-एट में भेज के आऊँ ?’
‘ए सी में कोई बर्थ खाली नहीं है यार, जा इन्ही की सीट पर छोड़ आ! मैडम अपना टिकट दिखाओ!’ टीसी ने घूरते हुए एक ही वाक्य में उस युवती और विक्कू दोनों को टोक दियाI
युवती बच्चे को नीचे खड़ा करके फिर खड़ी हो गयी और पर्स में से अपना मोबाईल निकाल के टिकट खोजने लगी थीI
टिकट देख के टीसी अपने रस्ते चले गए तो विक्कू ने रहत की सांस ली और बोला, ‘आप कुछ देर यही आराम बैठ जाओ, फिर आपको आपकी बर्थ तक छोड़ने चलता हूँ!’
युवती कुछ न बोली बस सहमति में सर हिलाती रहीI गूंगा सा विक्कू एकटक उस युवती की खूबसूरती को ताकता रहाI मेहंदी कलर का चुस्त सा सूट,लापरवाही से लहराती चुनरी, लम्बे बालों का जूड़ा और चक्ख गोरे रंग की वह युवती ग़ज़ब की सुंदर थी।
सहसा विक्कू ने अनुभव किया कि उसकी सर्विस बर्थ के सामने स्थित दो बाथ रूम में से इन्डियन स्टाइल के बाथरूम से थोड़ा-थोड़ा पानी छलकते हुए बाहर बह रहा है। विक्कू युवती के सामने से हटा और उसने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया। उसने देखा कि बाथरूम की फ्लश में से लगातार निकलते पानी से बाथरूम का फर्श लबालब भर चुका है और बाहर भी छलक रहा है। पहले तो उसने सोचा कि बाथरूम की समस्या ठीक करना तो सफाई ठेकेदार की जिम्मेदारी है, आजकल रेलवे में सफाई के ठेके अलग हो गए हैं, उनका स्टाफ नल को बंद करें वही बाथरूम में भर गये पानी और गंदगी की सफाई करें । लेकिन फिर सोचा यह बाथरूम तो उसी को परेशान करेगा क्योंकि उसकी ही बर्थ सामने है सो उसे ही दिक्कत होना है। उसने झुक कर फ्लश बंद करने की कोशिश की। फ्लश का हैण्डल कहीं फंस रहा था, सो उससे पानी बंद नहीं हुआ , तो वह निराश होकर अपनी बर्थ पर आ बैठा । पानी बाहर छलक रहा था, तेजी में अचानक दो सवारियां निकलीं और बच्चों की तरह उन्होंने छप छप करके उन्होंने पानी मचा दिया, तो कुछ छींटे विक्कू पर उछले ।
दोनों बाथरूम के बीच की गैलरी में पानी भरता देख वहाँ से निकल रहा लगभग चालीसेक वर्ष का एक व्यक्ति उसे डांटते हुए बोला, ‘क्यों रे, बैठा-बैठा क्या कर रहा है? देख नहीं रहा बाथरूम में से कितना पानी गैलरी में फ़ैल रहा है !’
विक्कू की इच्छा थी कि जवाब में वह कुछ तीखा बोल जाए, पर उसकी नौकरी के एटीकेट में इस बात की छूट नहीं हैं सो वह किसी पैसेंजर को नाराज नहीं कर सकता। बगल में बैठी उस युवती का भी उसे लिहाज़ था सो उसने बहुत ही अदब के साथ कहा, ‘बाबूजी मैं सफाई कर्मचारी नहीं हूं । मैं केवल कोच अटेंडेंट हूं!’
‘कहां है सफाई कर्मचारी ?’
‘साहब यह तो मुझे पता नहीं है, मैं तो सिर्फ बेड रौल दे सकता हूं । मैं यहां हाजिर हूं, आपको मेरी सेवाओं की जरूरत हो तो बताएं!’
‘ अच्छा ला धुला हुआ साफ़ कम्बल दे मुझे।’
‘ आप कितने नंबर पर है मैं वही लाकर देता हूं।’
‘ 16 और 17 ’ कहता हुआ वह व्यक्ति चला गया तो विक्कू दो कम्बल उठा कर 16 व 17 नंबर की बर्थ पर पहुचा और वहां पत्नी के संग बैठे उन्ही सज्जन को कम्बल देकर अपनी जगह आ गया था।
अब उसने युवती से कहा ‘चलो मैडम, मैं आपको आपकी बर्थ तक पहुचा आऊँ ! आप बच्चे को संभालो मैं यह अटैची उठा लेता हूँ !’
आधा घंटा लगा उसे, युवती को उसकी बर्थ तक पहुँचाने और वापस आने में Iलेकिन देर तक वह उस युवती के सम्पर्क के प्रभाव से मुक्त नहीं हो सका I वह खुशबु , वह चितवन , वह सुन्दरता बस महसूस करने की चीज थी उसके लिए I
हालाँकि बर्थ पर पहुँचते ही युवती के हाव भाव बदल गए थे,उसने विक्कू के साथ ऐसा बर्ताव किया था, जैसे वह खुदाई मददगार नहीं बल्कि होटल का वेटर हो; जिसकी ड्यूटी ही पैसेंजर को उसकी बर्थ तक पहुंचाना हो I इसलिए विक्कू दो मिनट तक सिर्फ थेँक्यू सुनने को निराश सा खड़ा रह के वापस लौट पड़ा था I
युवती के जादुई प्रभाव से मुक्त होते ही उसके दिलो दिमाग पर फिर से डर हावी हो गया था कि कम कम्बलों के साथ वह कैसे आज का सफर कर पायेगा ! अबकी बार उसने अपने डेस्टिनेशन वाले ठेकेदार मन्नी को फोन लगाया, तो देर तक घंटी जाने के बाद ठेकेदार ने फोन उठा लिया ‘ हेलो !’
‘ भाई साहब नमस्कार! हम विक्कू बोल रहे हैं।‘
‘ हां बोलो विक्कू ! गाड़ी निकल गयी दिल्ली से ?’
‘हां बाबूजी निकल ली। लेकिन आज डेस्टिनेशन तक पहुंचने में जाने क्या-क्या झगड़ों का सामना करना पड़ेगा ?’
‘क्यों क्या हो गया?’
‘ अरे मेरे पास तीन सौ सत्तर सवारियां हैं और कम्बल केवल तीन सौ हैं!’
‘ ओफ्फो, तो तूने चन्नी से बाकी के कम्बल क्यों नहीं मांगे?’
‘ मैंने उनसे कहा था तो बाबूजी ने मुझे डांट दिया था और मुझसे ही कहा था कि तू ही जान कि कैसे निपटना है!’
‘बस एक मिनट रुको मैं उनसे बात करता हूं।’
‘ हां बाबूजी जल्दी करो ! हर सवारी मुझसे कम्बल मांग रही है, मैं कहां से दे दूं?’
‘ ठीक है मैं कोशिश करता हूं कि रास्ते के किसी जंक्शन से तुम्हें कुछ कम्बल मिल जाए।’
विक्कू को आशा बंधी कि ‘चलो ठेकेदार को चिंता है वह कुछ न कुछ कर ही देगा।’
लगभग दस मिनट ही बीते होंगे कि पांच-सात सवारियां फिर उसके सिर पर हाजिर थी, ‘हमको कम्बल दो भाई !’
‘जी बाबू जी, कितने नंबर पर हैं आप ?’
उनके बताये बर्थ नंबर पूछ कर विक्कू ने उन्हें वहीं जाकर कम्बल दे दिया।
फिर तो कम्बल मांगने वालों की लाइन ही लग गई । जिसका मन हो वह आ कर कम्बल मांग रहा था।
विक्कू ने फुरसत मिलते ही पानी के छींटों से अपनी जान बचाने को एक चक्कर फिर एसी टू की तरफ लगाया कि शायद सफाई कर्मचारी वहां बैठा हो। लेकिन अब भी वहां वह नहीं था।
उसने दीनू से पूछा ‘ दीनू , सफाई वाला घंसू कहाँ है ? सवारियों को मेरे कोच में सफाई करवाना है।’
‘ अरे सफाई तो मेरे पैसेंजरों को भी करवाना है, लेकिन शायद आज ट्रेन में वह बैठा ही कहां है ! या तो उसकी ट्रेन छूट गई या फिर वह ओवर टाइम कर रहा था और उसे रिलीव करने वाला नहीं आया तो गुस्से में ट्रेन से उतर गया ।एसी मेन्टेनर भी नहीं दिख रहा !’
‘मेरी तो बहुत मुसीबत होने वाली है!’
‘ क्या मुसीबत है?’
‘ अरे यार , मेरी तीन सौ सत्तर सवारी के लिए मुझे केवल तीन सौ कम्बल मिले हैं अब जाने क्या होगा?’
‘ तो तुमने चन्नी भैया को बताया नहीं था क्या?’
‘मैं चन्नी को बता चुका और मन्नी भैया को भी फोन कर दिया है। वह कह रहे हैं कि वे रास्ते में किसी जंक्शन से कम्बल दिलाने का प्रयास करते हैं ।‘
‘रास्ते में कहाँ ?’
‘ देखो अब गाड़ी मथुरा पहुंचने वाली है, मथुरा में तो कोई ठेकेदार रहता नहीं है, आगरा बड़ा जंक्शन है, शायद वहां कोई ठेकेदार देगा ।’
‘ भगवान करे ऐसा ही हो। नहीं तो तुम्हारा क्या होगा?’
‘अब जो भगवान चाहे ! मथुरा स्टेशन आ रहा है, मैं कन्हैया से प्रार्थना करता हूं कि वे इस संकट को हर लें !’ कहता वह अपनी बर्थ तरफ लौट पड़ा ।
विक्कू अपनी बर्थ की तरफ बढ़ ही रहा था कि बर्थ नंबर एक पर लेटे सज्जन ने उसे टोका , ‘क्यों भाई इस कंपार्टमेंट में कचरा कौन साफ करेगा ?’
वह रुका और मुस्कुरा कर बोला, ‘बाबूजी मैं सफाई कर्मचारी नहीं हूं। सफाई वाला आएगा तो वह साफ करेगा ।‘
‘मैं कंप्लेंट करता हूं आप लोगों की।’
‘ हां आप सफाई की कंप्लेंट कर सकते हैं, हेल्पलाइन फोन नम्बर 139 पर!’
‘ और इसकी भी कि उधर बाथरूम में पानी भरा है।’दो नंबर बर्थ की सवारी एक स्त्री थी उसने बोला ।
बर्थ नंबर छह पर बैठा एक बुजुर्ग बोला, ‘ सरकार ने जब से अपने कर्मचारी हटाकर ठेके वाले लगाए हैं, हम ऐसी ही समस्या का सामना कर रहे हैं। ’
रेलवे की सारी नीतियों के लिए जैसे विक्कू ही गुनहगार था, सब लोग उसे ऐसे ही डांट रहे थे । उसने डरते हुए सब सवारियों को देखा और सिर झुकाए निकल गया ।
अपनी बर्थ पर आकर विक्कू ने फिर से मन्नी भैया को फोन लगाया । ताज्जुब था कि पहली बार में फोन उठा लेने वाले टिंकू भैया का फोन अब स्विच ऑफ आ रहा था,विक्कू का दिल दहलने लगा । उसने वापस चन्नी भैया को लगाया ताकि उसे पता लग जाए कि मन्नी भैया का फोन बंद क्यों है या उन्होंने आगरा स्टेशन पर कंबलों का इंतजाम किया या नहीं! चन्नी भैया का भी फोन बंद था।
अब आगरा केवल तीस किलोमीटर रह गया था।
सहसा उसे याद आया कि नौकरी ज्वाइन करते समय मन्नी सेठ ने उसे बताया था कि आगरा में उनका एक दोस्त है – धन्नू लाल ठेकेदार। अगर विक्कू को चलती गाड़ी में कभी कोई दिक्कत हो तो वह धन्नू लाल को फोन लगाए।
याद कर के पल भर को राहत मिली उसे। उसने जल्दी से धन्नूलाल का नंबर डायल किया और सौभाग्य से उसका नंबर भी लग गया।
‘ नमस्ते सेठ जी!” उसने बहुत अदब से बात की।
धन्नू लाल ने कहा, ‘नमस्ते ! कौन बोल रहे हो ?’
‘ सर मैं मन्नी सेठ का नौकर बोल रहा हूं । फाइव डाउन लेकर जा रहा हूं । एक बार मन्नी सेठ ने कहा था कि किसी भी तरह की समस्या हो तो मैं आपसे बात करूं! ’
‘ बोलो !’
‘अरे साहब , सवारियां मिलकर मुझे पीट डालेंगी । आज तीन सौ सत्तर सवारी लेकर चल रहा हूं और मेरे पास केवल तीन सौ कम्बल है।’
‘बाप रे ! तो फिर क्या करोगे?’
‘ मेरा दोनों तरफ मरना है आज , ठेका गया तो सेठ मुझे नहीं छोड़ेगा और अगर कम्बल नहीं दिए तो सवारियां नहीं छोड़ेंगी । ’ लगभग रो देने के अंदाज में भी को बोला था तो अचानक पिघलते हुए धन्नू सेठ ने कहा, ‘ चलो मैं कुछ करता हूं ।‘
कुंए में डूबते हुए आदमी को फेंकी गई रस्सी की तरह इस वाक्य ने विक्कू को लगभग उभार लिया था । अब उसके भविष्य के लिए केवल बीस किलोमीटर का सफर था और उसके आगे की कुशलता को तय करने में गिने-चुने मिनट बाकी थे।
अचानक अम्मा का फोन बजा तो उसे लगा कि अम्मा को वह अपनी पीड़ा बताये।
बेबस और अल्प बुद्धि अम्मा क्या मदद करेगी उसकी? सहसा उसने सोचाI
… अम्मा मदद तो नहीं करेगी, पर एक आश्वासन तो देगी। वह अपने कन्हैया से कहेगी कि मुझे बचा ले!
…लेकिन अम्मा ने हीं तो इस मुसीबत में डाला है। ऐसी परिस्थितियों में वह हमेशा यही क्षोभ महसूस करता है कि काहे को इस नौकरी में पड़ा? ठीक ठाक नौकरी कर रहा था अपने शहर में।
वह अच्छा खासा अपने शहर के अजन्ता होटल में वेटर का काम कर रहा था और अपने बी ए तक की पढ़ाई में सीखी गई छोटी-मोटी अंग्रेजी और व्यवहार में विनम्रता के कारण लोकप्रिय वेटर था, हर विजिटर उसे कुछ ना कुछ इनाम देकर ही जाता था।यहां तक कि चले जाने के बाद भी सवारियां उसे फोन करती थी और कभी कभार इनाम भी भेजती थी; अगली बार आने पर सवारियां सबसे पहले विक्कू को ही पूछती थी।
एक दिन अम्मा को रेलवे स्टेशन पर बैंडर उनके भाई से अचानक पता लगा था कि रेलवे में बेड रौल सप्लाई करने वाले ठेकेदार मन्नी- चन्नी एण्ड कम्पनी के यहां होटल में काम किये वेटर की जरूरत हैI विक्कू तो खोज के मन्नी सेठ से मिला।
मन्नी सेठ ने बताया ‘हां मुझे ट्रेण्ड वेटर जरूरत तो है। तुमने कहां काम किया है?’
‘अजन्ता होटल में ।’
अजंता होटल की बात सुनके मन्नी सेठ ने सीधा अजंता होटल फोन लगा दिया था-‘ हां भाई सोनी सेठ, तुम्हारे यहां कोई विक्कू वेटर है न ? वह कैसा आदमी है ?’
‘हां है न, लेकिन कैसा आदमी है ? ऐसा क्यों पूछ रहे हो ?’
‘मैं यूं ही पूछ रहा हूं। वहां मेरे रिलेटिव आपके होटल में गए थे तो वे उसकी सर्विस की बड़ी तारीफ कर रहे थे।‘
‘ हां हमारे यहां नंबर वन वेटर है!’
‘अच्छा ठीक है, बात करता हूँ ।’ कहते हुए पिंटू ने फोन काट दिया था और विक्कू से बोले थे, ‘तुम्हारा सेठ भी तुम्हारी तारीफ कर रहा है। चलो तुम्हारी नौकरी पक्की। मैं दूसरे वेटर को दस हजार देता हूं, तुम्हें बारह हजार दूंगा।सौ रुपया रोज खाना-खुराक के अलग !’
‘अरे!सच में नौकरी पक्की ?’ दोगुनी तनखा का प्रस्ताव सुन वह उतावली में बोला, ‘ आप तो ये समझा दो कि मेरी ड्यूटी क्या होगी ?’
‘ड्यूटी यही होगी कि गाड़ी जब ओरिजन स्टेशन से चले तो ट्रेन की सवारियों को कम्बल और चद्दर का बेड रौल बांट देना है, तकिया लगा देना है। यात्रियों से विनम्रता का बर्ताव करना है। आखिरी में जब गाड़ी डेस्टिनेशन के पॉइंट पर आने लगे, तो सारे चादर, कम्बल वगैरह वापस इकट्ठा कर, तह बनाके थैलों थैलों में भर दो। टर्मिनेट होते ही गाड़ी के ठेकेदार को सारी चीज सोंप के समझा दो, तो छुट्टी तुम्हारी , फिर आराम से अपने घर जाओ।’
‘इसमें तो कोई दिक्कत नहीं है मुझे , होटल में भी यही सब तो करता था।अच्छी नौकरी है ये तो !’
एक मिनट रुक कर बोले थे मन्नी सेठ ‘बहुत अच्छी है विकास भाई ! सरकार ने आजकल रेल कर्मचारी हटा के हरेक सर्विस के ठेका कर दिए हैं न! खाना सप्लाई अलग, सफाई का अलग ठेका होता है, ए .सी. यानि एयर कन्डीशनर का टेम्प्रेचर मेन्टेन करने वाला अलग ठेकेदार होता है, …लेकिन अपने पास सबसे महत्त्वपूर्ण ठेका है , नींद का ठेका ! हाँ अपन ने ठेके पर नींद बांटने का जिम्मा लिया है । बाकी सारे ठेकेदारों का स्टाफ तुम्हारे पास ही आकर सोने की जुगाड़ करेगा,एक तरह से तुम सबके हैड रहोगे।’
‘ठीक है सेठ जी मैं आज ही ज्वाइन कर लेता हूं। ’
‘अरे तुम अजंता होटल वाले पुराने सेठ से नौकरी छोड़ने की बात करो न !’
‘ बात क्या करना सेठ जी? कोई गुलाम तो नहीं उनका ?’ कहता वह मन-ही-मन हिसाब लगा रहा था कि अभी छह हजार तनखाह और इनाम-इकराम मिलकर उसे मुश्किल से आठ हजार ही तो पड़ता है, यहां सीधे बारह मिलने वाले हैं,घूमना फिरना अलग !’
उसने सोचा था ‘ मां जब सुनेंगी कि वह बारह हजार कमाने लगा तो उसकी शादी-ब्याह की बात करने लगेगी। हां उसकी उम्र अब पच्चीस साल की हो चुकी है, शादी ब्याह भी हो ही जाना चाहिए। यूँ तो उसके समाज में पन्द्रह – सोलह साल तक के लड़कों की शादी हो जाती है, विक्कू यानि विकास ही है जो पच्चीस साल के होने तक बैठा है। अब उसकी शादी भी हो जाएगी। दो महीने पहले मां पूछ रही थी कि कोई लड़की नजर में हो तो बात चलाती हूँ मैं, लेकिन छः हजार में तू कैसे गुजर-बसर करेगा?’
वह बोला था, ‘ठीक है भगवान करेगा तो मुझे बड़ी नौकरी मिल जाएगी।‘
उसकी जुबान पर बैठी सुरसती सुधमती हो गई, उसे बड़ी तनख्वाह की नौकरी मिल गई। अब वह ठीक से नौकरी करेगा, जिससे शादी – ब्याह हो जाय ।
उसने ज्वाइन किया तो सेठ के बताये सपने कुछ दिनों तक खूब ठीक चले थे। ए सी वाला मैन्टेनर उसी के पास आकर बैठता और टेम्प्रेचर कम –ज्यादा करता था। सफाई वाले भी वहीँ बैठते थे और चाय – कॉफ़ी व् नाश्ता वाले वैंडर भी और ट्रेन में ईनाम –इकराम मांगते किन्नर भी I सब उसके व्यवहार की तारीफ करते थे। पता लगा था कि सफाई वाले दोनों आदमी जाति से पण्डित हैं तो वह चौंका था-पण्डित हो के सफाई कर्मचारी !
होटल के एटीकेट अनुसार वह सब सवारियों से ‘नमस्ते बाबूजी’ और ‘थैंक यू’ ‘वेलकम’ जैसे शब्द प्रयोग करता था।
लेकिन धीरे-धीरे इस नौकरी की कमियां, अपनी गलतियां और खामियां उसके सामने प्रकट होने लगी। उसकी नींद कभी भी पूरी न हो पाती थी, और ठीक से खाने का भी कोई ठिकाना न था उसका, ज्यादातर तो रेलवे बेंडर के बेचे समोसा और ब्रेड पकोड़ा खाके काम चलाता था। फिर कई सवारियां बिना बात ही उससे झगड़ा करती थी, तू तड़ाक करके बोलना तो जैसे हर यात्री का अधिकार था।
वह अक्सर करवट बदलकर अपनी बर्थ पर लेटा रहता था।
कभी कभी कुछ मीठे और सुहाने अनुभव भी होते थे । कई बार जब वह लेटा हुआ होता था और कुछ लड़कियां आकर उसे छूते हुए जगाती थी, ‘सुनो बेड-रौल वाले भैया, तुम थोड़ा सा उठ के बैठ जाओ न! हमको यहां बैठकर सिगरेट पीना है।‘
वह चौंक जाता था- लड़कियां और सिगरेट!
हां कई लड़कियों ने उसकी बर्थ पर बैठकर सिगरेट पी है। यही नहीं , कई लड़कियों ने तो बियर भी पी है। हां अब महिलाओं में बीयर और सिगरेट का प्रचलन तेजी से बढ़ने लगा है। ऐसे वक्त विक्कु दूसरी तरफ मुंह किए चुपचाप बैठा रहता है।यह लड़कियां अगर डिब्बे के भीतर अपनी बर्थ पर शराब – सिगरेट पीती, तो आसपास की सवारियां आपत्ति कर सकती थी। लेकिन विक्कू न रेलवे का मुलाजिम है न पुलिस का अधिकारी। वह तो सवारी भी नहीं है कि किसी को टोकने का उसे हक हो । सवारी तो आजाद होती है। सवारी ठेकेदारों के कर्मचारियों को डांट सकती है, रेलवे के कर्मचारियों को डांट सकती है, कंप्लेंट कर सकती है। वह तो सीधे मंत्री और प्रधानमंत्री महोदय को भी एक्स और ट्विटर पर शिकायत कर सकती है। लेकिन विक्कू क्या है? वह तो एक तुच्छ सा व्यक्ति है, जिसको न सवारी जैसे हक है और न कर्मचारियों के जैसे ।
ऐसी शराब और सिगरेट पीती कई लड़कियों को उसने जाने-अनजाने में छुआ है। खूबसूरती और बिंदास अंदाज़ से भरी यह लड़कियां उसे पहले खतरनाक प्रतीत होती थीं , लेकिन अब कुछ दिनों से जब उसे आदत हो गई है। वे उसे मोहक लगती हैं ।
वह संयमित होकर अपने आप को रोकता है। लेकिन अनजाने में प्रयास करता है कि पीठ से उनको छू ले, बांह सटा दे । वे लड़कियां भी इस बात पर ध्यान नहीं देती कि इस अटेंडेंट की पीठ उन्हें छू रही है, या जाने अनजाने में हाथ भी उन्हें छू रहा है। विक्कू इसी में खुश है।
उसने अपने मन को झटका, ‘अरे!’ बर्थ पर अकेला ही तो लेटा है, न बियर पीती लड़कियां हैं, न उनकी सिगरेट की गंध है। फिर भी उसे मन ही मन बड़ा अच्छा लगा वह सब याद करके क्योंकि वह मानता है कि ऐसे छोटे –छोटे सुख ही महसूस करते रहना चाहिए आदमी कोI
इधर पांच सवारियां उसके पास आकर फिर खड़ी हो गई थी, ‘क्यों लड़के, हमारे कम्बल कहां है?’
‘ किस कोच के ,किस नम्बर बर्थ के बाबूजी?’
‘इसी B2 में 64 से लेकर 72 तक के कम्बल!’
‘बाबूजी मेरे कम्बल का बंडल दूसरी गाड़ी में रखा हो गया, अब आगरा में मुझे कम्बल मिलाने वाले हैं। मैं अभी आपको देता हूं । आपकी बर्थ का नम्बर नोट कर लेता हूं।‘
उसने डायरी उठाई और नोट किया ‘B2 में 64 से 72 नंबर तक की सवारी को कम्बल देना है।‘
सवारियों को लगा कितना गंभीर अटेंडेंट है, यात्रियों की मांग को बाकायदा नोट कर रहा है।
गोरा सा लम्बी नाक वाला मुसाफिर बोला ‘यह जो पानी फैल रहा है इसका क्या हुआ ?’
वह फिर विनम्रता से मुस्कुराया ‘बाबूजी, यह सफाई वाले का काम है । इसकी कंप्लेंट भी शायद किन्ही सर ने की है। देखो आगरा आ रहा है, शायद कोई कर्मचारी आकर इसे ठीक कर जाएगा।
‘ यह बात हम नही समझ पाए कि बाथ रूम का पानी बाहर क्यों फ़ैल रहा है ? लेट्रिन सीट के नीचे लगे हुए पटरियों पर खुलने वाले पाइप से ट्रेक पर नीचे नहीं गिर रहा है?’
‘बाबूजी आजकल आधुनिक प्रकार के टॉयलेट लगने लगे हैं न, इनमें नीचे से टॉयलेट का बक्सा कस दिया जाता है , जिसमे से पानी छन-छन के नीचे गिरता है। बाकी ठोस सामग्री बक्से में भरती रहती है, पूरी यात्रा तक एक ही डिब्बे से काम चल जाता है । आज तो लगता है कि किसी सवारी ने लेट्रिन सीट में कोई कपड़ा या रद्दी या वैसा ही कोई कचरा डाल दिया होगा तो पानी रुक रहा है, नहीं तो आसानी से पानी बहता रहता है , जैसा कि बाकी के बाथ रूम में बह रहा है ।’
उस यात्री ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘तू उसके बॉक्स का डिसेक्शन क्यों करने लगा? तुझे यह कब पूछा था? बड़ा गन्दा है तू !’
वह मुस्कराया। लेकिन सामने वाला मुस्कान के मूड में नहीं था। उसने बड़ा घिना सा चेहरा बना लिया था और वहां से निकल लिया था, जैसे सामने विक्कू न होकर टॉयलेट बॉक्स में भरा हुआ वह गन्दा बॉक्स हो।
विक्कू को हंसी आई। उसे मजा आया, ‘चलो कम से कम इन मोटे-ताजे और खाए – अघाए लोगों के मन में उसने एक विकृति तो पैदा की।
सहसा उसका क्षोभ बढ़ा, ‘कोई पूछे तो जरा कि इन लोगों ने क्या समझ रखा है मजदूरों को? तुम बेड रौल पैकिंग के लिफापे और चाय के डिस्पोजेबिल मग तक वहीँ फर्श पर फेंक देते हो , बाथरूम के पास लगे कचरादान में फेंकने की जहमत नहीं करते ! क्योंकि हमारा ही जिम्मा है कि हम गंदगी साफ करें! और क्या हमारा ही जिम्मा है कि आपकी हर उल्टी-सीधी हरकत को संभाले ?
दीनू कह रहा था कि हो सकता है सफाई करने वाले का बच्चा बीमार हो! आज नहीं आया तो कौन सी आफत आ गयी ! कम्पार्टमेंट के सारे बाथरूम तो ठीक चल रहे हैं, एक न चला, तो भी काम तो चलेगा न!
उसे लगा कि ठेकेदार भले अलग हों लेकिन अंततः यह सारे कर्मचारी उस से अलग नहीं हैं , उसके साथी हैं, बल्कि भाई जैसे हैं । चलो मैं ही हेल्प करता हूं इनकी। संभव होगा तो वह सामने वाले बाथरूम के फ्लश को भी किसी न किसी तरह ठीक कर देगा, ताकि गैलरी में पानी न बिखरे । लेकिन कम्बल की समस्या कैसे खत्म होगी ! एक ही रास्ता है कि ठण्ड न होगी तो कम्बल की जरूरत भी न होगी !
आगरा बस आठ या दस किलोमीटर आगरा बचा होगा। पहले राजा की मंडी स्टेशन आएगा, फिर आगरा कैन्ट । भगवान करे सेठ धन्नू लाल की जुगाड़ व्यवस्था काम कर जाए, उसे कम्बल मिल जाए।
ट्रेन भागी जा रही थी और उसकी धड़कन ने बढ़ रही थी।
कुछ सोचते हुए अचानक बर्थ पर बैठ कर उसने सहसा ए.सी. का बॉक्स खोला, कई बार देखने से उसे ठीक से याद है कि कौन सी घुण्डी घूमने पर ए.सी. टेम्प्रेचर कम होता है। एक ट्रेंड ए .सी. मेंटेनर की तरह उसने घुण्डी घुमाई और ए.सी. का टेम्प्रेचर जो अठारह पर स्थिर था, धीरे से चौबीस पर कर दिया।
बड़े आहिस्ता से उसने ए .सी. बॉक्स की अलमारी बंद की। हुक का लॉक लगाया और दूसरे डिब्बों की ओर चल पड़ा । अब उसे एक-एक करके सारे डिब्बों के ए.सी. के टेम्परेचर ठीक कर देना था ताकि कंपार्टमेंट में इतनी गर्मी हो जाए कि लोग ना कम्बल मांगें । आगरा में कम्बल न भी मिल पाए तो काम चल जाये I वह कतई नहीं चाहता कि उसके वर्ग के किसी कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्रवाई हो ।
अब उसके भीतर की दीन-हीनता का भाव खत्म होता जा रहा था, एक अनूठा आत्मविश्वास उसमें भरता जा रहा था।
अब आगरा चार किलोमीटर ही बचा होगा, राजा की मंडी पर गाड़ी रुक रही थी।
आगरा कैंट स्टेशन आते-आते वह अपने पाँचों डिब्बों में ए.सी. के टेम्प्रेचर बढ़ा चुका था। वह जब बी टू की तरफ लौटने लगा तो उसने अनुभव किया कि कम्बल ओढ़ कर लेटे लोग कम्बल उतारने लगे हैं। उससे कम्बल मांगने वाले B2 के 64 से 72 नम्बर की वर्थ वाले लोगों में से एक ने कहा ‘सुन भाई ए .सी. का मेंटेन करने वाला कहां है?’
‘ पता नहीं बाबूजी, शायद आगरा में मिलेगा।‘
‘ तो यार ए .सी. का टेम्परेचर कम करवा दो।कम्बल दुश्मन लग रहा है !‘
उसने देखा कि बीच में ही उन्ही का साथी पैसठ नंबर का यात्री बोला था कि काहे को टेम्परेचर काम करवा रहे हो? अच्छा है कम्बल नहीं ओढना पड़ेगा, हम चद्दर लपेटकर लेटते हैं !’
विक्कू को लगा कि ट्रेन की सब सवारी उनकी दुश्मन नहीं है,कुछ लोग मानवता भी जानते हैं ।
गाड़ी राजा की मंडी से आगरा छावनी की तरफ तेजी से बढ़ रही थी। उसी तेजी से लौट रहा था विक्कू का आत्मविश्वास । अब कम्बल मिले न मिले, उतनी परेशानी नहीं होगी, सावधानी के नाते फिर भी वह तंग करने वालों से बचने के लिए कम से कम रात के बारह घंटे अपनी बर्थ पर नहीं रहेगा ।
वैसे भी ‘कम्बल की जरूरत ही क्या है? इतनी गर्मी तो हो रखी है कंपार्टमेंट में।‘ जैसे वाक्य बोलकर यात्रियों को बहलाने की कोशिश कर सकता है ।
यह भी हो सकता है कुछ लोगों ने अब तक कम्बल खोला ही न हो, अपने सिरहाने रख रखा हो । वह विनम्रता से उनके कम्बल मांग कर उन लोगों के मुंह पर मार देगा जिन्हें चौबीस डिग्री टेंपरेचर में भी कम्बल की जरूरत होती है ।
अब वह कोई डरा हुआ विक्कू न था, उसके भीतर का डर भय कम हो रहा था।
ज्यों ही यह डर कम होने लगा तो महसूस हुआ कि उसे भूख लग रही है। दरअसल आज गाड़ी तीन घंटे लेट थी न, रोज वह बारह बजे पहुंचती थी तो विक्कू अपने दोस्त के पास चला जाता था, वहीं नहा-धोकर खाना खाता था और फिर वापसी के लिए दो बजे के पहले अपने कंपार्टमेंट में सवार हो जाता था। आज गाड़ी तीन बजे आई और चार बजे चल पड़ी । न विक्कू को नहाने का समय मिला, न खाने का।फिर चिन्ता में घिर गया I उसे अब भूख महसूस रही थी । शाम के छह बज रहे थे, शाम के खाने का भी वक्त हो चला था। उसे तो अब दो काम करना है, कम्बल मिल जायें तो कम्बल भी लेना है …और …और वह किसी बेंडर खाना भी लेना चाहेगा !
ट्रेन के आगरा छावनी स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म नंबर एक पर लगते-लगते विक्कू एक आम सवारी की तरह आत्मविश्वास से भरा हुआ डिब्बे के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया।
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राजनारायण बोहरे
जन्मः 20 सितम्बर 1959 को अशोकनगर म.प्र. में ।
शिक्षाः एम.ए.एल-एल.बी एवं पत्रकारिता में स्नातक।
रचनाएँ; कहानी संग्रह : 1 इज्ज़त-आबरू, 2 गोस्टा तथा अन्य कहानियाँ, 3 हादसा, 4 मेरी प्रिय कहानियाँ; उपन्यास : 1 मुखबिर, 2 अस्थान, 3 आड़ा वक्त, 4 दतिया@46; बाल उपन्यास : 1 बाली का बेटा, 2 रानी का प्रेत, 3 गढ़ी के प्रेत, 4 जादूगर जंकाल औऱ सोनपरी, 5 अंतरिक्ष में डायनासोर; बाल कहानी संग्रह : 1 आर्यावर्त्त की रोचक कथाएँ ।
‘इज्जत आबरू’ एवं ‘गोस्टा तथा अन्य कहानियाँ’ दो कथा संग्रह मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन भोपाल का बागीश्वरी पुरस्कार एवं साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश का सुभद्राकुमारी चैहान पुरस्कार।
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