कहानियों में पढा था किसी के हाथ लगा था एक चिराग जिसका नाम अलाऊद्दीन था । चिराग जादुई था, उसे धिसकर जो चाहो हासिल किया जा सकता था। एक जिन्न निकलकर आता था और पूछता था, हुक्म मेरे आका,,,,।
जब छोटी थी तो मेरे लिए मेरे माता-पिता ही वो चिराग थे, जो चाहती, मिल जाता । पर आज सोचती हूँ कि क्या ऐसा कोई चिराग होता भी है।
कल मिली थी एक छोटी-सी बच्ची, सड़क पर बैठी चुपचाप, उदास – सी। रहा नहीं गया मुझसे, मैं पूछ बैठी, “तुम कौन हो बेटी?”
मेरी सहानुभूति ने उसे थोड़ा पिधलाया, पर फिर भी वो डर रही थी।
मैंने पर्स से निकाला मैंने एक बिस्किट का पैकेट,,उसकी ओर बढाया, उसके सूखे होठों पर एक मुस्कान आ गई, उसने लगभग झपटते हुए वो पैकेट ले लिया और बिना रुके खाती चली गई।
बहुत भूखी थी, जान पाई मैं। उसे इसतरह खाते देख आँखों में आँसू आ गए। मेरे घर में भी मेरी एक छोटी बेटी है ,पर उसे खिलाना एक कठिन कार्य है,आज समझ में आया कि भूख हो, तो खिलाना नहीं पड़ता। पर हम अपने लाड़ में बच्चों को किस तरह परेशान करते हैं।
अब वो मुझसे थोड़ी आश्वस्त दिखी। तब मैंने पूछा , बेटी कौन हो तुम, तुम्हारे माता-पिता कहाँ है।
माता-पिता का नाम सुनते ही वह सुबकने लगी। मैंने उसे गोद में उठाया, चुप कराते हुए कहा, सुनो “मेरे घर में एक दोस्त है तुम्हारी, चलोगी?”
झटककर वो गोदी से उतरकर भागने को उद्धृत हुई।
मैं समझ नहीं सकी, ऐसा क्या हुआ। मैने उसे पकड़ा तब वो और जोर से रोने लगी। मैं डर गई सड़क पर कोई हंगामा ना हो जाए। उसे वहीं छोड़कर घर आ गई।
आज मैंने अपनी बेटी से खाना नहीं पूछा। करीब आधे घ॔टे बाद वो खुद ही मुझसे खाना माँगने आई और खाना देने पर चुपचाप बैठकर खाना खा लिया। एक सबक जो मैंने आज सीखा।
वो सड़क वाली बच्ची ,,,ना जाने क्या था उसकी आँखों में मैं उसे भूल नहीं पा रही थी।
शाम में अपनी बेटी के साथ टहलने निकली तो कदम अनायास उस रास्ते पर बढ़ गए।
वो बच्ची वहीं एक कोने में सो रही थी।
मेरी आहट पर जाग कर उठ बैठी। उसकी निगाहें मेरी पर्स पर थी। मैं समझ गई, सुबह से उसे और कुछ नहीं मिला। मैंने पर्स से एक चाकलेट और एक बिस्किट का पैकेट निकालकर दिया। संतुष्ट भाव से उसने जल्दी-जल्दी उसे खा लिया और मुझे धन्यवाद कहा।
मैं चौंक उठी। ये तो किसी समझदार घर की बच्ची है। शायद इसलिए भीख माँगना नहीं आता।
मैं सोच ही रही थी तभी मेरी बेटी ने उससे पूछा, तुम्हारा नाम क्या है।
“मेरा नाम गुडिया है।”
“अरे मेरा नाम भी गुडिया है।”
दोनों हँस पडी। उसका हँसना अच्छा लगा मुझे।
“गुडिया तुम यहाँ अकेली क्यों बैठी हो ,तुम्हारे कपड़े भी गन्दे हो गए है। तुम्हारे पास और कपड़े नहीं हैं क्या?”
“मम्मा, इसे अपने घर ले चलते हैं, साफ कपड़े पहनाएगें।”एक ही साँस में सवाल भी और बातें भी।
कितने भोले होते हैं ना बच्चे?
पर वो बच्ची,,,,उसके चेहरे का भोलापन कहीं धुमिल हो गया था।
माता-पिता की याद आते ही फिर से वो सुबकने लगी। मैंने उसे गोद में उठाया, आज वो भागी नहीं ,शायद थोडा विश्वास होने लगा था बालमन में, मेरी गुडिया को देखकर।
मैंने उससे कहा , “मेरा घर पास ही है, चलोगी।”
उसने हामी में सिर हिलाया।
मैं उसे लेकर घर आ गई। सबसे पहले उसे नहलाया, फिर अच्छे कपड़े पहनाए। रात खाना खाकर वो चुपचाप सो गई। सुबह उठी तो गुडिया के साथ खेलते हुए देखा।
उसके सारे हाव-भाव एक अच्छे घर का होने का संकेत दे रहे थे।
पूछने से फिर रोने ना लगे, इसलिए नहीं पूछा।
गुड़िया के स्कूल का समय हो गया था, जब उसे तैयार कर रही थी तो उसकी आँखों में भी एक हसरत दिखी।पूछा मैंने “स्कूल जाना है?”
उसने हाँ में सिर हिलाया।
“किस कक्षा में पढती हो।”
“पहली कक्षा में।”
“तुम्हारे स्कूल का नाम?”
चुप हो गई वो। जैसे मैंने कोई गलत सवाल पूछ लिया हो।मैंने भी बात बदली और कहा ठीक है, मैं गुडिया की स्कूल में बात करूँगी। गुडिया स्कूल चली गई। वो चुपचाप मेरे कामों को देखती बैठी रही। गुडिया के खिलौनों को हाथ भी नहीं लगाया। खाने के समय पर खाना भी नहीं माँगा।
तब मैंने ही पूछा, ” बेटी, तुम्हें भूख नहीं लगी?”
उसने हामी में सिर हिलाया। “फिर तुमने कहा क्यों नहीं।”
“मेरी माँ कहती थी, कभी किसी से कुछ माँगना बुरी बात है।”
“और पापा? वो क्या कहते थे,,”
“वो हर हर रोज आफिस से मेरे लिए एक खिलौना लाते थे।” उसकी सूनी आँखों में अचानक भय नज़र आने लगा।
मैंने बात का रुख बदला और कहा,”अच्छा गुडिया, तुम्हें क्या खाना पसन्द है?”
उसने चहककर कहा,” मुझे मिठाई बहुत पसन्द है और चाकलेट भी। पर माँ कहती हैं ज्यादा मीठा खाने से दाँत खराब हो जाते हैं”
“ठीक कहती हैं तुम्हारी माँ।”
“अच्छा आंटी, बम क्या होता है?”
पहली बार उसने मुझे आंटी कहा, अच्छा लगा। पर उसका सवाल?
वो ऐसा क्यूँ पूछ रही है, सोचकर काँप उठा मन। मैंने कहा “क्यों बेटी, तुम्हें किसने कहा बम के बारे में।”
नहीं, उस दिन लोगों ने कहा था बम फूटा है, मैं दुकान के अन्दर खिलौने देख रही थी, मम्मी-पापा गाडी को पार्क करके आने वाले थे, अचानक बहुत तेज आवाज हुई और फिर सड़क पर भाग-दौड़ मच गई,,,
मैंने उन्हें बहुत पुकारा, वो सामने रोड पर ही तो गाडी पार्क कर रहे थे, मुझे इस दुकान पर उतारकर पर,,,
गाडी के टुकड़े बिखरे थे और मम्मी-पापा,,,, मुझे मिले ही नहीं,,,?
कहते-कहते वो फिर फूट पड़ी,,,
दुकान वाले ने कहा बम के कारण वे मर गए।
ये बम क्या होता है आंटी ,,और मरना क्या होता है?” ,, सिसकियाँ लेते हुए वो पूछ रही थी,,
मैं हतप्रभ उसे देख रही थी।
मेरी आँखों में पिछले दिनों का बमकांड घूमने लगा, जिसका आधार कथित धर्मों का श्रेष्ट और अश्रेष्ठ होना था, क्या एक बच्ची से उसके माँ-बाप छीनना धर्म हैं ,,,किस धर्म में ऐसा लिखा है?
जाने क्यूँ आज धर्म के ठेकेदारों के प्रति मन में घृणा बढ़ने लगी।
जिस ईश्वर को देखा नहीं, जाना नहीं, उसके नाम पर ये हिंसा ,ये अमानवीयता,,,,
क्या इन्सान हैं हम,,,, खुदा के ईश्वर के कथितबन्दों के नाम पर ये कत्ले आम ,,किसतरह जायज ठहराया जा सकता है।
तभी उसने मेरी साड़ी का कोना खीचते हुए कहा ,”आंटी बोलो ना, बम क्या होता है,,और वो मेरे मम्मी-पापा को कहाँ ले गया,,,?”
उसे चुप कराने के बजाय उसके साथ आज मैं भी रोने लगी।
मुझे रोता देखकर मासूमियत से कहा उसने-“आंटी, आप मत रोओ। आगे से मैं बम के बारे में नहीं पूछूँगी।”
उसे अपने सीने से लगाकर मैंने बड़ा सुकून महसूस किया। मुझे लगा , मेरी एक नहीं दो गुड़िया है अब।
तभी गुड़िया स्कूल से आ गई।
मैनें दोनों को शाम का दूध और बिस्किट दिया, फिर पार्क में खेलकर वापस घर आ गए।
दूसरे दिन स्कूल में मैं उसे भी लेकर गई। प्रधान अध्यापक से बात की, उन्होंने उसका टेस्ट लिया ।जब हम घर आए तो अचानक वो मुझसे लिपट गई और कहा ,”मेरी मम्मी ने अलाऊद्दीन के चिराग की कहानी सुनाई थी, आप मेरे लिए वही चिराग हो।”
वो झूम उठी ,मेरे लिए उसका ये विश्वास ,,,
मैं उसे खुश देखकर बहुत प्रसन्न हुई वो मेरी गुडिया नम्बर दो बन गई थी अब ,,मेरी बेटी,,,,मेरी छोटी गुडिया,,,,।
तभी अचानक टी वी पर चलते समाचार पर नज़र पडी और सहम कर मैंने दोनों गुड़िया को गले से चिपटा लिया, दंगाईयों ने पाँच साल की बच्ची के साथ रेप,,,,,
बच्ची ने दम तोड़ दिया।
दंगाई पुरूष वर्ग का का धिनौना सच!
लगा उसके माता-पिता भरे नैनों से मेरा आभार प्रकट कर रहे हैं, उनकी गुड़िया मेरे पास थी बिल्कुल सुरक्षित।
पर मेरे मन को चिरता एक जहर भरा सवाल,,, आखिर कब तक स्त्री भोग का सामान बस?
इन्दु झुनझुनवाला