कात्यायनी हाउस के विशाल ड्राइंग रूम में चित्रकार विपिन कुमार असहज सा बैठा था। देख रहा था दुनिया के अमीरों में लिस्टेड भारतीय बिजनेसमैन सलिल जोशी की 22 मंजिला आलीशान इमारत का हाईटेक सुविधाओं से लैस बेहद खूबसूरत ड्राइंग रूम जो पहली मंजिल पर ही खास मेहमानों से मुलाकात के लिए था।
“देख रहे हैं मिस्टर विपिन कुमार, आपको इस कमरे की सूनी दीवारों के लिए चित्र बनाने हैं ।”
सलिल जोशी के सचिव रूपसिंह ने कहा और फिर चित्रों की लंबाई, चौड़ाई, रंग आदि के बारे में बताने लगे ।
“जी ,रंग तो चित्र के अनुसार लगेंगे। आप बताएं कैसे चित्र बनाने हैं ।”विपिन कुमार ने कहा और कहते ही होठों के ऊपर के झलक आए पसीने को उंगलियों से दबाया ।उसे पहली बार लगा कि वह राजसी ठाठ बाट के लायक नहीं ।उसका छोटा सा स्टूडियो है ठाकुरद्वार में। जहाँ वह कुछ अपने मन के और कुछ ऑर्डर के चित्र बनाया करता है ।मन से बनाए चित्रों की प्रदर्शनीयां लग चुकी हैं विभिन्न शहरों और जहांगीर आर्ट गैलरी में ।महानगर के बड़े चित्रकारों में उसका नाम शुमार है। “जोशी सर का और उनके पिता का बड़ा सा तैलचित्र बनेगा इस पूर्व की दीवार के लिए।पश्चिम की दीवार के लिए आप कोलाज बनाइए ।दक्षिण की दीवार के लिए प्राकृतिक दृश्य और उत्तर की दीवार पर कुछ नहीं। वह सूनी रहेगी। उस पर रात्रि के मध्यम आलोक वाले लैंप शेड की परछाई रहेगी। आपको पता है परछाईयां कितना कुछ कहती हैं।”
विपिन कुमार ने रूप सिंह के चेहरे की ओर देखा। वहां एक सपाट सा वृत्त था जो रूप सिंह के व्यक्तित्व को रहस्यमय बना रहा था।
“जी बेहतर ।”
“शर्त यह, चित्र आप यहीं बनाएंगे। कैनवास ,ब्रश रंग इत्यादि जिसकी भी आवश्यकता होगी हम उपलब्ध कराएंगे।” कहते हुए रूपसिंह ने विपिन कुमार को एक फाइल दी। फाइल में सलिल जोशी ,उनके पिता दिनकर जोशी की तस्वीरें थीं। पश्चिम और दक्षिण की दीवारों के लिए कुछ चित्रों के नमूने और तयशुदा मेहनताने की आधी रकम का चैक।
“आपके मेहनताने की बाकी रकम काम हो जाने के बाद।”
रूपसिंह उसे गेट तक छोड़ने आए ।अपनी बाइक स्टार्ट करने से पहले उसने हेलमेट लगाते हुए कात्यायनी हाउस की भव्य इमारत को देखा फिर सब कुछ पीला पीला नजर आया। जैसे साँझ फूली हो।
कात्यायनी हाउस के निर्माण के समय ही यह इमारत चर्चा में थी। मुंबई की आलीशान इमारतों में से एक 22 मंजिला इमारत जो केवल सलिल जोशी के परिवार का निवास है। हाईटेक सुविधाओं से युक्त इस इमारत में सलिल जोशी के डेढ़ सौ सेवक हैं जो दिन-रात इमारत के कमरों की देखभाल और परिवार की सेवा में लगे रहते हैं ।इस इमारत की पांचवीं मंजिल के गैराज में सलिल जोशी की विभिन्न मॉडलों की अस्सी कारें पार्क की जाती हैं। स्विमिंग पूल ,बॉलरूम, संगीत कक्ष, हेलीपैड जो निजी हेलीकॉप्टर के लिए है ।मंदिर, बगीचे, हेल्थ सेंटर और 50 दर्शकों वाला होम थिएटर है ।इमारत से कुछ ही दूरी पर समुद्र तट है। तट का एक हिस्सा जोशी परिवार का निजी है जिसमें आम नागरिक नहीं जा सकते। केवल जोशी परिवार ही उस तट को अपने लिए इस्तेमाल करते हैं।
कात्यायनी हाउस से विपिन कुमार स्टूडियो न जाकर सीधे जोगेश्वरी स्थित अपने फ्लैट में आया। बरसों पहले माँ और बहन भी साथ रहती थीं। माँ अब इस दुनिया में नहीं हैं और बहन का विवाह हो गया।
पलंग पर बैठ कर वह आराम से फाइल खोलकर तस्वीरें देखने लगा। जाने क्यों आज रमा बहुत याद आ रही थी। उसकी शादी को 10 बरस हो गए लेकिन वह आज भी उसके दिलो-दिमाग पर छाई है। रमा करोड़पति पिता की इकलौती बेटी थी। न प्यार का इजहार, न वादे,न कसमें ।न जाने कैसे वह उसके प्यार में दीवाना होता गया। जब वह कॉलेज जाने को घर से निकलती तो विपिन उसकी कार के पीछे बाइक दौड़ा देता। कार से उतरते हुए उसकी एक झलक पाने को वह बेताब रहता ।उसी कॉलेज में उसने भी दाखिला ले लिया जहाँ रमा पढ़ती थी।अब तो सारा दिन रमा का खूबसूरत चेहरा होता और वह। उस दिन रमा की कार ट्रैफिक की वजह से लेट आई। कॉलेज के बगीचे की बेंच पर वह कार की प्रतीक्षा कर रही थी।
” हेलो, कैसी हो रमा?”
रमा अचकचा कर उठी-
” तुम क्यों मेरा पीछा करते हो विपिन ?”
“इतना भी नहीं जानतीं कि कोई किसी का पीछा क्यों करता है!
इस एहसास को प्यार करने वाले ही जान सकते हैं।”
“लेकिन मेरे मन में ऐसा कोई एहसास नहीं है विपिन। जिंदगी के मेरे उद्देश्य दूसरे हैं ।उसमें प्यार के लिए कोई जगह नहीं। चलती हूं, मेरी कार आ गई है ।
वह झटके से उठी और कार में जा बैठी।
दिल टूट जाना चाहिए था विपिन का। पर नहीं टूटा ।अगर दिल टूट जाता तो फिर बात वही ख़त्म हो जाती। पर उसे बात खत्म नहीं करनी थी। प्रयास जारी रखना था।
मूसलाधार बारिश से मुंबई में बाढ़ आ गई। तमाम निचले इलाके पानी में डूब गए ।विपिन कुमार की बाइक भी पार्किंग से जाने कहाँ बह गई ।
वह कॉलेज की छत पर चढ़ गया। रात भर बारिश होती रही। रात भर वह और उसके अन्य साथी भूखे प्यासे वहीं अटके रहे। फोन भी काम नहीं कर रहा था जो वह माँ को सूचना देता कि वह सुरक्षित है। और कॉलेज की छत पर है ।सुबह 9 बजे पानी सड़कों पर से उतरा। वह भी नीचे उतर आया। कपड़े भीगे होने से वह काँप रहा था ।उसे लग रहा था बुखार अब चढ़ने ही वाला है। बाइक तो कहीं दिखी नहीं रमा की कार जरूर दिखी। वह सभी के लिए नाश्ते के पैकेट और थर्मस में चाय लेकर आई थी। “नाश्ता कर लो सब। तुम सबको घर भी पहुंचा दूंगी ।”
सभी भूखे हो रहे थे। पार्किंग में खड़े खड़े सबने चाय नाश्ता किया। और रमा की कार में आ बैठे। बारिश थमी नहीं थी लेकिन कहर भी नहीं ढा रही थी ।सबसे आखिर में विपिन का घर आया। उसने उतरते हुए रमा से हाथ मिला कर धन्यवाद कहना चाहा पर रमा ने हाथ नहीं मिलाया। पर्स से दवा निकाल कर उसे देते हुए कहा-
“दवा लेकर आराम करना। रात भर भीगे रहने के कारण इंफेक्शन से बचे रहोगे ।”और उसने कार स्टार्ट कर दी।
विपिन इसी बात को लेकर खुश हो रहा था कि भीगे तो सभी साथी थे ।पर दवा केवल विपिन को ही दी रमा ने ।निश्चय ही प्यार का अंकुर फूट चुका है उसके मन में।
अब विपिन के दो लक्ष्य थे ।कॉलेज की पढ़ाई के साथ चित्रकला में दक्षता और रमा के प्यार को हासिल करना ।
कितने ही ऐसे वाकये हुए जब रमा ने उसके बनाए चित्रों पर अपनी राय दी। उसके करियर पर सुझाव दिए पर नहीं मानी तो यह कि वह भी उसे प्यार करती है ।लेकिन विपिन समझ गया कि रामा उसे चाहने लगी है। भले ही स्वीकार न करे।
“चलो वर्सोवा तट पर बस आधे घंटे तक बैठना ।मैं तुम्हारा पोर्टेड बना लूंगा ।”
रमा ने इंकार नहीं किया ।जब वे दोनों वर्सोवा तट पर आए थे तो सूर्य ढला नहीं था। लेकिन पोट्रेट के पूरा होते होते सूर्य ढल गया। सुरमई शाम सागर और सागर तट पर बिखर गई ।
“मेरी शादी लंदन में तय हो गई है। एक बिजनेसमैन से।”
वह सन्न रह गया। पल भर को लगा शरीर बेजान हो गया है।
” यह कैसे हो सकता है रमा? यह मैं क्या सुन रहा हूँ! क्या तुम मुझे आजमा रही हो ?”
“शादी 2 महीने बाद बेंगलुरु से होगी। ”
“ओह तुम्हारी इस सूचना से इस खूबसूरत शाम के तमाम लम्हे मेरे हाथ से फिसल गए ।”
“यह पोर्टेड मुझे दे दो ।”
“क्यों ,यह तो मेरी अमानत है।” “यकीन करो संभाल कर रखूंगी।” कहते हुए उसने उसके हाथ से पोर्टेड लेना चाहा लेकिन ले न सकी। विपिन के हाथों की पकड़ से पोर्टेड छूट न सका ।
पोर्टेड अब भी विपिन के पास सुरक्षित रखा है ।अब जब रमा ब्याह कर लंदन चली गई ,कॉलेज के सुनहरे दिन भी वीरानियों में बदल गए ।अपनी उदासी और हताशा को वह चित्रों में उतारता….. लिहाजा वह बुझता गया ,चित्र निखरते गए। लेकिन चित्रकारी ने उसे संभाल लिया। उसे जीने की वजह दे दी ।रमा को वह इस कदर प्यार करेगा कि लंबे-लंबे 10 वर्षों के गुजर जाने के बाद भी वह ज्यों की त्यों उसके दिल में ,उसके एहसासों में, उसकी हर साँस में मौजूद रहेगी उसने सोचा न था। वह उसे बेवफा समझ कर भुला भी तो नहीं सकता क्योंकि उसने कभी विपिन से नहीं कहा कि वह उससे प्यार करती है। यह कैसी डूब जाने की, तबाह हो जाने की जिद थी कि वह उबर ही नहीं पाया अब तक।
अब वह चित्रकार के रूप में मशहूर हो गया है। अविवाहित एकाकी जीवन जीता हुआ। शायद माँ भी इसी सदमे से चली गईं। माँ ने कभी उससे नहीं पूछा कि वह शादी क्यों नहीं कर रहा है। वह अंदर ही अंदर घुलती रही। आज तक विपिन माँ की मृत्यु के लिए खुद को दोषी मानता है। माँ के अस्थिपुष्प लेकर वह हरिद्वार गया था। वहाँ से जल्दी नहीं लौटा ।ऋषिकेश ,उत्तरकाशी चला गया था। वहाँ के साधुओं के आश्रम देखे तो मन हुआ वह भी वैराग्य ले ले पर किससे वैराग्य लेगा ।रमा तो हर वक्त उसकी सोच में बसी रहती है।
मुंबई लौटा तो पूरा ध्यान चित्रकारी में ही लगा दिया। ठाकुरद्वार में किराए का स्टूडियो ले लिया। सुबह 10 से शाम 4 बजे तक कॉलेज में अध्यापन करता और 6 बजे से रात 9 बजे तक स्टूडियो में रहता। 10 बजे घर लौटते हुए देखता ।हाथठेलों पर दिनभर की मजदूरी से थके, अखबार बिछाए चैन की नींद सोते मजदूरों को ।उसे तो क्वायर के मोटे गद्दे पर भी रात दो दो बजे तक करवटें ही बदलनी पड़तीं। गहन चिंतन से उसने पाया कि मजदूर अखबार बिछाते हैं पढ़ते नहीं इसलिए चैन की नींद सोते हैं।
***
कात्यायनी हाउस में उसने दो दिन बाद से पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया। इस काम के लिए उसे तीसरी मंजिल पर समुद्र की ओर खुलने वाली बालकनी का कमरा दिया गया। आते ही पहले चाय ,नाश्ता, दूध ,फल फिर काम शुरु। रूपसिंह ने पूछा -“पेंटिंग से संबंधित सारी सामग्री आपके सामने है। कुछ और की जरूरत हो तो बताना ।लंच कितने बजे करेंगे?”
” लंच नहीं। लंच के समय आधे घंटे का ब्रेक देकर सिर्फ कॉफी लूंगा और चित्रों को कांसंट्रेट करूंगा।”
” अरे लंच क्यों नहीं?”
“चित्रकारी के उसूल।” दोनों हँसने लगे। रूपसिंह ने नाश्ते में विपिन का साथ दिया ।उसके बारे में दीगर बातें भी पूछता रहा ।
“ठीक है ,मैं चलता हूँ।कुछ जरूरत हो तो घंटी बजा देना।”
सलिल जोशी का चित्र चार दिन में बनकर पूरा हुआ ।सलिल जोशी कमरे में खुद आए देखने। चित्र का सब तरफ से मुआयना किया। रंगों के मेल को देख वे खिल पड़े- “लाजवाब ,गजब के चित्रकार हैं आप विपिन कुमार ।”
सलिल जोशी के आने से कमरा गुलाबों की खुशियों से भर गया था। कीमती कोट ,पेंट, टाई ।हाथ की सभी उंगलियों में हीरे पन्ने जवाहरात की अंगूठियां ।उम्र ज्यादा नहीं लग रही थी। उससे दो चार साल ही बड़े होंगे।
” रूपसिंह यह चित्र पूर्व की दीवार पर लगाए जाएगा न? इस के बाजू में बापू जी का चित्र होगा ।”
“जी बता दिया है। कल से बापू जी के चित्र पर काम शुरू होगा।”
रूपसिंह ने बताया।
” बेहतर ,काम जारी रखिए विपिन कुमार ।आप के हुनर के हम कायल हो गए।”
“जी शुक्रिया, पारखी नजर है आपकी।”
सलिल जोशी हँसते हुए चले गए। विपिन कुमार बापूजी के चित्र को निहारता रहा। ठेठ गुजराती वेशभूषा, सफेद धोती – कुर्ता, काली बंडी, सिर पर पगड़ी, साँवला रँग,चमकती आँखें ।कहीं से भी अमीरी की झलक नहीं ।रूपसिंह समझ गया कि विपिन कुमार इतनी देर से चित्र क्यों देख रहा है।
” पड़ गए न भ्रम में ? बापू जी अहमदाबाद की बहुत साधारण मिडिल क्लास फैमिली से बिलॉन्ग करते हैं ।वह तो हमारे जोशी सर की काबलियत है कि आज दुनिया के अमीरों में उनकी गिनती है।”
” जी खुश किस्मत हैं वे । तदबीर के साथ तकदीर भी साथ दे तो आदमी चमक उठता है ।”
“सही फरमाया जनाब।”
“कल आज ही के वक्त ।कुछ ब्रश चाहिए होंगे। आप कहें तो मैं खरीद लाऊँ।”
“लिखकर दें ।हम अरेंज करवा देंगे।”
रूपसिंह के वाक्यों में व्यापारी बू थी।
कात्यायनी हाउस से वह समुद्र तट की ओर चला गया ।शाम को सैर सपाटे के लिए निकले लोगों की चहल-पहल से भरा था तट। वह नारियल के पेड़ के नीचे खड़ा हो समुद्र की लहरों को और लहरों पर अस्त होते सूर्य को देखता रहा। धीरे-धीरे सब कुछ अँधेरे में खो गया। वह भी, समुद्री भी ,सूरज भी। थोड़ी देर में मरीन लाइंस स्ट्रीट की बत्तियां जगमगा उठीं।अंधेरे के साथ रोशनी का मिलन ।एक यथार्थ….. उदासी के संग सुकून देता सा।
एक महीने में विपिन कुमार के बनाए चित्रों से कात्यायनी हाउस का विशाल ड्रॉइंग रूम सज उठा। उस दिन सलिल जोशी ने परिवार के साथ पार्टी में शामिल होने को आमंत्रित किया विपिन कुमार को। उनका इरादा अपने बैडरूम की दीवारों के लिए भी चित्रकारी कराने का था ।
“आइए विपिन कुमार जी ,आपने तो ड्राइंग रूम को अनमोल बना दिया।”
तभी चित्र देख रही महिला पलटी। उसने बेहद मुलायम आवाज में कहा-”
“सलिल लाजवाब चित्रकारी, कमाल का कॉन्बिनेशन रंगों का। चौक पड़ा विपिन कुमार ।यह तो रमा है ।हां रमा ही है।
” मिलिए मेरी अर्धांगिनी रमा जोशी से।”
रमा ने चेहरे पर किसी भी तरह का भाव लाए बिना मुस्कुराते हुए अभिवादन किया –
“नमस्कार विपिन कुमार जी ,अद्भुत चित्रकारी है आपकी।” दस सालों में बिल्कुल भी तो नहीं बदली रमा ।जैसे कल आज होकर सामने हो।
अंगारों पर जमी परत दरकने लगी,चटकने लगी, उड़ने लगी। वह सुबह के इंतजार में रात भर जागता। आँखे जलन करती पर वह बिला नागा चित्र बनाने कात्यायिनी हाउस आता। कभी जब रूपसिंह ऑफिस में बिजी होता तो रमा आती चित्रों का मुआयना करने ।नाश्ता, चाय स्वयं देती विपिन कुमार को। एक दिन मौका पाकर पूछा उसने-
“क्या तुमने मेरे कारण अविवाहित रहने का व्रत लिया है?”
“तुम मेरे दिल से गई कब हो रमा जो दूसरी आ पाती।”
“यह भावुकता है ,जिंदगी की सच्चाई से कोसों दूर ।”
“तुम तो व्यवहारिक हो। दुनिया बसा ली तुमने ।पहले भी अमीर थीं अब और अमीर हो गईं।”
रमा अपने सिरफिरे महबूब को देखती रही। उसके दिल में हलचल सी होने लगी। वह घबरा गई। विपिन कुमार आहिस्ता बढ़ रहा था उसके दिल की ओर।
आखिर क्यों ……जिंदगी में सब कुछ तो मिला रमा को। माँ होने के सुख की अनुभूति से भी भरी रही। राजकुमार सा प्यारा बेटा, राजकुमारी सी उसकी दुलारी बेटी लेकिन, इस लेकिन ने उसे चैन से जीने न दिया ,इस लेकिन में सलिल जोशी से प्यार न मिलने का दर्द समाया है। इस लेकिन में सलिल जोशी जैसे जड़,क्रूर ,रुपयों के लिए कुछ भी करने को तत्पर पत्थर दिल पुरुष को उम्र भर झेलने की मजबूरी समाई है ।सुना है मिडिल क्लास की गरीबी से अमीर होने के जुनून में सलिल जोशी ने बिजनेस को नुकसान पहुंचाने वालों के नाम सुपारी भी दी है दो-तीन बार।
कहने को खुली हवा है इस कात्यायिनी हाउस में पर रमा का तो दम ही घुटता रहता है इस खुली हवा में भी ।यह भी सुना है कि कात्यायनी ने यानी उसकी सास ने भी सलिल जोशी के कारनामों को सुन सुन कर ही दम तोड़ा है। बापूजी तो खामोश ही हो गए हैं। वह सब कुछ सुनकर भी अनसुना करते हैं। सब कुछ देख कर भी अनदेखा। अपने में गुम ,किताबों में खोए।
रमा को पछतावा है विपिन कुमार के प्यार को ठुकराने का।
डेढ़ महीनों में विपिन कुमार ने तयशुदा चित्रों के साथ रमा के भी कई चित्र कई मुद्राओं में बनाए। वह 45 वाँ दिन था जब वह रमा के चित्रों को सहेज कर अपने बैग में रख रहा था कि रूपसिंह आ गया- “ये कौन से चित्र हैं।”
“ये मेरे पर्सनल चित्र हैं।यहाँ के लिए बनाए चित्रों को मैं आपको दे चुका हूँ।” विपिन कुमार चित्रों को बैग में रख चुका था ।
“लेकिन आप इन चित्रों को यहाँ लाए क्यों ?यहां तो आपको खाली हाथ आना था। बेहतर है आप चित्र मुझे दिखा दें। यह कात्यायनी हाउस की गोपनीयता का सवाल है।”
“आप क्या समझ रहे हैं कि मैं इस विशाल भवन की गोपनीयता जान चुका हूँ जो मैं उसको सरेआम करूंगा?”
” बहस मत करिए विपिन कुमार जी, आप यहाँ से केवल अपना खाली बैग ले जा सकते हैं।”
तभी रमा कमरे में दाखिल हुई। पीछे-पीछे चाय नाश्ते की ट्रे लिए नौकर। मामले की गंभीरता समझ कर उसने रूपसिंह से कहा –
“ये चित्र मैंने ही मंगवाए थे देखने के लिए। विपिन जी ,आप नाश्ता कर लें। वैसे भी आपको काफी देर हो चुकी है।”
मन तो नहीं था पर रमा के आग्रह पर उसने नाश्ता किया। रूपसिंह थोड़ी देर बाद चला गया।
” तुम मेरे चित्रों को नष्ट कर देना। तुम नहीं जानते सलिल जोशी को।”
रमा के स्वर में घबराहट थी।
” चिंता मत करो रमा ,तुम्हें प्यार किया है ।आशिक मरने से नहीं डरते।”
“अब तुम जाओ विपिन। अपना ख्याल रखना।”
रूप सिंह गया नहीं था ।दूसरे कमरे से उसने सब कुछ सुन लिया था।
***
हफ्ते भर बाद पूर्णमासी थी। कोजागिरी पूर्णिमा। जब कृष्ण ने गोपियों संग महारास किया था। सलिल जोशी ने विपिन कुमार को दावत दी-” समुद्र की लहरों पर बोटिंग करेंगे ।महारास मनाएंगे। आइए आप भी। अब तो आप हमारे परिवार के सदस्य जैसे हैं।”
विपिन कुमार रमा के चित्रों में रंग भर रहा था ।उन रंगों के इंद्रजाल में वह खोता चला गया। चित्रों को बैग में रखकर वह घर की ओर लौट रहा था पैदल ही ।बाइक सर्विसिंग के लिए गई थी। इसलिए चर्चगेट से जोगेश्वरी तक लोकल ट्रेन से जाने का सोच कर वह अपने स्टूडियो से पैदल ही चर्चगेट जा रहा था ।रूपसिंह की कार करीब आकर रुकी-
“चलिए, घर जाकर क्या करिएगा। सीधे चलते हैं समुद्र तट की ओर।” वह कार में आ बैठा ।पूर्व दिशा में खूब बड़ा चाँद निकल आया था। लेकिन अभी उसमें रोशनी कम थी फीका फीका उदास लग रहा था। जैसे चमकने की हिम्मत जुटा रहा हो।
वर्सोवा समुद्र तट के करीब रूपसिंह ने कार रोकी ।रेतीले तट पर रमा और सलिल जोशी खड़े थे।
” चलिए नौका पर चलते हैं ।”
कहते हुए ,सलिल जोशी ने तट पर बंधी नौका की ओर कदम बढ़ाए। पीली साड़ी में रमा बेहद खूबसूरत लग रही थी ।सलिल जोशी की शर्ट का रंग भी पीला था ।चाँद भी पहले पीला सा दिखा फिर चमकने लगा। समुद्र की लहरें रुपहली हो उठीं।आज के दिन तो लहरें चाँद को छूने की कोशिश में ज्वार बन जाती हैं ।आज वह भी अपनी महबूबा के साथ है। खुद भी ज्वार बना हुआ ।
“हम इस नौका में बैठकर सैर करेंगे!” रमा ने आश्चर्य से नौका को देखते हुए कहा।
” हाँ क्यों नहीं। इसका भी अपना आनंद है ।”सलिल जोशी रमा का हाथ पकड़कर नौका में ले आए। और मल्लाह को नौका चलाने का इशारा किया। उमड़ती लहरों पर डगमगाती नौका बढ़ चली। रमा के लिए संतुलन करना मुश्किल हो रहा था ।उसने सलिल जोशी का हाथ कस कर पकड़ लिया।
” मुझे बहुत डर लग रहा है। गिर गई तो तैरना भी नहीं आता ।”
“हम साथ में है किसलिए ।”
सलिल जोशी ने कांईयांपन से रमा को देखा। रमा को उनकी आँखों में तूफान मंडराता दिखा।
” खीर खिलाइए रूपसिंह। खीर खाते हुए बोटिंग का आनंद दुगना हो जाएगा।”
नौका समुद्र में काफी आगे बढ़ गई थी। रूपसिंह अपनी जगह खड़े होकर विपिन को भी खड़ा होने का संकेत करने लगा।
” खड़े होकर देखिए चाँद का जलवा। ऐसा लग रहा है जैसे हम लहरों पर अपने पैरों चल रहे हैं। आहा ,अनुपम दृश्य ।
विपिन के खड़े होते ही सलिल जोशी ने आग्नेय नेत्रों से रमा को देखते हुए कहा-” नजदीक जाओ विपिन के ।उसे धक्का दो, गिरा दो समुद्र में ।”
रमा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।
” क्या कह रहे हैं आप!”
“जैसा कह रहा हूँ करो। “कहते हुए सलिल जोशी ने रमा को विपिन कुमार की ओर ढकेला। नौका तेजी से डगमगाई। संतुलन खोते हुए रमा समुद्र में जा गिरी। विपिन उसे बचाने को कूदा लेकिन तब तक सलिल जोशी ने रमा को पानी में से नौका पर खींच लिया था।विपिन कुमार को लहरें खींच ले गईं समुद्र तल की ओर ।
रमा बेहोश थी। होश में आते ही रमा ने खुद को अस्पताल में पाया। सलिल जोशी पास ही बैठे थे।
” अब कैसी हो?”
” मर जाने देते मुझे भी।” वह रो पड़ी।
” तुम्हें मुझ से बेवफाई की आँच में जिंदगी भर सुलगने के लिए जिंदा रखा है।” सलिल जोशी ने कठोरता से कहा।
सुबह मल्लाह मुँह बंद रखने के लिए मिली भारी रकम की खुशी में यह सोच कर कि आज मछलियां पकड़ने समुद्र में नहीं जाएगा। नौका को तट पर अच्छी तरह बांधकर लौट आएगा जब तट पर आया तो देखा विपिन कुमार की लाश रेतीले तट पर पड़ी है ।और कंधे से चिपके बैग में से निकलकर रमा के चित्र इधर-उधर बिखरे हुए थे ।
मोहब्बत अब पोशीदा नहीं थी।
संतोष श्रीवास्तव
कहानी,उपन्यास,कविता,स्त्री विमर्श,संस्मरण,लघुकथा,साक्षात्कार,आत्मकथा की अब तक 22 किताबे प्रकाशित।
देश विदेश के मिलाकर कुल 23 पुरस्कार मिल चुके है।
राजस्थान विश्वविद्यालय से पीएचडी की मानद उपाधि। “मुझे जन्म दो माँ” स्त्री के विभिन्न पहलुओं पर आधारित पुस्तक रिफरेंस बुक के रुप में विभिन्न विश्वविद्यालयों में सम्मिलित।
संतोष जी की 6 पुस्तकों पर मुम्बई विश्वविद्यालय,एस एन डी टी महिला महाविद्यालय तथा डॉ आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा से एम फिल हो चुका है ।
राज ऋषि भर्तहरि मत्स्य विश्वविद्यालय अलवर ,लखनऊ विश्वविद्यालय, यवतमाल से संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय पुणे, सांगली तथा पटियाला से संतोष जी के साहित्य पर पीएचडी
यात्रा संस्मरण “खुशहाली का देश भूटान” ,cbse बोर्ड के सेवंथ क्लास में शामिल जो न केवल भारत बल्कि विश्व के 50 देशों में पढ़ाया जा रहा है ,
कहानी ” एक मुट्ठी आकाश “SRM विश्वविद्यालय चैन्नई में बी.ए. के कोर्स में ,लघुकथाएं महाराष्ट्र राज्य के 11वीं की बालभारती में, सरल हिंदी के कोर्स में पढ़ाई जाने वाली पुस्तक हिंदी सरोज में कहानी सम्मिलित जो महाराष्ट्र गोवा और कर्नाटक के 32 कॉलेजों में पढ़ाई जाती है
संतोष की कहानियों ,लघुकथाओं, और उपन्यासों के अंग्रेजी, मराठी, सिंधी, पंजाबी, गुजराती, तेलुगू, मलयालम ,बांग्ला, ओड़िया, नेपाली, उर्दू ,छत्तीसगढ़ी भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं।
राही सहयोग संस्थान रैंकिंग 2015 से अब तक वर्तमान में विश्व के टॉप 100 हिंदी लेखक लेखिकाओं में नाम शामिल।
भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा विश्व भर के प्रकाशन संस्थानों को शोध एवं तकनीकी प्रयोग( इलेक्ट्रॉनिक्स )हेतु देश की उच्चस्तरीय पुस्तकों के अंतर्गत “मालवगढ़ की मालविका ” उपन्यास का चयन
केंद्रीय अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार मित्रता संघ की मनोनीत सदस्य । जिसके अंतर्गत 26 देशो की प्रतिनिधि के तौर पर हिंदी के प्रचार,प्रसार के लिए यात्रा ।
वर्ल्ड लिटरेरी फोरम फॉर पीस एंड ह्यूमन राइट्स, भूटान ने संतोष को
इंटरनेशनल एंबेसेडर ऑफ पीस का स्टेटस दिया है।
हेमंत स्मृति कविता सम्मान ,विजय वर्मा कथा सम्मान एवं श्रीमती सुरतवंती वर्मा समाज सेवा पुरस्कार का प्रति वर्ष समारोह पूर्वक आयोजन, जिसके अंतर्गत मानधन एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किया जाता है।
48 वर्ष मुंबई में निवास के बाद अब भोपाल में स्थाई निवास
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