कहानी समकालीनः अपशगुन-उषा किरण शुक्ला

अपने मित्र राघव के विवाह में अनिल देर से पहुँचा। प्यास से उसका गला इतनी देर से सूख रहा था कि गले में काँटे गड़ रहे थे। वह सोच रहा था कि लोग इतनी गर्मी में शादी क्यों करते हैं। जब वह पहुँचा तो द्वारचार हो रहा था। सारे बराती नाश्ता – पानी करके द्वारचार में चले गये थे। जनवासे में स्वागत करने और पानी पूछने वाला कोई नहीं था। वह भी द्वारचार में चला गया और एकदम घर के बरामदे के सामने जाकर खड़ा हो गया। वहाँ उसने एक लड़की को खड़े देखा जो बार – बार अंदर – बाहर आ – जा रही थी। उसने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहन रखा था जो शायद दिन भर काम करने के कारण सिकुड़ गया था।बाल बिखर गये थे। दुपट्टा एक तरफ कन्धे पर रखा था, दूसरी तरफ एड़ी तक लटक रहा था। वह बहुत सुन्दर थी, गेहुँआ रंग था पर चेहरे की बनावट इतनी सुन्दर थी कि बरबस निगाहें उसके चेहरे से हटना ही नहीं चाहती थी। एक अतिरिक्त गम्भीरता और मासूमियत उसके चेहरे का चुम्बकीय आकर्षण बढ़ा रही थी। तभी एक प्रौढ़ व्यक्ति आये और उससे कुछ माँगा। उसने कन्धे से लटके पर्स में से रुपये की एक गड्डी निकाल कर थमा दी। वे पैसा लेकर चले गये तो अनिल ने हिम्मत की और बरामदे के नीचे से ही खड़ा होकर उस लड़की से बोला, ‘ जी मैं बरातियों में से हूँ। थोड़ा देर से पहुँचा हूँ तो सीधे यहीं आ गया हूँ। बहुत प्यास लगी है क्या थोड़ा सा पानी मिल सकता है?’
लड़की कुछ नहीं बोली, चुपचाप घर के अन्दर चली गयी। दो मिनट के बाद ही बाहर आयी तो एक हाथ मे ऊपर – नीचे दो दोने रखे थे दूसरे हाथ मे जग में पानी था और काँख के नीचे गिलास दबा था। उसने अनिल को सिर के इशारे से बरामदे में आने को कहा। वह बरामदे में आ गया तो वह उसे बरामदे में बने कमरे में ले गयी और वहाँ पड़ी चारपाई पर बैठने को कहा। जब वह चारपाई पर बैठ गया तो उसने दोने उसके हाथ मे थमा दिये। दोने वाला हाथ खाली हुआ तो उसने काँख के नीचे से गिलास निकाला और उसे भरकर पास के स्टूल पर रख दिया, पानी का जग भी स्टूल पर रखकर बोली, ‘ आप पानी पी लें, मैं अभी चाय भिजवा दे रही हूँ।’
वह जल्दी – जल्दी चली गयी। दोनो में मिठाई और नमकीन था। बहुत अच्छी मिठाई और बहुत अच्छी नमकीन भी। उसने मिठाई खाकर तीन गिलास पानी पिया तो उसकी जान में जान आई। तब तक एक लड़का चाय ले आया। तुरन्त की बनी बहुत अच्छी चाय। उसने नमकीन खाई और चाय पी ली। फिर बाहर चला गया। द्वारचार समाप्त हो रहा था। वह भी बरातियों के साथ जनवासे में चला गया। राघव उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। और उसे अपने साथ ही रहने को कहा।
जयमाल के समय सब लोग दुल्हन के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी दुल्हन आती दिखाई दी। वही लड़की उसे लेकर आ रही थी मगर अब पहचानी ही नहीं जा रही थी। सुनहरी कढ़ाई की क्रीम कलर की साड़ी और मोतियों का बहुत सुन्दर सेट पहने वह आसमान से उतरी अप्सरा लग रही थी। धीरे – धीरे चलती जब वह स्टेज पर पहुँची तो बहुत से लोगों की निगाहें दुल्हन से अधिक उसके उसके चेहरे पर टिकी थीं। अनिल भी उसे ही देख रहा था। वह भी स्टेज पर गया था। कुछ देर रहा भी था पर बात करने का कोई मौका नहीं था।
जब शादी के लिये राघव मण्डप में गया तो और दो दोस्तों के साथ अनिल को भी ले गया। वहाँ उसने देखा कि दुल्हन की सहेलियों और गाँव की महिलाओं के बीच मे वह भी बैठी थी पर उसे बैठने को कहाँ मिल रहा था? कोई कहता, दूध कहाँ है? किसी को चीनी चाहिये थी और किसी को पैसे। किसी को पाँव पूजने के लिये बरतन चाहिये था और किसी को जेवर। किसी ने उससे पूछा कि अभी लगभग सौ लोग खाने को बाकी हैं हो जाएगा? उसने बताया कि हो जायेगा। किसी ने पूछा कि बैने की मिठाई पैक हुई या नहीं। उसने बताया हो गयी है और कमरे में रखी है। हरदम उठना – बैठना, आना – जाना। दुल्हन की सहेलियाँ गाने – बजाने और हँसी – मज़ाक में व्यस्त थी पर उसे इन सब के लिये समय ही नहीं था। सुबह विदाई के समय बरामदे के खंभे के सहारे खड़ी होकर वह भी आँसू बहा रही थी
विदाई के बाद वह भी बारात के साथ आ गया पर वह लड़की नहीं भूल पा रही थी। उसका दिल उसके हाथ से निकल गया था। सुबह – शाम, रात और दिन उसके ख्यालों में बसी रहती थी। आखिर वह राघव के घर गया, उसकी पत्नी से मिला। थोड़ी देर सामान्य बातचीत के बाद बोला, ‘ अच्छा भाभी, वह लड़की कौन थी जो आपको लेकर जयमाल के स्टेज पर गयी थी?’
भाभी ने हँसकर कहा,’ क्या बात है भैया, पसन्द आ गयी क्या?’
अनिल ने कहा,’ नही भाभी , बताइये न।’
भाभी बोली,’ वह मेरी बचपन की सहेली रमा है, लेकिन आप उसका ख्याल छोड़ दीजिये। बात बनेगी नहीं।’
अनिल ने हैरानी से पूछा,’ क्यों भाभी क्या बात है?’
भाभी ने कहा,’ उसने ब्याह न करने का संकल्प कर लिया है।’
अनिल ने पूछा,’ ऐसी भी क्या बात है भाभी? ‘
भाभी ने कहा,’ जब उसने बीए पास किया था तभी उसकी शादी तय हुयी थी पर शादी से पहले ही उसकी होने वाली ससुराल में एक सत्तर साल के बुजुर्ग की मृत्यु हो गयी। तो उन लोगों ने रिश्ता तोड़ दिया। एक साल बाद जब दुबारा शादी तय हुई तो उसकी ससुराल में दो लड़के मोटरसाइकिल से एक्सीडेंट में घायल हो गये और उन लोगों ने रिश्ता तोड़ दिया। तीसरी बार जब रिश्ता तय हुआ तो होने वाली सास को कैंसर की बीमारी थी और शादी से पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी। फ़िर उन लोगों ने रिश्ता तोड़ दिया। रमा के ऊपर अपशकुनी होने का ठप्पा लग गया। उसने खुद ही शादी न करने का फैसला कर लिया।’
अनिल फिर हैरान हो गया। बोला,’ लेकिन भाभी इन सब बातों में रमा की क्या ग़लती थी?’
भाभी बोलीं,’ हाँ उसकी तो कोई गलती नहीं थी। पर लोगों की सोच को क्या कहा जाय? उसके बाद रमा अपनी मेहनत से पढ़कर बैंक अधिकारी बन गयी। एक साल तो काम किया। सुबह से रात तक काम ही काम। फिर उसने सोचा कि यह उसका काम नहीं है। उसने वह काम छोड़कर एक एन जी ओ खोल लिया जिसमे वह समाज और परिवार से पीड़ित महिलाओं और बच्चों की मदद करती है। बहुत सी डॉक्टर और वकील महिलायें उस्की संस्था से जुड़ गये हैं और उसका बड़ा नाम हो गया है।’
अनिल बोला,’ भाभी मुझे एक बार उससे मिलवा दो।’
‘ ठीक है, मिलवा दूँगी पर मैं उसे मनाने की सारी कोशिश कर चुकी हूँ। इसलिये मुझसे तो कोई उम्मीद मत रखियेगा।’ भाभी ने कहा।
अनिल कम्प्यूटर इंजीनियर था, बहुत अच्छी कम्पनी में काम करता था, बहुत अच्छा वेतन था, घर वाले भी बहुत अच्छे और नए विचारों के थे।वह तो चाहती ही थी कि रमा की गृहस्थी बस जाय, इतना अच्छा लड़का फिर कहाँ मिलेगा?
अनिल चला गया। एक हफ्ते के बाद भाभी का फोन आया। उन्होंने बताया कि कल रमा उनके घर आ रही है। अगले दिन जब अनिल राघव के घर पहुँचा तो रमा आ चुकी थी और बैठकर बतिया रही थी। भाभी ने राघव के मित्र के रूप में अनिल से परिचय करवाया। रमा उसे पहचान गयी। राघव की शादी की बातों से ही बातें शुरू हुई और थोड़ी देर में अंतरंगता हो गयी। थोड़ी देर बाद अनिल ने कहा,’ रमाजी मैं कोई लम्बी – चौड़ी भूमिका नहीं बाँधना चाहता हूँ। मुझे आप बहुत पसन्द हैं और मैं आपसे विवाह करना चाहता हूँ।’
रमा ने भाभी की तरफ देखा और बोली,’ रानी , तुमसे तो पहले ही बात हुई होगी। तुमने बताया नहीं?’
रानी ने कहा,’ हाँ रमा, मैंने सब कुछ बताया, तुम्हारे संकल्प के बारे में भी पर अनिल जी अपनी बात पर दृढ़ हैं।’
रमा ने कहा,’ देखिये मैं अपनी बात पर अटल हूँ। मेरी जिन्दगी है और मैं शादी नहीं करूँगी। शादी के अतिरिक्त भी लड़कियों के लिये और भी बहुत से काम हैं और मैं वही कर रही हूँ।’
फिर अनिल ने बहुत से तर्क दिये यह भी कहा कि वह जो कर रही है वह करे वह और उसके घर वाले भी यथासम्भव उसमे सहयोग करेंगे।रमा को कोई भी तर्क तोड़ नहीं पाया।फिर और बहुत सी बातों के बाद सब अपने- अपने घर चले गये।
अगले कुछ दिन बाद अनिल अपनी माँ के साथ रमा के ऑफिस पहुँच गया। उसकी माँ भी उसे देखकर मन ही मन बेटे की पसन्द की सराहना कर रही थी। माँ ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की पर वह टस से मस नहीं हुई। आखिर हारकर उसने कहा,” माताजी, मैं आपका दिल नहीं दुखाना चाहती हूँ पर आपकी आज्ञा नहीं मान सकती। क्यों आप अपने घर में किसी का अनिष्ट चाहती हैं।?’
माँ ने कहा,’ क्यों बेटी अगर तुम्हारी शादी मेरे घर मे नहीं होगी तो मेरे घर में सब अमर हो जायेंगे, कोई कभी मरेगा नहीं? बेटी जिसकी जब मौत आनी होती है तभी आती है और यह पूर्व निश्चित होता है। किसी के शादी – ब्याह से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता है।हाँ मेरा लड़का तुम्हे न पसन्द हो तो मैं कोई जोर नहीं डालूँगी।’
रमा ने कहा,’ नहीं माँ यह बात बिल्कुल नहीं है आपने ऐसा कैसे सोच लिया लेकिन माँ, मुझे डर लगता है मैं अपशकुनी हूँ।’
माँ ने कहा,’ जिसे मेरे बेटे ने पसन्द कर लिया वह मेरे लिये सबसे बड़ा शगुन है।’
माँ उठकर खड़ी हो गयी और बोली ,’ बेटी ठीक से सोच लो कोई जल्दी नहीं है और मुझे किसी बात पर कोई एतराज नहीं है। आज तक मेरे अनिल को कोई लड़की नहीं पसन्द आई थी, अब पसन्द आ गयी है तो हम उसका इंतजार कर लेंगे।’
वे लोग चले गये। रमा सोच में पड़ गयी। यह क्या हो गया। वह तो इसके लिये तैयार नहीं थी। अपनी जिंदगी से वह बहुत खुश थी। उसने तो अपनी शादी के बारे में सोचना भी छोड़ दिया था। काम और बस काम में अपने आप को डुबो दिया था
रानी ने रमा के माता – पिता को सब कुछ विस्तार से बताया। वे सब निहाल हो गये। हाथ में मानो चाँद आ गया। वे कब से प्रतीक्षा कर रहे थे कि ऐसा ही कोई लड़का और परिवार मिलता और बेटी का घर बसता। लेकिन रमा की जिद कैसे टूटे? उन्होंने ने भी रमा को मनाने की अपनी कोशिशें जारी कर दी। रमा चारों तरफ से घिर गयी। फिर अनिल के माता – पिता और उसके माता – पिता साथ – साथ आये। अनिल के पिता ने कहा,’ बेटा, निर्णय तुम्हारा ही होगा हम तुम पर कोई दबाव नहीं डालेंगे। पर तुम हमारी भी बात सुन लो, वैसे तो हम ऐसी किसी बात को नहीं मानते जो तुम्हारे मन में घर करके बैठी हैं पर हम किसी भी घटना या दुर्घटना के लिये तैयार हैं।जो होना है वह होगा चाहे तुम्हारी शादी हमारे घर में हो या न हो। अगर मेरे बेटे ने तुम्हे पसन्द किया है तो तुम हमारे घर की लक्ष्मी हो। अगर तुम मना कर दोगी तो हम समझेंगे की लक्ष्मी हम से रुठ गयी है।’
उसके माता – पिता ने भी उसे समझाया और आखिर उसने हाँ कर दी।अनिल की माँ ने अपने हाथ में पहनी हुई भारी सी अँगूठी निकाल कर उसकी उँगली में पहना दी और बोलीं,’ आज से तुम मेरी बेटी हुईं। मैं अब देर नहीं कर सकती बहुत जल्दी सगाई और शादी निबटा दूँगी। कहीं किसी को जुकाम हो जाय और तुम्हारा मन न बदल जाय।’
सब लोग हँसने लगे। फिर एक महीने में ही शादी हो गयी और कोई घटना नहीं हुई।
फिर बहुत अच्छी तरह दो वर्ष बीत गये। अनिल का पूरा परिवार उसके काम को आगे बढ़ाने में जुट गया। एक और ऑफिस उनके घर मे खुल गया। उसकी संस्था की तरफ से एक कम्प्यूटर सिखाने का स्कूल, एक सिलाई – कढ़ाई का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल जो उसकी सास और जेठानी देखते थे। उसका नाम बढ़ता गया और जब चार साल के बाद समाज सेवा के लिये उसे प्रधानमंत्री जी के द्वारा पुरस्कृत किया गया तो उसका ढाई साल का बेटा भी सबके साथ ताली बजा रहा था। जब वह पुरस्कार लेकर आई तो उसकी सास ने उसे गले लगा लिया और कहा,’ बेटी तुम हमारे घर का सबसे अच्छा शगुन हो अगर हम भी तुम्हारी तरह तुम्हारे मन के वहम को मानते तो आज इतना सुख और इतना सम्मान कहाँ से मिलता?’

उषा किरण शुक्ला
सम्प्रति – स्वतंत्र लेखन।

पता – ऊषा किरन शुक्ला,
पारिजात,27/013, कैलाशपुरी, रानोपाली, अयोध्या।पिन – 24001
मोबाइल नम्बर – 9451040053 945104005

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