सुलेख के शिक्षक सर्गेई कैपितोनिच अख़िनेयेव की बेटी नताल्या की शादी इतिहास और भूगोल के शिक्षक इवान पेत्रोविच लोशादिनिख़ के साथ हो रही थी । शादी की दावत बेहद कामयाब थी । सारे मेहमान बैठक में नाच-गा रहे थे । इस अवसर के लिए क्लब से किराए पर बैरों की व्यवस्था की गई थी । वे काले कोट और मैली सफ़ेद टाई पहने पागलों की तरह इधर-उधर आ-जा रहे थे । हवा में मिली-जुली आवाज़ों का शोर था । बाहर खड़े लोग खिड़कियों में से भीतर झाँक रहे थे । दरअसल वे समाज के निम्न-वर्ग के लोग थे जिन्हें विवाह-समारोह में शामिल होने की इजाज़त नहीं थी ।
मध्य-रात्रि के समय मेज़बान अख़िनेयेव यह देखने के लिए रसोई में पहुँचा कि क्या रात के खाने का इंतज़ाम हो गया था । रसोई ऊपर से नीचे तक धुएँ से भरी थी । हंसों और बत्तखों के भुनते हुए मांस की गंध धुएँ में लिपटी हुई थी । दो मेजों पर खाने-पीने का सामान कलात्मक बेतरतीबी से बिखरा हुआ था । लाल चेहरे वाली मोटी रसोइया मारफ़ा उन मेजों के पास व्यस्त-सी दिख रही थी ।
” सुनो , मुझे पकी हुई स्टर्जन मछली दिखाओ , ” अपने हाथों को आपस में रगड़ते और जीभ से अपने होठों को चाटते हुए अख़िनेयेव ने कहा । ” क्या बढ़िया ख़ुशबू है ! मैं तो रसोई में रखा सारा खाना खा सकता हूँ ! अब ज़रा मुझे स्टर्जन मछली दिखाओ । ”
मारफ़ा चल कर एक तख़्त के पास गई और उसने ध्यान से एक मैला अख़बार उठाया । उसके नीचे कड़ाही में एक पकी हुई बड़ी-सी मोटी मछली रखी हुई थी , जिसके ऊपर खजूर और गाजर के टुकड़े पड़े हुए थे । अख़िनेयेव ने स्टर्जन मछली पर निगाह डाली और चैन की साँस ली । उसका चेहरा खिल गया और उसकी आँखों में संतोष का भाव आ गया । वह झुका और उसने अपने मुँह से पहिये के चरमराने जैसी आवाज़ निकाली । वह थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा । फिर खुश हो कर उसने अपनी उँगलियाँ चटकाईं और दोबारा अपने होठों से चटखारा लेने की आवाज़ निकाली ।
” ओह ! हार्दिक चुम्बन की आवाज़ । मारफ़ा , तुम वहाँ किसे चूम रही
हो ? ” बगल वाले कमरे में से किसी की आवाज़ आई , और जल्दी ही दरवाज़े पर विद्यालय के शिक्षक वैन्किन का घने बालों वाला सिर नज़र आया । ” तुम यहाँ किसे चूम रही थी ? अहा ! बहुत अच्छे ! सर्गेई कैपितोनिच ! क्या शानदार बुज़ुर्ग हैं आप ! तो आप इस महिला के साथ हैं ! ”
” मैं किसी को नहीं चूम रहा था , ” अख़िनेयेव ने घबराहट में कहा , ” मूर्ख आदमी , तुम्हें यह बात किसने बताई ? मैं तो केवल अपने होठों से चटखारा लेने की आवाज़ निकाल रहा था क्योंकि मैंने बढ़िया पकी हुई मछली देखी थी । ”
” ये बहाने मुझे नहीं , किसी और को बताना , ” वैन्किन चहक कर बोला । उसके चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान फैल गई थी । फिर वह दरवाज़े से हटकर दूसरे कमरे में चला गया । अख़िनेयेव झेंप गया ।
” शैतान ही जानता है कि इस घटना का नतीजा क्या होगा ! ” उसने सोचा ।
” अब वह दूसरों से मेरी निंदा करता फिरेगा । बदमाश कहीं का ! उफ़्फ़ ! वह जंगली पूरे शहर के सामने मेरी इज़्ज़त उतार देगा ! ”
अख़िनेयेव सहमता हुआ बैठक में दाखिल हुआ । वह चोर-निगाहों से यह देख रहा था कि वैन्किन क्या कर रहा है । वैन्किन पियानो के पास खड़ा था । उसका सिर झुका हुआ था और वह पुलिस इंस्पेक्टर की साली के कान में कुछ फुसफुसा रहा था । उसकी बात सुन कर वह महिला हँस रही थी ।
” ज़रूर वह मेरी ही निंदा कर रहा है , ” अख़िनेयेव ने सोचा । ” शैतान उसका बेड़ा ग़र्क करे ! उस स्त्री ने वैन्किन की बातों को सच मान लिया है , तभी तो वह हँस रही है । हे ईश्वर ! नहीं , मैं इस बात को ऐसे ही नहीं छोड़ सकता । मुझे लोगों को सच्चाई बतानी ही पड़ेगी ताकि कोई भी वैन्किन की बातों पर यक़ीन न करे । मैं खुद इस बारे में सबको बताऊँगा ताकि अंत में वैन्किन की बातें मनगढ़ंत गप्प साबित
हों । ”
घबराहट में अपने सिर को खुजलाते हुए अख़िनेयेव चल कर पदेकोई के पास पहुँचा ।
” अभी थोड़ी देर पहले मैं रात के खाने की तैयारी देखने के लिए रसोई में गया था ,” उसने अपने फ़्रांसीसी मेहमान से कहा । ” मुझे पता है , आप को मछली पसंद है । इसलिए मैने एक ख़ास बड़ी स्टर्जन मछली का इंतज़ाम किया है । लगभग दो गज लम्बी मछली ! हा, हा हा ! अरे वह बात आपको बताना तो मैं भूल ही गया । रसोई में उस स्टर्जन मछली से जुड़ा एक क़िस्सा मैं आपको बताता हूँ । थोड़ी देर पहले मैं रात के खाने का इंतज़ाम देखने के लिए रसोई में गया । अच्छी तरह से पकी स्टर्जन मछली को देखकर मैंने होठों से चटखारा लिया । वह बड़ी मसालेदार मछली लग रही थी । तभी वह मूर्ख वैन्किन रसोई के दरवाज़े पर आया और कहने लगा — ..हा,हा,हा ! और कहने लगा — ‘ आहा ! तो तुम यहाँ मारफ़ा को चूम रहे हो ! आप ही सोचिये — रसोइये का चुम्बन ! क्या मनगढ़ंत बात थी ! महामूढ़ व्यक्ति ! वह औरत वैसे ही दिखने में बदसूरत है । वह किसी बंदरिया-सी लगती है ! जबकि वह मूर्ख आदमी बेसिर-पैर की बात कर रहा था कि हम एक-दूसरे को चूम रहे थे ! कितना अजीब आदमी है ! ‘ ”
” कौन अजीब आदमी है ? ” उनकी ओर आते हुए तारांतुलोव ने पूछा ।
” अरे , मैं वैन्किन की बात कर रहा हूँ । अभी थोड़ी देर पहले मैं रसोई में गया — ” मारफ़ा और स्टर्जन मछली की कहानी दोहराई गई ।
” उसकी बात सुनकर मुझे हँसी आ रही है । कितना अजीब आदमी है ! मेरे ख़याल से मारफ़ा को चूमने की बजाए किसी कुत्ते को चूमना सुखद होगा , ” अख़िनेयेव ने कहा और मुड़ने पर उसने म्ज़दा को देखा ।
” हम वैन्किन के बारे में बात कर रहे थे , ” उसने म्ज़दा से कहा । ” कितना अजीब आदमी है ! वह रसोई में घुसा और उसने मुझे मारफ़ा के बगल में खड़ा पाया ।
बस , फिर क्या था ! वह उसी समय हम दोनों के बारे में वाहियात कहानियाँ गढ़ने लगा । ‘ क्या , ‘ वह बोला , ‘ तुम दोनों एक-दूसरे को चूम रहे थे ? ‘ उसने पी रखी थी इसलिए वह अपने होशो-हवास में नहीं था । जागते हुए सपने देख रहा था । मैंने कहा — ‘ मारफ़ा को चूमने की बजाए मैं किसी बत्तख़ को चूमना पसंद करूँगा । और फिर मैं शादी-शुदा हूँ । ‘ मैंने कहा — ‘ तुम महामूढ़ हो ! ‘ बताइए , मुझ पर ऐसा घटिया आरोप लगा कर उसने मेरी स्थिति कितनी हास्यास्पद बना दी । ”
” किसने तुम्हारी स्थिति हास्यास्पद बना दी ? ” धर्म-शास्त्र पढ़ाने वाले शिक्षक ने अख़िनेयेव से पूछा ।
” वैन्किन ने । मैं रसोई में खड़ा हो कर स्टर्जन मछली के बारे में पता कर रहा था — ” वग़ैरह । आधे घंटे के भीतर ही सभी मेहमानों को वैन्किन और स्टर्जन मछली वाली कहानी के बारे में पता चल गया ।
” अब उसे बताने दो ,” अख़िनेयेव ने अपने हाथ आपस में रगड़ते हुए
सोचा । ” अब उसे मेरी निंदा करने दो । वह जैसे ही लोगों को यह कहानी बताना शुरू करेगा , वे उसे बीच में ही रोक देंगे : ‘ बकवास मत करो , मूर्ख आदमी। ! हमें इसके बारे में सब पता है । ‘ ”
और इस बात से अख़िनेयेव इतना संतुष्ट महसूस करने लगा कि खुश हो कर उसने ज़रूरत से ज़्यादा ब्रांडी पी ली । अपनी बेटी को उसके कमरे में पहुँचा कर वह अपने कमरे में गया और वहाँ वह एक मासूम बच्चे की गहरी नींद में डूब
गया । अगले दिन उठने पर उसे स्टर्जन की कहानी का कोई अंश याद नहीं रहा ।
किंतु , काश ! इंसान प्रस्ताव रखता हैं , पर ईश्वर उसे जैसे उचित समझता है , वैसे निपटाता है । काली ज़बान अपना शैतानी काम कर जाती है । इसलिए अख़िनेयेव की चालाकी भी उसके किसी काम नहीं आई । एक हफ़्ते बाद , बुधवार के दिन , तीसरे पाठ के बाद जब अख़िनेयेव शिक्षकों के कमरे में खड़ा हो कर एक छात्र विस्येकिन की दुष्टतापूर्ण प्रवृत्तियों के बारे में चर्चा कर रहा था , तब निदेशक ने उसे इशारे से अलग बुलाया ।
” देखो , सर्गेई कैपितोनिच , ” निदेशक ने कहा । ” मुझे क्षमा करो क्योंकि यह मामला मुझ से जुड़ा नहीं है , किंतु कुछ भी हो , मुझे इसके बारे में तुमसे दोटूक बात करनी होगी । यह मेरा फ़र्ज़ है — देखो , अफ़वाहों का बाज़ार गरम है कि उस महिला से — वह जो तुम्हारी रसोइया है — उससे तुम्हारे अंतरंग सम्बन्ध हैं !
देखो , यह मुझसे जुड़ा मामला नहीं है , लेकिन — चाहे तुम्हारे उससे अंतरंग सम्बन्ध हों , चाहे तुम उसे चूमो — तुम उसके साथ जो तुम्हारी इच्छा हो , करो , लेकिन इतना खुल कर मत करो ! देखो , यह मेरा विनम्र निवेदन है । यह मत भूलो कि तुम एक शिक्षक हो । ”
यह सुन कर अख़िनेयेव जैसे स्तम्भित रह गया । उसे ऐसा लग रहा था जैसे सैकड़ों मधु-मक्खियों के झुंड ने उसे काट लिया हो , जैसे उबलते हुए गरम पानी ने गिर कर उसकी त्वचा को झुलसा दिया हो । ऐसी भयानक हालत में वह घर पहुँचा ।
रास्ते में उसे लगा जैसे उसके मुँह पर कोलतार की कालिख़ पुती हुई हो । घर पर नई मुसीबतें उसकी प्रतीक्षा कर रही थीं ।
” तुम कुछ खाते क्यों नहीं ? ” रात के खाने के समय उसकी पत्नी ने उससे पूछा । ” तुम किसके बारे में सोच रहे हो ? क्या तुम्हें अपनी महबूबा याद आ रही है ? क्या तुम रसोइया मारफ़ा को याद कर रहे हो ? मुझे सब पता चल गया है , दग़ाबाज़ ! दयालु लोगों ने मेरी आँखें खोल दी हैं , बर्बर आदमी ! ” और उसने अख़िनेयेव के गाल पर खींच कर थप्पड़ दे मारा ।
वह लड़खड़ाता हुआ खाने की मेज पर से उठा और बिना अपनी टोपी या कोट लिए हुए सीधा वैन्किन के घर की ओर चल पड़ा । वैन्किन घर पर ही था ।
” बदमाश कहीं के ! ” उसने वैन्किन से कहा । ” तुमने पूरी दुनिया के सामने मुझे बदनाम क्यों किया ? तुमने सब से मेरी निंदा क्यों की ? ”
” कैसे ? कौन-सी निंदा ? यह तुम मुझ पर कौन-से गढ़े हुए इल्ज़ाम लगा रहे हो ? ”
” तो फिर सबको यह झूठी बात किसने बताई कि मैं मारफ़ा को चूम रहा था ? अब तुम कहोगे कि वह तुम नहीं थे ! वह तुम नहीं थे , मेरी इज़्ज़त के हत्यारे ? ”
वैन्किन ने हैरानी से अपनी पलकें झपकाईं । उसकी देह के रोएँ सिहर
उठे । उसने अपनी पलकें उठा कर किसी तरह कहा– ” यदि मैंने तुम्हारे बारे में एक शब्द भी किसी से कहा हो तो ईश्वर मुझे दंड दे । मेरी आँखों की दृष्टि चली जाए और मैं अकाल-मृत्यु का ग्रास बन जाऊँ । न मेरे पास मकान रहे , न मेरा घर बचे ! ”
वैन्किन की सच्चाई असंदिग्ध थी । यह स्पष्ट था कि उसने किसी से भी अख़िनेयेव की निंदा नहीं की थी ।
” किंतु फिर वह कौन था ? कौन ? ” अख़िनेयेव ने खुद से पूछा । उसके ज़हन में सभी परिचितों के नाम आ-जा रहे थे । अपनी छाती पर हाथ मारते हुए वह फिर बोला , ” आख़िर कौन था वह निंदक ? ”
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सुशांत सुप्रिय
जन्म : 28 मार्च , 1968
शिक्षा : अमृतसर ( पंजाब ) , व दिल्ली में ।
प्रकाशित कृतियाँ :
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# हत्यारे ( 2010 ) , हे राम ( 2013 ) , दलदल ( 2015 ) , ग़ौरतलब कहानियाँ
( 2017 ) , पिता के नाम ( 2017 ) : पाँच कथा – संग्रह ।
# इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं ( 2015 ) ,अयोध्या से गुजरात तक ( 2017 ): दो काव्य-संग्रह ।
# विश्व की चर्चित कहानियाँ ( 2017 ) , विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ ( 2017 ) , विश्व की कालजयी कहानियाँ ( 2017) : तीन अनूदित कथा-संग्रह ।
सम्मान :
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भाषा विभाग ( पंजाब ) तथा प्रकाशन विभाग ( भारत सरकार ) द्वारा रचनाएँ पुरस्कृत । कमलेश्वर-स्मृति ( कथाबिंब ) कहानी प्रतियोगिता ( मुंबई ) में लगातार दो वर्ष प्रथम पुरस्कार । स्टोरी-मिरर.कॉम कथाप्रतियोगिता , 2016 में कहानी पुरस्कृत । साहित्य में अवदान के लिए साहित्य-सभा , कैथल ( हरियाणा ) द्वारा सम्मानित ।
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद – 201014
( उ. प्र. )
मो : 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com