कविता आज और अभीः असहज समय में


जागते रहो

किसने यह हाँक दी
जागते रहो-
टूट रहे जीवन की धुंधलाई छांहों पर
उढ़के दरवाजों पर टूटती कराहों पर
शीशे पर अक्सों सा दर्द चमकने लगा
किसने यह हांक दी
जागते रहो-
फूल-पात, नंगे वन, पेड़ों की शाखों पर
जले हुए जंगल की भीगी-सी राखों पर
हल्के पदचापों का मौन उभरने लगा
किसने यह हाँक दी
जागते रहो-
धारा के अधजल में पड़ी हुई नावों पर
बीते के साए और आगत के पावों पर
पूजा का जुड़ा हुआ हाथ सिसकने लगा
किसने यह हांक दी
जागते रहो–
सत्येन्द्र श्रीवास्तव


असहज इस समय को
पलटने की ताकत किसमें अब
गलत शब्द है ताकत इस संदर्भ में
समझ किसमें-बिलख रहे बड़े बूढ़े
औरत बच्चे घायल और भयभीत-
‘आखिर लाखों की कुर्बानी
निर्मम यह नादानी
कब तक और किसके लिए
अहम और ताकत की यह
हिटलरी अंधी खींचातानी
कब तक और किसके लिए!’
शैल अग्रवाल


जरूरी बात

बरस रहे थे घाव देते
मृत्यु देते, अग्नि से झुलसाते
अंगभंग करते भांति भांति के
रसायनिक और आणविक बम

बिना खाने पानी और जीवन वायु के
वह घुटघुट मरती औरतों और असहाय
बच्चों की तस्बीरें दम तोडती आहें
अन्य खबरों की तरह ही खबरें थीं
फिर भी हमारे लिए

हाथ पर हाथ रखे सुनते रहे
क्योंकि दूसरों से अपना घर
अपनी जान बचाना सदा ही तो
अधिक स्वाभाविक,अधिक जरूरी

जरूरी यह नहीं कि क्या किया जाए
जरूरी था कि हमने सुना सब
और भरपूर सहानुभूति भी जताई,
भूखे पेटों को हथियार बेचकर ही सही।

शैल अग्रवाल

आखिरी पल में
वो लड़ रहे थे संग संग खड़े
दो प्रेमी जो पिछले बीस वर्ष से
संग थे देह और आत्मा से जुड़े
परन्तु बंधन में ना बंधे
अचानक युद्ध की विभीषका ने
जीवन की नश्वरता ने बाध्य किया
कि फिर मिलने की छूटे ना आस
आखिरी पल में वचन लिया
जीवन से आगे मौत के उस पार
गर जाना ही पड़े तो संग-संग जाएँगे
और अगर बचे रहे तो
पीछे छूटी बेटी गर्व से सुनाएगी
उनकी अद्भुत प्रेम कहानी
किसी खूबसूरत गर्वित पल में
अपने बच्चों को …
शैल अग्रवाल

युद्ध में भी
युद्ध में भी जनमती है कविता
प्रेम की विश्वास की आस की
करुणा जगाती
जब हार चुकी हो मानवता
आगे बढ़ता है कोई
गोदी में लेने अकेले
रोते बिलखते बच्चे को
ग्यारह वर्ष का मासूम सुकुमार
पैदल पैदल सीमा लांघ आया
गोली बारूद से बचकर
हजार मील लम्बी
क्योंकि सपना था मां का
मृत आँखों की कोर में
आँसू-सा अटका
बचा रहे कोई, जीता रहे कोई
देश की खातिर,अपनों की खातिर
शैल अग्रवाल
1 ए, ब्लैकरूट रोड, सटनकोल्डफील्ड , यू.के.

पाक से वार्ता

चाहे वह कर ले
कितनी भी गद्दारी
और कितनी भी मक्कारी
चाहे वो पीठ पर गोली मारे
या पेट में छुरा घोंपे
हम तो उदारमना हैं
उससे बात अवश्य करेंगे
चाहे वह काम की हो
या बेकाम की;
हमें पता है कि वार्ता
तो केवल शब्दों का मकड़जाल है
समस्याओं को उलझाये रखने का कमाल है
इससे कोई सकारात्मक
हल निकाल सके
भला किसी की
क्या मजाल है?
फिर भी वार्ता तो वार्ता है
वह अवश्य होनी चाहिये
चाहे वह सफल हो या असफल;
करते रहेंगे यूँ ही वार्ता
होते रहेंगे यूँ ही लगातार असफल
मुंह की खा के
दुलत्ती खाके
इज्जत गंवा के
आखिर हम महान हैं ।
-अनिल शास्त्री, शरद
311 पार्क रोड, देहरादून, उत्तराखण्ड

शहर में अब न संभावना है।

प्रभात का समय था, अरविंद वाटिका का किनारा।
चन्दौली शहर में वह , करती थी गुजारा ।।

बीती रात हुई थी उस वाटिका में किसी की शादी।
सुबह के समय तक सोई थी शहर की आबादी ।।

बाईपास के किनारे फेंके गए थे उच्छिष्ट।
थी वह खोजती उसमें अपने क्षुधार्थ अभीष्ट।।

देखकर ये दृश्य द्रवित हुई मेरी आँखें।
उस बेचारी की चल रही थीं धीमी सांसें।।

वृद्धा भिखारिन ने दृष्टि ऊपर की बड़ी सदमे में
और…
फिर से जुट गयी रात के भूखे पेट को भरने में।

कुछ शहरी रईस व हुक्काम अपने ‘कुत्तों’ के साथ
‘मॉर्निंग वॉक’ हेतु निकले थे ॉ
और सीधे चले जा रहे थे।

शायद उनके लिए वह बेमतलब की चीज थी।

फिर मैंने सोचा- “चलो भैया!
शहर में अब न सम्भावना है।”

जितेन्द्र कुमार, चन्दौली


हमे युद्ध नहीं चाहिए
धरती की सीमाओं के इस पार
और उस पार भी,
वो कौन सी आग जलती है
जो जलाती है, संवेदनाओं के पल दर पल,
जली ,बिखरी दबी राख के नीचे
मानवता, करुणा की घुट्टी हुई चीखें,
क्यों सुनाई नहीं देती??
क्यों लज्जित हो जाती है,
बुद्ध की करुणा,ईसा का त्याग
और विश्व शांति की भावनाएं??
बस शेष रहती है,केवल
दो व्यक्तियों की विकृत कामनाएं,
एक का अहम, दूसरे की चुनौती बन जाता है,
और इसके प्रतिकार में,
दमन भट्टियों में एक समूची मानवता को,
युद्ध की विभिषिका में,
झोंक दिया जाता है,,
इतने विवश क्यों है हम?
हम क्यों लड़ते हैं?
हम कब जागेंगे,,
जब विनाश की जहरीली हवा,
हमारे अस्तित्व को निगल जायेगी,
विज्ञान की कसौटियों पर गर्व करने वाले,
एक धमाके से,
पूरी दुनिया को नष्ट करने वाले दावों पर
एक दिन दानवी चीत्कार गूंजेगी,
और पीढ़ियां हम पर गर्व नहीं,
धिक्कार करेंगी,,
ये युद्ध नहीं चाहिए,
नहीं चाहिए स्वार्थी वैचारिक संघर्ष,
रुको, ठहरों,चीख उठी है मानवता,
उसे जीने की आस दो,
थोड़ी सी सांस दो,,,
बुझे हुए सपनों में जीवन की प्यास दो,
पद्मा मिश्रा, जमशेदपुर झारखंड

हम युद्ध नहीं होने देंगे

भारत की पावन माटी पर संत्रास नहीं पलने देंगे
अब युद्ध नहीं होने देंगे हम युद्ध नहीं होने देंगे
विश्वासों की छांव तले अनजाने विषधर पलते हैं
ममता की शीतल छाया में आतंकी पथ परचलते
हैं
हम देशभक्ति के दीवाने ममता को नहीं लुटने देंगे
अब युद्ध नहीं होने देंगे हम युद्ध नहीं होने देंगे
हर मन जिसका अनुगामी है वह सत्य अहिंसा लाने दो
जन गण मन का आशीष मिले वह गीत सृजन को गाने दो
बलिदानों की परिपाटी को हर युव-मन में जगने देंगे
अब युद्ध नहीं होने देंगे हम युद्ध नहीं होने देंगे
प्रज्वलित स्वस्ति के दीप मगर हर राह यहाँ भटकाती है
हमने जिनको अपना माना उनका मकसद बरबादी है
हम क्रांति ध्वजा लेकर कर में अन्याय नहीं होने देंगे
अब युद्ध नहीं होने देंगे हम युद्ध नहीं होने देंगे
काश्मीर हमारा था,अब है,वह भूमि हमारी अपनी हे
फूलों की हरी भरी घाटी,केशर की क्यारी अपनी है
तेरे नापाक इरादों को हम कभी नहीं फलने देंगे
अब युद्ध नहीं होने देंगे,हम युद्ध नहीं होने देंगे
पद्मा मिश्रा, जमशेदपुर झारखंड

यूक्रेन संकट
—————

सबको सब कुछ
ऊपरवाले ने
दिया बराबर

न बँटी हुई जमीं
न टुकड़ों में आस्मां,

लाशों की नई
खेप उगाने की
फिर जिद कैसी?

फिर ये युद्ध
किसलिए??

( 24 फरवरी 2022 )

*******

युद्ध औ स्त्री
————–

1.
स्त्री के लिए
दुनिया वैसी नहीं
जैसी वह चाहती रही,
सदा रही दुनिया वह
जो वह चाह पाती नहीं
कभी भी, कहीं भी।

युद्ध में लिपटी
उसके ख्यालों के परे
प्यार, स्नेह से कटी
बारूद के ढेर पर
लेटी
खूँ में डूबी दुनिया
वह कब चाहती है?

फिर भी सबसे ज्यादा
स्त्री ही भोगती है
युद्ध की विभीषिका,
काँधे पर थामे अपने
स्वप्नों का सलीब,
क्षत-विक्षत बच्चों को
पीठ पर बाँधे हुए
देखती रह जाती है
लुट गई अपनी मासूम दुनिया।


2.
सारे मकान
सोए हुए थे
बस,
पुरजोर सुकून के साथ
जग रहे थे
प्रहरी सजग,
एक पत्नी
एक बहन
एक बहू
एक बेटी
एक माँ
और
आग उगलते
बारूद!


3.
हारती हुई कौम की
अनगिनत चिकनी
नारी देह पर
गुजरता टैंक
घायल रक्तरंजित मन,
युद्ध ऐसे भी
जीता जाता है

हार
—–

हर लड़ाई का
हासिल
जीत नहीं होता,
टुकड़ेभर
मानवहीन जमीन की
जीत को
जीत नहीं कहते।

***
अनिता रश्मि
रांची , झारखंड
rashmianita25@gmail.com

सर्वाधिकार सुरक्षित
copyright @ www.lekhni.net

error: Content is protected !!