साहित्यिक मासिक ‘कविकुंभ’ का सातवां वार्षिक दो दिवसीय ‘शब्दोत्सव’ पिछले दिनो डीआईटी यूनिवर्सिटी देहरादून (उत्तराखण्ड) के वेदांता ऑडिटोरियम में संपन्न हुआ। पहले दिन मुख्य अतिथि डीआईटी चांसलर एन. रविशंकर, कवि-साहित्यकार विभूति नारायण राय, लीलाधार जगूड़ी, दिविक रमेश, इंदु कुमार पांडेय, प्रदीप सौरभ, रंजीता सिंह आदि के दीप प्रज्वलन से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। प्रथम सत्र का आरंभ डीआईटी संस्थान की प्रो मोनिका श्रीवास्तव ने अपने स्वागत भाषण से किया,उसके बाद कविकुंभ संपादक और कार्यक्रम आयोजक रंजीता सिंह फलक ने दो दिवसीय आयोजन की रूप रेखा पर चर्चा की और फिर डीआईटी कुलपति डॉ एन रवि शंकर का उद्बबोधन हुआ ।
प्रथम परिचर्चा सत्र में, ‘किस दिशा में जा रहा साहित्य और आज क्या दिशा होनी चाहिए’, विषय पर लीलाधर जगूड़ी, विभूति नारायण राय, दिविक रमेश और प्रदीप सौरभ ने विचार व्यक्त किए।
दिविक रमेश ने कहा, आज का समय बहुत कठिन है। लगता है कि हम बहुत व्यापक और लिजलिज़े दलदल में फँसे हैं। हम दुस्साहस नहीं कर पा रहे हैं। साहित्य दुस्साहस का नाम है। हम अगर अपने समाज को, समय को, अपनी किताबों, अपनी कथाओं में हाशिए के लोगों को व्यक्त नहीं करते तो हम अपने समाज के साथ अन्याय करते है। आज सबसे बड़ी चुनौती अपने समय को व्यक्त करने, अंतरद्वन्द को चित्रित करने की है, और सबसे बड़ी है सत्य बोलने कि चुनौती। यह समय सवाल उठाने का, अपने समय को व्यक्त करने का है।
सुपरिचित उपन्यासकार, पत्रकार प्रदीप सौरभ ने कहा, साहित्य मनुष्यता को बचाता है और साहित्य ही बची हुई मनुष्यता को बेहतर बनाता है। साथ-साथ साहित्य आवाज़ देता है उन्हें, जिनकी आवाज़ होती ही नहीं या जिनके गले को दबा के रखा जाता है। रचना हो जाने के बाद स्वयं रचनाकार के लिए भी एक चुनौती हो जाती है।
वर्धा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं जाने माने लेखक विभूति नारायण राय ने कहा, अतीत महत्वपूर्ण भी हो सकता है लेकिन कई बार वह हमे गहरे दुख में ले जाता है। अतीत के साथ-साथ में हमे ये भी देखना चाहिए कि आज हमारे समाज में औरतों की स्थिति क्या है, वन्य जीवन जीने के अभिशप्त लोग किन हालात से जूझ रहे हैं, अल्पसंख्यक कैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यह जानना लेखक के लिए, अतीत के गौरव गान से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। हमारे देश की विविधतापूर्ण, समृद्ध संस्कृति को साहित्यकार ही संरक्षित कर सकते हैं, तभी साहित्य उनकी आवाज़ बनेगा, जो हाशिये पर हैं। आज साहित्य से मनुष्यता बची हुई है।
अध्यक्षीय सम्बोधन में कवि लीलाधर जगूड़ी ने कहा, अतीत को जाने बिना वर्तमान को नहीं जाना जा सकता है। हिन्दी में आज भी तमाम ऐसे शब्द हैं, जो डिक्शनरी में नहीं हैं। आज की फ़िल्मों तक में नये शब्दों को प्रयोग किया जाता है तो डिक्शनरीज में क्यों नहीं? एक समय में साहित्य में होड़ हुआ करती थी कि कौन कितने नये शब्द निकालता है, आज ऐसा क्यों संभव नहीं हो पा रहा है, यह हमारे समय का एक बड़ा सवाल है।
परिचर्चा सत्र के बाद ‘कविकुंभ’ पत्रिका के जनवरी-फरवरी संयुक्तांक-2023 का लोकार्पण हुआ। उसके बाद स्वयं सिद्धा सम्मान समारोह की अध्यक्षता पूर्व कुलपति डॉ सुधा पांडे ने की। मुख्य अतिथि रहे डॉ एस फारुख और उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार, विशिष्ट अतिथि रहे उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडेय और डीआईटी रजिस्ट्रार वंदना सुहाग।
बीइंग वुमन की ओर से ‘स्वयं सिद्धा सम्मान’ से देश के विभिन्न राज्यों की उन महिलाओं को समादृत किया गया, जिन्होंने स्वयं के बूते समाज में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। राजस्थान से तसनीम खान, मुंबई से जूही राय, उत्तराखंड से सोनिया आनंद रावत, रानू बिष्ट, छत्तीसगढ़ से अनामिका चक्रवर्ती, उत्तर प्रदेश से सलोनी जैन, यामिनी कुशवाहा, पश्चिम बंगाल से शर्मिला भरतरी, दिल्ली से शुभा शर्मा को समादृत किया गया। कार्यक्रम में बीइंग वुमन की युवा विंग की मुख्य सचिव युवा प्रतिभागी इवा प्रताप सिंह ने शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत किया।
दोनों दिन अलग-अलग कविता-सत्रों में लीलाधर जगूड़ी, इंदु कुमार पांडेय, शोभा अक्षरा, संजीव कौशल, विमलेश त्रिपाठी, निशांत कौशिक, जयप्रकाश त्रिपाठी, विवेक चतुर्वेदी, रंजीता सिंह, ज्योति शर्मा, अनामिका चक्रवर्ती, जसवीर त्यागी, संजीव जैन साज, सोमेश्वर पांडेय, राम विनय सिंह, रुचि बहुगुणा उनियाल, विशाल अंधारे, असीम शुक्ल, शिवमोहन सिंह, रघुवीर शरण सहज, राकेश बलूनी, भारती शर्मा, अमल शंकर शुक्ला, गोपाल कृष्ण द्विवेदी, मुनींद्र सकलानी, गंभीर सिंह पालनी आदि ने अपनी सशक्त रचनाओं से अमिट छाप छोड़ी। धन्यवाद ज्ञापन शची नेगी ने किया।
शब्दोत्सव के दूसरे दिन ‘साहित्य और समाज के कठघरे में सशक्त स्त्रियां’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कवयित्री प्रतिभा कटियार, रंजीता सिंह, जूही राय संजीव कौशल, निशांत कौशिक आदि प्रतिभागियों ने कहा, सशक्त कही और समझी जाने वाली स्त्रियों को भी अपने निजी जीवन और काम के बारे में किस तरह के आंतरिक विरोध, प्रतिस्पर्धा और अपने प्रति दोयम दृष्टि से जूझना पड़ता है और सफल होने के बावजूद कितने सारे निजी संघर्षों और चुनौतियों का रोज सामना करना होता है, चिंताजनक है। परफेक्ट या आदर्श महिला बन सकने के प्रयास में निरंतर स्त्रियों का मानसिक दोहन हो रहा है, जो आखिरकार अवसाद की हद तक पहुंच चुका है।
‘आधुनिक पत्रकारिता कि चुनौतियां’ विषय पर केंद्रित मीडिया विमर्श में वरिष्ठ पत्रकार सोमवारी लाल उनियाल की अध्यक्षता एवं नवनीत गैरोला के संचालन में संजीव कौशल, अनिल चंदोला, रंजीता सिंह ने अपने विचार व्यक्त किए। विमर्शकारों का कहना था कि पूंजीवादी दौड़ में टीआरपी और विज्ञापन की होड़ ने गंभीर और जरूरी समाचारों को पीछे धकेल दिया है। तमाम मीडिया हाउस ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर कुछ भी गैर जरूरी, चटपटी खबरों को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। नकारात्मक खबरों को जोर-शोर से परोसे जाने को जनता की पसंद के नाम लगातार प्रोत्साहन मिल रहा है। ऐसे हालात में पत्रकारिता की नैतिक जिम्मेदारियां स्थगित सी हो चुकी हैं।
कार्यक्रम के अंतिम सत्र में युवा संगीतकार राज घोसवारे सगोनाखा ने सितारवादन किया। शर्मिला भरतरी ने रविंद्रनाथ टैगोर की कविता “अभिसार” पर शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत किया, जिसका वाचन कविकुंभ संपादक रंजीता सिंह फ़लक ने किया। संध्या जोशी महाभारत पर केंद्रित नृत्य नाटिका को दर्शकों ने खूब सराहा। शाम को रंग-ए-फ़लक मुशायरे में सदारत ब्रिगेडियर बहल ने की और विशिष्ट अतिथि रहे संजीव जैन साज। सहभागी शायर रही रंजीता सिंह फ़़लक, सीमा शफ़क, निलोफर नूर, शादाब अली, मीरा नवेली, हमजा अज्मी आदि। अंत में धन्यवाद ज्ञापन में रंजीता सिंह ने डीआईटी संस्थान, आईआईपी सीआईएसआर और समस्त आमंत्रित कवि-साहित्यकारों, कलाकारों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
रंजीता सिंह ‘फ़लक’
(संपादक मासिक ‘कविकुंभ’ एवं अध्यक्ष)
ह्वाट्सएप नंबर – 9548181083
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