भयावह
15 / 7/ 2020
कितना भयानक समय है पर लोग अब भी चेत नहीं रहे हैं। चारों तरफ खबर फैल गई कि पेशेंट के साथ निरंतर सेवारत नर्स शैलजा कोरोना पाॅजिटिव पाई गई है। खबरों के साथ अफवाहों की बन आई।
सिस्टर शैलजा अन्य डाॅक्टरों, चिकित्साकर्मियों संग मुस्कुराहट के साथ पेशेंट का मनोबल बढ़ाने के लिए मशहूर थी। पिछले तीन महीने से और भी हँस-हँसकर आइसोलेशन वार्ड में पेशेंट को सँभाल रही थी।
मेटरनिटी लीव मिली थी। पर उसके जमीर ने इजाजत नहीं दी और वह एक महीने के बाद से नवजात बच्ची को दादी के भरोसे छोड़कर अस्पताल में ही रह रही थी। उसके जज्बे को सलाम!
10 /8 /2020
ओह! शैलजा बच्ची को देखने की लालसा लिये हुए ही दिवंगत हो गई। कब्रिस्तान में दूर से किट में लिपटी उसकी लाश को जमींदोज़ होते देखता एक श्वान मात्र था, जिसे वह अक्सर अस्पताल के बाहर भोजन देती थी।
थोड़ी देर बाद लाश ठिकाने लगानेवाले भी चले गए। कुत्ता बैठा रहा, कोई आदमजात ना था पास।
——–
‘ हम सावधान नहीं रहें, तो यह प्रत्येक परिवार की नियति होगी। ‘
सूर्य प्रकाश ने कलम के खुले पन्ने पर पेन रखते हुए सोचा और प्रार्थना में डूब आँखें मुँद लीं।
***
कीमत
चाँद चल रहा था। सितारे चल रहे थे। और चल रहा था प्रभाकर अपनी पूरी तेज के साथ। बस, निरंतर सक्रिय रहने की क्षमतावाला मनुष्य ठिठका पड़ा था। महामारी ने सबको एक तराजू पर तौल कर रख दिया था। उनका दिमाग दौड़ सकता था लेकिन वह भी ठिठकने, अकड़ने लगा था।
चिड़चिड़ापन, नाराजगी, एकाकीपन, मानसिक असंतुलन बढ़ रहा था। अभाव भारी लगने लगे थे।
सन्नाटे में घिरा महल, दोमहल ऐसे में बस, झोपड़े, खपरैल और खेतों की हरियाली की ओर ताक रहे थे। सभी मोहताज। छोटे-मंझोले दुकानदार, सब्जीवाली, गंदगी साफ करनेवाले नगर निगमकर्मी आज बेहद महत्वपूर्ण हो उठे थे। सब तरफ हवाओं संग बह रही थी एक ही विचारधारा,
” ये नहीं, तो हम कुछ भी नहीं। ना हमारे महल, ना गड्डियों से सजे लाॅकर। ”
ठठाकर हँसा नब्बे बसंत देख चुका अनुभवी वृद्ध।
” एक अदृश्य से अदना वायरस ने सबको उनकी औकात दिखला दी। आसमान आज धरती के कदमों में झुक ही गया। ”
***
लड़ाई
आज हमेशा की तरह दोनों परिवार के बीच जमकर दोषारोपण, जमकर बहस-मुबाहिसे। और जमकर झगड़े। मदन सिंह को बीच में कूदना ही पड़ा।
” क्या बात है? सोशल डिस्टेंसिंग मानने की बजाय तुम सब फिर लड़ पड़े। घर के बाहर क्यों आए? चलो सब अंदर। ”
” भैया! इसने लड़ाई शुरू की है। ”
” मैंने की? मैंने?… मुँह तोड़कर रख दूँगा। ”
” तो मैंने चूड़ियाँ पहन रखी है क्या?… मेरे मुँह मत लगना, टाँग तोड़कर हाथ में दे दूँगा, समझा। ”
” समझना मुझे है कि तुझे!… तेरी तो…! ”
अपने दरवाजे से ही बोल पड़े मदन सिंह,
” अरे! जाओ अंदर, पूरी सोसायटी को कोरोना का सौगात दोगे क्या? गाइडलाइन मानने की बजाय…। ”
मदन सिंह की बात मान एक परिवार घर के अंदर जाने लगा कि पलीता ” मैं कायर नहीं, जो इस चूहे की तरह बिल में घुस जाऊँ। ”
” अरे! बचोगे, तब ना लड़ोगे ? बच गए तो लड़ लेना पूरी जिंदगी। भगवान ने इसीलिए तो धरती पर भेजा है हम सबको! जहाँ देखो, लडा़ई-झगड़ा…। ”
मदन सिंह के ठहाके वैश्विक गाँव के सारे कोने-कतरों में गूँज उठे।
अनिता रश्मि