करवा चौथ की बधाई और शुभकामनाएँ।

moonriseचंद्र-दर्शन
हर रात हमारे बीच रहकर भी पहुंच से दूर…एक चमकीला शीतल चेहरा बहुत सारी नजाकत और अदा के साथ पलपल बढ़ता-घटता, लुभाता भरमाता…कभी उदास तो कभी खूशी से भरपूर, पूरा का पूरा चमकता-दमकता। चांद का यह रूमानियत भरा अहसास अनजाने और दुर्लभ का ही तो रोमांच है । पर एक बात तो साफ है कि बहुत प्यार मिला है इसे, तभी तो करवाचौथ पर भी पूजा जाता है और ईद पर भी और कवि चित्रकारों को तो सदियों से ही बेमोल ही खरीद रखा है इसने।
याद नहीं आता कब बचपन में कहानियों का चरखा लिए बूढ़ी दादी आ बैठी थी इसमें, कब मां ने पहली बार मेरी लाडो, मेरी चंदा कहा था और हम फूल कर कुप्पा हुए शीशे में खुद को निहारना सीख गए थे । कब यह फुटबॉल सा गोल गोल सरकता-सरकता साथ-साथ दौड़ने भागने लगा था बचपन में और कब किशोरावस्था में एक रूमानियत का अहसास आ जुड़ा था इसके साथ और हर खूबसूरत चेहरा चांद-सा ही नजर आने लगा था या सुनाई देने लगा था। हाँ, यादों और अनुभव से एक बात तो साफ है कि हमेशा सुखद यादें ही रही हैं चांद की, कितना भी वैज्ञानिक कह लें कि अन्य गृहों की तरह यह भी एक विभिन्न गैसों का गोला है , गड्ढों और दाग-धब्बों से भरा हुआ ।
शादी के बाद से तो एक गहरा रिश्ता जुड़ गया है चांद के साथ। हर करवाचौथ पर दिनभर भूखे प्यासे रहना और फिर शाम को सज-धजकर इसके दर्शन का इंतजार करना… एक उल्लास, एक कौतुक का भाव, एक जिद भी तो आ जुड़ी है अब चांद की अनगिनित यादों में। हर शाम जो आठ बजे तक खिड़की से झांकने लगे वही करवा चौथ पर अक्सर ही अपनी पूरी अकड़ दिखलाता है –बचपना ही तो है यह भी चांद का, पर हम भी तो कम नहीं, पूरी रात इंतजार कर लेते हैं जनाब का भूखे प्यासे ही …जरूरत पड़े तो खिड़की पर बैठे-बैठे ही।
पति और बच्चों का वो हमें कार में बिठाकर इन्हें ढूंढने निकलना, बेचैन होकर बारबार सड़कों पर चक्कर लगाना और हर पेड़ के पीछे, हर मोड़ पर चांद महराज को ढूंढना, कहना कि अब तो निकल ही आया होगा आप खा लो न ,प्लीज। मन को एक अवर्चनीय सुख और आत्मीयता से भर देता है। अहसास दिलाता है कि अपने तो अपने ही होते हैं, हर सुख दुख के साक्षी और साथी। इतनी धार्मिक भी नहीं कि पूरा विश्वास हो इन बातों में बस अपनों को विश्वास दिलाना कि हम भी तकलीफ उठा सकते हैं तुम्हारे लिए , अच्छा लगता है।
फिर इन नखरैले चांद जी का आगमन भी तो बड़े भोलेपन के साथ ही होता है उस दिन। अचानक ही किसी भी पल बादलों के बीच से खिलखिला पड़ते हैं, या फिर थाली सा किसी ऊंचे पेड़ की डाल पर अटके दमकने लग जाते है। किसी मोड़ पर अचानक ही इंतजार करती आँखों के आगे आकर खड़ा हो जाते हैं और मन को अवर्चनीय सुख से भर देते हैं । दो वर्ष पहले तो मानो एक जीती-जागती कविता ही थी चंद्र-दर्शन। ढूंढने निकले ही थे कि अचानक ही सड़क के उस पार बिल्कुल जमीन से उठता चांद, इमारतों को डांगता-फांदता पतंग सा आसमान की ओर उठता चला गया। सूर्योदय तो कई बार देखा था पर ऐसा रोमांचक चंद्रोदय पहली बार…विश्वास ही नहीं हुआ कि वाकई में चंद्रमा ही है, इतना सहज व सुंदर और हमारे इतने पास। मन अभूतपूर्व रोमांच से भर गया था।
देखें आज की चंद्रनाटिका कौन सा दृश्य दिखलाती है । सभी इंतजार करती सखियों को अपना-अपना चांद मुबारक और करवा चौथ की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।…

About Lekhni 156 Articles
भाषा और भूगोल की सीमाएँ तोड़ती, विश्व के उत्कृष्ट और सारगर्भित ( प्राचीन से अधुधिनिकतम) साहित्य को आपतक पहुंचाती लेखनी द्विभाषीय ( हिन्दी और अंग्रेजी की) मासिक ई. पत्रिका है जो कि इंगलैंड से निकलती है। वैचारिक व सांस्कृतिक धरोहर को संजोती इस पत्रिका का ध्येय एक सी सोच वालों के लिए साझा मंच (सृजन धर्मियों और साहित्य व कला प्रेमियों को प्रेरित करना व जोड़ना) तो है ही, नई पीढ़ी को इस बहुमूल्य निधि से अवगत कराना...रुचि पैदा करना भी है। I am a monthly e zine in hindi and english language published monthly from United Kingdom...A magzine of finest contemporary and classical literature of the world! An attempt to bring all literature and poetry lovers on the one plateform.

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

error: Content is protected !!