प्रभु श्रीरामजी के चित्रकूट के आगमन पर …
प्रतिदिन की तरह सूरज ऊगा. सूर्योदय से पूर्व सभी उठ बैठे थे.
नित्य क्रिया कर्म के बाद एक स्फ़टिक शिला पर विराजमान होकर रामजी वनों की शोभा को निहारते रहे. फ़िर उन्होंने अपनी भार्या सीता जी से कहा: ”-हे विदेह नन्दिनी ! देखो…देखो तो सही भोर के इस सुहाने मौसम को तो देखो…आकाश रंग-बिरंगे रंगों में नहा उठा है…तोतों, मोरों और जंगली पक्षियों के मिले-जुले स्वरों को सुनो…कितने प्रसन्न होकर सूर्यदेव के स्वागत में गीत गा रहे हैं. मंद-मंद शीतल बयार बह रही है. ऐसे सुहावना मौसम कितना सुखकर लग रहा है”.
“सीते ! इस समय मदमादते वसंत ऋतु में सब ओर पलाश के पुष्पों की अरूण प्रभा के कारण वे चटक-चमकीले-से दीखते हैं. झरे हुए इन लाल-पीले पुष्पों से धरती पर कालीन-सी बिछ गई है. भिलावे और बेल के पेड़ों की डालियाँ अपने फ़ूलों के भार से झुकी हुईं, हवा के झोंकों में वे किस तरह लहरा रही हैं. चातक “पी कहाँ-पी कहाँ” की रट लगा रहा है.
“गिरिवर चित्रकूट पर्वत पर, जामुन, असन, लोध, प्रियाल, कटहल, धव, अंकोल, भव्य, तिनिश, बेल, तिन्दुक, बाँस, काश्मरी, नीम (अरिष्ट), वरण, महुआ, तिलक, बेर, आँवला, कदम्ब, बेत, धन्वन (इंद्रजौ), बीजक (अनार), आदि घनी छायावाले वृक्ष जो फ़ूलों और फ़लों से लदे होने के कारण कितने सुहावने और मनोरम प्रतीत होते हैं”.
“ देखो तो सही, पर्वत शिखर से कितने सारे झरने गिर रहे हैं. गुफ़ाओं से निकलती हुई वायु नाना प्रकार के पुष्पों की गन्ध लेकर प्रवाहित हो रही है”.
“मन्दाकिनी कलकल-छलछल के स्वर निनादित करती हुए मंथर गति से प्रवहमान हो रही है. हे सर्वांगसुन्दरी सीते ! जल के भीतर रहने वाले जीव-जंतु सहित असंख्य मछलियाँ को उछल-कूद करते हुए देखकर मुझे ऐसा प्रतीत होता है मानों वे तुम्हें जी भर के देखना चाहती हों ”( मंद-मंद मुस्काते हुए केवल विनोद करने की मंशा को लेकर रामजी ने सीताजी से कहा था)
“ हे प्रियतमे ! मन्दाकिनी में खिले कमल दलों को देखों..भ्रमरों के असंख्य दल इन फ़ूलों पर किस तरह आसक्त होकर गूंजन कर रहे हैं. खिले हुए कमलों की पंखुड़ियाँ, सांझ होते ही अपने आप बंद होने लगती है. पराग के लोभी ये भ्रमर, कभी-कभी उड़ना भूल कर इनमें कैद होकर रह जाते है”
फ़िर लक्ष्मण को इंगित करते हुए बतलाया:-“लक्ष्मण ! देखो..देखों उस डाल पर मधुमक्खियों ने छत्ते लटक रहे हैं. मेरे अनुमान के अनुसार एक-एक छत्ते में सोलह सेर मधु ( एक सेर लगभग 933 ग्राम के बराबर होता है). वृक्षों की डालियाँ अपने फ़लों के भार से झुक गई हैं. हम इनका सेवन करते हुए इस नंदन-काननमें आनन्द के साथ विचरण करते रहेंगे”.
“ हे लक्ष्मण ! मुझे जो बनवास प्राप्त हुआ है, इससे मुझे दो लाभ एक साथ मिल गए. पहला तो यह कि मुझे पिताश्री की आज्ञा का पालन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है और दूसरा यह कि मेरे अनुज भ्राता भरत को अयोध्यापति होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है”.
फ़िर अपनी भार्या सीता जी से कहा. “ हे विदेहराजनन्दिनी ! देखो तो सही…पेड़ो ने नए पत्ते पहन लिए हैं. फ़ूलों पर रंग उतर आया है. वायु में मौसम का संगीत बज रहा है. यह ऋतु मन को रंगती हुए दसों दिशाओं मे झूम रही है. रंग का यह महोत्सव मन को नए संगीत और आशा के सराबोर कर रहा है. यही वे कारण है जिसके कारण मुझे यह पर्वत प्रिय लगने लगा है.
हे सीते…..! मुझे तो ये यह मौसम किसी जादूगर से कम नहीं लगता….देखों न ! …मधुप गुनगुना रहा है और फ़ूल न जाने कौन-सी कहानी कह रहा है.. शाखों ने गुलाबी दुकुल ओढ़ लिया है…कोयल का पंचम महक रहा है उनकी सांसों में…..धरती सुगंधों की सरगम गुननुना रही है…मलयानिल ने हौले से कलियों के कानों में न जाने क्या कह दिया कि वह फ़ूल बनकर खिलखिलाने लगी है.
उन्होंने एक लचकती डाली से सुंदर.-सुगंधित पुष्प को तोड़ कर कहा…”सीते……ये फ़ूल वसंत का सपना है…वसंत का प्रतिफ़ल है…सुगन्धित प्रतिक्रिया है….ये फ़ूल गंध की अनंत यात्रा है…आओ…इस वसंत को हम जी भर के जी लें …सांसों में आकंठ पी लें…ये जीवन फ़ूल बने…सुगंध बने”..ऐसा कहते हुए रामजी ने उस पुष्प को सीताजी के जुड़े में लगा दिया.
उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.-”हे सीते ! वसंत ऋतु में न तो ज्यादा सर्दी की तरह बहुत ठंडा रहता है और न ही गर्मी की तरह बहुत गर्म. रात में मौसम और भी सुहावना और आरामदायक हो जाता है.. इस ऋतु के आते ही प्रकृति में सब कुछ जाग्रत कर देती है. पेड़, पौधे, घास-फ़ूल फ़सलें सहित अन्य जीवों को जैसे लंबी नींद से जगा देती है. पेड़ों पर नई पत्तियाँ और शाखाएँ निकल आती हैं और फ़ूल तरोताजा और रंगीन हो जाते हैं”.
“फ़ूलों के खिलने के इस मौसम में मधुमक्खियाँ फ़ूलों के आस-पास मंडराने लगती हैं और फ़ूलों से मकरंद चुराकर शहद बनाती है. फ़लों का राजा आम जैसे बौरा उठा है. कोयल इसकी घनी शाखाओं पर बैठकर पीहू….पीहू के गीत गा रही है”.
फ़िर लक्ष्मण को इंगित करते हुए कहने लगे- हे ”लक्ष्मण ! वसंत ऋतु का मौसम सभी मौसमों का राजा होता है. वसंत ऋतु के दौरान प्रकृति अपने सबसे सुन्दरतम रुप में प्रकट होती है और हमारे हृदय को आनंद से भरदेती है. सभी वृक्ष और लताएँ नवीन पल्ल्वों और पुष्पों से सजकर झूम रही है. प्रकृति को नया जीवन मिलता है और वह नई उमंग व सजधज के साथ अपनी शोभा बिखेरने लगती है”.
“खेतों में सरसों की पीली मखमली चादर बिछ गई है. आम के पेड़ मंजरी के बोझ से झुक पड़ते हैं. और हवा के झोंकों में झूम उठते हैं. वायु में सुगंध बिखर जाती है. फूलों से अटखेलियां करते भंवरे, मधु पीकर मधुर गुंजार करने लगे हैं. तथा रंग-बिरंगी तितलियों से उड़ते हुए झुंड, सभी के मन को मोह लेते हैं. प्रकृति के मोहक रूप को देखकर मनुष्य का मन भी प्रफुल्लित हो उठता है. कोयल की कूक मानव मन को संगीत लहरी से भर देती है. इस प्रकार वसंत ऋतु में संपूर्ण प्रकृति मानव जगत नई सुंदरता उमंग उल्लास और आनंद से भर जाता है वसंतोत्सव……मनुष्य अपने हृदय के उल्लास को विविध प्रकार से प्रकट करता है. वासंती कपड़े पहन कर स्त्रियाँ वसंत का स्वागत करती हैं. होली भी वसंत का उत्सव है जब पके हुए अन्न के दाने अग्नि को समर्पित करके बसंत का स्वागत किया जाता है. बसंत के सौन्दर्य में डूबे मानव मन मयूर-सा नाच उठता हैं”.
वसंत ऋतु में तापमान में नमी आ जाती है और सभी जगह हरे-भरे पेड़ों और फूलों के कारण चारों तरफ हरियाली और रंगीन दिखाई देता है”.
लक्ष्मण के बाद सीताजी को सम्बोधित करते हुए कहने लगे.:-” सीते ! कोयल पक्षी गाना गाना शुरु कर देती है. प्रकृति में सभी जगह फूलों की खूशबू और प्रेमाख्यान से भरी हुई होती हैं,, क्योंकि इस मौसम में फूल खिलना शुरु कर देते हैं,. आसमान पर बादल छाए रहते हैं और कलकल-छलछल के स्वर निनादित करती हुई अल्हड़ नदियाँ, उछल-कूद करती हुई बहती हैं. हम कह सकते हैं कि प्रकृति आनंद के साथ घोषणा करती है कि वसंत आ गया है.
“इस मौसम की सुन्दरता और चारों ओर की खुशियाँ, मस्तिष्क को कलात्मक बनाती है और आत्मविश्वास के साथ नए कार्य शुरु करने के लिए शरीर को ऊर्जा देती है. सुबह में चिड़ियों की आवाज और रात में चाँद की चाँदनी, दोनों ही बहुत सुहावने, ठंडे और शान्त हो जाते हैं. आसमान बिल्कुल साफ दिखता है और हवा बहुत ही ठंडी और तरोताजा करने वाली होती है. यह किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मौसम होता है, क्योंकि उनकी फसलें खेतों में पकने लगती हैं और यह समय उन्हें काटने का होता है. सभी आनंद और खुशियों को महसूस करते हैं क्योंकि, यह मौसम त्योहारों का मौसम है”.
जब वसंत आता है, तो इस ऋतु में प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है .पेड़ों पर नए पत्ते उग आते हैं और ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने हरियाली एंव खूबसूरत फूलों की चादर ओढ़ कर अपना श्रृंगार किया हो. इस सुहावने मौसम में जीवन का आनंद दोगुना हो जाता है. हर तरफ नए फूलों की सुगंध वातावरण को मनमोहक बना देती है. आमों के पेड़ों की सुगंध की मादकता का तो कहना ही क्या. कोयल की कूक भी इस मौसम की एक खास विशेषता है .सरसों के पीले फूल एवं महुए की मादक गंध मिलकर पवित्रता एंव मादकता का अनोखा संगम प्रस्तुत करते हैं .सरसों के पीले फूल जहाँ प्रकृति के स्वर्णमयी होने का आभास कराते हैं, वही महुए एवं आम्रमंजरी की मादक गंध से प्रकृति बौराई हुई सी नजर आती है .यह स्थिति मन को मोहने के लिए पर्याप्त होती है
वसंत की इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे ऋतुओं का राजा कहा जाता है .वसंतमें प्रकृति के मनोहारी हो जाने के कारण इसे प्रकृति के उत्सव की संज्ञा भी दी गई है .इस ऋतु में प्रकृति की सुषमा अपने चरम पर होती है, जिस तरह जीवन में यौवन काल को आनंद का काल कहा जाता है, उसी तरह वसंत ऋतु को भी आनंददायी होने के कारण प्रकृति का यौवन काल कहा जाता है .वसंतऋतु में चारों ओर आनंद ही आनंद फैला नजर आता है .लहलहाती फसलों को देखकर किसानों का मन हर्षित हो जाता है. आने वाले समय में सुख एंव सफलता की उम्मीद, उनके लिए वसंत एक संदेश लेकर आता है.
वसंत ऋतु की सुंदरतम व्याख्या करने के बाद, कमलनयन श्रीराम ने चन्द्रमा के समान मनोहर मुख तथा सुन्दर कटिप्रदेशवाली विदेह राज-नान्दिनी सीताजी से कहा:-”हे विदेह-कुमारी ! मेरे प्रपितामह मनु सहित अनेक राजर्षियों ने नियमपूर्वक किए गए वनवास-काल को अमृत तुल्य बतलाया है. मैं अपने उत्तम नियमों का पालन करते हुए, सन्मार्ग में स्थित रहकर, तुम्हारे और भ्राता लक्ष्मण के साथ, इस पावन और पवित्र स्थल पर कुछ काल तक सानन्द से व्यतीत करते हुए अलौकिक सुखों को प्राप्त करूँगा”.
साभार उपन्यास ‘वन गमन’ से
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गोवर्धन यादव
103,कावेरी नगर,छिन्दवाड़ा (म.प्र.) 480001
गोवर्धन यादव.
9424356400