अयोध्या सज उठी है, भव्य और दिव्य। सैकड़ों साल बाद लौट रहे हैं राम अपने प्रांगण में, अपनी अयोध्या में। एक बार फिर ठुमक चलत रामचंन्द बाज़त पैंजनिया वाला उनका बाल रूप प्रस्थापित हो चुका है तो चारों भाइयों और हनुमान जी से सज़ा रामदरबार भी।
राम की अयोध्या और अयोध्या के राम, जैसे शरीर में आत्मा और प्राण।
यूँ तो अयोध्या थी राम से पहले भी, जैसे कि कोई भी शहर रहता है और आज भी है राम की नगरी अयोध्या जब राम नहीं, पर राम के सैकड़ों साल बाद भी राम की वही शाश्वत छवि और अनुगूंज लिए हुए। कण-कण में राम को संजोए उनकी अपनी साकेत नगरी है यह। और अब इस भव्य मंदिर के निर्माण के बाद अपना समूचा गौरव वापस पा चुकी है अयोध्या। वही गौरव जो पुराणों में वर्णित है और उन्हीं राम के साथ जो हमारे हृदय में , हमारी जिह्वा पर , हमारे हर सुख -दुख के उच्छ्वास में हैं। बात चाहे अरे राम की हो या हरे राम की। रामराम की हो या राम जाने की।
राम विष्णु के सातवें अवतार…पद्म-पुराण के अनुसार जय-विजय द्वारपाल भाइयों की कथा जुड़ी हुई है विष्णु के इस अवतार से। जय-विजय दो द्वारपाल बैकुण्ठ के, जिन्होंने दर्शन को आए ऋषि-मुनियों को हरि दर्शन के लिए अंदर नहीं आने दिया और श्रापवश रावण व कुंभकर्ण के रूप में जन्मे और अंततः राम के हाथों मुक्ति पाई।
विष्णु सृष्टि के पालक और पतवार…जब-जब धर्म की हानि हुई, आते हैं सृष्टि को बचाने ।
विष्णु ने अपने रामावतार के लिए चुना “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या” को । वेदों में अयोध्या की तुलना स्वर्ग से की गई है। बिल्कुल विष्णु के वैकुंठ धाम की तरह ही धन-धान्य और ऐश्वर्य से भरपूर थी अयोध्या। सुनते हैं मनु ने बसाया था इसे और पुरातन आठ शहरों में से एक है अयोध्या। यथोचित ”अयोध्या’ नाम भी दिया गयाः अ–योध्या अर्थात् ‘जिसे युद्ध के द्वारा प्राप्त न किया जा सके, यानी अजेय और अपराजेय।
प्राचीन सप्त पुरियों में से एक अयोध्या और सूर्य वंशी राम का वहाँ जन्म , अलौकिक और दैदीप्यमान संयोग ही तो है यह भी,
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका ।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका:॥
अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, काञ्चीपुरम, उज्जैन, और द्वारिका – ये सात पुरियाँ मोक्षदायी हैं तो हमारे राम, कृष्ण और शिव भी तो।
वाल्मीकि ने भी जब राम कथा लिखी थी तो बहुत खूबसूरती और प्रेम से उकेरा है अयोध्या को।
आश्चर्य नहीं, अयोध्या में विष्णु का अवतार हुआ , मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रूप में आए विष्णु, विष्मु जो त्रिदेवों में हमारे पालक हैं , उद्धारक हैं। शंख, चक्र के साथ आए विष्णु, भरत और शत्रुघ्न भाइयों के रूप में और शेषनाग जो परछांई की तरह सदा साथ रहते भाई लक्ष्मण के रूप में ।
इन्तजार करती रही थी अयोध्या अपने सबसे होनहार नौनिहाल के जन्म का।
युग बदले कितने शाषक आए और गए परन्तु राम आज भी हैं और रहेंगे । क्योंकि रामकथा सांसारिक विकारों को काटने वाली ‘विटप कुठार’’ है।
ऐतिहासिक शहर अयोध्या और युग-पुरुष राम।
राम जिनका नाम ही अजपा जाप है। सगुण और निर्गुण दोनों ही द्वारा पूजे जाने वाले राम । रा यानी प्रकाश और म यानी अपना या आत्मा का। एक तरफ तो कभी न डूबने वाले तेजस्वी आदित्य राम और दूसरी तरफ कई जैन मुनियों की जन्म-स्थली और तपोस्थली अयोध्या। आस्था और आध्यात्म का केन्द्र है अयोध्या। मर्यादा पुरुषोत्तम को जो चाहिए था प्रजा की रक्षा के लिए सब था इक्षवाकु वंश के राजाओं की राजधानी में। खुद मनु ने बसाई थी अयोध्या।
ह्वैन सैंग चीनी यात्री जब सातवीं शताब्दी में आया तो अचंभित था। बीस बौद्ध मंदिर दिखे उसे और ३००० बौद्ध- भिक्षु। सदियों से आध्यात्म और ज्ञान की नगरी रही है अयोध्या।
सौभाग्य और संयोग ही था कि बचपन से जिसकी अदम्य चाह थी, उस ऐसी अप्रतिम अयोध्या नगरी जाने का मौका मिला मुझे भी २००९ में। पर वहाँ पहुँचकर आश्चर्य चकित करती, मन में सर्वाधिक तीव्र इच्छा उस जगह को ही सर्वप्रथम देखने की जगी, जहां राम ने सदियों पहले जल -समाधि ली थी। ( वनों को देखने की अभी भी है जहाँ चौदह वर्ष तक भटके थे श्री राम)।
प्रखर धूप में सरयू किनारे गुफ्तार घाट पर खड़े होकर उस दिन मन में पहले उद्वेलन और फिर जो शांति महसूस हुई थी, वह आज भी तो अविस्मरणीय और अवर्णनीय ही है।
कहते हैं हर ज्वालामुखी के तले में ठंडे जल के सोते होते हैं। कुछ ऐसी ही मनःस्थिति थी वह भी सबसे अलग , सबसे परे। न आसपास बिखरी गंदगी दिख रही थी उस पल और न ही कड़कड़ाती धूप ही सता रही थी। उछाह खाती उन लहरों में डूबी आँखें मानो बस राम के चरण छू कर प्रफुल्लित थीं और हृदय पूर्णतः राममय।
दो वर्ष बाद अयोध्या वासी एक मित्र ने बताया था कि सही ही पहचाना था मैंने। इस स्थल को आज भी उस क्षेत्र की उर्जा का नाभि-केन्द्र माना जाता है। कवि भारत भूषण जी की इन पंक्तियों की याद ने तो आंखों के आगे वातावरण पुनः ज्यों-का-त्यों सजीव और चित्रमय कर दिया था। राम का त्याग , राम का धैर्य और शौर्य फिर उनका वह वैराग्य , एकाकी दुख, सब आँखों के आगे सजीव हो चुका था। विछोह तो वैसे भी दुःखद है ही,
पश्चिम में ढलका सूर्य उठा, वंशज सरयू की रेती से,
रीता रीता हारा हारा, हारा हारा रीता
निशब्द धरा, निशब्द व्योम,
निशब्द अधर पर रोम रोम था टेर रहा सीता सीता
तूं कहां खो गई वैदेही, वैदेही तूं खो गई कहां,
मुरझाए राजीव नयन बोले, बोले राजीव नयन बोले
देवत्व हुआ अब पूर्णकाम, नीली माटी निष्काम हुई,
किस लिए रहें अब ये शरीर, ये शरीर किस लिए रहे,
धरती को मैं किस लिए सहूं, धरती मुझकों किस लिए सहे
मांग भिखारी लोक मांग, कुछ और मांग अंतिम बेला,
कल राम मिले न मिले तुझकों, कुछ और मांग अंतिम बेला,
आंसुओं से नहला बूढी मर्यादाए, कल राम मिले न मिले तुझकों
कुछ और मांग अंतिम बेला
अंदर बस गूंजा भर था, छप से पांव पडे सरयू में
कमलों में लिपट गई सरयू, सरयू लिपटी कमलों में …
अपने राम की यादें और पद पंकज को सहेजे आज भी तो सरयू वैसे ही बह रही है, अयोध्या के कण-कण को सींचती। ढूँढें तो, देखें तो, रामनाथ से ही धड़कती आज भी।
बाबा तुलसी की तरह भावातिरेक में बहते और हर आते जाते अयोध्यावासी को प्रमाण करते सजल नयन भी तो यही दोहरा रहे थे उस दिन मन-ही-मन,
‘ सिया राममय सब जग जाणी, करहुँ प्रणाम जोरि जुग पाणि।’
शैल अग्रवाल
Shailagrawal@hotmail.com