चारों तरफ़ फूटते बम और ढहती इमारतों की ख़बरें और तस्बीरें…अपने घरों और देश से ही अपदस्थ शरणार्थी…भटकते बच्चे और बूढ़े, एक त्रासद और अनिश्चित तस्बीर है जाते हुए वर्ष २०२४ की अभी तक तो। कोई समझौता नहीं, कोई सुलह नहीं। फिर भी मन प्रार्थना करना चाहता है, शांति और सुख की, विवेक और सद्भाव की। पर यह तो वही बात हुई जैसे कि बर्फ़ से ऐंठी डालों पर कोमल फूलों के खिलने के स्वप्न देखना…पर देर-सबेर यही डालें फिर से हरी तो होती ही हैं और फूल भी खिलते ही हैं। शिशिर में बसंत की चाह वाक़ई में न असंभव है ना ही अन्यथा । हाँ , वक़्त की शाख़ पर यदि घोसला बनाया है तो बदलते मौसमों को तो सहना ही पड़ेगा, इनसे ुजरना ही होगा।
हर काली रात के बाद पौ फटती है और पतझर के बाद बसंत आता ही है। ज़रूरत बस धैर्य की है, विवेक की है, इस तूफ़ान के गुजर जाने की है, इंतज़ार की है।
झरते पत्तों के बोझ के नीचे से जब बसन्त की सूचना देती पहली नरगिस सिर उठाती है तो दृश्य कितना आल्हादित करता है, जिसने देखा है, वही समझ सकता है इसे। हारना नही है, अंधेरी-से अंधेरी रात के बाद भी सुबह की ही व्यवस्था की है प्रकृति ने भी । बस यही संदेश है हमारे इस अंक का और इसी पर केन्द्रित है हमारा यह अंक-यह पीड़ा, यह दुख जो अनगिनत बेघर होते लोगों पर फेंकी जा रही है, उसका अंत हो , सद्भाव और विवेक के साथ एक शांति पूर्ण समझौते के साथ अंत हो हर लड़ाई का यही सतत प्रार्थना है।
पर हर वक़्त प्रार्थना व सदेच्छा भी तो काम नहीं करती, क्योंकि मानव स्वभाव और समाज दोनों ही रेशम की लच्छियों से हैं, बेहद कोमल और चिकने परन्तु जरा ध्यान न दो तो बेवजह-ही आपस में ही उलझ जाते हैं। और फिर सुलझाने में घटों क्या, कभी-कभी तो पूरी उम्र ही निकल जाती है। कभी-कभी तो डोर तोड़नी तक पड़ती है। फिर ख़ुद में उलझा आदमी तो इतना तनाव-ग्रस्त, उदास और बीमार हो जाता है कि उसमें से पूरा आत्म-विश्वास ही नहीं, जीने की इच्छा तक नष्ट हो जाती है। हमने इन्हीं उलझन कहें या विकारों को केन्द्र में रखकर संजोया है यह अंक, उन्हें समझने की, या उनसे निपटने की, उनके प्रति सचेत और जागरूक होना चाहा है।
इस समाज की जटिल गुत्थी को सुलझाने के लिए कई-कई मार्मिक और प्रभावी रचनाओं को संजोया है हमने इस अंक में और कुछ नए नाम, नए मित्रों का स्वागत भी कर रहे हैं । यशपाल यश जी, जिनका ग़ज़ल-संग्रह बूँद-बूंद सागर अभी हाल ही में आया है अपनी खूबसूरत ग़ज़लों के साथ पहली बार जुड़े हैं हमसे और सुनीता राजीव जी की चक्रव्यूह भी पहली कहानी है लेखनी में। दोनों का ही हम तहेदिल से स्वागत है आपके लेखनी परिवार में। प्रेम तन्मय जी का भी हम स्वागत करते हैं, जिनके संतुलित दृष्टिकोण से विचारों को एक कोमल प्रखरता मिलती है।
अन्य सभी आपकी परिचित और जानी-पहचानी कलम हैं। इस अंक में अपनी भाव-प्रवण रचनाओं के साथ उपस्थिति दर्ज की है पद्मा मिश्रा, अनिता रश्मि, इंदु झुनझुनवाला, देवी नागरानी और गोवर्धन यादव जी ने। मित्रों की कलम की ऊर्जा के सहारे ही तो लेखनी हर अंक में साँस ले पाती है। आप ही तो इसकी शिरायें और धमनी हैं। विषय को आपने अपनी-अपनी तरह से समझने की कोशिश की, इसके लिए एक बार फिरसे मेरे सभी अपनों को बहुत-बहुत आभार और स्नेह ।
अभी हाल ही में हमने भारत के एक कर्मवीर सपूत उद्योगपति रतन टाटा जी को खोया है, लेखनी परिवार उनको भावभीनी श्रद्धांजलि देता है।
नए वर्ष की शुरुआत हम ऐसे ही कुछ सफल व्यक्तिओं की जीवनी से कर रहे हैं। व्यक्ति जो न सिर्फ़ प्रेरक और चुम्बकीय व्यक्तित्व के स्वामी रहे, उन्होंने मानवता और समाज के लिए अपनी विलक्षण क्षमताओं के साथ बहुत कुछ किया भी। साथ-साथ में हम सफलता को समझेंगे भी- क्या है सफलता? और किस हद तक? क्या यह एक सोची-समझी रणनीति है, जिसे हासिल करने के लिए हम बचपन से ही तैयारी में लगा दिए जाते हैं? क्या है एक सफल आदमी की नैतिकता और ज़िम्मेदारी? आपकी नज़र में आज तक विश्व के पूरे इतिहास में कौन-कौन सफल रहा? क्या यह मात्र आर्थिक उपलब्धि है? योग्यता है या फिर प्रतिष्ठा? आप चाहें तो जिसे सफल मानते हैं, उसका जीवन चित्र भी भेज सकते हैं। आपकी रचनाओं का हमें १० दिसंबर तक इंतज़ार रहेगा। कुछ निजी कारणों से इस बार दस दिन पहले रचनायें माँग रही हूँ। उम्मीद है कि हमेशा की तरह ही आपका पूर्ण सहयोग मिलेगा। ई. मेल वही है –
shailagrawal@hotmail.com और shailagrawala@gmail.com
म्मीद है कि आपको हमारा यह ताज़ा भावों का गुलदस्ता पसंद आएगा और यह कहीं-न-कहीं आपके मन को अवश्य-ही खूबसूरत बनाएगा, जिनके पास कुछ नहीं है, उन्हें भी जीने का हक़ है यह समझाएगा।
अंक त्योहारों के बीच आपके हाथों में जा रहा है इसलिए पुनः-पुनः त्योहारों की बहुत-बहुत बधाई।
हमारा तो हिन्दू नया वर्ष भी इसी दिन यानी दिवाली के बाद की पड़वा से ही शुरु होता है…तो क्रिसमस और नए साल की भी बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ मित्रों, आपका जीवन ज्योतिर्मय और सत्कर्मों के साथ सदैव सुखमय रहे।…
शैल अग्रवाल