अपनी बातः धरती से चाँद तक!

एतिहासिक और गौरवमय पल है यह भारत के लिए ही नहीं, पूरी मानवता के लिए। इकबाल ने कभी यूँ ही तो नहीं कह दिया था-सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

धरती से लेकर चाँद तक आज भारत ने अपनी एक अमिट छाप छोड़ दी है। हमारा प्रज्ञान अपने टायरों सहित जहाँ-जहाँ चांद की जमीन पर घूम रहा है अपने निशान छोड़ता चल रहा है। और चूँ कि चांद पर हवा नहीं है, ये मिटेंगे भी नहीं। इस ऐतिहासिक उपलब्धि की घोषणा करते रहेंगे। विश्व प्रशंसा और नई उर्जा व विश्वास के साथ देख रहा है भारत की ओर। और हमारा रोबौट प्रज्ञान चन्द्रयान से बाहर निकल कर चांद पर चारों तरफ़ भारत के ध्वज-चिन्ह अंकित करता कम-से-कम चांद के दक्षिणी भाग पर भारत की कीर्ति-पताका लहरा रहा है। खनिज विश्लेषण कर रहा है। वहाँ से पल-पल की ख़बरें दे रहा है। चाँद के उस दुर्गम और अभेद्य हिस्से की तस्बीरें भी भेज रहा है, जहाँ इससे पहले कोई पहुँचा ही नहीं।

निश्चय ही यह सारी जानकारी न सिर्फ ज्ञान और संभावनों के नए-नए द्वार खोलेगी अपितु मानव हित में हो रहे वैज्ञानिक शोधों को नए-नए आयाम भी देगी। उत्साह देखें हमारे वैज्ञानिकों का, चाँद तक ही क्यों अब तो सूरज को भी खंगालने की तैयारी हो चुकी है। जी हाँ उन्ही वैज्ञानिकों द्वारा जो मानते हैं कि विज्ञान के जनक हमारे आदि ग्रंथ उपनिषद ही हैं और आज भी सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत ही है , जो कि सर्वाधिक कम्प्यूटर के अनुरूप और उपयोगी भाषा है। गर्व होता है यह सब जान और सुनकर और मस्तिष्क श्रद्धा से झुक जाता है देश के नए-पुराने सभी मनीषियों के आगे।
हमारी इस अंतरिक्ष की दौड़ का पहले मज़ाक बनाया गया था कि भारत जैसा गरीब देश कैसे टिक पाएगा इस मँहगे अनुसंधान में ? परन्तु भारतीयों ने सिद्ध कर दिया कि हम कम-से-कम खर्चे में भी महती लक्ष साधने वाले एकाग्र चित्त और वैज्ञानिक सोच के लोग हैं। न सिर्फ हमारा गणित अचूक है, हमारी संयोजना भी ऐसी है कि जितने पैसे में एक फिल्म बनती है उससे भी कम में हम चांद पर पहुँच जाते हैं। सुनते हैं आदि मानव फिल्म में जितने पैसे लगे थे उससे भी कम में इसरो ने चन्द्रयान को चांद पर पहुँचाया। अब लोग हमसे सीखेंगे , कैसे फिजूल खर्ची से बचते हुए वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रयोग किए जाते हैं। यान को विक्रम नाम देना विक्रम साराभाई के लिए भावपूर्ण श्रद्धांजलि है। दरअसल में जैसे इस पूरे खार्यक्रम को लक्ष पर पहुंचाया गया, उसके लिए इसरो का छोटा-बड़ा हर कार्यकर्ता ओर वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं। साथ ही भारत के वर्तमान प्रधान मंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी, जिन्होंने बड़ी लगन और जोश के साथ वैज्ञानिकों का पूरा साथ दिया और हमेशा उनका आत्मबल बढ़ाया। याद आता है जब चंद्रयान दो की असफलता के बाद उन्होंने आँसू भरे निराश वैज्ञानिकों को गले लगाया था और पीठ थपथपा कर उन्हें सान्त्वना दी थी। कठिन और पराजित पलों में ऐसे ही आत्मीय और सुदृढ़ सहारे की ही तो कामना रहती है सभी को।

कहते हैं सफलता ही सफलता की जननी है, भारत और उसके सफलतम व उज्वल भविष्य के लिए अशेष और अनंत शुभकामनाएँ।

‘कुछ तो बात है कि हस्ती सिमटती नही हमारी, सदियो रहा है दुश्मन ये जमाना हमारा।’
आज जब दोस्त ही नहीं दुश्मन देश भी भारत को बधाई दे रहे हैं, ध्यान रखना होगा देश के सभी मित्र और विरोधी नेताओं को भी कि आपसी ईर्षा और महत्वाकांक्षा , व्यर्थ की राजनीति में अंधे न हों और देश को पुनः उसी पुरानी दलदल में न घसीटें। जैसे-तैसे तो देश की यह इन्डिया से भारत की ओर की यात्रा शुर हुई है।

माना दलदल में कमल और खूबसूरती से खिलता है, पर बहुत कुछ छूट और टूट भी जाता है।
आज जब भारत प्रगति पथ पर अग्रसर है तो इन विवादों से, अवरोधों से बचना ही होगा…पुराना यदि काम नहीं कर रहा तो उसे भूलना ही होगा, चाहे नीति हो या नायक।
सुमित्रानंदन पंत की कविता याद आ रही है-द्रुत झरो, ए जीर्ण पत्र।
पुराने से ही नया जनमता है और आज जो नया है वह कल पुराना होगा ही, यही नय है इस परिवर्तीन शील संसार का।
हमने भी लेखनी के इस अंक में नए पुराने को खूबसूरती के साथ पिरोया है। हमारे साथ जुड़ रही हैं अपनी कहानी और कविता के साथ उषा किरण शुक्ला जी, उनका तहे दिल से लेखनी परिवार में स्वागत और अभिनंदन है। कई नए आलेख, कहानी और कविता से सजा यह अंक भारत को समर्पित है। भारत की संस्क्रति, भारत की यादें, भाषा और भारत पर्यटन पर है। उम्मीद है अंक आपको पसंद आएगा।
लेखनी का आगामी नवंबर-दिसंबर का अंक लिंग-भेद, समाज में उसके महत्व और उपेक्षा आदि पर है। क्या एक विशेष लिंग होने से व्यक्ति का महत्व और आधिपत्य दोनों ही अधिक हो जाते हैं? क्या आज भी कन्या भ्रूण हत्या सही है? थर्ड जेन्डर के लोगों को वैसे ही दान-दक्षिणा पर ही गुजर-बसर करनी चाहिए, जैसे वे करते आए हैं? आपकी प्रतिक्रिया और रचनाऔं का हमें इन्तजार रहेगा-shailagrawal@hotmail.com और shailagrawala@gmail.com पर।
रचना हमें 20 अक्तूबर तक मिल जानी चाहिए।

इस बीच पड़ने वाले त्योहार जैसे राखी, जन्माष्टमी और हिन्दी दिवस की बहुत-बहुत बधाई, मित्रों! अगले अंक में फिर मिलते हैं।
नमस्ते।

शैल अग्रवाल

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