आदर्श, अभिलाषा व उल्लास का अद्भुत संयोग होते हैं त्योहार और इन्हें मनाना भी इसी त्रिगुणी ऊर्जा के साथ ही चाहिए । आदि मानव द्वारा सूरज और चाँद की पूजा यह अँधेरे से उजाले की ओर जाने की ही तो चाह jरही होगी, मानव-सोच की प्रगति यात्रा की शुरुवात थी यह। चिनगारी और पहिया या चक्र दोनों का ही हमारे विकास में अभूतपूर्व योगदान है। चिनगारी ने जहाँ हमारी अंधेरे में दृष्टि खोली, भोजन और रिश्तों में गरमाहट नित नए प्रयोग और स्वाद दिए होंगे, पहियों ने अभूतपूर्व गति और बोझ वहन करने की , एक जगह से दूसरे तक जाने की शक्ति। ‘उमसो माँ ज्योतिर्मय’ हमारी एक वैदिक प्रार्थना ही नहीं, स्वस्थ और अर्थपूर्ण जीवन पद्धति है। इस हद तक कि यदि अँधेरा घना हो जाए , असह्य हो जाए तो अप्पः दीपों भव – यानी ख़ुद ही दीपक से जल उठो, अपने सत्कर्मों के साथ, वह भी मन में करुणा, ममता और सद्भाव का नेह भरकर- तक की कामना और सूझ-बूझ रही है हमारे रिषियों की परिष्कृत और साहसी सोच में आदि काल से ही।
जब दुख गहरा हो तभी तो सहारा चाहिए, जैसे जब अंधेरा निगलने लगे तो रौशनी चाहिए… यही वजह है कि रौशनी के ये सारे त्योहार जाड़ों के अँधेरे और ठंडे दिनों में ही तो मनाए जाते हैं विश्व भर में ताकि उजाला और गरमाई रहे, हर्ष और उल्लास रहे जीवन में। हिन्दुओं में ही नहीं यहूदी ( हनूका) मुस्लिम ( ईद) हिन्दू (दिवाली ) आसपास ही तो मनाए जाते हैं ये त्योहार ठिठुरती और पाले भरी रातों को रौशनी व लौ की ऊर्जा के साथ मित्र और परिवार के साथ, खाते-पीते, उत्सव मनाते हुए गरम व रौशन रखने के लिए। फिर इन सब त्योहारों के बारे में सोचें तो कहीं न कहीं मिलते-जुलते से भी तो है। वही अच्छे-बुरे की लड़ाई और फिर बुरे के अंत पर हर्ष और उल्लास। यहाँ ब्रिटेन में ‘गाई फौक्स डे’ मनाया जाता है जिसका स्वरूप हमारे दशहरा और दिवाली से मिला जुला है। गाई बुरा व्यक्ति और अपराधी था जिसे जला कर ख़ुशियाँ मनाई जाती हैं , पटाके फोड़े जाते हैं। और यह प्रथा आज भी चली आ रही है, हर पाँच नवंबर को यहाँ पर आकाश बिल्कुल दिवाली की तरह ही पटाकों से जगमग कर उठता है। एक और त्योहार है इनका जो इन्हीं दिनों में आता है और प्रति वर्ष ३१ अक्तूबर को मनाया जाता है। इसे हैलोईन कहते हैं। बच्चों के लिए मौज मस्ती का दिन है यह. तरह-तरह के डरावने मास्क पहन कर बच्चे-बच्चे घर-घर जाते हैं और ट्रिक या ट्रीट कहकर अपने आगमन की सूचना देते हैं। आपके द्वारा ट्रीट कहने पर आपको उन्हें कुछ स्वीट्स देकर विदा करना होगा और वह ख़ुशी-खुशी बिना कोई उपद्रव किए लौट जाएँगे, परन्तु यदि आपने ट्रिक कह दिया तो फिर अंडा फोड़कर , सौर लगाकर वह आपकी खिड़की दरवाज़े को गंदा करके लौट जाएँगे। छोटे बच्चे अजीबो-गरीब भूत-प्रेतों जैसे डरावने मास्क और काले सफ़ेद होकर झुंडों में निकलते हैं हैलोइन पर यह ट्रिक या ट्रीट का खेल खेलने के लिए।
भारत और विश्व भर में बसे भारत वासियों की बात की जाए तो हमारे इस पंच दिवसीय ज्योति पर्व की शुरुआत, लक्ष्मी जी के जन्मोत्सव यानी धनतेरस के दिन से होती है । जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई माँ लक्ष्मी जी। आपकी सहायता के बिना तो दरिद्र नरायण से निपटना संभव ही नहीं किसी के लिए भी। भरपूर कृपा रखिएगा -कहीं कोई भूखा नंगा न रह जाए, यही प्रार्थना है आपसे।…
पौराणिक कथा है कि धनतेरस के दिन ही देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र-मंथन के बाद लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं अन्य सभी बहुमूल्र्य रतन के साथ , जिसमें अमृत और विष के साथ-साथ धन्वन्तरि वैद्य, ऐरावत हाथी और कामधेनु आदि कई प्रतीकात्मक और हित व अहितकारी पदार्थ भी निकले थे, जैसे कि अच्छा और बुरा, अँधेरा और उजाला, जिनकी सहायता से मानव जीवन को इसी धरा पर स्वर्ग या नर्क बना सकते है हम और बना भी लेता है अपने-अपने विवेक अनुसार, इनसे निपटना ही तो हर व्यक्ति की जीवन-यात्रा कहलाती है , और अगर जीना है तो इनसे निपटना , इनके साथ ही, इनके बीच में रहकर ही जीना होगा।
अभिलाषा और कामनाओं का अक्षय कलश ही तो हैं ये त्योहार, जिनकी पूर्णता ही उत्साह और आनंद में है, संग-साथ में है।
ख़ुशियाँ बाँटे, माधुर्य साझा करें। संभव हो तो ख़ुद भी विषाद रहित रहें और अपने घर परिवार व मित्रों को भी रखें। यही मुख्य उद्देश्य है इन त्योहारों का, तब भी और आज भी। अगर घर और समाज में सौहाद्र है, विवेक है, लक्ष्मी जी तो आएँगी ही, सरस्वती का भी वास रहेगा घर-परिवार और समाज में। राम-रावण, सीता और सूपर्णखां सब यहीं और हमारे बीच ही तो हैं। ये पौराणिक कहानियाँ बस उदाहरण हैं कुछ मानक आदर्शों के लिए, कुछ कहने और समझाने के लिए। वैसे न समझ में आए तो धर्म और अनुष्ठान के नाम पर व्यक्ति निष्ठा के साथ , अंध अनुकरण करता है इनका।
कई कहानियाँ जुड़ी हैं दिवाली के इन पाँचों दिनों से जिनमें घर की लक्ष्मियों का ही नहीं, दरिद्र परायण की भी सुध ली जाती है। पारिवारिक और सामाजिक सफ़ाई व मेल-मिलाप के हैं ये पाँच दिन। पहला दिन स्वास्थ्य और मुद्रा के लिए, जिनके बिना कुछ भी कर पाना संभव ही नहीं और अतिथियों के आगमन के लिए सामग्री जुटाने के लिए। दूसरा ख़ुद पर ध्यान देने के लिए-रूप चौदस या नरक चतुर्थी-सफाई और साज-सजावट के लिए, अपने घर की भी और ख़ुद की भी। अंदर-बाहर हर तरफ़ से गंदगी हटाने के लिए। तीसरा दिन मेल-मिलाप, उत्सव व उल्लास के लिए। चौथा दिन अन्न कूट या अन्न दान का और चौथा दिन परिवार की सबसे प्यारी विप्र के बाद सर्वाधिक पूज्य अतिथि बहन का पूरे उल्लास के साथ सानिध्य पाने के लिए।
मेरे हिसाब से तो यही सबसे खूबसूरत व्याख्या है इन पाँचों त्योहार के दिन की। बाक़ी सब तो कहानियाँ हैं, जो जुड़ती चली जाती हैं, वक़्त और समझ के साथ-साथ और जुड़ती भी चली जाएँगे। सुनें, पढ़ें और आनंद लें अपने अपने परिवार और समझ के साथ।
त्योहारों पर यह रचनाओं का विशेष और अतिरिक्त संयोजन आपके साथ ख़ुशियाँ बाँटने के लिए है , पढ़े और आनंद लें और यदि संभव हो तो अपनी राय और अनुभव साझा भी करें। पंचदिवसीय ज्योति पर्व और पूरे विश्व में मनाए जाने वाली हर रौशनी की कामना और उत्साह के लिए बहुत-बहुत बधाई, मित्रों।
शैल अग्रवाल
shailagrawal@hotmail.com
shailagrawala@gmail.com