कहानी समकालीनःअदृश्य इकताराः डॉ. मुक्ता

“ मुझे काम चाहिए ।“
लंबी, सुंदर , तीखे नाक नक्श वाली युवती सामने खड़ी थी । रमा ने अंदर आने का संकेत किया । खाना बनाने वाली सुदामा ने कई वर्षों से घर संभाल रक्खा था । गठिया के असाध्य रोग से उसके हाथ पैरों की उँगलियाँ टेढ़ी होने लगी थीं । रमा से लगाव होने के कारण वह किसी तरह काम संभाल रही थी । रमा खाना बनाने वाली की तलाश में थी ।
“ घर कहाँ है ?” रमा ने युवती से प्रश्न किया ।
“ इसी मोहल्ले में ।“
“ तब तो ठीक है , आने में सहूलियत रहेगी ……….. मेरे घर में बहुत सादा खाना बनता है । “
“ जीs – स्कूल में कितने टीचर हैं ?” युवती ने बात काटते हुए प्रश्न किया ।
“ कौन सा स्कूल ?” रमा ने चौंक कर पूछा ।
“ आप स्कूल चलाती हैं न ?”
“ नहीं …… मुझे खाना बनाने वाली की जरूरत है ।“
“ ओह …. मुझे पता चला आप स्कूल चलाती हैं …….. मैं बी. ए. पास हूँ।
“ तो तुम्हें नौकरी नहीं चाहिए ……..”
“ नहीं मैडम , खाना बनाने की तो बिलकुल नहीं ……. वैसे मुझे नौकरी की बहुत जरूरत है ……” युवती का स्वर भर्रा उठा।
रमा की दिलचस्पी युवती के प्रति जाग उठी थी ।
“ सोंच लो , तुम ट्रेंड टीचर नहीं हो , क्या मिलेगा छोटे स्कूल में ……. काम कोई छोटा नहीं होता …… मेरे पास रहोगी तो कोई अच्छी नौकरी ढूँढूँगी तुम्हारे लिए ……”
युवती उठ खड़ी हुई । चेहरे पर आक्रोश था ।
“ थैंक्यू मैडम, आप कर सकती हैं ……….. किसी के घर खाना बनाने की नौकरी ?”
वह बाहर निकाल गई । रमा हतप्रभ देखती रह गई । रसोई में रोटी बनाती हुई सुदामा यह बातचीत सुन रही थी । काम निपटा वह सामने आ खड़ी हुई ।
“ समय का फेर है दीदी …….. कभी मैं इसी पूनम बीबी के घर खाना बनाती थी । इसी मोहल्ले में रहते हैं ये लोग। चौक में इनका कपड़ों का अच्छा कारोबार था । पिता बड़े मेहनती , साधु आदमी थे । बेटा निकम्मा निकल गया , दिमाग से कमजोर … पगलेट । पूनम बीबी पढ़ने में तेज थीं ……… कॉलेज जाती थी तभी शादी कर दी । इसका आदमी सही नहीं निकला , शराबी …. आवारा …… पूनम बीबी को मारता भी था । एक बेटा हुआ । साल पूरा नहीं हुआ पूनम बीबी बच्चे को लेकर मायके आ गई । बाप का कारोबार मंदा हो गया । माँ बीमार रहने लगी । माँ की जिद पर भाई की शादी करनी पड़ी । मुझे काम छोड़ना पड़ा। भाभी बड़ी झगड़ालू , जिद्दी है । सास ससुर को कुछ नहीं समझती लेकिन उसकी दबंगई पूनम बीबी के आगे नहीं चलती । अब तो बेटा भी पाँच साल का हो गया है । स्कूल जाता है । पूनम बीबी का आदमी बेटे को ले जाना चाहता है । कोई न कोई चाल चलता रहता है । पूनम बीबी साये की तरह अपने बच्चे के साथ रहती है । बड़ी हिम्मत वाली है । अभी छः महीने पहले बाप भी गुजर गये । दुकान बंद हो गई है । बड़ी तंगी में हैं यह लोग। भौजाई की आँख का काँटा है पूनम बीबी। कमाने वाली भी वही है । घर में सिलाई करती है ……… कहीं पढ़ाती भी थी । लग रहा है नौकरी छूट गई है । पहले बड़ी तंदुरुस्त हुआ करती थी …… अब कितनी दुबली हो गई है …… हम रोटी बना रहे थे , सोंचा अभी बैठेगी तो मिलेंगे ………. “
“ मैंने पहले इसे कभी देखा नहीं ………” बात काटते हुए रमा बोल पड़ी ।
“ स्कूल के पीछे वाले फ्लैट में रहती है ।“
झटके से पूनम का जाना खिन्नता छोड़ गया था । सुदामा की बातों से कुछ बात साफ हुई । रमा को उदास देख सुदामा ने दिलासा दिया ….. “ घबड़ाइए मत दीदी …. जब तक कोई खाना बनाने वाली नहीं मिल जाती …… हम छोड़ेंगे नहीं …… रिक्शे पर आना पड़ा तब भी आयेंगे ……. “
“ मैं …… पूनम के बारे में सोंच रही हूँ ……..” रमा को चुप देख सुदामा अपने काम में लग गई ।
उस औरत की आँखों में कहीं कुछ था जो चुभता था । गहरी निषेध की छाया के साथ एक ऐसा भाव जैसे पूरी दुनियाँ को खारिज किए बैठी हो । आँखों के सफ़ेद कोये में ऐसा फैलाव जैसे दूधिया आकाश उतर आया हो जिसमें काली पुतलियाँ तैर नहीं रहीं वरन अपना वर्चस्व दृढ़ता से स्थापित किए हों । दृष्टि में कहीं कंपन नहीं ……… न भय की काली रेखा वरन अपने हिस्से का वैभव हासिल करने का दृढ़ संकल्प आँखों में झलक रहा था । अनाम , आगंतुक की शल्य क्रिया करने की पूरी क्षमता रखती थीं पूनम की आँखें । रमा बार – बार उस दृष्टि की गिरफ्त में न चाहते हुए भी आती जा रही थी । कॉलेज जाते समय उसके घर की दिशा में रमा की दृष्टि अनायास उठ जाती थी ।
“ बाप की इज्जत सड़क पर नीलाम करते हुए तुझे शर्म नहीं आती ……….. ठेले वाले का नौकर बना घूम रहा है …….. “ ये शब्द कान में पड़े तो रमा ने मुड़ कर पीछे देखा ।
सब्जी के ठेले के पीछे एक नाटे कद का आदमी हाफ पैंट पहने ठेले वाले के साथ चल रहा था । कुछ दूरी पर खड़ी पूनम दहाड़ रही थी ।
“ इसकी बेगार करते तुझे शर्म नहीं आती …….. अपनी दुकान पर क्यों नहीं बैठता ………. आगे से तुझे इसके साथ देखा तो टांगे तोड़ दूँगी ………. चलs घर चल ……… “
ठिगना आदमी अपनी पूरी शक्ति के साथ सिर झटक कर विरोध कर रहा था। मुँह से टूटे – फूटे शब्द निकल रहे थे जिन्हें समझना टेढ़ी खीर था । रमा को समझते देर न लगी कि यह ठिगना , असामान्य व्यक्ति पूनम का भाई है । कॉलेज का समय हो रहा था । रमा ने सड़क का रुख किया ।
बसंत का मौसम आ चुका था । कंक्रीट से बनी इमारतों के जंगल मे बसंत को ढूँढना आसान न था । पार्क में भी गंदगी का साम्राज्य था । किसी चिड़िया के चोंच से गिरे बीज ने पार्क में भरा पूरा वृक्ष रच दिया था। फूलों से लदा वृक्ष लोगों को गुहारता प्रतीत होता था । बरबस ही लोगों कि निगाहें उठ जातीं और प्रकृति के सुरभि उपक्रम में रम जातीं । पूनम बच्चों को इकठ्ठा कर पार्क की सफाई में जुटी हुई थी । उसका उद्देश्य बच्चों को खेल की जगह मुहैया करना था । सामने वाले तिवारी जी जिसमें अड़ंगा बने हुए थे । पार्क को वह अपनी निजी संपत्ति समझते थे । लगभग पाँच वर्ष का एक लड़का पूनम के इर्द-गिर्द घूम रहा था । रमा समझ गई कि यही पूनम का बेटा है । गोरा , दुबला और भूरी तेज आंखोंवाला । दो , तीन दिन तक पूनम बेटे के साथ आती और मोहल्ले के बच्चों के साथ मिलकर पार्क की सफाई करती । फिर यह क्रम टूट गया ।
रमा को लगता यह औरत हवा में मुट्ठियाँ भांज रही है । कभी लगता इसके लिए सब कुछ सहज है । यह अपने हिस्से का आकाश मुट्ठियों में बाँध लायेगी । अब उस औरत के बारे में सोंचना रमा को भला लगता । एक खाका बनता जा रहा था …….. जहाँ औरत , औरत के सपनों में रंग भरती है । रमा को प्रतीत होता इस औरत के अंदर उसके भीतर की खोई औरत प्रवेश कर गयी है – इस औरत को न झुकना चाहिए न ही मुड़ना चाहिए । अगर रमा हार रही है तो हारती रहे …… इस हार में ही उस औरत की जीत है जो रमा का असली चेहरा है और हर कदम पर समझौता करके जिसे रमा खो चुकी है । रमा की लुप्त जिजीविषा जाग उठी थी ।
कॉलेज से लौटते समय एक दिन रमा ने पूनम को इंगलिशिया लाइन के एक होटल में रिसेप्शनिष्ट की जगह बैठे देखा । पूनम को व्यवस्थित देख रमा को खुशी भी हुई और संतोष भी । आखिर यह तेज लड़की अपने आकाश को मुट्ठी में खींच लाई । रमा अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई । कॉलेज में परीक्षायें शुरू हो चुकी थीं । महीनों बीत चले। पूनम की छवि ओझल होने लगी थी । अचानक चंदुआ सट्टी में सब्जी खरीदते हुए रमा की दृष्टि अंटक गई। वही चुभने वाली दृष्टि , पर शरीर एकदम निचुड़ा हुआ। गेहूँआ रंग झँवा गया था । रमा पूछ बैठी “ तुम पूनम हो ?”
“ हाँ मैडम आपने ठीक पहचाना ।“
अरे !! इतनी दुबली कैसे हो गई ….. बिलकुल सूख गई हो ……… तुम तो होटल में नौकरी कर रही थी नs ?”
“ हाँ मैडम , लेकिन नौकरी करना आज के समय में आसान नहीं ……… इसीलिए टीचिंग करना चाहती हूँ ……. “
“ क्यों क्या हुआ ?”
“ उस कमीने की बुरी नजर मुझ पर थी ……. उसकी शामत आई थी जो उसने मुझ पर हाथ डाला …… ऐसी पिटाई की है कि सात जनम याद रखेगा हरामखोर …… होटल का मालिक है तो क्या ……… हर औरत उसकी रखैल बन जायेगी …….. “ पूनम का चेहरा तमतमा उठा ।
“ टीचिंग करना है …….. तो यह गालियाँ नहीं चलेंगी …….. इतनी दुबली कैसे हो गई …… कोई बीमारी तो नहीं हो गई ?”
रमा ने सहानुभूति जताते हुए कहा ।
“ गालियाँ बकने का ठेका क्या मर्दों ने लिया है ……. हम ऐसे ही सिर झुकाये बर्दाश्त करते रहें और वो हमें माँ बहन की गालियाँ सुनाते रहें ……… यही कह रहीं हैं न आप ? आप जैसियों ने ही इन हरामियों का मन बढ़ा रखा है ………. मुझे टी. बी. हो गई है ….. किसी की हमदर्दी नहीं चाहिये ………. मैं अपना इलाज करा लूँगी ……. “ कहते हुए पूनम तीर सी निकाल गई ।
रमा काठ हो गई । बोझिल कदमों से घर लौटी । रातभर बेचैनी से करवटें बदलती रही । आखिर क्या रिश्ता है इस औरत से उसका ? रमा बार-बार जुडने और टूटने के लिए क्यों अभिशप्त है ? उस औरत के खाके से मन को हटाने के वह लाख उपक्रम करती लेकिन मन था कि उसकी मर्मभेदी दृष्टि में अंटक जा रहा था ।
कुछ दिनों बाद सब कुछ सामान्य हो गया । कभी – कभी वह ठिगना आदमी , पूनम का भाई , सब्जी वाले के ठेले के साथ दिखाई देता । सब्जीवाला नीचे खड़ा रहता और वह फ्लैट के ऊपर की मंजिलों में सीढ़ी चढ़कर सब्जी पहुंचाता ।
रविवार का दिन था । रमा देर से सो कर उठी थी और मन ही मन सप्ताह भर से छोड़े गये घर के कामों को निपटाने की सूची बना रही थी । हवा में तैरती पूनम की मृत्यु की खबर रमा के कानों तक पहुंची । पूनम के जिंदा रहने पर पूरा मोहल्ला उदासीन था , कभी किसी ने खोज खबर नहीं ली लेकिन मौत के चर्चे जोरों पर थे । कोई कह रहा था पारिवारिक कलह से ऊबकर वह गंगा में कूद गई। कोई खून की उल्टी करते हुए मौत की बात कर रहा था जैसे चश्मदीद गवाह हो । रमा पूरे दिन अनमनी रही । पूनम की स्मृतियों से घिरी, उदासी में डूबी रही । दूसरे दिन सुदामा ने बताया कि लाश तो किसी ने देखी नहीं , सब अंदाज पर हो रहा है । तेरहवीं के पहले ही पूनम के बेटे को उसका बाप अपने साथ ले गया । रमा को सहसा विश्वास नहीं हो रहा था ।
“ यह खबर आई कहाँ से ?”
सुदामा ने आकाश की ओर देखकर कहा “ राम जाने । “ सुदामा अपने काम में लग गई । उसका गठिया बढ़ गया था । धीरे-धीरे किसी तरह वह घर का काम संभाल रही थी । दूसरों के पचड़े में न पड़ कर खुद में रमी रहने वाली वह मितभाषी , सरल महिला थी ।
हफ्ते बाद ही शीतला अष्टमी के दिन रमा ने अवकाश ले रखा था । निर्जल व्रत के बाद सुदामा का आना संभव न था । घर का सारा काम रमा के जिम्मे था ।
दो दिन बाद सुदामा प्रकट हुई । शिथिल अंग लेकिन मन तरंगित , सुदामा के हाथ में अदृश्य इकतारा था , जिसके तार बिना छेड़े ही बजते रहते थे । बनारसी साड़ी , माँग भर ठसाठस पीला सिंदूर , अठन्नी बिंदी , होंठों पर पान की लाली । रिक्शे से उतरती महिला को एकाएक रमा पहचान न पाई ।
“ तुम्हारे लिए परसादी लाये हैं दीदी ।“ सुदामा ने चहकते हुए कहा ।
“ सुदामा तुम ! तुम तो नई नवेली बनारसी दुलहिन लग रही हो। “
“ काहे ठिठोली कर रही हो दीदी ….. आज आने का मन न था , लेकिन एक खुशखबरी तुम्हें सुनाना था …… पूनम बीबी जिंदा है …… “
“ क्या …… पूनम जिंदा है ……….. तुम्हें कैसे मालूम ?”
“ शीतला माई का दरसन करने गए थे ….. वहीं घाट पर मिल गई । चद्दर से अपने को लपेटे मुड़ी-तुड़ी गठरी बनी बैठी थी । हमने पहचान लिया । हमारे पूछने पर बोली , बनारस में औरतों के लिए घाट से सुरक्षित जगह दूसरी नहीं है । अस्पताल में भर्ती नहीं कर रहे थे …….. पैसा कौड़ी है नहीं ……. यहाँ घाट पर खाना मिल जाता है ……. अस्पताल से मुफ्त दवा मिल जाती है ।” हमने बता दिया , तुम्हारे बेटे को तुम्हारा मरद ले गया । तुम्हारे मरने की झूठी खबर उड़ा दी गई है ।
“ यह सुनने के बाद पूनम ने कुछ कहा ?” रमा ने बीच में टोककर पूछा ।
“ पूनम बीबी का चेहरा तमतमा गया , कहने लगी “ यह सब साजिश भाभी और मेरे मरद ने मिल कर रची होगी ………पैसा लेकर मेरे मरद ने बेटे को बेच दिया होगा ……… जब से टी.बी. हुई , छूत की बीमारी कहकर भौजाई ने कोहराम मचा रखा था ….. भाई तो दिमाग से पगला है …. मैं सब ठीक कर दूँगी …. किसी को न छोड़ूँगी ….. ।“
रमा हैरानी से सुदामा को देख रही थी । उसकी बातों में पूनम के प्रति गहरा लगाव और विश्वास झलक रहा था । रमा भीग उठी ।
भोर जगते ही मोहल्ले में फल और सब्जी के ठेले वालों का आना जाना शुरू हो जाता है । रमा के घर के आगे सब्जियों की गुहार लगने लगी थी । रमा कॉलेज जाने की तैयारी में जुटी थी । शरीफों के मोहल्ले के सन्नाटे को तोड़ती हुई कडक आवाज गूंज उठी । पूनम की आवाज पहचानने में रमा को क्षण भर न लगा । वह बरामदे में आ खड़ी हुई ।
“ बाप की इज्जत नीलाम करते तुझे शरम नहीं आती ……. तेरी यह हिम्मत ……. तूने मेरे बेटे को उस शराबी के हवाले कर दिया ……… जोरू का गुलाम …… डूब मर …….. मैं मरने वाली नहीं हूँ ……. मेरे मरने की बात फैलाकर तुम लोगों ने मेरी उमर बढ़ा दी है …… अपनी दुकान छोड़ ठेले वाले की बेगार कर रहा है …….. टांगे तोड़ कर रख दूँगी ……… “ पूनम भाई को बाहों से घसीटते हुए घर की ओर बढ़ी ।
पूरे दिन कॉलेज में रमा व्यस्त रही । शाम को चाय पीने के बाद रमा बगिया में रखे गमलों का मुआयना कर रही थी । उसकी दृष्टि पूनम पर अंटक गई । पूनम अपने नन्हे बेटे की उंगली थामे पार्क की ओर बढ़ रही थी । बाहर खेलते हुए बच्चे पूनम को देखते ही दौड़ पड़े । पूनम के साथ-साथ बच्चों का झुंड पार्क के अन्दर प्रवेश कर रहा था । रमा देर तक निहारती रही । अदृश्य इकतारे की आवाज वह सुन रही थी ।

मुक्ता
बी. 4/1, अन्नपूर्णा नगर कॉलोनी ,
विद्यापीठ रोड, वाराणसी-221 002
मोबाइल- 09839450642

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