करोना वैक्सीन डायरी

यह एक ऐसा संक्रमण है जिसके बारे में दिन-प्रतिदिन नई जानकारियाँ मिल रही हैं और पूरा विश्व ही सबक ले रहा है , बचने के और उपचार के उपाय ढूँढ रहा है। पूरी दुनिया ही एक असह्य और अकथनीय परिस्थितियों से गुजर रही है। ऐसे में यह हमारा मानवीय धर्म बन जाता है कि अपनी सुरक्षा का भरपूर ध्यान रखते हुए जो भी मदद हो सके, करें ।
अपना और अपनों का ध्यान रखें। मेल-मिलाप में दो मीटर की दूरी सदा बनाए रखें।

तलाश एक वैक्सिन की ( मार्च 2020)

विश्व के सभी देश कोरोना जैसी महामारी की वैक्सीन बनाने में जुट गए है, एक ऐसी महामारी जिसका स्वरुप भी इतना उलझा हुआ है के सभी उससे सम्भ्रमित हुए है।

जिससे उसकी टिकाका अविष्कार करने में बड़ी कठिनाई आ रही है।

जैसा कि वैज्ञानिकों और चिकित्सा विशेषज्ञों ने वैक्सीन विकसित करने के लिए काफी तेज गति से काम करना जारी रखा है, ताजा रिपोर्ट बताते है कि इस महामारी का मुकाबला करने के लिए तक़रीबन 100 से अधिक संभावित टिकोंका संशोधन विभिन्न चरणों में चल रहा हैं।

ब्रिटेन के सबसे बड़े सिगारेट निर्माता, ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको (BAT) और भारत के पतंजलि समूह जैसे नयी इकाइयां, जिनका मूल व्यवसाय अलग था, कोविड-१९ के टिके के उत्पादन की दौड़ में लगे रहे है ।

इस महामारी के लिए संभावित टीका के परीक्षण के रूप में दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में प्रयास जारी हैं।

आईये एक नजर डालते है उन सभी कंपनी और संस्था पर जो टिका बनाने की होड़ में लगे है :

अमेरिका की मॉडेर्ना INC:

अमेरिका में स्थापित मोडेरा INC ने पहले ही क्लिनिकल
परीक्षण के अपने प्रथम चरण को सफलता पूर्वक समाप्त
कर दिया है, जिसके चलते इस महामारी के टिके के निर्माण
में वो विश्व में सबसे आगे है ।

मैसाचुसेट्स स्थित बायोटेक कंपनी एक आरएनए(RNA)-आधारित वैक्सीन विकसित कर रही है और अब वह दूसरे
चरण में 600 स्वस्थ व्यक्तियों पर अपने क्लिनिकल परीक्षणों के लिए तैयार है।

mRNA-1273 नामक टिका पहले से ही वायरसके खिलाफ
सुरक्षात्मक एंटीबॉडी विकसित करने में सकारात्मक नतीजे दिखा चुकी है।

मार्च महीने में ४५ मरीजों में से ८ कोविद-१९ के मरीजो पर एक छोटे पैमाने पर, इस टिके का परिक्षण किया गया जो सफल हुआ !

सभी 45 प्रतिभागियों को वैक्सीन की २५ से २५० (mcg ) खुराक दी गई, जबकि ८ मरीज, जिनमे सुरक्षात्मक एंटीबॉडी विकसित हुई उनको इस टीका के 25 और 100 एमसीजी खुराक इंजेक्शन के जरिये दिए गए।

मॉडेर्ना टिका के साइड इफेक्ट:

शुरुआत में, सुई लगाने की जगह का ठंड पड़ना, दर्द होना, सूजन और चमड़ी का लाल होना आदि लक्षण पाए गए थे, जबकि एक मरीज पर इस मॉडर्न वैक्सीन का काफी गंभीर असर दिखाई दिया ।

एक नामी मीडिया के एक रिपोर्ट के अनुसार, इस २९ वर्षीय व्यक्ति को १०३ डिग्री बुखार, मतली/उबकाई और मांस पेशियों में दर्द जैसे असर दिखाई पड़े।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भले ही वह बीमार थे, मगर यह दुष्प्रभाव या साइड इफेक्ट जान-लेवा नहीं था।

इस बात का ख्याल रखा गया के उस व्यक्ति को वैक्सीन की सर्वोत्तम खुराक दी गई।

सिनोवाक :

सबसे नए खोजो में टिके के उत्पादन में लगे एक चीनी दवा निर्माता सिनोवाक ने दावा किया है के उनकी कोविड-१९ के लिए विकसीत हो रही वेक्सीन ९९ प्रतिशत इस महामारी पर असर करेगी, क्यूंकि उनकी यह वेक्सीन नवीनतम विकास में, मानव उपयोग के लिए टीके के उत्पादन की दौड़ में सबसे आगे चलने वालों में से एक है।

चीनी दवा निर्माता ने कथित तौर पर कहा है कि उसे 99 प्रतिशत यकीन है कि उनका टीका काम करेगा। इनका टीका कोरोनावैक (CoronaVac) अपने क्लिनिकल परीक्षणों में बंदरों में संक्रमण को रोकने के लिए प्रभावी साबित हुआ।

पतंजलि समूह का टीका :

भारत से रामदेव के पतंजलि समूह भी महामारी के लिए एक टीका विकसित करने के वैश्विक प्रयासों में शामिल हो गया है। यह समूह आयुर्वेदिक उत्पादकों में अग्रेसर है। और नियामक अधिकारियों से अनुमति हासिल करने के बाद यह समूह क्लिनिकल परीक्षण करने के लिए तैयार है।

क्लिनिकल परीक्षण इंदौर और जयपुर में शुरू होंगे।

पतंजलि के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण के अनुसार, कंपनी वैक्सीन के लिए एक इलाज विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, न कि किसी प्रतिरक्षा (Immunity) बूस्टर पर।

CanSino Biologics Inc वैक्सीन :

चीनी वैक्सीन निर्माता को कोविड-१९ का इलाज विकसित करने के सबसे मजबूत दावेदारों में से एक के रूप में जाना जाता है। CanSino एक वैक्सीन विकसित करने पर काम कर रहा है, जिसका नाम Adenovirus Type 5 Vector है जो एक सामान्य कोल्ड वायरस में आनुवंशिक रूप से बदलाव करता है, जो मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने के बाद प्रोटीन की संरचना को सुधारने का काम करता है।

Ad5-nCoV वैक्सीन अप्रैल के महीने में क्लिनिकल परीक्षणों के प्रथम चरण में हैं, जहां १८ से ६० आयु वर्ग के १०८ लोगो को इस प्रायोगिक वैक्सीन का इंजेक्शन लगाया गया था। मेडिकल जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, लैंसेट ने दिखाया कि CanSino Biologics Inc द्वारा विकसित किये जा रहा टीका, टी-कोशिकाओं (T -Cell ) का निर्माण करके शरीर की प्रतिरक्षा (Defense) बढ़ाने में मदद कर सकता है और आमतौर पर उपयोग करने के लिए सुरक्षित भी है।

औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी वैक्सीन :

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित किया जा रहा नया वैक्सीन एडेनोवायरस के कमजोर तनाव पर आधारित है जो चिंपैंजी में आम सर्दी का कारण बनता है और इसे SARS-CoV-2 स्पाइक प्रोटीन की आनुवंशिक सामग्री के साथ जोड़ा जाता है।

हालांकि ChAdOx1 nCoV-19 वैक्सीन उम्मीदवार को सबसे अधिक क्षमता वाले टीकों में से एक के रूप में पहचाना जा रहा है, जबकि ताजा रिपोर्टों के अनुसार यह केवल छह र्हेसस मेकाके जाती के बंदरों में संक्रमण को रोकने के लिए आंशिक रूप से प्रभावी हुए है। अच्छी खबर यह है कि टीका वायरल निमोनिया को विकसित करने से रोकने में सक्षम था, लेकिन बंदरों के संक्रमण को पकड़ने से नहीं रोक सकता था।

इन क्लिनिकल परिक्षण का पहला चरण, अप्रैल में 1,000 से अधिक मरीजो पर किया जा चुका है और अगले चरण में ChAdOx1 nCoV-19 या दूसरे नियंत्रण समूह लाइसेंस प्राप्त MenACWY नामक वैक्सीन को लगाना होगा, ताकि इस वैक्सीन की प्रभावशीलता और सुरक्षा समझ में आये।

नोवावेक्स कोविड १९ टिका:

अमेरिका स्थित ड्रग बनाने वाली कंपनी के इस वैक्सीन उम्मीदवार ने ऑस्ट्रेलिया में पहिले और दूसरे चरण का परीक्षण शुरू कर दिया है। मानव परीक्षण ऑस्ट्रेलिया के नोवाक्स वैक्सीन उम्मीदवार NVX-CoV2373 के १३० स्वयंसेवकों पर किया जाएगा।

संभावित वैक्सीन उम्मीदवार को जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा विकसित किया जा रहा है। इसमें SARS-COV-2 वायरस के आनुवांशिक अनुक्रम का उपयोग किया गया, जिसने बबून और चूहों पर किये गए परिक्षण में बड़ी सफलता प्राप्त की है।

इसके अलावा, अमेरिका की इस ड्रग बनाने वाली कंपनी ने भारत के पुणे में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया नामक एक बडासा प्लांट याने कारखाना खरीदा है, जो दुनिया का सबसे बड़ा टीका निर्माता है। इस जैव प्रौद्योगिकी फर्म (Biotechnology firm) का लक्ष्य साल भरमे कोविड-१९ वैक्सीन उम्मीदवार की एक अरब खुराक का उत्पादन करना है।
इनोवियो फार्मास्यूटिकल्स :

इनोवियो फार्मास्यूटिकल्स पहले ही अपने टीके के उम्मीदवार INO-483 वैक्सीन की प्रभावकारिता और सुरक्षा का परीक्षण करने के लिए अपने क्लिनिकल परीक्षणों के प्रथम चरण का आयोजन कर चुका है।

जिसके परिणाम जून २०२० के अंत तक जाहिर होने की उम्मीद है । जिसके लिए 40 स्वस्थ स्वयंसेवकोंको चार सप्ताह के अंतराल में इसके प्रायोगिक टीके की दो खुराक दी गई थी। प्रारंभिक आकड़े प्रकाशित होने के बाद, इनोवियो दूसरे तथा तीसरे चरण के परीक्षण के साथ आगे बढ़ने के लिए अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन की मंजूरी लेगा।

फ़ाइज़र बी एन टेक :

अमेरिका स्थित दवा कंपनी फाइजर ने कोरोनो वायरस की एक वैक्सीन विकसित करने के लिए जर्मन कंपनी बीएनटेक के साथ करार किया है। इस वैक्सीन उम्मीदवार का नाम ‘बीएनटी १६२’ रखा है और उन्होंने आवश्यक क्लिनिकल मंजूरी प्राप्त करने के बाद मरीजों को खुराक देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है !

सबसे प्रभावी और सुरक्षित संभावित वैक्सीन का पता लगाने के लिए प्रतिभागियों पर चार आरएनए-आधारित टीकों का परीक्षण किया जा रहा है।

ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन पीएलसी (GSK PLC) और सनोफी टीका :

कोरोनो वायरस से लड़ने के लिए एक वैक्सीन विकसित करने के इरादे से एक फ्रांसीसी दवा निर्माता सनोफी ने यूनाइटेड किंगडम के प्रतिद्वंद्वी ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन PLC के साथ भागीदारी की है। इस वैक्सीन का प्रयोग एक मौजूदा तकनीक पर आधारित है जिसका उपयोग इन्फ्लूएंजा के लिए किया गया था और २०२० की दूसरी छमाही में क्लिनिकल परीक्षणों में प्रवेश करने के लिए तैयार है।

GSK वैक्सीन के सहायक घटक के विकास पर काम करेगा, जबकि सनोफी प्रतिजन के उत्पादन पर काम करेगा जो कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करेंगे।

भारत की टीका बनाने वाली कंपनी:

भारत में, ३० से अधिक वैक्सीन उत्पादक उम्मीदवार कोरोना वायरस से लड़ने के लिए काम कर रहे है और उनका काम विभिन्न चरणों में चल रहा हैं।

प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजयराघवन के अनुसार, “भारत में लगभग ३० समूह, व्यक्तिगत शैक्षणिक संस्था कोविड-१९ से लड़ने के लिए टीके विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं, और इनमे २० संस्थाए अच्छे प्रगति पथ
पर हैं।”

इसके अतिरिक्त, Mynvax जो एक भारतीय चिकित्सा दवा बनाने वाली नयी संस्था है, कोरोना वायरस को रोकने के लिए एक प्रोटीन-आधारित वैक्सीन विकसित करने पर काम कर रही है।

कंपनी १८ महीनों में वैक्सीन को बाजार में उतारने की उम्मीद कर रही है।

ICMR-Bharat Biotech Vaccine:

भारतीय वैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक ने कोरोना वायरस के लिए वैक्सीन विकसित करने के लिए थॉमस जेफरसन यूनिवर्सिटी ऑफ फिलाडेल्फिया के साथ करार किया है। थॉमस जेफरसन विश्वविद्यालय ने वैक्सीन की खोज के लिए निष्क्रिय रेबीज वैक्सीन को कोरोना वायरस प्रोटीन बनाने के लिए इस्तेमाल किया है।

सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड :

सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड भी कोरोनो वायरस के लिए एक संभावित टीका विकसित करने की इस दौड़ में शामिल हो गयी है। भारतीय दवा निर्माता को कोविड-१९ रोगी पर एक अग्नाशयशोथ दवा,(Pancreatitis drug ) नाफामोस्टेट (खून में बनने वाले थक्कों को रोकने वाला) की क्लिनिकल परीक्षण शुरू करने के लिए भारतीय नियामक से सभी अनिवार्य अनुमोदन प्राप्त हुए हैं।

इस दवा की पहचान जर्मनी के टोक्यो विश्वविद्यालय और लीबनिज इंस्टीट्यूट फॉर प्राइमेट रिसर्च के वैज्ञानिकों द्वारा कोरोनो वायरस के संभावित इलाज के रूप में की गई है। फ़िलहाल, कोरोनो वायरस रोगी पर नाफामोस्टेट का परीक्षण करने के लिए दुनिया भर में तीन परीक्षण चल रहे हैं और प्रारंभिक परिणाम काफी आशाजनक हैं।
विकास एकबोटे

जीवन चलाने के लिए जीवन को ही दांव पर लगा दिया गया।
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विज्ञान के दम पर विकास की कीमत वैसे तो मानव वायु और जल जैसे जीवनदायिनी एवं अमृतमयी प्राकृतिक संसाधनों के दूषित होने के रूप में चुका ही रहा था किंतु यही विज्ञान उसे कोरोना नामक महामारी भी भेंट स्वरूप देगा इसकी तो उसने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी। अब जब मानव प्रयोगशाला का यह जानलेवा उपहार उस पर थोपा जा ही चुका है तो निसंदेह उसे प्रकृति के सरंक्षण और उसके करीब रहने का महत्व समझ आ गया होगा। लेकिन वर्तमान में इससे अधिक महत्वपूर्ण विषय है कोरोना महामारी पर मानव जाति की विजय। आज की वस्तुस्थिति तो यह है कि लगभग सम्पूर्ण विश्व ही कोविड 19 के समक्ष घुटने टेके खड़ा है। ना इसका कोई सफल इलाज मिल पाया है और ना ही कोई वैक्सीन। दावे तो कई देशों की ओर से आए लेकिन ठोस नतीजों का अभी भी इंतजार है, उम्मीद अभी भी बरकरार है। अपेक्षा है कि विश्व के किसी न किसी देश के वैज्ञानिकों शीघ्र ही दुनिया को इस महामारी पर अपनी विजय की सूचना देंगे।
वैसे तो इसके इलाज के लिए कई प्रयोग हुए। हाईड्रोक्लोरोक्विन अकेले या फिर स्वाइन फ्लू मलेरिया और एड्स तीनों बीमारियों में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं का कॉम्बिनेशन, प्लाज्मा थेरेपी जैसे अनेक असफल प्रयोग हुए। कोरोना के शुरुआत में इससे बचाव ही इसका एकमात्र इलाज बताया गया और विश्व के हर देश ने अपने यहाँ लॉक डाउन कर लिया। लेकिन जीवन रूकने नहीं चलने का नाम है तो लॉक डाउन में विश्व कब तक रहता। वैसे भी लॉक डाउन से कोरोना की रफ्तार कम ही हुई थी, थमी नहीं थी और लॉक डाउन के अपने नुकसान थे जो गिरती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के आय के स्रोत बन्द हो जाने जैसे तमाम व्यवहारिक समस्याओं के रूप में सामने आने लगे। अब सरकारों के पास लॉक डाउन खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। जीवन चलाने के लिए जीवन को ही दांव पर लगा दिया गया। क्योंकि डब्ल्यू एच ओ ने आशंका जाहिर की है कि शायद कोरोना का इलाज या उसकी वैक्सीन कभी नहीं आ पाए इसलिए हमें कोरोना के साथ जीना सीखना होगा। साथ ही डब्ल्यू एच ओ ने भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देशों को हर्ड इम्युनिटी यानी सामूहिक रोगप्रतिरोधक क्षमता के सिद्धांत को अपनाने की सलाह दी। जिसका आधार यह है कि भारत जैसे देश की अधिकतर जनसंख्या युवा है जिसकी रोगप्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है। इसलिए जब बड़ी आबादी में कोरोना से संक्रमण होगा तो उसमें वायरस के प्रति रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास होगा।
दरअसल इससे पहले 1918 में भी स्पेनिश फ्लू नाम की जानलेवा महामारी विश्व में फैली थी जो लगभग 15 महीने तक रही थी और इसने विश्व की एक तिहाई जनसंख्या को अपनी चपेट में लिया था और इसके कारण लगभग 100 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। तब भी इसका कोई इलाज नहीं मिल पाया था। लेकिन डेढ़ साल में यह अपने आप ही खत्म हो गई क्योंकि जो इससे संक्रमित हुए वे या तो मृत्यु को प्राप्त हुए या उनके शरीर में इसके प्रति रोगप्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो गई।
लेकिन हर्ड इम्युनिटी की बात करते समय हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस सिद्धांत का मूल स्वस्थ शरीर पर टिका होता है जबकि आज की सच्चाई यह है कि भारत समेत विश्व के अधिकांश देशों के युवा आज आधुनिक जीवनशैली जनित रोगों की चपेट में हैं कम उम्र में मधुमह, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं फास्टफूड, सिगरेट तम्बाकू शराब और ड्रग्स के सेवन से उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता नगण्य है इसलिए भारत में यह सिद्धांत कितना सफल होगा यह तो वक्त ही बताएगा।साथ ही हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना के शुरुआत में ब्रिटेन ने भी हर्ड इम्युनिटी का सिद्धांत ही अपनाया था लेकिन अपने यहाँ बढ़ते संक्रमण और मौत के बढ़ते आंकड़ों ने दो सप्ताह से भी कम समय में उसे लॉक डाउन करने के लिए मजबूर कर दिया था।
इसलिए अब जब यह बात सामने आने लगी है कि कोरोना वायरस एक प्राकृतिक वायरस ना होकर मानव निर्मित वायरस है, तो हमें भी अपनी पुरानी और पारंपरिक सोच से आगे बढ़ कर सोचना होगा। वैसे तो विश्व भर में इसका इलाज खोजने के लिए विभिन प्रयोग चल रहे हैं लेकिन यह कार्य इतना आसान नहीं है क्योंकि आज तक सर्दी जुखाम जैसे साधारण से प्राकृतिक वायरल इंफेक्शन का भी कोई इलाज नहीं खोज जा सका है। वह स्वतः ही तीन से चार दिन में ठीक होता है केवल इसके लक्षण कम करने के लिए दर्द निवारक गोली और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कोई मल्टीविटामिन दिया जाता है। लेकिन वहीं स्माल पॉक्स, मीसेल्स, चिकनपॉक्स, जैसी वायरल बीमारियों की वैक्सीन बना ली गयी है। वैक्सीन भी रोगप्रतिरोधक क्षमता के सिद्धांत पर ही काम करती है जिसमें बीमारी के कुछ कमजोर कीटाणु स्वस्थ मानव शरीर में पहुंचाए जाते हैं। इसलिए वैक्सीनेशन के बाद बुखार आना स्वाभाविक लक्षण माना जाता है और वैक्सीन द्वारा मानव शरीर में पहुँचाई गई कीटाणुओं की अल्प मात्रा के खिलाफ लड़ कर शरीर उस बीमारी से लड़ने की क्षमता हासिल कर लेता है।
लेकिन कोरोना वायरस साधारण वायरस नहीं है और ना ही प्राकृतिक है ईसलिए ये साधारण दवाएं और सिद्धांत इसके इलाज में कारगर सिद्ध होंगे इसमें संदेह है।
जिस प्रकार लोहा ही लोहे को काटता है और जहर ही जहर को मारता है, कृत्रिम कोरोना वायरस का इलाज एक दूसरा कृत्रिम वायरस ही हो सकता है। जैसे कोरोना वायरस को लैब में तैयार किया गया है, ठीक वैसे ही एक ऐसा वायरस लैब में तैयार किया जाए जो कोरोना वायरस का तोड़ हो, जो उसे नष्ट कर दे। जी हाँ ये संभव है। काफी समय से मानव शरीर के हित में उपयोग में लाने के लिए वायरस की जेनेटिक इंजीनियरिंग की जा रही है। जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से ही कई पौधों के ऐसे बीज आज निर्मित किए जा चुके हैं जो पैदावार भी बढ़ाते हैं और जिनकी प्रतिरोधात्मक क्षमता इतनी अच्छी होती है कि वे संक्रमित नहीं होते। ऐसी फसल को जी एम फसल कहा जाता है। इसी तकनीक से वैक्सीन भी बनाई जा चुकी है। इस विधि का प्रयोग करके जो वैक्सीन तैयार की जाती है उसे रिकॉम्बीनेन्ट वैक्सीन कहते हैं। इस प्रकार जो पहली वैक्सीन तैयार की गई थी वो हेपेटाइटिस बी के लिए थी जिसे 1986 में मंजूर किया गया था।
दरअसल वायरस और बैक्टीरिया प्रजाति को अभी तक अधिकतर बीमारी फैलने और मानव शरीर पर आक्रमण करने के लिए ही जाना जाता रहा है। पर सभी वायरस और बैक्टीरिया ऐसे नहीं होते। कुछ वायरस और बैक्टीरिया तो मानव के मित्र होते हैं और सैकड़ों की संख्या में मानव शरीर में मौजूद रहते हैं। और कुछ वायरस तो ऐसे होते हैं तो बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं इन्हें बैक्टेरियोफेज के नाम से जाना जाता है।
इसी प्रकार वायरस के द्वारा कैंसर का इलाज खोजने की दिशा में भी वैज्ञानिकों ने उत्साहवर्धक नतीजे प्राप्त किए हैं इसे जीन थेरेपी कहा जाता है जिसके द्वारा लाइलाज कहे जाने वाले कई अनुवांशिक रोगों का भी इलाज खोजा जा रहा है। वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के स्ट्रक्चर यानी उसके ढांचे का पता लगा लिया है। अब उन्हें ऐसा वायरस जो ह्यूमन फ्रेंडली यानी मानव के शरीर के अनुकूल हो उसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से ऐसे गुण विकसित करने होंगे जो मानव शरीर को नुकसान पहुंचाए बिना शरीर में मौजूद कोरोना वायरस के सम्पर्क में आते ही उसे नष्ट कर दे।
समस्या का हल ढूंढने के लिए उसकी जड़ तक पहुंचना पड़ता है, वो जहाँ से शुरू होती है, उसका हल वहीं कहीं उसके आस पास ही होता है। इसलिए कोरोना नामक प्रश्न जिसकी शुरुआत एक मानव निर्मित वायरस से हुई उसका उत्तर एक मानव निर्मित ह्यूमन फ्रेंडली वायरस ही हो सकता है।जब तलवार का निर्माण किया जा सकता है तो ढाल भी अवश्य ही बनाई जा सकती है आवश्यकता है दृढ़ इच्छाशक्ति और सब्र की।

डॉ नीलम महेंद्र
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार है)

1-4-2020


करोना संक्रमण में लया मोड़- न्यू यौर्क के चिड़ियाघर में एक चीता करोना से संक्रमित पाया गया।
शैल अग्रवाल
6-4-20

एक डॉक्टर युगल ने असुरक्षित माहौल में बिना सही और सुरक्षित कपड़ों के डॉक्टर और नर्स व अन्य स्वास्थ कर्मचारियों को काम करते रहने देने के लिए स्थानीय ब्रिटिश सरकार पर मुकदमा दायर किया है।
शैल अग्रवाल
2-5-2020

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