अमेरिका ! अमेरिका!-पुष्पलता कुमार

एक छोटे से गाँव से निकल शहर में आये थे हम ।अनेक महानगरों की यात्रा के बाद हम अमेरिका जा रहे थे जहाँ बेटा कंपनी की तरफ से गया था।उसने टॉयलेट में जेट खुद ही लगा दिया है बताया था क्योंकि बिना पानी का टॉयलेट मेरे लिए समस्या थी।न जाने क्यों मुझे गाड़ी से एयरपोर्ट की तरफ जाते हुए ऐसी फीलिंग आने लगी जैसे मायके से ससुराल आते हुए आई थी ।अपने बैग की पॉकेट में मैंने नन्हा सा तिरंगा रख लिया था जो मेरे घर में रखा था ।अमेरिका जाने के लिए पैकिंग भी बहुत मशक्कत का काम रहा था ।कोई ऐसी चीज न चली जाये जो बैन हो या वेट फालतू न हो जाये ।साबुत कोई चीज नहीं ली थी ।भुने चने का भी पाउडर बनाकर ले गई थी ।सुगर में चने फायदा करते हैं इसलिए ले जा रही थी ।एयर पोर्ट पर सामान जमा कराने के बाद , चैकिंग के बाद जहाँ बैठे थे अनाउंस मेन्ट होने के बाद चल दिये।आधे रास्ते लाइन में जाने के बाद पति ने कहा ,मोबाइल कहाँ मेरा? मुझे क्या मालूम ?पति बदहवास लाइन बीच से क्रॉस कर जहाँ बैठे थे वापिस भागे ।उम्मीद तो नहीं थी मगर ईश्वर की कृपा कि मिल गया। बेटे से बात भी उसी से हो पाती ।वहाँ पहुँचने के बाद सबके लगेज आ गए हमारा नहीं आया तो हमने पूछताछ की ।पता चला कि उस ऑफिस में जाकर पता कीजिये वहाँ से एक हॉल नुमा जगह में भेज दिया जहाँ हम जैसे कई थे।दो घण्टे लाइन में लगने के बाद लगेज नहीं मिला था । दो घण्टे वहाँ बैठकर हम पूरी तरह फेडप हो चुके थे।एक स्त्री बाहर बैठे अधिकारी से लगातार बहस कर रही थी। अमेरिका का क्रेज गायब हो गया था। भूख -प्यास भी लगी थी ।पति को जब अंदर बुलाया तो उन्होंने जाकर कह दिया कि अमेरिका देखने और बेटे से मिलने आये थे अब तो आने का, घूमने का क्रेज ही खत्म हो गया।आप शाम की वापसी का टिकट करवा दीजिये वापिस चले जाते हैं ।दरअसल हमने वापसी का टिकट नहीं कराया था।इसलिए वे पूछताछ कर रहे थे।।पति ने बताया मन न लगा तो जल्दी न जाना पड़ जाए इसलिए नहीं कराया । इस बात से उन्हें लगा हमारी नजर में अमेरिका का इम्प्रेशन खराब हो गया। हम घूमने ही गए थे वे संतुष्ट भी हो चुके थे ।वहाँ से मुक्त होकर बेटे के साथ घर पहुँचे ।उससे मिलकर अच्छा लगा।दूसरे दिन बेटा ऑफिस चला गया तो पति बोले चलो कहीं बाहर आस- पास होकर आते हैं। बेटे ने मेट्रो का कार्ड दे दिया था।उससे कहीं भी आ जा सकते थे।बिल्डिंग से बाहर निकलते ही गेट पर ही बस आ जाती थी । गेट से निकलते ही मेरा पैर उल्टा मुड़ गया ।गिरकर भयंकर मोच आ गई।बड़ी मुश्किल से वापिस घर तक आई ।बेटे के आने तक पैर सूजकर मोटा हो गया। आते ही बेटा वापिस फिर 15 किलोमीटर दूर से जाकर बैंडेड लेकर आया ।मना करने पर भी नहीं माना।बाथरूम भी एक पैर से बेटे के कंधे पर लटककर जाना पड़ता ।बेटा हँसता कहता बचपन में स्टापू तो खेली होगी ।कहाँ सोचकर गई थी कि उसे उसकी पसन्द का बनाकर खिलाऊँगी कहाँ सिर मुंडाते ही ओले गिर पड़े।एक पैर से खड़े होकर कुछ बनाती दर्द और सूजन बढ़ जाती ।हमारी गली के तीन डॉक्टर अमेरिका में याद आये। वहाँ डॉक्टर से कंसल्ट किये बिना दवाई नहीं मिलती। डॉक्टर सारे टेस्ट करा डालते हैं ।वीडियो कॉल से इंडिया वाले को पैर दिखाकर समस्या बताई ।तो डॉक्टर ने कम्प्लीट रेस्ट बता दिया। बर्फ से सिकाई जबकि मैं गर्म पानी से सेक रही थी।पेनकिलर था वह खा लिया था क्योंकि जरूरी दवाएं लेकर जाते हैं ।पन्द्रह दिन बाद स्लीपर में पैर रखने लायक हुआ ।साथ ले जाई गई चप्पलें बेकार गईं।मेट्रो से हम लाइब्रेरी देखने निकले मुझे वहाँ अपनी किताब रखवानी थी।मेरे चढ़ते ही एक बाकी बची सीट पर भी एक अंग्रेज बैठ चुका था जो मुझे देखते ही खड़ा हो गया बैठने का इशारा किया ।मुझे ठीक नहीं लगा मैंने कहा आप बैठिए ।वह बोला प्लीज– ,बैठना पड़ा।जब तक एक सवारी चली नहीं गई वह खड़ा रहा। उसके बैठने के बाद मुझे थोड़ा ठीक लगा ।वहाँ जाकर पता चला कि हिंदी की कोई किताब ही न थी जबकि ढाई लाख किताबें थीं ।रखने से भी उन्होंने मना कर दिया।किड्स सेक्शन में फोन नम्बर लेकर रखने दिया कि अगर डिमांड्स नहीं आई तो वापिस ले जाइयेगा ।फोन तो फिर नहीं आया ।रास्ते में थोड़ी दूर तक हम जब पैदल आ रहे थे गाड़ी वाले बहुत दूर से देखकर गाड़ी रोककर खड़े हो जाते थे।प्लीज कहकर निकलने का इशारा कर देते थे।हम उनकी तहजीब देखकर हैरान थे।
कुल मिलाकर अमेरिका में मुझे सबसे बुरा मेडिकल सिस्टम लगा ।लोहा लग जाये तो टिटेनस का इंजेक्शन न लगवा पाएँ उसके लिए भी 35000 फीस देकर डॉक्टर से कंसल्ट करो।बेटे को नार्थ कैरोलिना आना पड़ा ।और दो तीन दिन बाद ही पता चला हैरीकेन तूफान आने वाला है उसकी जद में हम भी थे ।बेटा बहुत सारी पानी की बोटल्स खरीद लाया था।गैस भी बिजली से चलती है ।बिजली जा सकती थी।तूफान घर, सड़क, बिजली, पानी सब व्यवस्था चौपट करने के साथ जीवन भी लील सकता है ये पता था।भयग्रस्त तो थे ही।फेसबुक पर पोस्ट लिख दी। सुधा ॐ धींगरा जी ने पोस्ट पढ़ी तो मुझसे कहा मैं भी तुम्हारे पास ही हूँ नम्बर दो ,बात हुई तो उन्होंने बहुत डरावने अनुभव शेयर किए। यधपि वे बहुत सकारात्मक सोच वाली हैं डरो नहीं ऊपर वाला रक्षा करेगा बोली ।अगले दिन तूफान दूसरी दिशा में मुड़ गया था। ईश्वर की कृपा थी।बारिश के बाद हम सड़क पर निकले वहाँ ढेरों नन्हे- नन्हे सांप के बच्चे नई- नई नस्ल के सड़क पर जगह- जगह मृत पड़े थे । मुझे सांप से फोबिया है ।पति ने बहलाया केंचुए हैं मगर मैंने कहा पिक खींचो। उन्होंने खींच कर बड़ी करके दिखाई मैं और डर गई ।सांप की तस्वीर नहीं देख पाती सड़क पर जाना बंद कर दिया ।उसके दो हफ्ते तक सुधा जी मुझे बुलाती रही मगर जा नहीं पाई फिर हमारी जाने की योजना सफल हुई ।उन्होंने एक काव्य गोष्ठी रखी थी ।जिसमें कई और लोगों से ही मुलाकात हुई ।अफरोज ताज जी ने मुझे यूनिवर्सिटी में काव्य पाठ का निमंत्रण दिया वे भी गोष्ठी में थे ।मगर उसी बीच हम वाशिंगटन घूमने चले गए।वाइट हाउस के सामने एक व्यक्ति शिकायत का बोर्ड लिए खड़ा था मगर कोई उसे कुछ नहीं कह रहा था।हजारों विदेशी उसे पढ़कर जा रहे थे फिर भी उसे नहीं हटाया था । हम वहाँ का लोकतंत्र देखकर चकित थे ।मुझे वहाँ ठंड लगी और घर आने के बाद पूरी रात कान बहता रहा जबकि मेरा कान जीवन में कभी नहीं बहा , फीवर खांसी भी थी ।बेटा बोला परसो आपकी फ्लाइट कल यहाँ से वाशिंगटन जाना पड़ेगा ।डॉक्टर से झूठ बोलना पड़ेगा समस्या चार पाँच दिन से हैं ।फिर वे एक्सरे करेंगे। मुझे यूनिवर्सिटी का प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा ।बेटे ने नेट से होम्योपैथिक खांसी की और कान में डालने की ड्राप मंगवाई ।आते हुए इंडिया पहुंचने पर पति को फिर कस्टम वालों ने रोक लिया।मैं बाहर निकल आई थी ।फोन डिस्चार्ज था।जब पति घण्टो बाहर नहीं निकले मैंने एक स्त्री से उसके फोन से कॉल करने को कहा।उसने कहा आपके पति को कस्टम वालों ने पकड़ रखा है ।मैं अपने फोन से कॉल नहीं करवा सकती ।आप कहीं पीसीओ होगा देख लीजिए ।सारा सामान बाहर मेरे साथ था ।बेटी ने हमें लेने ऑफिस से अपना कलीग और ड्राइवर भेजा था जिसने फोटो से मुझे पहचाना ।फिर मेरे किस्सा बताने पर दरवाजे के पास गया तो उसे हसबेंड दिखे।तब हम घर लौटे।दरअसल पति को कस्टम वालो ने छोड़ तभी दिया था ।मगर मैं भीतर ही हूँ ये सोचकर वे बाहर नहीं आ रहे थे कि फिर अंदर कैसे जाएँगे अगर मैं बाहर नहीं मिलती तो वे दोबारा भीतर न जा पाते ।सामान छोड़कर मैं हिल नहीं पा रही थी। बेटे ने फोन करके पूछा कैसा लग रहा है तीन महीने बाद वहाँ जाकर मम्मी ।मैंने कहा बेटे हमें तो जैसे घर आकर शांति सी मिली है।बस तेरी वजह से थे वहाँ ।अमेरिका हमारे मन को बांध नहीं पाया।यहाँ की अव्यवस्था में भी सारी व्यवस्था है।उसी की आदत है।
अमेरिका में जाकर एक खास बात देखी ।यहाँ से घूमने गए अधेड़, बूढ़े लोगों की इतना आई टॉनिक भरपूर मात्रा में पाकर बाँछें खिल जाती हैं ।स्विमिंग पूल पर एक से एक सुंदरी बिना कपड़ों के पानी में और पानी के किनारे बैठी मिलती हैं ।उनपर अकेले बैठकर -घूरने का इल्जाम न लगे तो वे जबरदस्ती अपनी अधेड़- बूढ़ी को भी जीन्स पहनाकर कुछ सीखो कहकर साथ ले जाते हैं ।बुझते दिए से फड़फड़ाते लोगों का नजारा देखकर हँस- हँसकर लौट- पोट हो जाने की अवस्था होती है । शिकागो में हम जहाँ थे उसकी बालकनी से स्विमिंग पूल दिखाई देता था ।बूढों के हाथ पत्नी के हाथों में, पत्नी भौचक और आँखें फटी हुई, खिली हुई पास की बेटी- पोती की उम्र की सुंदरी पर गड़ी होती थी । रास्ते में वह प्रौढा- बूढ़ी उसकी ऐसी गत बनाती थी कि वह कई दिन तक फड़फड़ाना भूल जाता था ।फिर गोगल लगाकर अकेला ही जिम या स्विमिंग पूल की राह लेता था ।आम तौर पर भारतीय स्त्रियाँ इतनी दबाई जाती हैं कि युवावस्था में ही शान्त गम्भीर नदी सी बहती हैं तो अधेड़ावस्था आते- आते वे सन्यास लेकर प्रभु भक्ति में लीन हो जाती हैं ।उनमें वासना जगाये नहीं जगती ।वे जीन्स पहने या साड़ी अपनी मर्यादा के कवच में ढकी होती हैं ।
जवानी में, तेरे पहलू में बैठा रहूँ?अधेड़ावस्था में, तूने मेरा नाश कर दिया ।बुढ़ापे में या तो मुझे घास ही नहीं डालती ?मरने पर अब तेरे बिना कैसे जियूँ ? यहाँ के पुरुष का सच है ।स्त्री न उसे पूर्ण मन से स्वीकार करती है न अस्वीकार मगर ये सच कहती भी नहीं है।उसके बिना उसका कोई ठौर ठिकाना भी नहीं है ।अपने पुरुष के ऐसे रंग- ढंग देख बाहर का पुरुष जब उससे फ्लर्ट करता है उसे उसमें उसी का चेहरा दिखने लगता है ।वह उसकी मित्रता छोड़ भाग लेती है ।भारतीय पति बहुत कम दोस्त होते हैं और भारतीय मित्र भी बहुत कम दोस्त रह पाते हैं ।कुछ स्त्री पुरुष अवश्य ठहरे हुए स्वभाव के होते हैं उन्हें दाल भात सा जीवन ही संतुष्टि देता है।मगर कुछ मानसिक रूप से भटकते रहते हैं ।अमेरिका में स्त्रियाँ नाम मात्र के कपड़े पहनती हैं और यहाँ की ड्रीम गर्ल्स वहाँ ऐसी सुंदरियों के बीच जाते ही आभा रहित हो जाती हैं ।कमाल की बात ये वहाँ के पुरुष वे बगल से गुजर जाती हैं उन्हें नजर उठाकर देखते तक नहीं हैं क्योंकि वहाँ ये गलत माना जाता है।वहाँ गए युवाओं को तो काम से सांस नहीं मिलता मगर घूमने गये अधेड़- बूढ़े खुशवंत सिंह बन जाते हैं बस उनकी तरह स्वीकार नहीं करते।दूसरों की थाली में घी ज्यादा दिखने वाला मामला है वैसे अमेरिकन पुरुषों को इंडियन स्त्रियाँ अच्छी लगती होंगी ।
बेटा हमें नियाग्रा फॉल दिखाने ले गया।ट्रेन में पहले डिसेबल फिर बुजुर्ग उसके बाद महिलाएं बच्चे उसके बाद युवा चढ़े कोई अफरातफरी नहीं सब बिल्कुल सलीके और धैर्य से हो रहा था ।जिनकी फैमली थी वे इकट्ठे जा सकते थे ।नियाग्रा फॉल में हमारे जूते चप्पलें रखवाकर हमें नई चप्पलें जो नम्बर पूछकर दी गईं थी।साथ में फॉल में जाने के लिए एक लांग रेनकोट भी दिया गया जो आते वक्त डस्ट बीन में डालना था। चप्पलें तो ज्यादातर लोग घर ले आये थे।हमें नियाग्रा का मोती जैसा साफ पानी देख अपने यहाँ की नदियों गंगा आदि की दुर्गति याद आई ।हरिद्वार के गंगा किनारे की कीच याद आई वहाँ एक भी नाला नदी में नहीं था ।सब पर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर उस पानी से खेती की जा रही थी।मेले में गए तो वहाँ ट्रेक्टर्स, की सैर कद्दू की खेती देखी। उन्होंने फ्री पौधे दिए ।रहट,चारा काटने की मशीन , हैंडपंप ,बोगी ,पशु पालन आदि देखकर गाँव याद आ गया।बेशुमार पेड़ और साफ पानी अमेरिका की दौलत है।मन कर रहा था यहाँ की हवा और पानी कैसे भी भरकर अपने देश में ले चलें ।किराए की गाड़ी लेकर गए थे ।उसे चाबी समेत बताई जगह पर छोड़ कर फिर से ट्रेन में आये तो अनेक लोग मोटी -मोटी किताबें पढ़ रहे थे।बाद में पता चला कि वहाँ बच्चो को किताबें पढ़ने की सरकार द्वारा लत लगाई जाती है।मेट्रो में भोजन मंगवाने के लिए नम्बर लिखे थे।बेटे ने बताया छुट्टियों में गरीब बच्चे खाने के बिना न रह जाएँ इसलिए लिखे हैं।हमारे देश में तो लोग मिड डे मील में ही घोटाला कर डालते हैं।

डॉ पुष्पलता कुमार

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