शैल अग्रवाल जी की कहानियाँ सहज रूप में प्रभावित करती हैं प्रो. सुरेन्द्र प्रताप

साहित्यिक संघ, वाराणसी, राजकीय पुस्तकालय, वाराणसी एवं विद्याश्री न्यास द्वारा आयोजित इंग्लैण्ड की वरिष्ठ कवि-कथाकार शैल अग्रवाल के रचना-पाठ पर केन्द्रित संगोष्ठी में अध्यक्ष के रूप में बोलते हुए प्रो. सुरेन्द्र प्रताप ने कहा कि शैल जी गद्य और पद्य दोनों विधाओं पर समान रूप से अधिकार रखती हैं। आप की शैली भिन्नात्मक और अभिव्यक्ति की गहन संवेदना से भरपूर है।
कवि-कथाकार शैल अग्रवाल का स्वागत करते हुए विद्याश्री न्यास के सचिव डॉ. दयानिधि मिश्र ने कहा शैल जी बनारस की बेटी हैं। एक लम्बे समय से ब्रिटेन में रहते हुए भी इन्हें भारत और राष्ट्रभाषा हिन्दी से अगाध प्रेम है। लेखन के साथ-साथ संगीत, नृत्य एवं चित्रकला में इनकी गहन रुचि है। शैल अग्रवाल जी ने ब्रिटेन, न्यूयार्क, मारिशस के विश्व हिंदी सम्मेलन में सक्रिय सहभागिता के अलावा आपने देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित मंचों से कहानी-कविता व आलेख का पाठ किया है। आपको अनेक सम्मानों से सम्मानित किया गया है।
प्रारंभ में शैल अग्रवाल जी ने अपनी चयनित कविताओं के पाठ के उपरान्त अपनी कविता सागर के मन मे, उलझन, एक और सच कविताओ का तथा जिजी कहानी का वाचन किया। ये कविताएँ मन को तलाशती सामाजिक विसंगतियों को उजागर करतीं तीन छोटी-छोटी कविताएं है। जिजी कहानी रिश्तों के ताने-बानेपर बुनी एक विभाजित वर्गों की कहानी, जो वक्त के महत्व को तो दर्शाती है! दिखाती है कैसे हजार नेक – नीयति के बाद भी कैसे जरा-सा आलस सामने वाले को पूरी तरह से तोड सकता है सबकुछ बिखेर सकता है क्योंकि अक्सर हमें दूसरे की जरूरत और मजबूरी का सही अनुमान नहीं लग पाता। पश्चाताप की अग्नि मे धधकती एक संवेदनात्मक कहानी।शैल जी के सृजनकर्म पर विचार व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध कथा लेखिका डॉ. मुक्ता ने कहा कि बनारस में जन्मी और 55 वर्षों से ब्रिटेन में रह रहीं शैल अग्रवाल का रचना संसार बहुआयामी है। अपनी कहानियों में जहाँ वे एक ओर लोक से जुड़ती हैं, वहीं परम्परा के ग्राह्य तत्वों को स्वीकार करती हुई आलोचक दृष्टि से सम्पन्न है। शैल जी की कहानी स्त्री मन की परतों को उद्घाटित करती हैं। कहायिों का बुनावट पारदर्शी है। संवेदना से ओत-प्रोत आप की कहानियाँ मर्मस्पर्शी हैं। पर्यटन के अनुभव आपकी कहानियों में मुखर हैं। इस रूप में ‘शहजादी’ कहानी मन को छू लेने वाली है। इस कहानी में वर्ग संघर्ष स्पष्ट है। इनके कहानियों की भाषा पात्रानुकूल और संप्रेषणीय है। शैल जी की कविताएँ अन्तरमन सेl साक्षात्कार करती हुई समय के खड़े प्रश्नों से0 टकराती हैं।
अपने उद्सोपान में शैल जी ने विद्याश्री न्यास और सचिव डॉ. दयानिधि मिश्र के प्रति आभार व्यक्त करते हुए बनारस के अपने अनुभवों को साझा किया और कहा कि लिखना प्रारंभ में मेरे लिए स्वान्तः सुखाय और जीवन के तनाव से मुक्ति के लिए रहा, जो बाद में आदत और मजबूरी बन गया। मेरी पहली कहानी, ग्यारह वर्ष की आयु में बनारस में पढ़ते समय छपी थी। बाद में कई कविताएँ और कहानियाँ आज अखबार में भी प्रकाशित हुई। मैं दुनिया में चाहे जहाँ भी धूम आऊँ, बनारस जैसा कहीं भी नहीं लगता।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रीति जायसवाल तथा श्री नरेन्द्रनाथ मिश्र ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर. प्रोफेसर श्रद्धानंद प्रोफेसर जय राम सिंह हिमांशु उपाध्याय डॉ इंडिवर डॉ अशोक सिंह पवन कुमार शास्त्री सिद्ध नाथ शर्मा डॉ सत्येंद्र मिश्रा आचार्य श्रीकृष्ण शर्मा शशि शेखर मिश्र आदि उपस्थित रहे।

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