गए साल का लेखा-जोखा
कैसे रखें अब मन दुखता
खोना पाना जीतना हारना
वही है दुश्चक्र पुराना
मन दुखता…
रोज रोज ही व्यभिचार
बलात्कार और खून
सरहदों पर चलते गोले बारूद
मन दुखता।
कल फिर प्रार्थना में उठ गए थे
हजारों हाथ एकसाथ रंग जाति को भूल
निर्भीक निडर आत्माओं को देते श्रद्धांजलि
शोक मनाते, सद्बुद्धि की दुआ मांगते
कैसा है यह युग, कैसे-कैसे विभ्रम में
अब हो रहा युद्ध
इकतारा-सा बज रहा इश्तहार आदमी
मन दुखता !
राम रहीम जौन और करतार
झोंके जाते नफरत की भट्टी में
भुनते दूध पीते अबोध मासूम फिर
वैर न हो, , कहीं दुर्भाव न हो
इंसान के रूप में आदमी ही रहें हम
अवतार होना बस में नहीं
मन दुखता।
सुखद अहसास है यह भी
असंभव सपना ही सही
आओ मिलजुलकर देखें इसे, जिएँ इसे
अपनों सा ही अपनों का घर हो
सरहदों के पार भी
सद्भावनाओं का लहराए समंदर
डुबो दे जो सारी तपिश और खलिश
लहरें बहा ले जाएँ
सारा दुख दर्द और कलुष…
मन दुखता।
चैन की बांसुरी पर झूमें फिर
संग संग कृष्ण जीसस और पैगंबर
एक दूसरे को गले लगाएँ
रास रचाएँ, सेंवइयाँ खाएँ
मानवता के रिसते आंसू पोंछे
कुछ सच्चे और अच्छे सपने
देखे और दिखायें
आओ एक नए तरीके से
अब हम यह नया वर्ष मनाएँ
मन दुखता…
-शैल अग्रवाल
दिसंबर 2023
शुभ हो शीतल हो
पीतल पर मुलम्मा नहीं
खरा सोना हो समय
चाहता तो बहुत कुछ मन
पर मानो गिद्ध के मुँह से
झपटना हो मांस हर पल
करता रहता बस इंतजार
अपनों का, खुशियों का
दिन महीने और साल बन
कितना नादान है समय
मनाना चाहता नित जशन
ढूंढ-ठूंढकर, बीन-बीनकर
अपनापन नहीं जहाँ पर शेष
नापता जाता महाकाल को
दिन महीने और साल बन
कितना हठीला है समय
अजगर-सा मुँह बाए नित
निगल रहा है ख़ुद को
पर यही तो था कभी
कालिया-मर्दन कृष्ण का
दुख के फनों पर खडा
रौंदता हंसता और थिरकता
हारता-जीतता नहीं समय
नम आंखो सहित आस भरा
पुराने में नया ढूँढ ही लाता
दिन महीने और साल बन
कितना जोशीला है समय
आंसुओं की शराब पर
हो-होकर बेसुध
खुद को ही तलाशता जाता
जुटाकर परिचितों का मेला
खुद को ही खो भी आता
दिन महीने साल बन
कितना नादान है समय
नए सुरों की नई रागिनी
गूंजती इक नई धुन नए होठों पर
हँसाती-रुलाती, याद दिलाती
खोयों की, भूले-बिसरों की
दिन महीने और साल बन
कितनों की पहचान है समय
शैल अग्रवाल
दिसंबर 22
सुनो तो मन…
रेत पर गीले ये पद चिन्ह
बनते ही मिट जाते
जीतते ही हार मान लेते
लहरों के इन्तजार में
बिखरे जाते फिर-फिर फेनिल
दिन महीने साल बने
नदी-सा बहता रहता है परन्तु
निरंतर यह एक अकेला मन…
कुछ यादें, उम्मीदें और चेहरे
साथ चलतीं कितनी आवाजें
कितनी बीच में ही डूब गईं
अलविदा कहे बगैर ही
नए कुछ और आ जुड़े
प्रिय अप्रिय कितने सपने
खट्टे मीठे और नुनखुरे
चलते जो संग-संग
हाथ थामे हर मोड़ पर
जाना होगा इन्हे भी यहीं छोड़कर
एक समय ही तो सबकुछ लपेटे-समेटे
निरंतर संगी-साथी है अपना
मुड़ मुड़कर टोहता, टोकता
एक आस में जीता जश्न मनाता
खोए बिछुड़े और पायों का
वादों और इरादों को दोहराता
बीत गया फिर एक और बरस
बूंद बूंदकर जिसे पिया छककर जिया
हुलस हुलस तो कभी झुलस झुलस
आंसूभीनी स्मिति से विदा किया
तो पल में ही विदा भी हो गया
एक ही लहर ने मिटा दिया सबकुछ
मन की दीवारों पर तस्बीरों-सा सजा
पलकों में जो टिका खड़ा रहा
पल भर भी ना थमा, ना रुका
बस बीत गया…
स्वागत अब अनदेखे आगत का
सपनों की रंगोली से
संकल्पों के हारों से
आहिस्ता आहिस्ता आना पर तुम
अतिथि मेरे अनजाने से
तने तने लहलहाए तो जरूर
पर बेचैन बहुत हैं थके बहुत हैं
सोए पड़े जो सपने सुकुमार
हार न मानें प्रयत्नरत बहुत हैं
जमने को, फलने को
प्रबल इस प्रवाह में अड़े खड़े
सुन तो रहे हो ना तुम
चंचल विकल आकुल
ओ मेरे शिशु मन!
शैल अग्रवाल
दिसंबर 21
अलविदा विगत वर्ष,स्वागत है नवल वर्ष
अलविदा उदासी के शिथिल भाव -शिथिल चरण
स्वागत अनुराग भरी भावना का नेह-वरण
आशा -विश्वास लिए स्वागत है -स्वागत है,
अलविदा पुरातनता ,रूढ़ियाँ -विषमताएं
मौन रुदन ,अश्रु भरी जीवन की सरिताएं
स्वागत है स्वर्ण कलश साथ लिए किरण-पुंज,
स्वागत है आगत भविष्यत् के शत निकुंज,
जीवन संगीत लिए स्वागत है -स्वागत है
स्वागत है साहस -उमंग भरे दीपित-स्वर
जीवन संवेदना के नए पंख नए शिखर ,
अलविदा ,शिखाओं में जलते सपनों के घर ,
स्वागत ,उम्मीदों का ज्योतिर्मय नव-भास्कर ,
नूतन आशाओं का गान लिए स्वागत है ,
स्वागत है नवल वर्ष ,भाव भरा स्वागत है,,,
नया सबेरा आया है
दूर रहें कह दो उन काली रातों से,
उम्मीदों का सूरज फिर मुसकाया है,
अनजाने सपनों की आकुल रात गयी,
नयी किरण ले नया सबेरा आया है
मदमाते फूलों की हम क्या बात करें
परहमने दामन में कांटे भी पालें है,
बंद किए पलकों में यादों के पल छिन,
कंपित अधरो पर मौसम के ताले हैं,
आओ स्वागत करें हर्षमय जीवन का,
जिसने अंधियारों में दीप जलाया है,
नयी किरण ले नया सबेरा आया है,
बंद झरोखों के अंधे कपाट खोलें,
सन्नाटो में घोलें सरगम की बातें,
मन के सूने आंगन में गुंजन भर दें,
दीपों से जगमग हों अंधियारी रातें,
मन-दर्पण में स्वप्न नया सरसाया है
नयी किरण ले नया सबेरा आया है
अलविदा विगत वर्ष,स्वागत है नवल वर्ष
पद्मा मिश्रा जमशेदपुर झारखंड
भोर-उजेरी लेकर आई
किरन किरन उम्मीदें
हर्ष की उत्कर्ष की
आस भरे संकल्प की
स्वागत तुम्हारा नव वर्ष
खुशियाँ लेकर आना
भटकना नहीं भटकाना नहीं
इंतजार में उत्सुक और आकुल
विह्वल है जर्जर मन!
शैल अग्रवाल
दिसंबर 20
वक्त के जादूगर ने
एक स्वेटर बुना
और फिर सारे-के-सारे
फन्दे गिरा दिए
खिलंदड़ी जो ठहरा
मगन अब फिर से
एक-एक करके उठाएगा वह
पूरे तीन सौ पैंसठ
और नया स्वेटर बुनेगा
उम्मीद है अच्छा ही चुनेगा
बहुत प्यार जो करता है हमसे
फिर यह डिजाइन भी तो
कितनी पुरानी हो गई…
शैल अग्रवाल
दिसंबर 19
दीवार पर टंगा कैलेंडर
और पन्ने फाड़ते
तारीखें काटते हम
जश्न मनाते गुजरे का
स्वागत में आगत के झूमते नाचते
यादों के एलबम सजते चले जाते
एकदिन अचानक ये धुंघली तस्बीरें
भूली-बिसरी दिखतीं धूल भरे बक्सों में
दीमक चटी कूड़े भरे ढेर पर जातीं
दिया सलाई का इंतजार करतीं
अनंत में विलीन हो जाने को
वक्त के परदे में सब छुप जाते हैं
आंसू नहीं उत्सव है फिर भी जीवन
संचय या स्मारक का फेर नहीं
फंदा है लख चौरासी का
याद करो, सिकंदर जब हंसा था
उन्मादित अपनी जीत पर
मिट्टी भी तो हंसी थी तभी
उसके साथ-साथ…
-शैल अग्रवाल
दिसंबर 19
“नव वर्ष उदित होगा !”
नव उत्साह नव हर्ष होगा
नयी ताजगी नयी उमंग ले
ध्येय का उत्कर्ष होगा
प्रीत प्रगति हर्ष ले
वर्ष आशा का शोभित होगा
इसी मंगलकामना के साथ
नई आशाएँ अभिलाषाएँ ले
नव वर्ष उदित होगा
नए क्षितिज की बगिया में
तितली सा मंडरायेगा
प्रेम जन्य फूलों पर
नये रंग सजायेगा
नये स्वप्न नयी तरंग ले
नव वर्ष उदित होगा
नवसृज़न की दिशा में
परस्पर भाईचारे के साथ
नवल रश्मियाँ बिखेर कर
आस के सूर्य सा
ज्योतित होगा
नववर्ष उदित होगा !
डॉ सरस्वती माथुर
स्वागत नव वर्ष
तिमिर चीरता थके न स्वर्णिम
उद्घोष ज्योति का, उद्घोष सत्य का
विदा विगत से, आगत का स्वागत
जयति जयति ज्योतिर्मय नव प्रभात
वक्त की शाख पर
एक और नव किसलय
झरते पत्तों बीच चमकता
दीप्त हरित और आस से भरा
मुस्कुराता और प्रेरणा देता
आने वाला वक्त मेरा
जो भी हो जी लूंगा मैं
सह लूंगा सहज ही पुलक पुलक
सारी बौछारें और मौसमी थपेड़े
फलता-फूलता हंसता-झूमता
कितना विश्वास भरा-
ओस की बूंद-सा माना
छणिक है इसका जीवन
फिर भी कुसमित-सुरभित हवाएँ
हजार सुगंध,हजार संभावनाएँ
इसके इर्द-गिर्द
लेता ही नहीं, बहुत कुछ
देता भी तो है समय…
– शैल अग्रवाल
दिसंबर 18
नया सबेरा
नए साल का,नया सबेरा,
जब, अम्बर से धरती पर उतरे,
तब,शान्ति,प्रेम की पंखुरियाँ,
धरती के कण-कण पर बिखरें,
चिडियों के कलरव गान के संग,
मानवता की शुरू कहानी हो,
फिर न किसी का लहू बहे,
न किसी आँख में पानी हो,
शबनम की सतरंगी बूँदें,
बरसे घर-घर द्वार,
मिटे गरीबी,भुखमरी,
नफरत की दीवार,
ठण्डी-ठण्डी पवन खोल दे,
समरसता के द्वार,
सत्य,अहिंसा,और प्रेम,
सीखे सारा संसार,
सूरज की ऊर्जामय किरणें,
अन्तरमन का तम हर ले,
नई सोंच के नव प्रभात से,
घर घर मंगल दीप जलें।
-बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष
नए साल का नया सबेरा
हर निर्धन की बस्ती में भी चैन की बंसी बजाए
निर्धन की खाली झोली भी खुशियों से चमकाए
उजियाला ही उजियाला हो जिस कुटिया को देखें
नए साल का नया सबेरा खेल नया दिखलाए
.-प्राण शर्मा
मुबारक हो
नयी नयी उम्मीदों का सुर ताल मुबारक हो
ढोलक तबला नाल मंजीरा झाल मुबारक हो
हक की खातिर लड़ते रहना बंद नहीं होगा
मेहनतकश मजदूरों को हड़ताल मुबारक हो
रोज नयी तरकीब जतन से जिंदा रहना है
रोज रात में दिन में रोटी दाल मुबारक हो
तिकड़म करने वाले तुर्रम खां भी बने रहें
गड़बड़झालों को केवल जंजाल मुबारक हो
पेड़ों पर हरियाली आये, नदियों में पानी
चिड़ियों को तिनका, दाना, खर, डाल मुबारक हो
भूल चूक लेनी देनी को कूड़े में डालो
बीत गया वह साल नया यह साल मुबारक हो
-दास दरभंगवी
एक बरस बीत गया
झुलासाता जेठ मास
शरद चाँदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूँज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
-अटल बिहारी बाजपेयी
हे नव वर्ष!
तुम्हारा स्वागत-सत्कार
चाहते हुए भी न कर सका!
तुम्हारे शुभागमन के पूर्व
कई दिनों से
विविध आयोजनों की
रूपरेखा बनाने का विचार
मन में आता रहा,
न जाने क्या-क्या अभिनव अनूठा समाता रहा,
पर, कार्यरूप में
तनिक भी परिणत न कर सका उसे!
हे नव वर्ष!
तुम आ गये बिना किसी धूमधाम के?
और मैं
तुम्हें प्यार भरी भुजाओं में
चाहते हुए भी न भर सका!
हे नव वर्ष!
तुम सचमुच कितने उदास हो रहे होगे!
तुम्हारे अभिनन्दन में इस बार
एक क्या अनेक कविताएँ लिखना चाहते हुए भी
एक पंक्ति भी
तुम्हें समर्पित न कर सका!
अरे, यह क्या हुआ?
कुछ भी तो स्मरणीय विशिष्ट घटित हो जाता
जीवन- नाटक का
मंगलाचरण या पटाक्षेप!
पर, कुछ भी तो नहीं हुआ;
मात्र पूर्वाभ्यास का बोध होता रहा!
हे नव वर्ष!
तुम्हें जीवन-क्रमणिका में
महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाने की साध लिए
जागता… सोता रहा!
चाहते हुए भी
न जी सका – न मर सका!
-महेन्द्र भटनागर
वर्षगांठ पर
यदि सबकुछ किसी तरह
रह जाता शेष
ज्यों का त्यों
परिवर्तनों की आशा में
सपनाता हुआ
एक आदर्शलोक के लिए…
यदि जो
अनन्य था अभिन्न था
सटा रहता था वक्ष से प्रतिफल, फिर
लौट आता और
बातें अपने को दोहरातीं…
यदि जीवन एकबार
फिर जिया जा सकता
एक पारे जैसे स्वप्न के इर्द-गिर्द…
यदि शब्द
अपने को व्यक्त कर पाते
पर्तों में नहीं
रंगों में…
आज मैं भी
एक मोमबत्ती जला देता
जश्न मनाता
इस एक और गुजरते हुए
वर्ष के लिए
– सत्येन्द्र श्रीवास्तव
नया वर्ष आया है।
भृष्टाचार व नारी दुख की
बातें हो वे बीते युग की
विश्वास की मशाल ले
अंधेरे को प्रकाश दे
आम आदमी ने अब
लड़ने का बीड़ा उठाया है
नया वर्ष आया है
मत देख कगार से
अफवाहों का बढ़ता जश्न
तोड़ देगा हौसलों के बंद
उठ प्यार से पुकार ले
भूखे नंगे अकेले जो
उन्हें भी जरा दुलार ले
नया सबेरा आया है
नई किरण लाया है
उमंग और आसभरा
नया वर्ष आया है।
-शैल अग्रवाल
दिसंबर 13
द्वार थपथपा रहा
अतीत संग विदा हुआ
विवादों का सिलसिला
कदम नव बढ़ा रहा
जिन्दगी का हौसला
मशाल ले आ रहा
द्वार थपथपा रहा।
कश्मीर के हिमशिखर
सोचो तो पहाड़ पर
जवान देशों के जहां
लेकर जान हाथ पर
तुम चैन से सांस लो
विश्वास नव दिला रहा
द्वार थपथपा रहा।
मन में कहीं डर न हो
सर ऊँचा उठा सको
गले-गले मिला सको।
मुक्त कंठ गा सको।
शांति गीत गा रहा
द्वार थपथपा रहा।
जन जन की पूरी हों
बुनियादी जरूरतें
संघर्षों से जुड़ी हो
सूरज की प्रथम किरण
समय की पुकार बन
द्वार थपथपा रहा।
खेतों में हरा भरा
भाग्य की मांग में
कर्म के स्वांग में
दिख रहा विभूति है
समय से मन्त्रणा
जीवन का दुख
हर्ष दर्शन करा रहा
द्वार थपथपा रहा।
श्रीलंका या नेपाल हो
वहां शांति वास हो
जब पड़ोसी हो दुखी
कैसे चैन साथ हो
विश्व में हंसी-खुशी
ढोल जो बजा रहा
द्वार थपथपा रहा।
-शरद आलोक
आशा की किरणें
आंखों में अपनी हैं आशा की किरणें
चाहत के सुर धड़कनों में सजाएं
इक दिन मिलेगी वो सपनों की दुनिया
जादू उमंगों का दिल में जगाएं…
बादल में बिजली है, सूरज में आभा
हिम्मत हवाओं में सागर में लहरें
मुश्किल नहीं कुछ अगर ज़िद है मन में
चलतें रहें बस कहीं भी ना ठहरें
नज़रों में झिलमिल सितारे सजाकर
नई रोशनी से गगन जगमगाएं…
हम कौन हैं ! क्या है हसरत हमारी
लाज़िम है खु़द को भी पहचान लें हम
अगर हौसला है रगों में हमारी
तो मंज़िल पे पहु्चेंगे, ये जान लें हम
कड़ी धूप हो, पर न पीछे हटेंगें
ये एहसास हम रास्तों को दिलाएं…
कलियों की मुस्कान, फूलों की रंगत
निगाहों में हों खू़बसूरत नज़ारे
चलो अपनी बाहों में आकाश भर लें
करें बंद मुट्ठी में ये चांद-तारे
चेहरे पे सबके हो खुशियों की रौनक
जहां में मोहब्बत की खु़शबू लुटाएं…
नए साल की हैं ये शुभकामनाएं
-देवमणि पांडेय
नव -वर्ष की शुभकामनाएं
बीते हुए वर्ष की , दिल में उठे हर्ष की,
चिर-पुराने बंधुओं की , खट्टे -मीठे अनुभवों की,
अविस्मरनीय यादों की , नव मिले आगंतुकों की,
पूरे वर्ष मन में न जाने, जन्मीं कितनी भावनाएं ?
आपको नव -वर्ष की शुभकामनाएं ।
गत सर्दियों की ठिठुरन की,
शर्माते सूरज औ ठंढी हवाओं की,
नीड़ों में दुबके पंछी औ छोटे -छोटे पिल्लों की,
गर्म -गर्म चाय और कॉफी की बुलबुलों की ,
धूप और बादलों में मची होड़ की ,
खिचड़ी में पतंगों के आपस के दौड़ की,
सुनसान सड़कों औ खामोश रातों की ,
कितनी ऐसी यादें है जो भूलीं न जाए ।
आपको नव -वर्ष की शुभकामनाएं ।
जाड़े के संग -संग आए ऋतुराज की ,
मदमाते मंजर औ सुलगते पलाश की ,
मलयांचल से मदमाती बहती बहती हवाओं की ,
मदहोश नव-यौवना औ होली के रंगों की ,
यौवन के दिन औ अंगराई के शाम की ,
मत्त हुए महुओं औ पीपल के पल्लव की ,
कोयल की कूकों और कौवों के वाचन की ,
कवियों की , जिन्होंने रची ऐसी कविताएँ ।
आपको नव -वर्ष की शुभकामनाएं ।
रंगों को करके फीका आये ग्रीष्म की ,
क्रोधित हुए सूरज औ गरमाती हवाओं की ,
दहकते हुए शहर औ तपते हुए गाँव की ,
पिघलता हुआ आसमान औ पेड़ों के छाँव की ,
बढ़ते हुए दिन औ छोटी हुई रातों की ,
झुलसती हुई धरती औ सूखते हुए तालों की ,
ठंढे कोल्ड्रिंक्स औ लस्सी के मिठास की ,
ग्रीष्म अवकाश की , जिसमें जहाँ चाहे घूम आएँ।
आपको नव -वर्ष की शुभकामनाएं ।
ग्रीष्म की विदाई पर आई वर्षा रानी की,
सावन के झूले संग झूलती नवयवना की,
कड़कती हुई बिजलियाँ ,गरजते हुए मेघों की ,
चमकते हुए इन्द्रधनुष , छमकती हुई बूंदों की,
टर्राते मेंढक औ कूकते हुए मोरों की ,
झूमते किसान औ धान के खेतों की,
भींगते हुए पेड़ औ टपकते हुए छप्पर की,
हरे -भरे मन की , जो लगता है अभी झूमें गाये ।
आपको नव -वर्ष की शुभकामनाएं ।
-नवनीत नीरव
नव वर्ष की पहली किरण
खुशियों भरा संसार दे, नव वर्ष की पहली किरण
आनंद का उपहार दे, नव वर्ष की पहली किरण
दुनिया की अंधी दौड़ में, कुछ दिल्लगी के पल मिले
सबको ही अनुपम प्यार दें, नव वर्ष की पहली किरण
जर्जर हुए बदले अधर, नव वर्ष की पहली किरण
नव चेतना, दे नया स्वर, नव वर्ष की पहली किरण
अब आ चढ़ें नव कर्म रथ पर हर चिरंतन साधना
इस बुद्धि को कर दे प्रखर, नव वर्ष की पहली किरण
सबको अटल विश्वास दे, नव वर्ष की पहली किरण
नव देह में नव श्वास दे, नव वर्ष की पहली किरण
इस अवनि तल पर उतरकर, अब कर दे रौशन ये फिज़ा
उल्लास ही उल्लास दे, नव वर्ष की पहली किरण
अब आ रही है मनोरम, नव वर्ष की पहली किरण
यह चीरती अज्ञान तम, नव वर्ष की पहली किरण
मैं छंद तुझ पर क्या लिखूँ ‘अद्भुत’ कहूँ इतना ही बस।
सुस्वागतम सुस्वागतम, नव वर्ष की पहली किरण
-भारत दीथा
नव वर्ष
नव कल्पना, , नवज्योत्सना,
नव ज्येति नव परिकल्पना।
नव अर्थ जीवन मे, नूतन साधना ।
नव वर्ष मे परिपूर्ण हो
आपकी हर कामना।
नव वंदना, नव अर्चना, नव
कुसुम, नव अभिव्यंजना।
सुख शांति,सुख समृद्धि
ये है मेरी शुभकामना
सुख शांति सुख समृद्धि,
केवल मे तुम्हारी ही नहीं,
विश्व में जागे बंधुत्व की भावना।
सृष्टि सृजनहार से मेरी यही है प्रार्थना।
– बीनू भटनागर
नववर्ष
नववर्ष
नया चाँद
चंदन समान I
नव वर्ष
सुमन सुरभि
संगीत सुन्दरी I
नव वर्ष
विराट गगन
विजय गान I
नव वर्ष
नई मंजिलें
नव निर्माण i
सुधा भार्गव
गए साल…
गये साल हमने कांधों पर गम बहुत उठाये,
गेंगरेप, एफडीआई ने मिल के ज़ुल्म ढाये,
अब अगले साल में प्रभु कुछ ऐसा काम करना-
हर आँख में खुशी हो, हर होंठ मुस्कराये।
-विष्णु सक्सेना
ये नया साल उम्मीदें भी नयी लाया है
जुर्म से और फसादों से बचेगी
अब फ़क़त प्यार के रस्ते पे चलेगी दुनिया
दिल ये कहता है के अब स्वर्ग बनेगी दुनिया
सब के होटों पे यही हर्फे दुआ आया है
ये नया साल उम्मीदें भी नयी लाया है
सूफी संतों ने यही पाठ पढाया है हमें
ये ही कुरान ने गीता ने बताया है हमें
रब ने किस वास्ते इंसान बनाया है हमें
फलसफा क्या ये समझ में भी कभी आया है
ये नया साल उम्मीदें भी नयी लाया है
दूर हर दिल से उसी रोज़ होगी कुदूरत
एक दूजे के लिए दिल में मुहब्बत होगी
धर्म मज़हब से के जब पाक सियासत होगी
हमको हर बार अदीबों ने ये समझाया है
ये नया साल उम्मीदें भी नयी लाया है ।
-आदिल रशीद
नए साल का शोर क्यों?
कुछ भी नया नहीं दिखता पर नये साल का शोर क्यों?
बहुत दूर सत – संकल्पों से है मदिरा पर जोर क्यों?
हरएक साल सब करे कामना हो समाज मानव जैसा
दीप जलाते ही रहते पर तिमिर यहाँ घनघोर क्यों?
अच्छाई है लोकतंत्र में सुना है जितने तंत्र हुए
जो चुनते हैं सरकारों को आज वही कमजोर क्यों?
सारे जग से हम बेहतर हैं धरम न्याय उपदेश में
लेकिन मौलिक प्रश्न सामने घर घर रिश्वतखोर क्यों?
जब से होश सम्भाला देखा सब कुछ उल्टा पुल्टा है
अँधियारे में चकाचौंध और थकी थकी सी भोर क्यों?
धूप चाँदनी उसके वश में जो कुबेर बन बैठे हैं
जेल संत को भेज दिया पर मंदिर में है चोर क्यों
है जीवन की यही हकीकत नये साल के सामने
भाव सृजन का नूतन लेकर सुमन आँख में नोर क्यों?
– श्यामल सुमन
ये दुनिया तो सिर्फ मुहब्बत
आने वाले कल का स्वागत, बीते कल से सीख लिया
नहीं किसी से कोई अदावत, बीते कल से सीख लिया
भेद यहाँ पर ऊँच नीच का, हैं आपस में झगड़े भी
ये दुनिया तो सिर्फ मुहब्बत, बीते कल से सीख लिया
हंगामे होते, होने दो, इन्सां तो सच बोलेंगे
सच कहना है नहीं इनायत, बीते कल से सीख लिया
यह कोशिश प्रायः सबकी है, हों मेरे घर सुख सारे
क्या सबको मिल सकती जन्नत, बीते कल से सीख लिया
गर्माहट टूटे रिश्तों में, कोशिश हो, फिर से आए
क्या मुमकिन है सदा बगावत, बीते कल से सीख लिया
खोज रहा मुस्कान हमेशा, गम से पार उतरने को
इस दुनिया से नहीं शिकायत, बीते कल से सीख लिया
भागमभाग मची न जाने, किसको क्या क्या पाना है
सुमन सुधारो खुद की आदत, बीते कल से सीख लिया
-श्यामल सुमन
दादी कहती है
दादी कहती है कि
जब जब नया साल आता है
महँगाई की फुटबॉल में
दो पंप हवा और डाल जाता है
गरीबी की चादर में
एक पैबंद और लगाकर
भ्रष्टाचार का प्रमोशन कर जाता है
ईमानदारी कहीं बदचलन न हो जाए
इसलिए बेईमानी का पहरा बैठा जाता है
मटर के खेतों की रखवाली
बकरों को सौंप जाता है।
दादी यह सब देखकर
जाने क्यों चिढ़ती है
शायद सठिया गई हैं
अरे ठीक ही तो है
नया साल आएगा
खुशियाँ लाएगा
महँगाई की फुटबॉल को
थोड़ा और फुला जाएगा
सच खेलने में बड़ा मज़ा आएगा।
खेलने में बड़ा मज़ा आएगा।
-जगदीश व्योम
नूतन आस जगाने दो
नये साल का स्वागत करके, नूतन आस जगाने दो
कल क्या होगा, कौन जानता, मन की प्यास बुझाने दो
क्या खोया, क्या पाया कल तक, अनुभव के संग ज्ञान यही
इसी ज्ञान से कल हो रौशन, यह विश्वास बढ़ाने दो
जो न सोचा, हो जाता है, वीर हारते नहीं कभी
सच्ची कोशिश, प्रतिफल अच्छा, बातें खास बताने दो
कल आयेगा, बीता कल भी, नहीं किसी पर वश अपना
अपने वश में वर्तमान बस, यह आभास कराने दो
जितने काँटे मिले सुमन को, बढ़ती है उतनी खुशबू
खुद का परिचय संघर्षों से, यह एहसास कराने दो
– श्यामल सुमन
कामना नव वर्ष की
किरणें मुस्काकर लायीं नये वर्ष का नव पैगाम
कोयल कूक रही है जग में गूँजेगा भारत का नाम
वही आसमां वही फ़िज़ा है वही दिशाएँ अभी तलक
नयी चेतना नये जोश से नया सृजन होगा अविराम
बहुत रो लिये वर्तमान पर परिवर्तन की हो कोशिश
सार्थक होगा तब विचार जब हालातों पर लगे लगाम
पिंजड़े के तोते भी रट के बातें अच्छी कर लेते
बस बातों से बात न बनती करना होगा मिलकर काम
नित नूतन संकल्पों से नव सोच की धारा फूटेगी
पत्थर पे भी सुमन खिलेंगे और होगा उपवन अभिराम
-श्यामल सुमन
देखो देखो
देखो, देखो,
शीत का ओढ़ दुशाला
सस्मित विस्मित सा
पथिक सा
… चला आ रहा है
शहर गाँव- बस्ती
नदी- खेत- पोखर पर
चिड़िया सा
चहचहा रहा है
यह मंजुल प्रकाश भर
पंखुड़ियों को धरा पर
बिखरा रहा है
जाफरानी हवाओं सा
डाल- डाल पात- पात पर
तितली सा मंडरा रहा है
वसुधा में कर परिवर्तन
कोमल वत्सल सा
शीत अविरल सा
नदी, बादल
समुन्द्र, पहाड़ पर
ओस कण की
बन्दनवार सजाकर
आत्ममुग्ध सा
स्वच्छ शुची उद्गम ले
नववर्ष मनभावन सा
आशाओं की किरणों का
हाथ थाम मुस्कराता
चला आ रहा है !
-डॉ सरस्वती माथुर
कामना
नव किरणें मुस्काकर लायीं नये वर्ष का नव पैगाम
कोयल कूक रही है जग में गूँजेगा भारत का नाम
वही आसमां वही फ़िज़ा है वही दिशाएँ अभी तलक
नयी चेतना नये जोश से नया सृजन होगा अविराम
बहुत रो लिये वर्तमान पर परिवर्तन की हो कोशिश
सार्थक होगा तब विचार जब हालातों पर लगे लगाम
पिंजड़े के तोते भी रट के बातें अच्छी कर लेते
बस बातों से बात न बनती करना होगा मिलकर काम
नित नूतन संकल्पों से नव सोच की धारा फूटेगी
पत्थर पे भी सुमन खिलेंगे और होगा उपवन अभिराम
– श्यामल सुमन
स्वागत सब मिलकर करें
स्वागत सब मिलकर करें, नए साल का आज
हिम्मत साहस से बढें, सुलझ जाएं सब काज|
नया नया विश्वास हो, नया नया संवाद
नयी नयी हो भावना, नया नया आह्लाद|
घर घर में जलते रहें, नेह भाव के दीप
प्रेमभाव की मुक्तिका, निपजे मन के सीप|
सपनों को अपना करें, बोकर श्रम के बीज
श्रम सीकर को बांधकर, बने नया ताबीज।
– गिरिराज शरण अग्रवाल
नववर्ष
वर्ष नव
हर्ष नव
जीवन उत्कर्ष नव ।
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग ।
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह ।
गीत नवल,
प्रीति नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल !
-हरिवंश राय बच्चन
नववर्ष अभिनंदन
द्वार पर आहट हुई, लो
आज फिर नव वर्ष आया।
गगनांचल को सजा कर
अर्धरात्रि को लुभा कर
हर दिशा में गीत गा कर
आज फिर नव वर्ष आया।
नव सृजन की साधना ले
शांति की सद्भावना ले
विश्व सुख की कामना ले
आज फिर नव वर्ष आया।
नई उमंगों को बिछा कर
आस के दीपक जला कर
कुछ नये सपने सजा कर
आज फिर नव वर्ष आया।
मन को दृढ़ विश्वास देकर
डूबती नौका को खे कर
एक नया संदेश ले कर
आज फिर नव वर्ष आया।
आओ, अब छोड़े सिसकना
खोले मन का द्वार अपना
द्वार पर आहट हुई, लो
आज फिर नव वर्ष आया।
– पुष्पा भार्गव
नये साल का शोर क्यों?
कुछ भी नया नहीं दिखता पर नये साल का शोर क्यों?
बहुत दूर सत – संकल्पों से है मदिरा पर जोर क्यों?
हरएक साल सब करे कामना हो समाज मानव जैसा
दीप जलाते ही रहते पर तिमिर यहाँ घनघोर क्यों?
अच्छाई है लोकतंत्र में सुना है जितने तंत्र हुए
जो चुनते हैं सरकारों को आज वही कमजोर क्यों?
सारे जग से हम बेहतर हैं धरम न्याय उपदेश में
लेकिन मौलिक प्रश्न सामने घर घर रिश्वतखोर क्यों?
जब से होश सम्भाला देखा सब कुछ उल्टा पुल्टा है
अँधियारे में चकाचौंध और थकी थकी सी भोर क्यों?
धूप चाँदनी उसके वश में जो कुबेर बन बैठे हैं
जेल संत को भेज दिया पर मंदिर में है चोर क्यों
है जीवन की यही हकीकत नये साल के सामने
भाव सृजन का नूतन लेकर सुमन आँख में नीर क्यों?
-श्यामल सुमन
नया दौर अब आयेगा
भूल जाएँ हम बात पुरानी, नया दौर अब आयेगा.
जैसा हमने चाहा था बस, वैसा अवसर लायेगा.
एक -एक होते हैं ग्यारह, यह जीवन का लक्ष्य रहे,
चाहे जो मजबूरी हो पर, साथ हमारे सत्य रहे.
श्रमवीरों का ही तो ईश्वर, हरदम भाग्य बनाएगा..
उठो-उठो अब आगे देखो, पीछे बीता साल रहे,
ऐसे जतन करो कि पूरा जीवन ही खुशहाल रहे.
दुःख आयेगा लेकिन अपने, सम्मुख ठहर ना पायेगा.
हरपल हरदम बढ़ते जाना, ये ही सच्चा जीवन है
जो दूजे के काम आ गया, वो इंसां तो चंदन है.
सत्कर्मों से भरा रहे तो, वैसा जीवन पायेगा…
मान लिया हम तनिक गिरे थे, पर उठने की ठानी थी.
टूट नहीं पाए हम क्योकि हर पीड़ा बेमानी थी.
आँसू को जो पी जाएगा, वह जीवन को गायेगा..
यहाँ-वहाँ हर ओर नयापन, बगरी है अब गंध नई.
एक नए जीवन की खातिर, हम खाएं सौगंध नई.
अपने भीतर का सेनानी, हमें साथ ले जाएगा..
भूल गए हम बात पुरानी, नयासवेरा आयेगा…
छूट गए जो लोग यहाँ पर, साथ उन्हें भी लेना है
यही तकाजा नए दौर का, प्यार सभी को देना है.
हम गैरों को अपनाएंगे, जग हमको अपनाएगा..
सपने अक्सर टूटा करते, फिर-फिर नूतन गढ़ते हैं,
कितना भी हो पर्वत ऊँचा, हिम्मत से हम चढ़ते हैं.
अगर हौसला छोड़ दिया तो, कौन हमें दुलराएगा.
–गिरीश पंकज
नया साल मुबारक !!!
गाते रहो हँसाते रहो ये नया साल है
हर पल ख़ुशी मनाते रहो ये नया साल है
बीत गया सो बीत गया भूल जाओ उसे
सपने नए सजाते रहो ये नया साल है
मायूसी से नही छू सकते आकाश को
नये परिंदे उड़ाते रहो ये नया साल है
मंजिले अभी और भी है , ना रुको
नया इतिहास रचाते रहो ये नया साल है
अहंकार , इर्ष्या, राग और लोभ से
खुद को हराते रहो ये नया साल है
मुस्कुराओ और मुस्कुराकर मिलो सबसे
नये रिश्ते बनाते रहो ये नया साल है
मुरझाये दिलों को जोड़ो , उन्हें खिलने दो
दिल में आशा जगाते रहो ये नया साल है
-अश्विनि कुमार श्रीवास्तव
आ गया वक्त फिर
अन्तर के पट खोलो तुम मन की उलझन सुलझाओ।
आ गया वक़्त फिर नूतन कुछ राहें नई दिखाओ।।
जाने कब से भटके हैं जाने कब से अटके हैं।
हम सब त्रिषंकु से जग में जाने कब से लटके हैं।
सुविधाओं के भोगी हैं शंकाओं के रोगी हैं।
सच पूछो तो हम केवल बातों के ही योगी हैं।
बदलो ऐसी फ़ितरत को चिन्तन की फ़सल उगाओ।
आ गया वक़्त फिर नूतन कुछ राहें नई दिखाओ।।
बीते वर्षॉं में हमने देखे हैं अनगिन सपने।
बन सके भला उनमें से बतलाओ कितने अपने।
दिन के ऐसे सपनों से जग का उत्थान न होगा।
ईष्वर न मिलेगा जब तक सच्चा इन्सान न होगा।
व्यर्थ के प्रदर्षन छोड़ो मौलिकता को अपनाओ।
आ गया वक़्त फिर नूतन कुछ राहें नई दिखाओ।।
अब इतना समय नहीं है हम इन्तजार कर पाएं।
निज दम्भ द्वेश को तज कर जग को समृद्ध बनाएं।
वसुधैव कुटुम का जिस दिन मन में संकल्प जगेगा।
सबको सबका ही सुख दुख अपना सुख दुःख लगेगा।
यह शाश्वत सृष्टि नियम है इसको न कभी बिसराओ।
आ गया वक़्त फिर नूतन कुछ राहें नई दिखाओ।।
रंजन विशदा
नया साल आया है
ढोल बजाओ , धूम मचाओ साल नया है
कुछ ऐसा ही रंग जमाओ साल नया है
खुल कर यारो हँसो – हँसाओ साल नया है
चिंताओं से छुट्टी पाओ साल नया है
मुँह लटकाए क्यों बैठे हो मेरे यारो
झूमो , नाचो और लहराओ साल नया है
इस से अब क्या लेना – देना मेरे यारो
यानी नफ़रत दूर भगाओ साल नया है
सुथरा – सुथरा , रंग – बिरंगा हर कमरा हो
यूँ अपना घर – बार सजाओ साल नया है
अपने को ही महकाया तो क्या महकाया
औरों को भी तुम महकाओ साल नया है
अपना हो या हो बेगाना याद करेगा
मुँह मीठा ए ” प्राण ” कराओ साल नया है
– प्राण शर्मा
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