हायकूःसागर- सरस्वती माथुर/ शैल अग्रवाल/ लेखनी मई-जून 16

Sunset-over-Sea

सागर खारा
मीठी नदियों का है
कलश धारा।

नींद सागर
सपने अँखुआए
तैरते रहे।

दिन दहाड़े
पछाड़ें खाती रही
सिंधु लहरें ।

दिल मिला है
सागर में रेत सा
छान कर देखो।

बहती नदी
लहरों के झारों से
छाने सागर ।

सिंदूर आंज
सागर की माँग को
सूर्य भरता।


सागर तट
लहरों संग खेला
फेनों का रेला ।
८ प्रेम सागर
मोती बन निकला
नदी सा मन।

९ अँधी सुरंग
सागर में जाकर
सूर्य छिपाती।
१०
सूर्य सोने की
स्वर्ण किरणें लेके
सागर घूमें ।
११
नदी यात्री सी
दौड़ के पकड़ती
सिंधु की नाव ।

१२
मीठा समुंदर
मन में है बसता
झाँक कर देखो।

डाँ सरस्वती माथुर
Sunset-over-Sea

1.
सागर तट
बिखरी नभ घट से
शाम सिंदूरी
2.
लहरों पर
किरणों का मेला
तले अंधेरा

3
नीले विस्तार
बहती जा रही थी
नाव अकेली

4

लहर बन
उछली और दौड़ीं
लहराती बूंदें
5
तपता रवि
बीच समुन्दर में
चला नहाने
6
सागर गोदी
छुप गया सूरज
लहरें ओढ़े
7
गाती है लोरी
लहरों से लिपटी
रात अंधेरी
8
जाल बिछाए
मछली को तकते
खड़े किनारे
9.

नापता दोनों
सागर औ साहिल
एक ही पुल
10
मौन की आस
समुद्र की प्यास
कैसे हो पूरी

11
उदास मन
लहरों सा भटका
खोया किनारा

12
प्यास ना बुझे
मीठी नदी पी गया
खारा समुद्र

-शैल अग्रवाल

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