कहानियाँ
झूठी कहानियाँ हों या सच्ची कहानियाँ
दादी के मुँह से लगती हैं अच्छी कहानियाँ
बच्चों के संग परियों का हर रोज़ खेलना
अब तक हैं याद मुझको वे प्यारी कहानियाँ
हर एक को न भा सकी इक जैसी दोस्तो
वे सबकी सब नयी या पुरानी कहानियाँ
इक सी कभी रही नहीं वे तो जहान में
लोगों के साथ – साथ हैं बदली कहानियाँ
उलझन सी होने लगती है मेरे दिमाग में
पढता हूँ जब रिसालों में उलझी कहानियाँ
मैं सोचता हूँ , दुनिया को कैसे ख़बर हुयी
हर कोई जाने है मेरे घर की कहानियाँ
जब तक रहेगा ` प्राण ` ज़माने में आदमी
दुनिया में कभी ख़त्म न होंगी कहानियाँ
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पीपल की छाया में
पीपल की छाया में कभी तो आ कर देख
मस्त हवा के झोंकों में लहरा कर देख
मन भी लगेगा तुझको सावन के जैसा
कोयल के स्वर में आवाज़ मिला कर देख
इतना भी अलगाव सभी से अच्छा नहीं
कभी – कभी कोई मेहमान बना कर देख
क्यों न खिलेगी मुस्कानें तेरे मुख पर
नन्हे – मुन्नों की संगत में आ कर देख
यूँ तो पायी है तूने संतों की दुआ
`प्राण` किसी निर्धन की दुआ भी पा कर देख