सोच और संस्कारों की सांझी धरोहर
Lekhni-August/ September 2015
A book of verse, underneath the bough,
A jug of wine, a loaf of bread – and thou
Beside me singing in the wilderness –
Ah, wilderness were paradise now!
~ Omar Khayyam
(अंक 98 , वर्ष 9)
इस अंक में –
अपनी बात, नमन/बिछुड़ते समय।
कविता धरोहरः हरिवंशराय बच्चन। गीत और ग़ज़लः गोपाल दास नीरज। कविता आज और अभीः अशोक बाजपेयी, इला कुमार, प्रमोद कुमार कुश तनहा, विमलेश त्रिपाठी, शील निगम, शैल अग्रवाल । माह विशेषः संकलन -मातृभाषा हिन्दी ।
गद्य में-
मंथनः हिन्दी ही क्यों: आदित्य मिश्रा। मुद्दाः भाषाएँ प्रतिस्पर्धा नहीं करतीं: डॉ. शकील अहमद खान । कहानी विशेषः शैल अग्रवाल। कहानी समकालीनः गोवर्धन यादव। कहानी समकालीनः शैल अग्रवाल। कहानी समकालीनः पद्मा मिश्रा। धारावाहिक मिट्टीः भाग 19- शैल अग्रवाल। परिचर्चाः गोवर्धन यादव । प्रेरक प्रसंगः प्रमोद पाण्डे। हास्य-व्यंग्यः हिन्दी मैयाः शैल अग्रवाल । दो लघुकथाएँ ।
In the English Section: Favourite Forever: Robert Frost, Edgar Allan Poe, Sidney Lanier, Michael Drayton. Poetry Here & Now: . Story. Kids’Corner: Shail Agrawal.
बहुत सुंदर श्रुति मिश्रा जी।
हमसफ़र
इस कदर तुम तो करीब आ गए,
कि तुमसे बिछुड़ना गवारा नही ,
ऐसे बाधा मुझे अपने आगोश मे,
कि खुद को अभी तक सवारा नही |
अपनी खुशबू से मदहोश करता मुझे ,
दूसरा कोई ऐसा नज़ारा नही ,
दिल कि दुनिया मे तुझको लिया है बसा ,
तुम जितना मुझे कोई प्यारा नही |
दिल पे मरहम हमेशा लगते रहे ,
आफतो मे भी मुझको पुकारा नही ,
अपना सब कुछ तो तुमने है मुझको दिया ,
रहा दिल तक तो अब यह हमारा नही |
हमसफ़र तुम हमारे हमेश बनो ,
इस जमाने का कोई सहारा नही ,
साथ देते रहो तुम मेरा सदा ,
मिलता ऐसा जनम फिर दुबारा नही |
डॉ. श्रुति मिश्र
हार्दिक धन्यवाद शैल दी लेखनी के एक और सुंदर सार्थक संग्रहणीय अंक के लिए ह्दय सेआभार मेरी रचना प्रकाशित करने के लिए भी धन्यवाद दी ,,,पद्मा मिश्रा