अपने ख्यालों के साथ तन्हाई में वक्त गुजारेंगे हम।
खुद को बेकरार करेंगे और खुद ही संभालेंगे हम।
आज लफ़्ज़ों के साथ मेरी बात बन ही गई है,
गजल बन जायेगी जब कागज़ पे उन्हें उतारेंगे हम।
पीतल को मांजने से सोने सा चमक जाता है वो,
हम भी कुछ खास दिखेंगे जब खुद को संवारेंगे हम।
हजारों फूल डाली से टूट कर राहों में गिर पड़ेंगे,
साथ साथ चलने के लिए जब जब तुम्हें पुकारेंगें हम।
आराम दिल को जो मिलेगा वो मय से भी न मिलेगा,
आंखों के रास्ते से जब दर्द को बाहर निकालेंगे हम।
सुशी सक्सेना, इन्दौर
मेरे दिल में नहीं तो ना सही
मेरी निगाहों में तो रहा कर
अगर मुस्कान की सूरत नहीं
तो आँसू ही बनके बहा कर
जरूरी नहीं हर राज़ कहना
कभी कुछ यूँ भी कहा कर
दवा नहीं मर्ज हर ज़ख़्म की
कुछ देर तो दर्द भी सहा कर
गर चाहता है मैं भी तुझे चाहूँ
तो बच्चों सा ही मुझे चाहा कर
सलिल सरोज
सलिल सरोज
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