कविताः काठ की नैया-शैल अग्रवाल

 

काठ की नैया

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केवट भैया न ले जाएँ
राम जी को अपनी नैया
कहें हाथ जोड़ बारबार
जाने क्या जादू है
तुम्हरी पद रज में
पत्थर की शिला बनगई
जिन्दा अहिल्या मैया
केवट भैया न ले जाएँ
राम जी को अपनी नैया
रोटी रोजी का सवाल है
काठ की ये मेरी नाव है।

सुनके उनकी ये बातें
राम, लखन मन ही मन  मुस्काए
सिया समेत दोनों भाई  आगे आए
मगन मगन वो अब पग पखारें
हुलस-हुलस राम जी को पुकारें
बिराजो तीन लोक के स्वामी
धन्य भाग आज यह हमरी
काठ की नैया…

केवट भैया जो न बिठाते
राम जी को अपनी नैया
जिनने हैं तीन लोक तारे
उन राम जी को ले चले
अब पुलक पुलक उस पारे
हँसते-गाते बिठा के
अपनी काठ की नैया

-शैल अग्रवाल

 

समृद्धि

 

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किसी गाँव में एक निर्धन विधवा और उसका पुत्र जगत रहते थे। उनके घर के पास  एक पीपल का पेड था। एक दिन उसने अपने पुत्र को पीपल का महत्व बतलाते हुए कहा कि इस पेड से हमें शुद्ध वायु, लकडियाँ आदि प्राप्त होती रहती है. यदि तुम नियमित रुप से इसकी जडॊं में पानी डाला करोगे तो पेड हरा-भरा रहेगा और हमारी मदद करता रहेगा।

एक बार वह बिमार पड गया। बिस्तर से उठ- बैठने की हिम्मत उसमें बिल्कुल भी नहीं बची थी। पर नियम के अनुसार उसे पॆड की जड में पानी डालना था। उसने किसी तरह अपनी बिखरी हुई हिम्मत को बटॊरा और पानी की बाल्टी भर कर घर से निकल गया। पॆड की जडॊं में पानी डालते समय उसे आवाज सुनाई दी, “ मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हुआ हूँ। तुम कोई मन चाहा वरदान मुझसे प्राप्त कर सकते हो।”

यह आवाज उस पेड पर रहने वाले देवता की थी। जगत ने हाथ जोडकर प्रणाम करते हुए कहा-“ हे वृक्ष देवता, हमारे लिए आपका आशीर्वाद ही पर्याप्त है। आप बिना कुछ मांगे, हमें शुद्ध वायु, छाया और लकडी देते हैं। इससे बढकर और क्या चाहिए।”

आवाज फ़िर गूंजी-“ मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ। बोलो तुम्हारी क्या इच्छा है?”

जगत ने कहा;-“यदि आप देना ही चाहते हैं तो मुझे आपके नीचे गिरे पत्तों को ले जाने की अनुमति प्रदान करें।”

पीपल ने इसकी अनुमति दे दी.

उसने पेड के नीचे गिरे पत्तों को बटॊरा और अपने घर के पिछवाडॆ एक कोने में डाल दिया। सुबह माँ-बेटे सोकर उठे। उन्होंने देखा कि सारे पत्ते सोने की तरह चमचमा रहे थे। माँ ने अधीरता से एक पता उठाया और सुनार को दिखलाने ले गई। सुनार चालाक और लालची था। उसने सारा राज जान लेने के बाद कहा कि यह सोने का नहीं,बल्कि पीतल का पत्ता है। यदि तुम चाहो तो सारे पत्ते बेचकर मुझसे अनाज ले जाओ। मां ने सोचा कि एक गरीब के लिए तो अनाज ही भगवान होता है। उसने राजी-खुशी सारे पत्ते बटॊर कर सुनार दो दे दिए और बोरा भर गेहूँ ले आयी।

सुनार मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि वह बैठे-ठाले करोडपति हो गया है। उसने सारे पत्तों को एक बडी तिजोरी में बंद कर दिया। अगले दिन उसने तिजोरी खोली। पत्तों की जगह उसमें जहरीले बिच्छू भरे हुए थे। अब बिच्छुओं की फ़ौज उसे काटने दौडी। अपनी जान बचाने के लिए वह भागता रहा,लेकिन बिच्छुओं ने उसका पीछा नहीं छॊडा। आखिर भागते-भागते वह जगत के घर जा पहुँचा और अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफ़ी मांगते हुए कहा कि किसी तरह उन बिच्छुओं से बचा ले। जगत ने कहा कि तुम जाकर उस पीपल के पॆड से माफ़ी मांगो, वे ही तुम्हें माफ़ कर सकते है।

सुनार भागा-भागा पॆड के पास पहुँचा। बिच्छु अब भी उसका पीछा कर रहे थे। वहाँ पहुँचकर उसने माफ़ी मांगी। देखते ही देखते सारे बिच्छु पेड की  खोल में समा गए।

उसकी माँ ने उसे नेक सलाह देते हुये कहा कि मन में कभी भी लोभ को पनपने मत देना। साधारण जीवन जीना और कडी मेहनत के बल पर अपना जीवन यापन करना। जनकल्याण के लिए  उतने ही पत्ते लाना, जितना जरुरी लगे। अब वह एक निश्चित मात्रा में पत्ते लाता। दूसरे दिन वे सोने के बन जाते। उन्हें बेचकर उसने काफ़ी धन इकठ्ठा कर लिया था। इन पैसों में से उसने अपने लिए एक साधारण सा मकान बनाया। चुंकि गरीबी के कारण वह स्कुल नहीं जा पाया था, इसका मलाल उसके मन में अब भी था। उसने गाँव के बच्चों के लिए एक पाठशाला खुलवा दिया, ताकि गरीबों के बच्चे वहाँ पढ सकें। उसने एक बडा सा कुँआ भी खुदवा दिया था।  अब लोगों को पानी लेने के लिए दूर नहीं जाना पडता था। बडॆ-बूढे उसे आशीष देते और लोग उसकी तारीफ़ करते नहीं अघाते।  वह केवल मुस्कुराकर रह जाता और कहता कि आप लोगों की सेवा करना तो उसका धर्म है।     -गोवर्धन यादव

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