मनालीः आनंद का उद्गम स्थलः संदीप साइलस

जैसे ही आप व्यास नदी को अपनी बगल में कुलाचें मारते देखते हैं अंतहीनता का एक हृदयस्पर्शी भाव आपको एक मधुर गीत की भांति गुनगुनाता है। मनाली की ओर बढ़ते हुए जैसे ही आप मंडी से आगे बढ़ते हैं, यह न जाने कहां से प्रकट होती है। यह आपका साथ कभी नही छोड़ती और आपको हिम के समान धवल प्रकृति के अंचल में ले जाती है।ब्यास गोल चट्टानों के ऊपर से बहती हुई एक प्रश्नवाची मुद्रा में पर्वत के आधार तक बहती रहती है। कभी नदी का पाट चौड़ा होता है तो आप जलराशि की शांत सतह को देख सकते हैं जिसके नीचे तेज बहाव दृष्टिगोचर होता है। कभी कभार टेढे मेढे पर्वत पाट को संकरा कर देते हैं और यह एक दूसरे के बेहद करीब आ जाते हैं। फिर एक तंग घाटी व्यास को अवरुद्ध कर देती है और यह एक उफनती धारा में बदल जाती है। मार्ग के दोनों ओर सेव, बादाम और शहतूत के पुष्प गुच्छ अपने विभिन्न रंगों को आपकी नजरों और अप्रैल के सूने आकाश में बिखरा देते हैं।

सड़क नदी के तट के करीब से गुजरती है और आप नदी की गुनगुनाहट सुन सकते हैं। मौसम अपना वादा भूल जाता है और उसमें सहसा परिवर्तन दिखाई देता है। पिघळती हुई हिम प्रचुर मात्रा में जल में परिवर्तित होकर सड़क के ऊपर से एक अकड़ भरे जुलूस की भांति गुजरती है। आप बिना जाने-बूझे एक छोटी नदी को पार कर जाते हैं। यह सड़क वैसी ही बेवफा है जैसी एक रखैल।

ब्रेक खराब हो जाने के कारण हमें मरम्मत के लिए आट में रुकना पड़ा। इसके कारण थोड़ी देर बाद रात के आगमन के संकेत दिखाई देने लगे।विशाल पर्वतों का दृश्य जो निगाहों के समान सीधा बढ़ता है वास्तव में प्रभावशाली लगता है। अनेक गुफाएँ और वृत्ताकार वृक्ष धीरे-धीरे अँधेरे के आगोश में खोते जाते हैं। जब हम आगे बढ़े तो एक रोयेदार पूंछ और छरहरे टांगों वाली चालाक लोमड़ी हमारा रास्ता काट गई।

चांदनी से नहा कर हिमाच्छादित शिखर चांदी के समान दमकते हैं। चंद्रमा की मृदु किरणें पर्वत के जिस भाग पर पड़ती हैं वह उनमें भीग कर एक विचित्र आभा से आलोकित हो उठता है। छिपे हुए भाग अँधियारी परछांई की भांति दिखते हैं और एक रहस्यमयी आकर्षण उत्पन्न करते हैं। ब्रेक का खराब होना वाकई में वरदान सिद्ध हुआ क्योंकि तभी हमें हिम की धवल छवि के सौंदर्य का रसपान करने को मिला। अपने गंतव्य स्थल पर पहुंचने से पूर्व ही हमने व्यास नदी के तट पर डेरा डाल दिया। बहते हुए जल की कलकल ने रास्ते की थकान को उतार दिया।

मनाली की सुबह अलौकिक होती है-आँखें खोलने पर आपके समक्ष एक अद्भुत नजारा होता है। चारो तरफ हिमाच्छादित शिखरों वाले विशाल भव्य पर्वत वनदेवता की भांति खड़े दिखाई देते हैं। दूर उस स्थान पर जहां सोलंग और रोहतांग की घाटियां आरंभ होती हैं धौलाकार पर्वत हिम से ढके हुए दिखते हैं। प्रीनी हिमनद और इसकी एकाकी हमता चोटी तथा ढलाने क्रीम से ढकी सतह की भांति लगती है। समस्त क्षेत्र एक पात्र की भांति लगता है। जिसे मानो दोनों हथेलियां जोड़कर बनाया गया हो। इस आनंद से परिपूर्ण पात्र में मनाली शहर बसा है और जो अब ब्यास के दोनों ओर भी उग गया है। इस्पात के नाजुक पुल से जब आप गुजरते हैं तो वह चरमराता है और ऐसा लगता है कि मानो वह बहती बयार, गड़गड़ाती नदी और वर्षा की बूंदों की टपटपाहट को प्रतिध्वनित कर रहा हो। वैसे वह इस शहर के विभिन्न भागों को जोड़े रखने का काम करता है।

शांत बैठिए और चारों तरफ बिखरे सौंदर्य का निगाहों से रसपान कीजिए। पर्वत के सामने जमी हुई नदी को ढूंढ निकालने का आनंद उठाइये। बर्फीली हवा ने इसके बहाव को अवरुद्ध करके इसे आगे बढ़ने से रोक दिया है। यह पर्वत की दृढ़ता से मंत्रमुग्ध होकर ढहर सी गयी लगती है। आपकी नजरें घूमती हुई पर्वतों को सहलाती हैं और उनपर सब तरफ खड़े चीड़ के वृक्षों के बीच जमी हिम की चादरों का आनंद उठाती हैं और सहसा उन्हें पर्वतों से झूमता लहराता जल प्रपात दिखाई देता है। पर्वतों के शिखरों से उत्पन्न निर्मलतम वरदान। दूर से आप इसकी आवाज नहीं सुन सकते लेकिन जब आप इसे इतनी ऊँचाई से उतरते हुए देखते हैं तब आपको इसकी प्रचंडता का अहसास होता है।

यदि मौसम सर्द हो जाता है और आप कंपकपी महसूस करते हैं तो यकीन मानिए आपको दूर ऊंचाई पर हिमपात देखने का अवसर मिलेगा। चीड़ के हरे भरे पेड़ों से ढके पर्वत धवल होने लगते हैं। रूई के फाहों के समान गिरती हिम हर संभव वस्तु और दरारों को हिम की चादर से ढक देती है। हरियाली घटती जाती है और धवलता बढ़ती जाती है। यह प्रकिया वास्तव में मंत्रमुग्धकारी है।

मनाली शहर का दृश्य आपके भीतर आनंद और अवसाद दोनों की अनुभूति कर देता है। शहर की सुंदरता का आनंद और भंगुरता की पीड़ा साथ-साथ उत्पन्न होती है। यह कल्पना उंची उड़ान भरती है और आप स्वप्न जगत में खो जाते हैं। ऐसा लगता है मानो आप हिम रानी को परिधान धारण करते हुए देख रहे हैं। जब वह अपने अमूल्य आभूषणों को धारण करने लगती है तो सहसा उसकी आभूषण पेटिका खुल जाती है और उसके सुंदर मोती, नीलम, हीरे, पुखराज, स्वर्ण कंठहार सभी इस आनंद से परिपूर्ण घाटी में बिखर जाते हैं। ब्यास के तट और आकाश की ओर बांहें फैलाते हुए पर्वतों में जहां जहां यह आभूषण गिरे वह स्थान जगमगा उठे।

चमचमाती हिम को स्पर्ष किए बगैर आप यहां से लौट नहीं सकते। ग्रीष्म के दौरान हिम की मात्रा घट जाती है। लेकिन फिर भी आपको मनाली से 12 कि.मी. दूर केयलोग मार्ग पर एक एक मनोरम गांव कोठी से कुछ ही दूर हिम को स्पर्श करने का अवसर मिल सकता है। शीतकाल के दौरान हिम समस्त मनाली को अपने आगोश में ले लेती है। हिम से ढकी ढलानों का आप आनंद उठा सकते हैं। इन पर एक बच्चे के समान फिसलने का आनंद अद्भुत है। चढ़ाई चढ़ने में जिनको कठिनाई होती है उन्हें विकराल सी दिखने वाली याक की सवारी मिलती है जबकि चुस्त दुरुस्त लोग चपल गति से इन ऊंचाइयों का सफर तय करते हैं।

अब तक आप सर्दी से किटकिटाने लगे होंगे। वापसी में वशिष्ठ गांव में ठहरिये जहां गंधक के गर्म सोते हैं। इनमें स्नान करने से आपके शरीर में पुनः ताजगी और उष्मा का संचार होने लगेगा। श्रद्धालुओं के लिए ब्यास के दूसरे तट पर हडिम्बा मंदिर है। हडिम्बा महाभारत के धर्मग्रन्थ में वर्णित भीम की पत्नी थी। यह मंदिर 1553 ईसवी का है।

कुल्लु के विशेष शालों की खरीद के उत्सुक लोगों को माल पर शापिंग करने से फायदा हो सकता है। इस क्षेत्र की अनगिनत सुन्दर स्त्रियां इनको हाथकरखों पर बुनती हैं। पर्वतों, मंदिरों, बागों पुष्पों से जुड़ी उनकी धारणाएँ इन बुनाइयों में दिखाई देती हैं। उनके विचारों के इन्द्रधनुषी रंग और हृदय से उपजी भावनाएं इन कलावस्तुओं में चहुंओर दिखाई देती है।

यदि आप ट्रेकिंग के शौकीन हैं तो कुछ समय और यहां रुकिए। मनाली वह स्थान है जहां आपके सशक्त पैरों और बलशाली फेफड़ों का परीक्षण होता है। मनाली से रानी सुई 420 0 मीटर, लामा डुघ से (11कि.मी., 2 दिन) मनाली से भुन्चर, (रूमसु, चंद्रखनी, मलाना, कसोल, जरी से होकर 74 कि. मी., 7 दिन और चंद्रखनी पर 3650 मीटर की ऊंचाई को नापते हुए भी) और मनाली से केलोंग (हमता, चंद्रताल और बरालछा दर्रों से होकर) आदि अनेक ट्रेकिंग मार्ग हैं जो आपको जीवन पर्यंत याद रहेंगे। प्रकृति की मनोरमता और विराटता का इतना घनिष्ठ संसर्ग आपको शायद ही कहीं अनुभव करने को मिलेगा।

मनाली की धौलाधर पर्वत श्रंखला के सौंदर्य से आप शायद ही कभी तृप्त हो पायें। दिन के विभिन्न पहरों के साथ साथ यह विभिन्न छटाएँ बिखेरती हैं। सूर्योदय पर गुलाबी रंगत, दोपहर में चटकीली आभा, संध्याकाल में मंडराते बादल और फिर हिमाच्छादित शिखरों के पीछे से उभरते प्रेमासिक्त चंद्रमा की किरणें शिथिल दिलोदिमाग को असीम शांति से सिक्त कर देती हैं।
संदीप साइलस

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